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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal September 29, 2025 02:57 20 0

माही बाँसवाड़ा राजस्थान परमाणु ऊर्जा परियोजना

भारतीय प्रधानमंत्री ने माही बाँसवाड़ा राजस्थान परमाणु ऊर्जा परियोजना एवं सौर आधारित, राजमार्ग, रेलवे तथा कल्याणकारी परियोजनाओं सहित कई विकास परियोजनाओं का उद्घाटन एवं शिलान्यास किया।

माही बाँसवाड़ा राजस्थान परमाणु ऊर्जा परियोजना के बारे में

  • अवस्थिति: माही नदी के दाहिने किनारे पर, राजस्थान में माही बजाज सागर बाँध के पास अवस्थित है।
  • क्षमता एवं रिएक्टर
    • चार स्वदेशी दाबित भारी जल रिएक्टर (Pressurised Heavy Water Reactors- PHWRs) जिनमें प्रत्येक 700 मेगावाट क्षमता का है।
    • कुल क्षमता: 2,800 मेगावाट।
  • विकासकर्ता: अणुशक्ति विद्युत निगम लिमिटेड (ASHVINI)।
    • अणुशक्ति विद्युत निगम लिमिटेड (ASHVINI), भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) एवं NTPC लिमिटेड का एक संयुक्त उद्यम है।
  • समय-सीमा: निर्माण शुरू होने के बाद 6.5 वर्षों में पूर्ण होने का अनुमान
  • राजस्थान के लिए महत्त्व: रावतभाटा (Rawatbhata- RAPP) (2,580 मेगावाट क्षमता) के बाद राज्य का दूसरा परमाणु संयंत्र।

भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता

  • वर्तमान क्षमता: भारत 24 रिएक्टरों (8,180 मेगावाट) का संचालन करता है, जिनका प्रबंधन NPCIL द्वारा किया जाता है।
  • लक्ष्य: वर्ष 2031-32 तक 22,480 मेगावाट तक विस्तार (10 नए रिएक्टर निर्माणाधीन, 10 एवं पर परियोजना-पूर्व कार्य)।
  • दीर्घकालिक दृष्टिकोण: वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा।

कोडाईकनाल के मेगालिथिक डोलमेंस

कोडाईकनाल के 5,000 वर्ष से भी प्राचीन मेगालिथिक ‘डोलमेंस’, उपेक्षा, वनस्पति आवरण की हानि एवं विनाश के कारण लुप्त हो रहे हैं।

डोलमेंस क्या हैं?

  • डोलमेंस महापाषाणकालीन संरचनाएँ हैं, आमतौर पर शवाधान स्थल, जो एक वृहद शिलाखंड को सहारा देने वाले चार ऊर्ध्वाधर स्तंभ द्वारा निर्मित होते हैं।
  • ये चट्टानी चोटियों एवं ढलानों में पाए जाते हैं, जो प्रायः प्राकृतिक खदानों के साथ संरेखित होते हैं।
  • महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों/आदिवासी नेताओं के लिए स्मारक के रूप में थे।

ऐतिहासिक अभिलेख

  • पहला सर्वेक्षण रेवरेंड A. एंग्लेड एवं रेवरेंड L.V. न्यूटन (जेसुइट प्रीस्ट, 1910 के दशक) द्वारा किया गया।
  • ‘द डोलमेंस ऑफ द पलानी हिल्स’ (वर्ष 1928, ASI के संस्मरण) में प्रलेखित।
  • सड़क निर्माण कार्य के दौरान डोलमेन को नष्ट होते देखा गया है, जिनके स्लैब का पुनः उपयोग पुलिया और दीवारों के निर्माण में किया जाता था।

कोडाईकनाल डोलमेंस की मुख्य विशेषताएँ

  • निर्माण तकनीक: पत्थरों पर बहुत कम या बिल्कुल भी सजावट नहीं दिखाई देती, जिससे पता चलता है कि इन्हें न्यूनतम आकार दिया गया एवं साधारण औजारों से बनाया गया था।
  • प्राकृतिक रूप से उपलब्ध स्लैब का प्रयोग करके चट्टानी चोटियों/ढलानों पर निर्मित।
  • ‘कैपस्टोन’ डिजाइन: वर्षा जल निकासी के लिए ढलान, जलभराव को रोकने के लिए कक्षों में छिद्र थे।
  • मुख्य रूप से थांडीकुडी, पेथुपराई, माचूर एवं पेरुमलमलाई जैसे स्थलों में पाए जाते हैं।

