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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal October 28, 2025 03:10 116 0

अल-फाशिर (सूडान) 

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि अल-फाशिर (Al-Fashir) (सूडान) में हजारों बच्चे भुखमरी की कगार पर हैं, क्योंकि 16 महीने से जारी संघर्ष के दौरान कुपोषण की दर तेजी से बढ़ रही है।

  • लगभग 2.5 लाख नागरिक, जिनमें से लगभग आधे बच्चे हैं, इस संघर्ष के बीच भोजन और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हो चुके हैं।

अल-फाशिर के बारे में

  • अवस्थिति: अल-फाशिर पश्चिमी सूडान के उत्तरी दारफुर (North Darfur) की राजधानी है, जो वर्तमान में सूडानी सेना और अर्द्धसैनिक ‘रैपिड सपोर्ट फोर्सेज’ (RSF) के बीच संघर्ष से ग्रस्त है।
  • समस्या: यह शहर दारफुर में सेना का अंतिम स्थल है, जहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ ध्वस्त हो चुकी हैं और मानवीय संकट गहराता जा रहा है।
    • सूडान में 3 करोड़ से अधिक लोग (जिनमें 1.5 करोड़ बच्चे शामिल हैं) तत्काल मानवीय सहायता की आवश्यकता में हैं, जबकि संयुक्त राष्ट्र का 4.2 अरब डॉलर का मानवीय राहत योजना केवल 25% ही वित्तपोषित हो पाई है।

जैव संकेतक के रूप में ‘कैराबिड बीटल्स’

एक नए अध्ययन में बताया गया है कि ‘कैराबिड ग्राउंड बीटल्स’ (Carabid Ground Beetles) मृदा में माइक्रो प्लास्टिक प्रदूषण का पता लगाने के लिए संभावित जैव-संकेतक के रूप में उभर रहे हैं।

कैराबिड बीटल्स के बारे में

  • वे अपने आवास और व्यवहार के कारण सामान्यतः ‘ग्राउंड बीटल्स’ के रूप में जाने जाते हैं।
  • वे विभिन्न प्रकार के आवासों में पाए जाते हैं, जिनमें वन, घास के मैदान, कृषि क्षेत्र, आर्द्रभूमियाँ और यहाँ तक कि शहरी क्षेत्र भी शामिल हैं।
  • इनके लंबे पैर और शक्तिशाली जबड़े होते हैं।
  • कैराबिड्स में प्रजनन आमतौर पर लैंगिक होता है, जिसमें आंतरिक निषेचन शामिल होता है।
  • पारिस्थितिकी भूमिका: वे खेतों में कीटों के जैविक नियंत्रण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

‘बीटल्स’ जैव-संकेतक क्यों हैं?

  • कीट प्रचुर मात्रा में होते हैं, पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील होते हैं और प्रदूषण पर शीघ्र प्रतिक्रिया करते हैं।
  • वे पारिस्थितिकी तंत्र के ह्रास की प्रारंभिक चेतावनी प्रदान करते हैं और विभिन्न क्षेत्रों में आसानी से नमूना लिए जा सकते हैं।
  • उनका छोटा जीवन चक्र और अनुकूलन क्षमता उन्हें दीर्घकालिक निगरानी के लिए आदर्श बनाते हैं।

जैव-संकेतक

  • वे जीवित जीव होते हैं, जो अपनी उपस्थिति या अनुपस्थिति से वैज्ञानिकों को किसी पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य और गुणवत्ता की निगरानी में मदद करते हैं।
  • वे प्रदूषण, तापमान या अन्य पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति अत्यंत संवेदनशील होते हैं।
  • उदाहरणों में वायु गुणवत्ता के लिए लाइकेन, मृदा गुणवत्ता के लिए केंचुए, और जल गुणवत्ता के लिए मेफ्लाई या स्टोनफ्लाई शामिल हैं।

INS माहे

भारतीय नौसेना ने INS माहे नामक एक नए नौसैनिक पोत को कमीशन किया है, जिससे भारत की समुद्री क्षमताओं और तटीय सुरक्षा अवसंरचना को मजबूती मिलेगी।

