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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal September 25, 2025 05:42 40 0

जमानत न्याय शास्त्र (Bail Jurisprudence)

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि केवल आपराधिक पूर्ववृत्त (Criminal Antecedents) के आधार पर जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता, विशेषकर तब जब अभियुक्तों ने विचाराधीन कैदी के रूप में लंबे समय तक कारावास व्यतीत किया हो।

प्रकरण की पृष्ठभूमि

  • घटना: वर्ष 2021 में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) के नेता के.एस. शान की हत्या की गई।
  • आरोपी: 10 व्यक्तियों पर आरोप लगाया गया एवं वर्ष 2022 में सत्र न्यायालय ने उनमें से पाँच को जमानत दी।
  • केरल उच्च न्यायालय का निर्णय (वर्ष 2024): उच्च न्यायालय ने पहले दी गई जमानत रद्द कर दी, यह कहते हुए कि आरोपियों के आपराधिक पूर्ववृत्त हैं और इनसे गवाहों को धमकाने का जोखिम है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (वर्ष 2025): सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत बहाल करते हुए कहा कि आरोपी उच्च न्यायालय द्वारा जमानत रद्द करने से पहले ही लगभग दो वर्षों तक जमानत पर रह चुके थे।

सर्वोच्च न्यायालय के अवलोकन

  • जमानत का स्वर्णिम नियम: सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर के सिद्धांत की पुनः पुष्टि की –जमानत नियम है और जेल अपवाद है।” (Bail is the rule and jail is the exception)
  • मुकदमे की अखंडता
    • गवाहों को धमकाने या साक्ष्यों से छेड़छाड़ रोकने के लिए जमानत रद्द की जा सकती है।
    • परंतु मात्र आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर जमानत से इनकार या रद्द नहीं किया जा सकता।
  • दीर्घावधि कारावास: लंबे समय तक विचाराधीन कारावास, जमानत देने का एक वैध आधार है।

निर्णय का महत्त्व

  • जमानत न्यायशास्त्र: यह सिद्धांत मजबूत हुआ कि केवल आपराधिक रिकॉर्ड के कारण जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता।
  • विचाराधीन कैदियों के अधिकार: यह निर्णय लंबी अवधि तक विचाराधीन कारावास से आरोपियों की रक्षा करता है।
  • न्यायिक संतुलन: यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गवाहों की सुरक्षा और निष्पक्ष मुकदमे की आवश्यकता के बीच संतुलन पर बल देता है।

तमिलनाडु तटीय पुनर्स्थापन मिशन (TN-SHORE)

 

तमिलनाडु तटीय पुनर्स्थापन मिशन (Tamil Nadu Coastal Restoration Mission: TN-SHORE) के अंतर्गत, विश्व बैंक गाँव की मैंग्रोव समितियों को प्रत्यक्ष रूप से वित्त उपलब्ध कराएगा ताकि मैंग्रोव वृक्षारोपण के माध्यम सेबायोशील्ड’ सुरक्षा को मजबूत किया जा सके।

तमिलनाडु तटीय पुनर्स्थापन मिशन (TN-SHORE) के बारे में

  • मंजूरी: सितंबर 2025 में।
  • व्यय: ₹1,675 करोड़ (₹1,000 करोड़ विश्व बैंक से; शेष राज्य सरकार से)।
  • उद्देश्य
    • 30,000 हेक्टेयर समुद्री परिदृश्य (seascapes) को पुनर्स्थापित करना।
    • कछुआ और डुगोंग जैसी संकटग्रस्त प्रजातियों का संरक्षण।
    • इको-टूरिज्म और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा।
    • तटीय पारिस्थितिकी तंत्र की जलवायु प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना।

पुनर्स्थापन लक्ष्य

  • कुल लक्ष्य: 1,000 हेक्टेयर।
    • 300 हेक्टेयर में मैंग्रोव का वृक्षारोपण।
    • 700 हेक्टेयर में क्षतिग्रस्त मैंग्रोव का पुनर्स्थापन।

