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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal October 06, 2025 04:08 29 0

भारत ने ISSA पुरस्कार 2025 जीता

हाल ही में भारत को मलेशिया के कुआलालंपुर में विश्व सामाजिक सुरक्षा फोरम में सामाजिक सुरक्षा में उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए अंतरराष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा संघ (ISSA) पुरस्कार प्राप्त हुआ।

भारत की मान्यता के बारे में

  • यह पुरस्कार भारत में सामाजिक सुरक्षा कवरेज में हुई प्रगति को मान्यता देता है, जो वर्ष 2015 में 19% से बढ़कर वर्ष 2025 में 64.3% हो गई है और 94 करोड़ से अधिक नागरिकों को लाभान्वित कर रही है।
  • यह ई-श्रम और राष्ट्रीय कॅरियर सेवा पोर्टल जैसे डिजिटल बुनियादी ढाँचे के भारत के अभिनव उपयोग को सम्मानित करता है, जिससे 31 करोड़ अनौपचारिक श्रमिकों के लिए पेंशन, स्वास्थ्य बीमा और रोजगार सेवाओं तक समावेशी पहुँच संभव हुई है।

अंतरराष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा संघ (ISSA) के बारे में

  • स्थापना: वर्ष 1927 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के तत्त्वावधान में की गई।
  • मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।
  • उद्देश्य: वैश्विक स्तर पर सामाजिक सुरक्षा प्रशासन में उत्कृष्टता को बढ़ावा देना, अनुसंधान, ज्ञान-साझा और नीतिगत नवाचार के माध्यम से।
  • सदस्यता: 160 देशों की 320 से अधिक संस्थाएँ, जिनमें सरकारें, सामाजिक बीमा एजेंसियाँ और श्रमिक संगठन शामिल हैं।
  • कार्य: वैश्विक मंचों का आयोजन, सुशासन के लिए ISSA दिशा-निर्देश विकसित करना और सदस्य देशों की सहायता करना ताकि वे कवरेज बढ़ा सकें, लाभ सुधार सकें और स्थिरता सुनिश्चित कर सकें।

ISSA पुरस्कार के बारे में

  • पुरस्कार का स्वरूप: ISSA पुरस्कार सामाजिक सुरक्षा में उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च वैश्विक सम्मान है।
  • उद्देश्य: यह पुरस्कार उन राष्ट्रीय पहलों को सम्मानित करता है, जिन्होंने सामाजिक सुरक्षा और संरक्षण को उल्लेखनीय रूप से आगे बढ़ाया है।
  • पूर्व प्राप्तकर्ता
    • आइसलैंड (2022): लैंगिक समानता पर आधारित सामाजिक उपायों के लिए।
    • रवांडा (2019): सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा के लिए।
    • चीन (2016): सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार करने के लिए।
    • ब्राजील (2013): गैर-योगदान आधारित कल्याण योजनाओं के लिए।

राष्ट्रीय राजमार्गों के लिए QR कोड साइन बोर्ड

हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने पारदर्शिता, सुरक्षा और यात्रियों की सुविधा बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्गों पर QR कोड-सक्षम परियोजना सूचना साइन बोर्ड लगाने की घोषणा की है।

क्यूआर कोड साइन बोर्ड के बारे में

इस पहल का उद्देश्य यात्रियों को वास्तविक समय में, परियोजना-विशिष्ट विवरण और आपातकालीन सहायता प्रदान करना है, जिससे जवाबदेही और आवागमन में आसानी को बढ़ावा मिले।

प्रयुक्त तकनीक

  • साइन बोर्ड क्विक रिस्पॉन्स (QR) कोड का उपयोग करते हैं, जिन्हें किसी भी स्मार्टफोन से स्कैन किया जा सकता है।
    • QR कोड ऑप्टिकल पैटर्न रिकग्निशन तकनीक का उपयोग करके काले और सफेद वर्गाकार पैटर्न को पढ़ते हैं, जिन्हें स्मार्टफोन द्वारा डिजिटल डेटा में डिकोड किया जाता है।
  • प्रत्येक QR कोड एक डिजिटल सूचना भंडार से जुड़ा होगा, जिसमें सत्यापित परियोजना डेटा और राजमार्ग सेवा विवरण शामिल होंगे।
  • उच्च दृश्यता सुनिश्चित करने के लिए ऊर्ध्वाधर बोर्डों को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि उन्हें सड़क किनारे की सुविधाओं, टोल प्लाजा, विश्राम स्थलों, ट्रक ले-बाय तथा राजमार्गों के प्रारंभ और समापन बिंदुओं पर स्थापित किया जा सके।

NATO पाइपलाइन प्रणाली

हाल ही में पोलैंड ने NATO पाइपलाइन सिस्टम (NPS) में शामिल होने की घोषणा की।

  • राष्ट्रीय पाइपलाइन ऑपरेटर PERN की भागीदारी वाली 4.7 बिलियन यूरो की इस योजना में जर्मनी से उत्तर-मध्य पोलैंड के बिड्गोश्च (Bydgoszcz) स्थित नाटो बेस तक 300 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाने की परिकल्पना की गई है।

