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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal October 29, 2025 04:03 20 0

अधिकृत आर्थिक ऑपरेटर (AEO) योजना

हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने भारत की अधिकृत आर्थिक ऑपरेटर (AEO) योजना की प्रशंसा की है, जिसने अंतरराष्ट्रीय व्यापार में MSME क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाया है और समावेशी, सुरक्षित एवं कुशल सीमा शुल्क संचालन को प्रोत्साहित किया है।

AEO योजना के बारे में 

  • परिचय: अधिकृत आर्थिक ऑपरेटर (AEO) कार्यक्रम उन व्यवसायों को ‘विश्वसनीय’ के रूप में मान्यता देता है, जो विशिष्ट अनुपालन और सुरक्षा मानकों को पूरा करते हैं, जिससे उन्हें तेजी से सीमा शुल्क निकासी, कम निरीक्षण और विलंबित शुल्क भुगतान का अधिकार मिलता है।
  • उद्देश्य: सीमा शुल्क अनुपालन को सरल बनाना और MSMEs की वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाना।
  • प्रारंभ: यह योजना वर्ष 2011 में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) द्वारा एक पायलट परियोजना के रूप में शुरू की गई थी।
  • इसे वर्ष 2016 में संशोधित किया गया था, ताकि भारत के पहले के मान्यता प्राप्त ग्राहक कार्यक्रम को विश्व सीमा शुल्क संगठन के मानकों के सुरक्षित ढाँचे के तहत AEO योजना के साथ संयुक्त किया जा सके, जिससे सुरक्षित और कुशल सीमा शुल्क संचालन के लिए एक वैश्विक मॉडल उपलब्ध हो सके।

MSMEs के लिए सुधार और प्रभाव 

  • WTO की सराहना: वर्ष 2021 में शुरू किए गए MSME पैकेज को WTO ने एक मॉडल पहल बताया, जिसने छोटे व्यवसायों के लिए AEO जैसी विश्वसनीय व्यापारी योजनाओं को सुलभ और समावेशी बनाया।
  • सरलीकृत प्रमाणन प्रक्रिया: MSMEs को अब 25 के स्थान पर 10 सीमा शुल्क दस्तावेज प्रतिवर्ष तथा तीन के स्थान पर दो वर्ष का परिचालन अनुभव चाहिए।
  • प्रसंस्करण समय में कमी: एक महीने से घटाकर 15 दिन (टियर-I) और छह महीने से घटाकर तीन महीने (टियर-II) कर दिया गया।
  • बैंक गारंटी मानदंडों में शिथिलता: MSME टियर-I प्रमाण-पत्र धारक अब मानक आवश्यकता का केवल 25% ही प्रस्तुत करते हैं, टियर-II फर्म 10% प्रदान करते हैं, जो गैर-प्रमाणित व्यापारियों के लिए 50% तक है।
  • लाभ: प्रत्यक्ष बंदरगाह प्रवेश, त्वरित रिफंड, प्राथमिकता निर्णयन, तथा समर्पित बंदरगाह संबंध प्रबंधक, जिससे लॉजिस्टिक लागत और टर्नअराउंड समय में कमी आएगी।

‘अजित’ और ‘अपराजित’

भारतीय तटरक्षक बल (ICG) ने हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए दो नए फास्ट पेट्रोल वेसल्स (FPVs), ICGS अजित और ICGS अपराजित को गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL) में लॉन्च किया गया है।

ICGS अजित एवं ICGS अपराजित के बारे में

  • ये दोनों पोत GSL द्वारा निर्मित आठ स्वदेशी ‘फास्ट पेट्रोल वेसल्स’ में से सातवें और आठवें हैं।
  • महत्त्व: यह उपलब्धि भारत की तटीय निगरानी और त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता को सुदृढ़ करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
  • निर्माण इकाई: गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL)।
  • विशेषता: ये पोत पूरी तरह स्वदेशी डिजाइन और निर्माण पर आधारित हैं, जो भारत की आत्मनिर्भर नौसैनिक इंजीनियरिंग क्षमता को प्रदर्शित करते हैं।
  • मुख्य मिशन: तटीय गश्त, मछली पालन की सुरक्षा, तस्करी, समुद्री डकैती रोकना और खोज तथा बचाव (SAR) ऑपरेशन।
  • परिचालन क्षेत्र: भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) और द्वीपीय क्षेत्रों के आस-पास विशेष रूप से प्रभावी, चौबीसों घंटे समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करना।