मैंग्रोव के बारे में

  • परिभाषा: मैंग्रोव लवणीय जल-सहिष्णु वृक्ष और झाड़ियाँ हैं, जो तटीय ज्वारीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहाँ लवणीय जल होता है।
  • आदर्श परिस्थितियाँ: उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 1,000–3,000 मिमी. वर्षा और 26–35°C तापमान में उत्पादित होते हैं।

विशेषताएँ

  • जरायुता (Vivipary): बीज मूल वृक्ष पर ही अंकुरित हो जाते हैं, जिससे लवणीय और जलमग्न परिस्थितियों में भी जीवित रहते हैं।
  • वायवीय जड़ें (Aerial roots): ये श्वसन जड़ें (निमेटोफोर) वायु से ऑक्सीजन अवशोषित करती हैं।
  • वैक्सी’ और ‘द्रवयुक्त’ पत्तियाँ (Waxy and succulent leaves): जल हानि को कम करने और लवण के प्रबंधन में सहायक।

भारत में सामान्य प्रजातियाँ

  • राइजोफोरा (रेड मैंग्रोव)
  • हेरिटिएरा फोम्स (सुंदरी मैंग्रोव)
  • एविसेनिया मरीना (ग्रे मैंग्रोव)
  • सोनेरटिया एपेटाला (केओरा)

मैंग्रोव वृक्षारोपण का महत्त्व

  • जलवायु प्रतिरोधक क्षमता: चक्रवात, तटीय अपरदन और समुद्र के बढ़ते स्तर के विरुद्ध ‘बायोशील्ड’ का कार्य।
  • कार्बन भंडारण: मैंग्रोव कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर मृदा में सदियों तक संचित रखते हैं, जिससे यह शक्तिशाली कार्बन सिंक की भूमिका निभाते हैं।
  • जीविका का स्रोत: मत्स्य पालन, शहद संग्रह, जलीय कृषि और अन्य इको-आधारित आजीविकाओं से स्थानीय समुदायों को सहारा।
  • जैव विविधता हॉटस्पॉट: मछलियों, पक्षियों और सरीसृपों के प्रजनन व नर्सरी स्थल, जो जटिल खाद्य शृंखलाओं का समर्थन करते हैं।

कोल्ड स्टार्ट’ अभ्यास 

भारत अक्टूबर 2025 में मध्य प्रदेश में एक विशाल त्रि-सेवा ड्रोन और काउंटर-ड्रोन अभ्यास ‘कोल्ड स्टार्ट’ आयोजित करेगा।

कोल्ड स्टार्ट’ अभ्यास के बारे में

  • परिचय: थल सेना, नौसेना और वायु सेना संयुक्त रूप से इस अभ्यास का आयोजन करेंगी, जिसमें उद्योग साझेदार, अनुसंधान एवं विकास एजेंसियाँ, शैक्षणिक संस्थान और अन्य हितधारक भी भाग लेंगे।
  • उद्देश्य
    • विकसित हो रहे हवाई खतरों के विरुद्ध परिचालन तत्परता का मूल्यांकन करना।
    • ड्रोन और काउंटर-ड्रोन प्रौद्योगिकियों का परीक्षण करना।
    • भारत की वर्तमान वायु रक्षा क्षमताओं में मौजूद कमियों की पहचान करना।

डायरेक्ट ब्रॉडकास्ट नेटवर्क (DBNet)

सितंबर 2025 में भारत के NCMRWF और NSIL ने मिशन मौसम के अंतर्गत दो DBNet स्टेशनों की स्थापना के लिए समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए।