INS माहे के बारे में

  • यह एक सर्वेक्षण पोत है, जिसे हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण और समुद्र वैज्ञानिक डेटा संग्रह के लिए डिजाइन किया गया है।
  • यह आठ ‘एंटी-सबमरीन वॉरफेयर शैलो वॉटर क्राफ्ट्स’ (ASW SWC) की शृंखला में पहला पोत है।
  • 78 मीटर लंबा यह युद्धपोत भारतीय नौसेना का सबसे बड़ा ऐसा युद्धपोत है, जो डीजल इंजन तथा वाटरजेट के संयोजन से संचालित होता है।
  • निर्माण द्वारा: इसका निर्माण कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL), कोच्चि द्वारा किया गया है।
  • नामकरण: पुडुचेरी के तटीय नगर माहे (पूर्व में एक फ्राँसीसी उपनिवेश) के नाम पर रखा गया है, जो भारत की समुद्री विरासत को प्रतिबिंबित करता है।
  • INS माहे को “डेट नॉर्स्के वेरिटास” (DNV) के वर्गीकरण नियमों के अनुसार डिजाइन और निर्मित किया गया है।
    • DNV: ये तकनीकी मानकों का एक समूह हैं, जो जहाजों और अपतटीय संरचनाओं के डिजाइन, निर्माण और रखरखाव को नियंत्रित करते हैं ताकि सुरक्षा, विश्वसनीयता और पर्यावरणीय अनुपालन सुनिश्चित हो सके।

महत्त्व

  • यह भारतीय नौसेना की सर्वेक्षण क्षमताओं को बढ़ाता है, जो नौवहन सुरक्षा बनाए रखने, नौसैनिक अभियानों को समर्थन देने और भारत की ब्लू इकोनॉमी में योगदान के लिए आवश्यक है।

विशेषताएँ एवं क्षमताएँ

  • क्षमता: लगभग 1,100 टन का विस्थापन।
  • सुरक्षित नौवहन के लिए हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करता है।
  • समुद्री और मौसम संबंधी डेटा एकत्र करता है।
  • तटीय और अपतटीय सर्वेक्षणों में सहायता करता है।
  • टॉरपीडो, पनडुब्बी-रोधी रॉकेट और उन्नत सोनार/रडार प्रणालियों से सुसज्जित।
  • ‘एंटी-सबमरीन’ (ASW), तटीय निगरानी और निम्न तीव्रता वाले समुद्री अभियानों (LIMO) के लिए डिजाइन किया गया है।

चक्रवात ‘मोंथा’

भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने चेतावनी दी है कि बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पूर्वी भाग पर निर्मित अत्यधिक दाब की स्थिति 27 अक्टूबर तक चक्रवात “‘मोंथा’” में परिवर्तित हो जाएगी, जिससे आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में भारी वर्षा होगी।

चक्रवात ‘मोंथा’ के बारे में

  • निर्माण: यह प्रणाली बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पूर्वी भाग में एक निम्न दाब क्षेत्र के रूप में उत्पन्न हुई और उत्तर-पश्चिम दिशा में अग्रसर हो रही है।
  • अपेक्षित तीव्रता: इसके गंभीर चक्रवाती तूफान में बदलने और आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र पर संभावित लैंडफॉल की संभावना है।
  • पवन गति: अनुमानित गति 90–100 किमी./घंटा तक, जबकि अधिकतम गति 110 किमी./घंटा तक पहुँच सकती है।
  • नामकरण: इस चक्रवात का नाम ‘मोंथा’ म्याँमार द्वारा विश्व मौसम संगठन/एशिया एवं प्रशांत के लिए आर्थिक और सामाजिक आयोग की चक्रीय नामकरण प्रणाली के तहत रखा गया है।

राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (RVP)

हाल ही में भारत सरकार ने राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (Rashtriya Vigyan Puraskar-RVP) के दूसरे संस्करण की घोषणा की, जिसमें 24 वैज्ञानिकों और एक टीम को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान हेतु सम्मानित किया गया।

2025 – राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार:

  • विज्ञान रत्न: प्रो. जयंत विष्णु नारलीकर (भौतिकी) – मरणोपरांत
  • विज्ञान टीम: टीम – अरोमा मिशन (CSIR), कृषि विज्ञान क्षेत्र में।

राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (RVP) के बारे में

  • प्रारंभ एवं उद्देश्य: वर्ष 2023 में स्थापित किया गया ताकि मौजूदा वैज्ञानिक पुरस्कारों को एकीकृत कर “पद्म पुरस्कार” जैसी प्रतिष्ठा के साथ वैज्ञानिक उत्कृष्टता का राष्ट्रीय सम्मान बनाया जा सके।
  • पुरस्कार प्रदान करने वाली संस्था: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (PSA) के कार्यालय के पर्यवेक्षण में।
  • श्रेणियाँ
    • विज्ञान रत्न: आजीवन योगदान हेतु।
    • विज्ञान श्री: विशिष्ट योगदान हेतु।
    • विज्ञान युवा शांतिस्वरूप भटनागर (SSB): 45 वर्ष से कम आयु के वैज्ञानिकों हेतु।
    • विज्ञान टीम: सहयोगात्मक अनुसंधान या प्रौद्योगिकी नवाचार हेतु।
  • पुरस्कार सीमा: प्रतिवर्ष अधिकतम 56 पुरस्कार।
  • विशेषता: इसमें कोई नकद राशि नहीं होगी, “पद्म पुरस्कार” की भाँति प्रतिष्ठा ही इसका केंद्र बिंदु है।
  • चयन प्रक्रिया: “राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार समिति” द्वारा सिफारिशें की जाएँगी, जिसकी अध्यक्षता प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार करेंगे।
  • पृष्ठभूमि: वर्ष 2022 की समीक्षा में विभिन्न विभागीय पुरस्कारों (जैसे- SSB पुरस्कार) को समेकित कर एक उच्च-स्तरीय राष्ट्रीय सम्मान की अनुशंसा की गई थी।
  • महत्त्व: यह भारत में वैज्ञानिक संस्कृति को सुदृढ़ करता है, युवा शोधकर्ताओं को प्रेरित करता है और “विकसित भारत 2047” की दृष्टि से सामंजस्य स्थापित करता है।

हरित उपकर (Green Cess)

राज्य स्थापना के 25 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर उत्तराखंड सरकार ने राज्य के बाहर से प्रवेश करने वाले वाहनों पर “हरित उपकर (Green Cess)” लगाने की घोषणा की है, ताकि प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके और वायु गुणवत्ता सुधार, हरित अवसंरचना तथा स्मार्ट यातायात प्रबंधन के लिए धन जुटाया जा सके।

हरित उपकर के बारे में

  • यह एक वित्तीय पर्यावरणीय उपाय है, जो प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों को हतोत्साहित करने के साथ-साथ हरित परियोजनाओं को वित्तपोषित करता है।
  • मुख्य फोकस क्षेत्र
    • स्वच्छ ईंधन और विद्युत वाहनों के उपयोग से वाहन उत्सर्जन में कमी।
    • आधुनिक स्वच्छता प्रणालियों से सड़क धूल नियंत्रण।
    • शहरी हरित क्षेत्र का विस्तार और वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क की वृद्धि।
  • दृष्टिकोण: यह योजना राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) तथा “पर्यावरण के लिए जीवनशैली (LiFE)” मिशन के लक्ष्यों का समर्थन करेगी।

बुरेवेस्टनिक क्रूज मिसाइल (Burevestnik Cruise Missile)

हाल ही में रूस ने अपनी परमाणु-संचालित 9M730 बुरेवेस्टनिक क्रूज मिसाइल (Burevestnik Cruise Missile) का सफल परीक्षण किया है।

बुरेवेस्टनिक मिसाइल के बारे में

  • आधिकारिक नामकरण: 9M730 बुरेवेस्टनिक (“स्टॉर्म पेट्रेल”); नाटो कोडनाम SSC-X-9 स्काईफॉल
  • प्रकार: परमाणु-संचालित, परमाणु-सक्षम क्रूज मिसाइल, जिसे एक लघु परमाणु रिएक्टर द्वारा लंबी दूरी की उड़ान क्षमता प्राप्त होती है।
  • क्षमता: “लगभग असीमित रेंज” और अप्रत्याशित उड़ान मार्ग, जिससे इसकी निगरानी या अवरोध उत्पन्न करना कठिन है।