विशेषताएँ

  • आयाम और डिजाइन: लंबाई: 52 मीटर और विस्थापन: 320 टन।
  • प्रणोदन प्रणाली: यह कंट्रोलेवल पिच प्रोपेलर (CPP) से युक्त है।
  • CPP: यह भारत में इस श्रेणी का पहला प्रोपेलर है, जो बेहतर गतिशीलता, गति और ईंधन दक्षता सुनिश्चित करता है।

सर्वेक्षण पोत ‘इक्षक’

भारतीय नौसेना कोच्चि नौसेना बेस पर तीसरे सर्वेक्षण पोत (SVL) ‘इक्षक’ का जलावतरण करेगी।

सर्वेक्षण पोत (SVL) ‘इक्षक’ के बारे में

  • विनिर्माण: गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) लिमिटेड, कोलकाता द्वारा पोत उत्पादन निदेशालय और युद्धपोत निरीक्षण दल (कोलकाता) की देख-रेख में निर्मित।
  • स्वदेशीकरण: इसमें 80% से अधिक स्वदेशी घटक शामिल हैं। यह GRSE और भारत के MSME नेटवर्क के बीच सफल रक्षा निर्माण सहयोग का प्रतीक है।
  • शृंखला: सर्वेक्षण पोत (वृहद) वर्ग में तीसरा पोत, INS संध्याक और INS निर्देशक के बाद।

डिजाइन एवं क्षमताएँ

  • मुख्य उद्देश्य: उच्च-सटीकता वाली हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करने के लिए डिजाइन किया गया है, जो निम्नलिखित में सहायक होगा:
    • समुद्री सुरक्षा एवं नेविगेशन
    • नॉटिकल चार्ट्स और प्रकाशनों का निर्माण
    • रक्षा एवं वाणिज्यिक समुद्री अभियानों में सहयोग।
  • द्वि-भूमिका कार्यक्षमता
    • मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) अभियानों में तैनात किया जा सकता है।
    • आपातकाल में इसे अस्पताल पोत के रूप में भी परिवर्तित किया जा सकता है, जिससे इसका उपयोग रक्षा के परे भी बढ़ जाता है।
  • महिला कर्मियों के लिए व्यवस्था: ‘इक्षक’ SVL शृंखला का पहला पोत है, जिसमें महिला नौसैनिकों के लिए विशेष आवास की व्यवस्था की गई है।
  • प्रतीकात्मक अर्थ: “इक्षक” नाम का अर्थ है “मार्गदर्शक”,  यह जहाज के मिशन का प्रतीक है, जो जलमार्गों को अनुसूचित करने के उद्देश्य को दर्शाता है।

सैन्य संचार उपग्रह CMS-03 (GSAT-7R)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 2 नवंबर को CMS-03, जिसे GSAT-7R के नाम से भी जाना जाता है, को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से प्रक्षेपित करेगा।

CMS-03 (GSAT-7R) के बारे में

  • प्रकार: रक्षा सेवाओं के लिए मल्टी-बैंड संचार उपग्रह।
  • लॉन्च व्हीकल: लॉन्च व्हीकल मार्क 3 (LVM3)
  • कक्षा: जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में लॉन्च किया जाएगा।
    • GTO एक दीर्घवृत्ताकार कक्षा है, जिसका उपयोग उपग्रह को निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) से भू-समकालिक कक्षा (GEO) में स्थानांतरित करने के लिए किया जाता है।
  • वजन: लगभग 4,400 किग्रा., यह भारत भूमि से लॉन्च किया गया सबसे भारी कम्युनिकेशन सैटेलाइट है।
  • कवरेज क्षेत्र: इसे पूरे भारतीय भू-भाग सहित एक बड़े समुद्री क्षेत्र में सुरक्षित कम्युनिकेशन सर्विस देने के लिए डिजाइन किया गया है।