पुरातात्त्विक साक्ष्य

  • उत्खनन से प्राप्त कलाकृतियाँ: काले एवं लाल मृदभाँड, कार्नेलियन मोती।
  • लौह युग से लेकर ऐतिहासिक काल तक के संकेत देते हैं।
  • प्राचीन व्यापार मार्गों (पोल्लाची, पलानी, डिंडीगुल होते हुए मुसिरी-मदुरै) के किनारे स्थित हैं।
  • काली मिर्च और इलायची के बागानों की उपलब्धता के कारण ऊँचाई (4,000-5,000 फीट) पर बसावट अनुकूल थी।

मध्य अमेरिकी एकीकरण प्रणाली (SICA)

न्यूयॉर्क में भारत-SICA विदेश मंत्रियों की बैठक में, भारतीय विदेश मंत्री ने मध्य अमेरिकी एकीकरण प्रणाली (Central American Integration System- SICA) देशों के साथ भारत के बढ़ते संबंधों पर प्रकाश डाला, जिसमें व्यापार, निवेश एवं डिजिटल भुगतान सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया।

मध्य अमेरिकी एकीकरण प्रणाली (SICA) के बारे में

  • स्थापना: वर्ष 1962 के ODECA चार्टर में संशोधन करते हुए, तेगुसिगाल्पा प्रोटोकॉल के माध्यम से 13 दिसंबर, 1991 को इसकी स्थापना की गई।
    • यह 1 फरवरी, 1993 को लागू हुआ।
  • मुख्यालय: इसका सचिवालय ‘अल सल्वाडोर’ में अवस्थित है।
  • सदस्यता
    • संस्थापक सदस्य: कोस्टा रिका, अल साल्वाडोर, ग्वाटेमाला, होंडुरास, निकारागुआ, पनामा।
    • अन्य सदस्य: बेलीज एवं डोमिनिकन गणराज्य (पूर्ण सदस्य)।
    • पर्यवेक्षक: क्षेत्रीय (जैसे, मेक्सिको, चिली, ब्राजील, अमेरिका) एवं अन्य (जैसे, यूरोपीय संघ, जापान, भारत, UK)।
  • उद्देश्य
    • शांति, स्वतंत्रता, लोकतंत्र एवं विकास को बढ़ावा देना।
    • एक मुक्त व्यापार क्षेत्र एवं बाद में एक सीमा शुल्क संघ का गठन।
    • उन्नत बुनियादी ढाँचा एकीकरण, समान पासपोर्ट/वीजा नीतियाँ एवं वैश्विक मुद्दों पर एकीकृत दृष्टिकोण।
  • संरचना एवं संचालन
    • अध्यक्षता प्रत्येक छह माह में बदलती रहती है।
    • द्विवार्षिक शिखर सम्मेलन एवं नियमित मंत्रिस्तरीय बैठकें संचालित होती है।
    • सफलता: एक सीमा शुल्क संघ की स्थापना (ग्वाटेमाला, होंडुरास, अल सल्वाडोर पूर्ण सदस्य एवं  डोमिनिकन गणराज्य पर्यवेक्षक)।

भारत-SICA सहयोग

  • प्रारंभिक सहभागिता (वर्ष 2004): अल सल्वाडोर के विदेश मंत्री एवं SICA महासचिव के नेतृत्व में 18 सदस्यीय SICA प्रतिनिधिमंडल का भारत दौरा।
    • भारत के साथ राजनीतिक सहयोग एवं संवाद पर घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर।
  • वर्ष 2008: नई दिल्ली में भारत-SICA विदेश मंत्रियों की दूसरी बैठक एवं संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान द्विवार्षिक बैठकों एवं वार्षिक परामर्श पर सहमति। भारत-SICA व्यापार मंच तथा संयुक्त तकनीकी समिति की स्थापना।
  • वर्ष 2015: तीसरी मंत्रिस्तरीय बैठक (ग्वाटेमाला)।