परमाणु-संचालित क्रूज मिसाइलों के बारे में

  • तकनीकी सिद्धांत: यह एक छोटे परमाणु रिएक्टर से सतत् प्रणोदन उत्पन्न करती है, जिससे यह निम्न ऊँचाई पर अत्यधिक दूरी तक उड़ान भर सकती है।
  • उद्देश्य: बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणालियों से बचना।
  • जोखिम
    • दुर्घटनाओं की स्थिति में विकिरण जोखिम।
    • रिएक्टर अपशिष्ट से पर्यावरणीय प्रदूषण।
    • शस्त्र नियंत्रण संधियों में अस्पष्टता।
  • तुलनात्मक स्थिति: वर्तमान में किसी अन्य देश के पास ऐसी परिचालिट परमाणु-संचालित क्रूज मिसाइल नहीं है।
  • भारत की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता पारंपरिक प्रणोदन-सक्षम, परमाणु-सक्षम मिसाइलों और परमाणु-संचालित पनडुब्बियों पर आधारित है।

वैश्विक परमाणु परिदृश्य

  • रूस: 5,459 परमाणु वॉरहेड्स
  • अमेरिका: 5,177 परमाणु वॉरहेड्स (अमेरिकी वैज्ञानिक महासंघ, 2025)
  • दोनों मिलकर विश्व के लगभग 87% परमाणु शस्त्र भंडार रखते हैं।

महा-मेडटेक मिशन (MAHA-MedTech Mission)

अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF) ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) और गेट्स फाउंडेशन के सहयोग से ‘मिशन फॉर एडवांसमेंट इन हाई-इम्पैक्ट एरियाज मेडिकल टेक्नोलॉजी’ (MAHA-MedTech) का शुभारंभ किया है।

महा-मेडटेक मिशन के बारे में

  • उद्देश्य: भारत के चिकित्सा प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नवाचार को तेज करना, महँगे आयातों पर निर्भरता कम करना और सस्ती व उच्च-गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य तकनीकों तक समान पहुँच सुनिश्चित करना।
  • मुख्य लक्ष्य
    • प्राथमिक रोग क्षेत्रों में प्रभावी प्रौद्योगिकियों को समर्थन देकर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभाव को बढ़ाना।
    • लागत कम करने वाले समाधानों को प्रोत्साहित कर वहनीयता और पहुँच सुनिश्चित करना।
    • स्वदेशी मेडटेक विकास, विनिर्माण, और उद्योग–शैक्षणिक सहयोग को उत्प्रेरित कर आत्मनिर्भरता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना।
  • क्षेत्र: यह मिशन उन्नत डायग्नोस्टिक इमेजिंग, मिनिमली इनवेसिव टेक्नोलॉजीज, ‘पॉइंट ऑफ केयर मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक्स’, AI/ML-सक्षम प्लेटफॉर्म, रोबोटिक्स और अन्य उभरते क्षेत्रों सहित चिकित्सा उपकरणों और ‘इन-विट्रो डायग्नोस्टिक्स’ की व्यापक सीमा को शामिल करेगा।
  • वित्तपोषण: यह शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थानों, अस्पतालों, स्टार्ट-अप्स, MSMEs, मेडटेक उद्योग और सहयोगी संस्थाओं को ₹5–25 करोड़ प्रति परियोजना (और विशेष मामलों में ₹50 करोड़ तक)  को लक्ष्य आधारित फंडिंग प्रदान करेगा।
  • अतिरिक्त विशेषताएँ
    • पेटेंट मित्र: बौद्धिक संपदा संरक्षण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण हेतु।
    • मेडटेक मित्र: नियामक मार्गदर्शन और स्वीकृतियाँ प्रदान करने हेतु।
    • क्लिनिकल ट्रायल नेटवर्क: नैदानिक परीक्षणों और साक्ष्य उत्पन्न करने हेतु।
    • उद्योग विशेषज्ञों का परामर्श: नवाचारों को व्यावहारिक अनुप्रयोग तक पहुँचाने में सहायता हेतु।

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