प्रक्षेपण यान मार्क-3 (LVM3) के बारे में

  • LVM3 भारत का सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान है, जिसे इसरो द्वारा विकसित किया गया है।
  • यह एक तीन-चरणीय रॉकेट है, जिसे संचार, नौवहन और गहरे अंतरिक्ष मिशनों (जैसे- चंद्रयान और गगनयान) को ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • चरण
    • चरण 1: द्रव प्रणोदक – बूस्टर अलग होने के बाद प्रारंभिक प्रणोद प्रदान करता है।
    • चरण 2: ठोस प्रणोदक – प्रक्षेपण के लिए दो बड़े ‘स्ट्रैप-ऑन बूस्टर’।
    • चरण 3: क्रायोजेनिक (द्रव हाइड्रोजन + द्रव ऑक्सीजन) – अंतिम चरण, जो उपग्रह को कक्षा में प्रक्षेपित करता है।

भूस्थिर उपग्रह के बारे में

  • भूस्थिर उपग्रह वह होता है, जो पृथ्वी की परिक्रमा उसी घूर्णन गति से और पृथ्वी के घूर्णन की दिशा में करता है और भूमध्य रेखा पर एक निश्चित बिंदु पर स्थिर दिखाई देता है।
  • कक्षीय ऊँचाई: एक भूस्थिर उपग्रह पृथ्वी की भूमध्य रेखा से लगभग 35,786 किलोमीटर की ऊँचाई पर परिक्रमा करता है।
  • कक्षीय अवधि: उपग्रह पृथ्वी की घूर्णन अवधि के बराबर, प्रत्येक 24 घंटे में एक परिक्रमा पूरी करता है।
  • कक्षीय तल: उपग्रह की कक्षा वृत्ताकार होती है और पृथ्वी के भूमध्य रेखा के तल में स्थित होती है।
  • कक्षीय क्षेत्रफल: एक बड़े क्षेत्र (पृथ्वी की सतह का लगभग 1/3 भाग) का निरंतर कवरेज प्रदान करता है।
    • तीन उपग्रह पृथ्वी के अधिकांश भाग (ध्रुवीय क्षेत्रों को छोड़कर) को कवर कर सकते हैं।
  • अनुप्रयोग
    • संचार उपग्रह: उदाहरणार्थ, इनसैट शृंखला (भारत)।
    • मौसम निगरानी: उदाहरणार्थ- METEOSAT, इनसैट-3D।
    • प्रसारण: टीवी, रेडियो और इंटरनेट सेवाएँ।
    • नेविगेशन संवर्द्धन: उदाहरणार्थ, भारत में गगन प्रणाली।

NSC बीज प्रसंस्करण संयंत्र

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री ने नई दिल्ली के पूसा कॉम्प्लेक्स में राष्ट्रीय बीज निगम (NSC) का उद्घाटन किया।

बीज प्रसंस्करण संयंत्र के बारे में

  • नई दिल्ली (पूसा कॉम्प्लेक्स): सब्जी और पुष्प बीज प्रसंस्करण संयंत्र, जिसकी क्षमता 1 टन प्रति घंटा है।
  • अन्य पाँच संयंत्र: बरेली, धारवाड़, हसन, सूरतगढ़ और रायचूर में स्थित, प्रत्येक की क्षमता 4 टन प्रति घंटा है।
  • प्रौद्योगिकी और विशेषताएँ: उन्नत प्रसंस्करण और पैकेजिंग तकनीकों से सुसज्जित, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके:
    • बीज की शुद्धता, व्यवहार्यता और गुणवत्ता नियंत्रण में सुधार।
    • बीज उत्पादन और वितरण में दक्षता में सुधार।
  • उद्देश्य: भारत के बीज उत्पादन पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना और यह सुनिश्चित करना कि किसानों, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों, की विश्वसनीय, उच्च-गुणवत्ता वाले बीजों तक पहुँच प्राप्त हो।

अन्य डिजिटल पहलों का शुभारंभ

  • बीज प्रबंधन 2.0 प्रणाली: बीज उत्पादन, भंडारण और वितरण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म लॉन्च किया गया।
  • ऑनलाइन बीज बुकिंग प्लेटफॉर्म
    • किसानों को ऑनलाइन बीज खरीदने में सक्षम बनाता है, जिससे खरीद में पारदर्शिता, सुगमता और सुविधा सुनिश्चित होती है।
    • इसका उद्देश्य नकली और घटिया बीज वितरण को रोकना है, जो किसानों के बीच एक बड़ी चिंता का विषय रहा है।