डायरेक्ट ब्रॉडकास्ट नेटवर्क (DBNet) के बारे में

  • परिभाषा: DBNet एक वैश्विक परिचालन ढाँचा है, जोलो अर्थ ऑर्बिट’ (LEO) उपग्रहों से प्राप्त डेटा का रियल टाइम में अधिग्रहण सक्षम करता है। यह संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान (NWP) को सुदृढ़ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • NWP मौसम का पूर्वानुमान करने की एक वैज्ञानिक पद्धति है, जिसमें गणितीय मॉडल और संगणकीय तकनीकों का उपयोग करके वायुमंडलीय प्रक्रियाओं और भविष्य की परिस्थितियों का अनुकरण किया जाता है।

अनुप्रयोग 

  • DBNet मौसम पूर्वानुमान, चक्रवात निगरानी और जलवायु अनुसंधान में सहायता करता है।
  • यह अल्पकालिक क्षेत्रीय पूर्वानुमानों से लेकर मध्यम-अवधि के जलवायु आकलन तक, व्यापक पैमाने पर पूर्वानुमान लगाने में योगदान देता है।

NCMRWF और NSIL के बारे में

  • राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र (NCMRWF): यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के अंतर्गत एक संस्थान है, जो भारत में उन्नत मौसम पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करने के लिए उत्तरदायी है।
  • न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): यह अंतरिक्ष विभाग (DoS) की वाणिज्यिक शाखा है, जिसे ISRO द्वारा विकसित उत्पादों, सेवाओं और प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करने तथा वाणिज्यिक रूप से उपयोग में लाने हेतु स्थापित किया गया है।

मिशन मौसम क्या है?

  • प्रारंभ: मिशन मौसम जनवरी 2025 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की 150वीं स्थापना वर्षगाँठ पर शुरू किया गया।
  • उद्देश्य: मौसम पूर्वानुमान और मॉडलिंग क्षमताओं को सुदृढ़ कर भारत कोवेदर रेडी”  (weather-ready) और “क्लाइमेट-स्मार्ट”  (Climate-smart) राष्ट्र बनाना।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES)
  • लक्ष्य: चरम मौसमी घटनाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पूर्वानुमान तथा प्रतिक्रिया देने संबंधी भारत की क्षमता को बढ़ाना।
  • फोकस: प्रेक्षण और समझ में सुधार कर समयबद्ध और अत्यंत सटीक मौसम एवं जलवायु संबंधी जानकारी प्रदान करना।
  • उपकरण: MoES द्वारा 60 वेदर रडार, 15 विंड प्रोफाइलर और 15 रेडियोसाउंड स्थापित किए जाएँगे।

मोहेनजोदड़ो की ‘नर्तकी की मूर्ति’ 

हाल ही में राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली से प्रसिद्ध मोहनजोदड़ो की नर्तकी की मूर्ति’ की प्रतिकृति चोरी होने की जानकारी प्राप्त हुई।

  • मूल मूर्ति (लगभग 2500 ईसा पूर्व) वर्ष 1926 में मोहनजोदड़ो से उत्खनन में प्राप्त की गई थी, जो सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थलों में से एक था।

मोहेनजोदड़ो की ‘नर्तकी की मूर्ति’ 

  • यह 10.5 सेमी ऊँची कांस्य प्रतिमा है।
  • तकनीक: इसे  “मोम द्रवीकरण तकनीक”  से निर्मित किया गया है, जो हड़प्पा सभ्यता की उन्नत धातुकर्म तकनीक को दर्शाता है।
  •  “मोम द्रवीकरण तकनीक”: इसमें मोम की बनी आकृति को मृदा से ढककर पिघला दिया जाता है और उसकी जगह पिघली हुई धातु डाली जाती है, जिससे सूक्ष्म व जटिल आकृतियाँ तैयार होती हैं।
  • आकृति: एक युवा महिला, गले में हार और एक हाथ में अनेक कंगन, एक हाथ कमर पर रखे हुए आत्मविश्वास और सौंदर्य प्रदर्शित करती है।