डुगोंग

IUCN ने विश्व संरक्षण कांग्रेस 2025 में भारत के पहले डुगोंग संरक्षण रिजर्व (पाक खाड़ी, तमिलनाडु में 448 वर्ग किमी.) को मान्यता प्रदान की, जिसे तमिलनाडु सरकार ने वर्ष 2022 में घोषित किया था।

डुगोंग के बारे में

  • डुगोंग या “सी काउ” समुद्री स्तनपायी है, जो समुद्र की उथली तटीय जलराशि में पाई जाने वाली समुद्री घास पर निर्भर रहता है। 
  • आवास: वे उथले तटीय जल में, आमतौर पर 10 मीटर की गहराई में, उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहते हैं।
  • आहार: डुगोंग विशेष रूप से समुद्री घास के मैदानों, विशेष रूप से साइमोडोसिया जैसी प्रजातियों पर भोजन के लिए आश्रित होते हैं, जो उनके प्राथमिक खाद्य आश्रय हैं।
  • वितरण
    • वैश्विक: वे पूर्वी अफ्रीका एवं लाल सागर से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के 40 देशों में विस्तृत हैं।
    • भारत: भारत में, डुगोंग मुख्य रूप से मन्नार की खाड़ी, पाक खाड़ी, कच्छ की खाड़ी एवं अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं।
  • संरक्षण स्थिति
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची I के अंतर्गत सूचीबद्ध,
    • IUCN स्थिति: सुभेद्य (Vulnerable)।

IUCN विश्व संरक्षण कांग्रेस

  • प्रत्येक चार वर्ष में आयोजित होने वाला IUCN विश्व संरक्षण कांग्रेस, पर्यावरण संरक्षण एवं सतत् विकास के लिए समर्पित एक वैश्विक मंच है।
  • प्रतिभागी: यह सहयोगात्मक कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए सरकारों, नागरिक समाज, स्वदेशी समूहों, व्यवसायों एवं शिक्षा जगत के व्यक्तियों तथा निर्णयकर्ताओं को एक साथ लाता है।
  • उद्देश्य: इस कांग्रेस का उद्देश्य पर्यावरण शासन को मजबूत करना, प्रकृति-आधारित समाधानों के माध्यम से वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना एवं संरक्षण जिम्मेदारियों तथा लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करना है।
  • वर्ष 2025 की IUCN विश्व संरक्षण कांग्रेस: ​​अबू धाबी, संयुक्त अरब अमीरात।

राष्ट्रीय दिव्यांग सशक्तीकरण केंद्र (NCDE)

घायल केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) कर्मियों को हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय दिव्यांग सशक्तीकरण केंद्र (NCDE) में पैरा-एथलीट और आईटी पेशेवर के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है।

दिव्यांग वॉरियर्स (Divyang warriors) के बारे में

  • “दिव्यांग वॉरियर्स” (Divyang Warriors) उन CAPF कर्मियों को कहा जाता है, जो नक्सलियों, आतंकवादियों या उग्रवादियों के विरुद्ध अभियानों के दौरान अंग-विच्छेदन या दृष्टि हानि जैसी गंभीर चोटों से ग्रसित होते हैं।