राष्ट्रीय बीज निगम (NSC) के बारे में

  • स्थापना: वर्ष 1963।
  • स्वामित्व: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत पूर्णतः सरकारी स्वामित्व वाली अनुसूची ‘B’ मिनी रत्न श्रेणी-I कंपनी।
  • भूमिका
    • विभिन्न फसलों के उच्च गुणवत्ता वाले प्रमाणित बीजों का उत्पादन, प्रसंस्करण और वितरण।
    • उत्पादकता बढ़ाने के लिए बीज गुणन, प्रमाणन और अनुसंधान सहयोग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • नेटवर्क: पूरे भारत में अनेक बीज फार्म, परीक्षण प्रयोगशालाएँ और प्रसंस्करण इकाइयाँ संचालित करता है।

बेंजीन (Benzene)

वर्ष 1825 में माइकल फैराडे द्वारा इसकी खोज के दो सौ वर्ष बाद भी, बेंजीन औद्योगिक रसायन विज्ञान की आधारशिला बनी हुई है।

बेंजीन क्या है?

  • बेंजीन (CH) एक सुगंधित हाइड्रोकार्बन है, जिसमें छह कार्बन परमाणु होते हैं, जो एक षट्कोणीय वलय बनाते हैं, जिसके बीच बारी-बारी से एकल और द्विबंध होते हैं।
    • यह एक रंगहीन, ज्वलनशील द्रव है
    • यह मुख्य रूप से पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस से प्राप्त होता है।
  • प्रारंभिक उपयोग: प्रारंभ में यह कोलतार से प्राप्त होती थी, विषाक्तता ज्ञात होने से पहले इसका उपयोग विलायक के रूप में, इत्र में, और यहाँ तक कि कॉफी से कैफीन निकालने के लिए भी किया जाता था।
  • औद्योगिक परिवर्तन: 20वीं सदी की पेट्रोकेमिकल क्रांति ने कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस को फीडस्टॉक के रूप में उपयोग करके बेंजीन उत्पादन को मापनीय बना दिया।

बेंजीन के अनुप्रयोग

  • औद्योगिक उपयोग: बेंजीन कई उच्च-माँग वाली सामग्रियों के लिए एक प्रमुख फीडस्टॉक बन गया है:-
    • स्टाइरीन पॉलीस्टाइरीन प्लास्टिक (कप, फोम, पैकेजिंग)।
    • क्यूमीन फिनोल और एसीटोन (पॉलीकार्बोनेट, एपॉक्सी रेजिन)।
    • साइक्लोहेक्सेन नायलॉन 6 (वस्त्र, इंजीनियरिंग प्लास्टिक)।
    • विलायक: इसका उपयोग पेंट, कोटिंग और चिपकाने वाले पदार्थों के उत्पादन में विलायक के रूप में किया जाता है।
    • औषधियाँ: पैरासिटामोल, एस्पिरिन और अन्य कार्बनिक यौगिकों जैसी विभिन्न दवाओं के संश्लेषण में उपयोग किया जाता है।
    • विस्फोटक और रंग: बेंजीन का उपयोग विस्फोटकों (जैसे- TNT) और रंगों के निर्माण में किया जाता है।
  • ईंधन योजक: बेंजीन कभी-कभी गैसोलीन में मौजूद होता है और ऑक्टेन बूस्टर के रूप में कार्य करता है।
  • प्रयोगशाला उपयोग: प्रयोगशालाओं में विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाओं और विलायक के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • उन्नत सामग्रियों में बेंजीन
    • बहुलक: बेंजीन के विस्थानीकृत इलेक्ट्रॉन निम्नलिखित बहुलकों के निर्माण में सहायक होते हैं:-
      • पॉलीएनिलिन: सेंसर और संक्षारणरोधी कोटिंग्स में प्रयुक्त।
      • पॉली (पी-फेनिलीन विनाइलीन) (PPV): पॉलीमर LED में प्रयुक्त।
    • कार्बनिक इलेक्ट्रॉनिक्स: OLED, कार्बनिक क्षेत्र-प्रभाव ट्रांजिस्टर (OFET), और कार्बनिक फोटोवोल्टिक (OPV)- इलेक्ट्रॉनिक्स, डिस्प्ले और सौर सेल के लिए महत्त्वपूर्ण।