सांस्कृतिक महत्त्व

  • इसे एक धर्मनिरपेक्ष कलात्मक सृजन माना जाता है।
  • यह हड़प्पाई सौंदर्यबोध, कलात्मक यथार्थवाद और तकनीकी नवाचार को प्रतिबिंबित करती है।

कला इतिहास में महत्त्व

  • इसे दक्षिण एशिया की प्रारंभिक धातु प्रतिमाओं में से एक माना जाता है।
  • यह भारतीय कला इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है, जो हड़प्पाई समाज की सांस्कृतिक परिपक्वता को दर्शाती है।

मोहनजोदड़ो और सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में

  • मोहनजोदड़ो: सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 2500 ईसा पूर्व) का एक प्रमुख नगरीय केंद्र, जो उन्नत नगर-योजना, ग्रिड-पैटर्न वाली सड़कों, जल निकासी प्रणाली, वृहद स्नानागार और नर्तकी की मूर्ति’ जैसी कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है।
  • यह वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में, सिंधु नदी के पास अवस्थित है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता (IVC): यह 3300–1300 ईसा पूर्व के बीच भारत और पाकिस्तान के वर्तमान क्षेत्रों में प्रभावी रही।
    • प्रमुख विशेषताएँ: उन्नत शहरी योजना, मानकीकृत माप-तोल पद्धति , मुद्राएँ, धातुकर्म और व्यापार नेटवर्क।
    • यह विश्व की प्रारंभिक जटिल सभ्यताओं में से एक थी।

ओजू जलविद्युत परियोजना

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (Expert Appraisal Committee- EAC) ने चीनी सीमा के पास, अरुणाचल प्रदेश के अपर सुबनसिरी जिले में, सुबनसिरी नदी पर ओजू जलविद्युत परियोजना (2,220 मेगावाट) के निर्माण को मंजूरी दे दी है।

ओजू जलविद्युत परियोजना (सुबनसिरी बेसिन) के बारे में

  • प्रकार/प्रकृति: नदी प्रवाह एवं जलविद्युत (सुबनसिरी बेसिन में ‘कैस्केड’ योजना) भंडारण परियोजना।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • मुख्य संयंत्र: 2,100 मेगावाट;
    • डैम-टो संयंत्र: 120 मेगावाट।
  • लाभ: नवीकरणीय ऊर्जा, ग्रिड स्थिरता, जल विनियमन, सीमावर्ती अवसंरचना।
    • ओजू सुबनसिरी बेसिन में सबसे बड़ी स्वीकृत जलविद्युत परियोजना है। अन्य परियोजनाओं में नियारे, नाबा, नालो, डेंगसर, ऊपरी एवं निचला सुबनसिरी शामिल हैं।
  • जोखिम: ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs), भूकंपीय संवेदनशीलता, जैव विविधता हानि, समुदायों का विस्थापन, वन उन्मूलन।

सुबनसिरी नदी के बारे में

  • यह ब्रह्मपुत्र की सबसे बड़ी सहायक नदी (बाएँ तट की सहायक नदी) है।
  • इसके जल में सोने की धूल (प्लेसर खनन) के कारण इसेस्वर्ण नदी” के रूप में भी जाना जाता है।
  • उद्गम: ट्रांस-हिमालयी पूर्ववर्ती नदी, तिब्बत से निकलती है तथा अरुणाचल प्रदेश एवं असम से होकर बहती है तथा ब्रह्मपुत्र नदी में मिलती है।

सुपर टाइफून रागासा

सुपर टाइफून रागासा, सितंबर 2025 में हांगकांग एवं ग्वांगडोंग, चीन में आया।

  • इसमें 200 किमी/घंटा से अधिक की वायु की गति दर्ज की गई, जिसके कारण हांगकांग वेधशाला ने 10 नंबर सिग्नल (उच्चतम अलर्ट) जारी किया, जो वर्ष 2025 में दूसरी ऐसी चेतावनी है, जो वर्ष वर्ष 1964 के बाद से नहीं देखी गई।
  • वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण तीव्र, अधिक बार आने वाले एवं लंबे समय तक संचालित होने वाले टाइफून आ रहे हैं, जो प्रशांत महासागर के गर्म होते जल (पिछली शताब्दी में 1.5°C से अधिक, UNEP) से संबंधित हैं।