राष्ट्रीय दिव्यांग सशक्तीकरण केंद्र (NCDE) के बारे में

  • NCDE को ड्यूटी के दौरान दिव्यांग हुए CAPF कर्मियों के पुनर्वास और सशक्तीकरण के लिए ’सिंगल विंडो सिस्टम’ के रूप में डिजाइन किया गया है।
  • स्थापना: NCDE की परिकल्पना पूर्व CRPF महानिदेशक ए. पी. महेश्वरी द्वारा की गई थी और दिसंबर 2020 में इसका उद्घाटन किया गया। 
  • अवस्थिति: CRPF समूह केंद्र, हकीमपेट, हैदराबाद।
  • उद्देश्य: गरिमा को पुनर्स्थापित करना, आत्मविश्वास जागृत करना और खेल एवं कौशल प्रशिक्षण के माध्यम से नए कॅरियर मार्ग प्रदान करना।
  • सरकारी समर्थन: कृत्रिम अंग उपलब्ध कराना और वित्तीय सहायता CRPF वेलफेयर फंड और ‘भारत के वीर’ प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रदान की जाती है।
  • उपलब्धियाँ: वर्ष 2020 से अब तक 219 दिव्यांग वॉरियर्स को NCDE में प्रशिक्षित किया गया है।
    • ये पैरा-एथलीट के रूप में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में पदक जीत चुके हैं।
    • कई वॉरियर्स को IT तथा डेस्क-आधारित कार्यक्षेत्र में प्रशिक्षित कर खुफिया तथा डाटा प्रबंधन में सार्थक योगदान देने हेतु तैयार किया जा रहा है।
  • NCDE में सुविधाएँ
    • समग्र पुनर्वास के लिए कृत्रिम अंग उपलब्ध कराना, फिजियोथेरेपी एवं आघात संबंधी परामर्श।
    • IT पाठ्यक्रमों के लिए BITS पिलानी के साथ कौशल विकास समझौता।
    • जिम, पैरा-स्पोर्ट्स उपकरण, फिजियोथेरेपी कक्ष एवं ध्यान सत्र सहित खेल अवसंरचना।

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958

हाल ही में गृह मंत्रालय ने मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में AFSPA को अगले छह माह के लिए बढ़ा दिया है।

वर्तमान स्थिति में AFSPA का क्षेत्रीय दायरा

  • नागालैंड: नौ जिलों एवं पाँच जिलों के कुछ थाना क्षेत्रों में लागू।
  • असम: कुछ जिलों में प्रभावी।
  • मणिपुर: पूरे राज्य में लागू, केवल पाँच घाटी जिलों के 13 थाना क्षेत्रों को छोड़कर।
  • अरुणाचल प्रदेश: तिरप, चांगलांग, लोंगडिंग तथा नामसाई जिले के कुछ हिस्सों में लागू।
  • जम्मू एवं कश्मीर: यहाँ AFSPA सशस्त्र बल (जम्मू और कश्मीर) विशेष शक्तियाँ अधिनियम,1990 के अंतर्गत लागू है, जो उत्तर-पूर्व में 1958 अधिनियम जैसी ही शक्तियाँ प्रदान करता है।

AFSPA के बारे में

  • सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 सशस्त्र बलों को “अशांत क्षेत्रों” में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने हेतु विशेष शक्तियाँ प्रदान करता है।
    • वर्ष 1958 में नागा हिल्स में विद्रोह से निपटने के लिए लागू किया गया, बाद में असम में भी विस्तारित किया गया।
  • प्रवर्तन की शर्तें: AFSPA केवल उन क्षेत्रों में लागू होता है, जिन्हें “अशांत क्षेत्र” घोषित किया गया हो।
    • राज्य एवं केंद्र सरकार दोनों किसी क्षेत्र को अशांत घोषित कर सकते हैं। 
  • अशांत क्षेत्र की परिभाषा (धारा 3): ऐसा क्षेत्र, जहाँ कानून-व्यवस्था बनाए रखने हेतु नागरिक प्राधिकरण की सहायता के लिए सशस्त्र बलों की आवश्यकता हो।
    • धार्मिक, जातीय, भाषायी या क्षेत्रीय विवादों के आधार पर भी क्षेत्र अशांत घोषित किया जा सकता है।
    • एक बार घोषित होने पर विक्षुब्ध क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976 के तहत स्थिति न्यूनतम तीन माह तक बनी रहती है। 

सशस्त्र बलों की विशेष शक्तियाँ

  • पाँच या अधिक व्यक्तियों की सभा पर रोक लगाने का अधिकार।
  • कानून उल्लंघन करने पर चेतावनी के बाद बल प्रयोग अथवा गोली चलाने का अधिकार।
  • उचित संदेह पर बिना वारंट गिरफ्तारी का अधिकार।
  • बिना वारंट तलाशी एवं हथियार रखने पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार।
  • गिरफ्तार व्यक्ति तथा रिपोर्ट को निकटतम थाने में सौंपना अनिवार्य।

कानूनी प्रतिरक्षा: AFSPA के अंतर्गत कार्रवाई करने वाले सशस्त्र बल कर्मियों पर मुकदमा तभी चल सकता है, जब केंद्र सरकार से अनुमति प्राप्त हो।

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