खतरे और जोखिम

  • स्वास्थ्य जोखिम
    • कैंसरजन्यता: अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी (IARC) द्वारा बेंजीन को समूह 1 कार्सिनोजेन के रूप में वर्गीकृत किया गया है। लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से ल्यूकेमिया हो सकता है, जो रक्त निर्माणकारी ऊतकों का कैंसर है।
    • रक्त विकार: दीर्घकालिक संपर्क से अप्लास्टिक एनीमिया हो सकता है, जिससे अस्थि मज्जा और लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन प्रभावित होता है।
    • तंत्रिका संबंधी प्रभाव: बेंजीन के उच्च स्तर के अल्पकालिक संपर्क से चक्कर आना, सिर दर्द, नींद और बेहोशी हो सकती है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव
    • वायु प्रदूषण: बेंजीन एक वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) है, जो वायु प्रदूषण और भू-स्तर पर ओजोन (धुंध) के निर्माण में योगदान देता है।
    • जल प्रदूषण: बेंजीन औद्योगिक अपशिष्ट से जल स्रोतों में रिस सकता है, जिससे प्रदूषण होता है और जल स्रोतों पर निर्भर समुदायों के लिए स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होता है।

क्रायोडिल (CRYODIL)

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अंतर्गत राष्ट्रीय पशु पोषण एवं शरीरक्रिया विज्ञान संस्थान (NIANP), बंगलूरू के वैज्ञानिकों ने भैंसे के वीर्य को क्रायोप्रिजर्व करने के लिए क्रायोडिल (CRYODIL) नामक एक समाधान विकसित किया है।

क्रायोडिल (CRYODIL) के बारे में

  • प्रकृति: उपयोग के लिए तैयार, ‘एग याल्क- फ्री सीमेन एक्सटेंडर’।
  • दीर्घ शेल्फ लाइफ: ‘एग याल्क-बेस्ड एक्सटेंडर’ की तुलना में 18 महीने।
  • लागत-प्रभावी: पारंपरिक फॉर्मूलेशन की तुलना में उत्पादन में सस्ता।
  • विकसितकर्ता: ICAR–NIANP, बंगलूरू।
  • बायोसिक्योर (Biosecure): अंडे के घटकों से जुड़े सूक्ष्मजीवी जोखिमों को समाप्त करता है।
  • पेटेंट: उत्पाद और इसकी तैयारी विधि, दोनों के लिए आवेदन किया गया।
  • परीक्षण: 24 भैंसों पर किया गया, जिसमें पारंपरिक विस्तारकों की तुलना में शुक्राणुओं के विगलन के बाद गतिशीलता और व्यवहार्यता में उल्लेखनीय सुधार देखा गया।
  • महत्त्व: क्रायोडिल भारत में अपनी तरह का पहला स्वदेशी रूप से विकसित उत्पाद है, जिसे भैंस प्रजनन दक्षता और डेयरी उत्पादकता में सुधार के लिए डिजाइन किया गया है।

पारंपरिक ‘एग याल्क-बेस्ड एक्सटेंडर’ की समस्या

  • कम शेल्फ लाइफ: ताजा एग याल्क केवल कुछ घंटों तक ही टिकता है और अलग-अलग अंडों की संरचना भिन्न-भिन्न होती है।
  • परिवर्तनशील संरचना: अंडों में अंतर के कारण शुक्राणुओं की उत्तरजीविता और गतिशीलता में असंतुलन होता है।
  • संदूषण का जोखिम: एग याल्क में हानिकारक रोगाणु हो सकते हैं, जिससे पशु स्वास्थ्य के लिए जैव सुरक्षा जोखिम उत्पन्न हो सकता है।

वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं का पुनः निर्धारण

लद्दाख राज्य वन्यजीव बोर्ड (LSWB) ने काराकोरम और चांगथांग वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं का बड़े पैमाने पर पुनर्निर्धारण करने का प्रस्ताव रखा है।