सुपर टाइफून रागासा

  • यह एक तीव्र टाइफून है, जो पश्चिमी प्रशांत महासागर से उत्पन्न हुआ एवं चीन के दक्षिणी ग्वांगडोंग प्रांत में दस्तक दी।
  • श्रेणी 5 के समतुल्य सुपर टाइफून (≥250 किमी./घंटा, वायु की संभावित गति)।
  • लगभग 30°C समुद्री सतह के तापमान पर कम पवन प्रवाह के साथ निर्मित, जो तीव्र वृद्धि के लिए आदर्श परिस्थितियाँ हैं।
  • इसकी ‘आईवॉल’ का प्रतिस्थापन हुआ, जिससे इसकी शक्ति और अधिक बढ़ गई।
  • वर्तमान प्रवृत्ति
    • श्रेणी 5 से अधिक के तूफानों की बढ़ती आवृत्ति के कारण वैज्ञानिकों ने एक नया श्रेणी 6 वर्गीकरण प्रस्तावित किया है।
    • ऐतिहासिक समानताएँ: टाइफून होप (वर्ष 1979) एवं सुपर टाइफून हैयान (वर्ष 2013)

जलवायु परिवर्तन एवं टाइफून की तीव्रता

  • परिभाषा: टाइफून उत्तर-पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवात होते हैं। ये ऊष्मा-प्रेरित चक्रवात होते हैं, जो महासागर की ऊष्मा को नष्ट कर देते हैं।
  • जलवायु संबंध
    • गर्म महासागरों के कारण अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है एवं तेजी से तीव्र होकरसुपर टाइफून’ बनते हैं।
    • अवरोधन प्रभाव: चक्रवात तटरेखाओं के पास रुकते हैं, जिससे भारी वर्षा एवं बाढ़ आती है।
    • आईवॉल रिप्लेसमेंट साइकिल इनकी तीव्रता को बढ़ाते हैं।
  • वैज्ञानिक आधार
    • UNEP रिपोर्ट: पिछली शताब्दी में प्रशांत महासागर 1.5°C से अधिक उष्ण हुआ है।
  • पेरिस समझौते की 1.5°C की सीमा पहले ही चक्रवात की बढ़ती गंभीरता को पार कर चुकी है।
  • हैनसेन के पुराजलवायु अध्ययन दर्शाते हैं कि महासागर के गर्म होने और बर्फ के पिघलने से समुद्री धाराओं में गंभीर व्यवधान उत्पन्न होता है, जिसके परिणामस्वरूप पिछले अंतर-हिमनद काल की तरह विनाशकारीसुपरस्टॉर्म” उत्पन्न हो सकते हैं।
  • हिंद महासागर में प्रवृत्ति: बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर में भी इसी तरह के जोखिम मौजूद हैं, जहाँ फानी, अंफान, तौकते त्तथा बिपरजॉय जैसे तीव्र चक्रवात आए।
  • जोखिम: तटीय बाढ़, तूफानी लहरें, शहरी बुनियादी ढाँचे की क्षति, विस्थापन, आर्थिक नुकसान।

मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना

प्रधानमंत्री बिहार में मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 75 लाख महिलाओं को ₹10,000 की राशि हस्तांतरित करेंगे।

मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के बारे में

  • परिचय: यह बिहार सरकार की एक पहल है, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में महिला उद्यमिता तथा आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देना है।
  • वित्तीय सहायता: प्रति महिला ₹10,000 की पहली किस्त प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) के माध्यम से प्रदान की जाएगी।
    • छह महीने की कार्य-निष्पादन समीक्षा के बाद, पात्र महिला उद्यमियों को ₹2 लाख का अतिरिक्त अनुदान दिया जाएगा।
    • प्रारंभिक सहायता अप्रतिदेय है, जिससे वित्तीय राहत एवं व्यवसाय शुरू करने में सहायता सुनिश्चित होती है।
  • कार्यान्वयन एजेंसियाँ
    • ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ग्रामीण विकास विभाग।
    • शहरी क्षेत्रों के लिए नगरीय विकास विभाग।
    • जीविका स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups- SHGs) जिला, ब्लॉक, क्लस्टर एवं ग्राम स्तर पर सक्रिय रूप से भाग लेंगे, ताकि पहुँच तथा निगरानी सुनिश्चित की जा सके।
  • पात्रता मानदंड: 18-60 वर्ष की आयु की महिलाएँ, एकल परिवारों से हों एवं आयकर न जमा करती हों।
  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों या आय का स्थायी स्रोत न रखने वाली महिलाओं को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • सभी जीविका स्वयं सहायता समूह सदस्य पात्र हैं।
  • अविवाहित वयस्क महिलाएँ, जिनके माता-पिता का निधन हो चुका है, वे भी पात्र हैं।

महत्त्व

  • महिलाओं को अपनी पसंद का व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं।
  • आर्थिक सशक्तीकरण को मजबूत करता है, विशेषतः ग्रामीण बिहार में, एवं राज्य की समग्र अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।

अर्द्ध-चंद्र

खगोलविदों ने एक अर्द्ध-चंद्र (Quasi-Moon), 2025 PN7 की खोज की है, जो लगभग 60 वर्षों से पृथ्वी के निकट परिक्रमा कर रहा है। इसे पहली बार वर्ष 2025 में पैन-स्टार्स द्वारा देखा गया था, जिसके अभिलेखीय अवलोकन वर्ष 2014 से प्राप्त हुए हैं।

अर्द्ध-चंद्र के बारे में

  • परिचय: अर्द्ध-चंद्र एक छोटा खगोलीय पिंड है, जो किसी ग्रह के साथ सूर्य की परिक्रमा करता है, एवं ऐसा प्रतीत होता है कि वह वास्तविक चंद्रमा न होते हुए भी उससे संबंधित है।
  • 2025 PN7 की विशेषताएँ
    • इसका व्यास लगभग 62 फीट (19 मीटर) है, जो इसे पृथ्वी के निकट सबसे छोटा ज्ञात अर्द्ध-चंद्र बनाता है।
    • सूर्य के चारों ओर इसकी कक्षा पृथ्वी के पथ के लगभग समान है एवं लगभग एक वर्ष में एक सौर परिक्रमा पूरी करती है।
    • पृथ्वी एवं सूर्य दोनों के गुरुत्वाकर्षण प्रभावों के कारण यह एक अस्थायी, स्थिर अर्द्ध-कक्षा में रहता है, जिसके अगले 60 वर्षों तक समान रहने का अनुमान है।
    • यह अत्यंत धुँधला है और केवल उच्च क्षमता वाले दूरबीनों से ही देखा जा सकता है, जो इसके दुर्लभ स्वरूप को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है।

खोज का महत्त्व

  • वैज्ञानिक अनुसंधान: 2025 PN7 का अध्ययन पृथ्वी के निकट स्थित पिंडों एवं अर्द्ध-कक्षाओं में उनकी गति से संबंधित ज्ञान में सुधार करता है।
  • ग्रहीय रक्षा: यह अवलोकन संभावित क्षुद्रग्रह खतरों की निगरानी करने संबंधी रणनीतियों के निर्माण में सहायता कर सकता है।
  • अन्वेषण क्षमता: एक छोटे खगोलीय पिंड के रूप में इसकी उपस्थिति, अर्द्ध-चंद्रों को भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों एवं संसाधन अध्ययनों के लिए व्यवहार्य लक्ष्य बना सकती है।

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