नाटो पाइपलाइन प्रणाली (NPS)

  • यह 10,000 किलोमीटर लंबी पाइपलाइनों का एक सैन्य रसद नेटवर्क है, जो नाटो ठिकानों, टैंकों और विमानों को ईंधन और स्नेहक की आपूर्ति करता है।
  • मूल रूप से शीतयुद्ध के दौरान बनाया गया था और नाटो सहायता एवं खरीद एजेंसी (NSPA) के तहत प्रबंधित किया जाता था।
  • किसी भी विस्तार के लिए सभी 32 नाटो सदस्यों की स्वीकृति आवश्यक है; निर्माण और संचालन राष्ट्रीय साझेदार के अधीन है।
  • पोलैंड की एकीकरण योजना: अब, पोलैंड अपने रक्षा मंत्रालय और संचालक PERN के माध्यम से €4.7 बिलियन की परियोजना में निवेश करके NPS में शामिल होने का लक्ष्य रखता है।
  • उद्देश्य: सहयोगी सेनाओं के लिए ऊर्जा सुरक्षा, परिचालन गतिशीलता और युद्धकालीन लचीलापन सुनिश्चित करना।

कफ सिरप में संदूषक

हाल ही में राजस्थान सरकार ने डेक्सट्रोमेथॉर्फन (DXM) युक्त कफ सिरप के वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया है। कथित तौर पर इस दवा से जुड़ी तीन बच्चों की मौत के बाद यह कदम उठाया गया है।

  • यह कदम ‘ओवर-द-काउंटर’ दवाओं की सुरक्षा और मिलावट को लेकर जारी चिंताओं को उजागर करता है।

डेक्सट्रोमेथॉर्फन (DXM)

  • यह एक व्यापक रूप से प्रयोग किया जाने वाला कफ निरोधक (कफ निवारक) पदार्थ है।
  • कानूनी स्थिति: DXM को औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (अनुसूची H) के तहत उपयोग के लिए अनुमोदित किया गया है।
  • सलाह: केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अपने परिपत्र में कहा है कि 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए कफ सिरप की अनुशंसा नहीं की जाती है।
  • कफ सिरप में मिलावट: डायएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) जैसे औद्योगिक विलायक, जिन्हें कभी-कभी प्रोपिलीन ग्लाइकॉल के सस्ते विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाता है, अत्यधिक विषैले होते हैं और इनके सेवन से गुर्दे की गंभीर क्षति और मृत्यु हो सकती है।
  • जन स्वास्थ्य पर प्रभाव: विदेशों में कई घटनाओं, जैसे गांबिया (2022) और उज्बेकिस्तान (2023) में बच्चों की मृत्यु, दूषित भारतीय निर्मित सिरपों के कारण होने के बाद भारत जाँच के दायरे में आ गया है।
  • यह प्रकरण घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कठोर दवा परीक्षण और नियामक सतर्कता के महत्त्व को रेखांकित करता है।

सर क्रीक

गुजरात के भुज और सर क्रीक क्षेत्र की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सर क्रीक सीमा के निकट किसी भी दुस्साहस के विरुद्ध पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी।

सर क्रीक के बारे में 

  • यह 96 किलोमीटर लंबा ज्वारीय मुहाना है।
  • स्थिति: अरब सागर में विस्तृत है और मोटे तौर पर इसे विभाजित करता है:-
    • सिंध प्रांत (पाकिस्तान) और
    • कच्छ क्षेत्र (गुजरात, भारत)।

सर क्रीक विवाद का इतिहास

  • इस संघर्ष की जड़ें स्वतंत्रता-पूर्व औपनिवेशिक युग में कच्छ (तत्कालीन एक रियासत) के शासक और ब्रिटिश भारत के अधीन सिंध सरकार के बीच हुए समझौतों में निहित हैं।
  • भारत का पक्ष: थेलवेग सिद्धांत (अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून सिद्धांत) के आधार पर समझौते का समर्थन करता है।
  • पाकिस्तान का पक्ष: सीमा पूर्वी तट पर स्थित है, जिससे खाड़ी का पूरा नियंत्रण सिंध को प्राप्त हो जाता है।
    • यह तर्क देता है कि सर क्रीक नौगम्य नहीं है। इसलिए, थेलवेग सिद्धांत लागू नहीं होता (और इसलिए वर्ष 1947 के बाद पाकिस्तान पर भी लागू नहीं होता)।
  • थेलवेग सिद्धांत: अंतरराष्ट्रीय सीमा कानून का एक प्रचलित नियम-जब दो राष्ट्र एक नौगम्य नदी या जलमार्ग साझा करते हैं, तो सीमा मध्य-चैनल या नौगम्यता की सबसे गहरी रेखा से होकर गुजरती है।

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