काराकोरम वन्यजीव अभयारण्य के बारे में

  • स्थान: जम्मू और कश्मीर में लद्दाख की काराकोरम पर्वतमाला में, भारत-पाकिस्तान सीमा के पास अवस्थित।
  • भौगोलिक महत्त्व: भारत के सबसे ऊँचाई वाले वन्यजीव अभयारण्यों में से एक (लगभग 4,000-5,800 मीटर)।
  • जलवायु: ठंडी रेगिस्तानी जलवायु, लंबी, कठोर सर्दियाँ और छोटी गर्मियाँ, जिनमें बहुत कम वर्षा होती है।
  • नदियाँ: श्योक नदी बेसिन का एक भाग, जो सिंधु नदी प्रणाली की एक सहायक नदी है।
  • वनस्पतियाँ: विरल अल्पाइन और शीत मरुस्थलीय वनस्पतियाँ; मुख्यतः घास, सजावटी पौधे।
    • शुष्क परिस्थितियों के अनुकूल आर्टेमिसिया, कैरगाना, इफेड्रा और जुनिपर प्रजातियाँ शामिल हैं।
  • जीव: हिम तेंदुआ, तिब्बती भेड़िया, नीली भेड़ (भरल), आइबेक्स, यूरेशियन लिंक्स का निवास स्थान।

चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य के बारे में

  • स्थान: दक्षिण-पूर्वी लद्दाख में स्थित, चांगथांग पठार के साथ-साथ तिब्बत (चीन) की सीमा तक विस्तृत है।
  • भौगोलिक महत्त्व: इसमें त्सो मोरीरी, त्सो कार और पैंगोंग त्सो झीलें शामिल हैं, जो प्रमुख रामसर स्थल हैं।
  • जलवायु: अत्यधिक शीत मरुस्थलीय जलवायु (शून्य से नीचे का तापमान), तेज हवाएँ और कम वर्षा (<100 मिमी. प्रति वर्ष)।
  • वनस्पतियाँ: अल्पाइन स्टेपी वनस्पति का प्रभुत्व; झीलों के पास घास के मैदान, अन्यत्र विरल झाड़ियाँ।
  • जीव: किआंग (तिब्बती जंगली गधा), हिम तेंदुआ, तिब्बती हिरन, अर्गाली (ग्रेट तिब्बतन सीप) और तिब्बती भेड़िये के लिए महत्त्वपूर्ण आवास।

भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश

भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने औपचारिक रूप से सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत को अपने उत्तराधिकारी और भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में अनुशंसित किया है।

नियुक्ति प्रक्रिया

  • कानूनी ढाँचा: भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति प्रक्रिया ज्ञापन (MoP) के अनुसार होती है, जो न्यायपालिका और कार्यपालिका के परामर्श से विकसित एक परंपरा है।
  • प्रक्रिया
    • आरंभ: विधि मंत्रालय निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश को सेवानिवृत्ति से लगभग एक महीने पहले पत्र लिखकर अगले मुख्य न्यायाधीश के लिए सिफारिश माँगता है।
    • सिफारिश: सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश (परंपरा के अनुसार) के नाम की इस पद के लिए सिफारिश की जाती है।
    • कार्यकारी प्रक्रिया: सिफारिश प्रधानमंत्री को भेजी जाती है, जो भारत के राष्ट्रपति को नियुक्ति करने की सलाह देते हैं।
    • पद की शपथ: राष्ट्रपति, अनुच्छेद-124(6) के तहत आने वाले मुख्य न्यायाधीश को पद की शपथ दिलाते हैं।
  • परंपरा: वरिष्ठतम न्यायाधीश की नियुक्ति एक संवैधानिक परंपरा है, जो कानून में स्पष्ट रूप से नहीं लिखी गई है, लेकिन न्यायिक स्वतंत्रता और संस्थागत निरंतरता के लिए मान्य है।

न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया ज्ञापन (MoP) के बारे में

  • प्रक्रिया ज्ञापन (MoP) एक अभिसमय है, जो भारत में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रक्रिया को रेखांकित करता है।
  • यह कोई कानून नहीं है, बल्कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच सहमत दिशा-निर्देशों का एक समूह है।

पृष्ठभूमि

  • यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-124 (सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश) और अनुच्छेद-217 (उच्च न्यायालय के न्यायाधीश) से लिया गया है।
  • यह ‘तृतीय न्यायाधीशों के मामलों’ (वर्ष 1981, 1993, 1998) के माध्यम से विकसित हुआ, जिसने कॉलेजियम प्रणाली की स्थापना की।
  • कॉलेजियम नामों की सिफारिश करता है, जबकि कार्यपालिका औपचारिक रूप से उनकी नियुक्ति करती है।

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