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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal November 01, 2025 03:00 19 0

जीवन की उत्पत्ति संबंधी  कार्बनिक अणुओं की खोज

हाल ही में खगोलविदों ने जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) की सहायता से लार्ज मैगेलैनिक क्लाउड में स्थित एक नवीन तारे ST6 के आस-पास जीवन की उत्पत्ति से संबंधित जटिल कार्बनिक अणुओं की खोज की है। यह तारा पृथ्वी से लगभग 1,60,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है।

खोज की प्रमुख विशेषताएँ

  • खोज का स्थान: प्रोटोटार ST6, जो लार्ज मैगेलैनिक क्लाउड (LMC) में स्थित है, यह मिल्की वे (आकाशगंगा) के निकट स्थित अल्प धातु आधारित ‘ड्वॉर्फ गैलेक्सी’ है।
  • ज्ञात अणु: मेथेनॉल, एसिटेल्डिहाइड, एथेनॉल, मिथाइल फॉर मेट (Methyl Formate) और एसीटिक एसिड।
    • यह अंतरिक्ष में एसिटिक एसिड की पहली पुष्ट खोज है।
  • प्रयुक्त विधि: मार्च 2024 में JWST द्वारा इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग किया गया।
  • रासायनिक महत्त्व: यह खोज कार्बन-समृद्ध यौगिकों की उपस्थिति को दर्शाती है, जो जीव पूर्व रसायन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
  • वर्तमान खोज: ग्लाइकोएल्डिहाइड के संकेत मिले हैं, जो राइबोज (Ribose) अर्थात् RNA की मूल संरचना का अग्रदूत माना जाता है। इसकी पुष्टि अभी लंबित है।

महत्त्व

  • जीवन की उत्पत्ति की समझ: यह खोज दर्शाती है कि जीवन के मूलभूत घटक अत्यंत प्रारंभिक और अल्प धातु आधारित वातावरणों में भी निर्मित हो सकते हैं।
  • ब्रह्मांडीय रसायन: यह प्रमाणित करता है कि अंतरिक्षीय धूल कण प्रारंभिक आकाशगंगाओं में भी जटिल कार्बनिक अभिक्रियाओं को संचालित कर सकते हैं।
  • खगोल विज्ञान में प्रगति: यह खोज ‘मिल्की वे’ से अतिरिक्त अणुओं के निर्माण की समझ में एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि का प्रतीक है।
  • भविष्य के अनुसंधान का मार्ग: यह अध्ययन मिल्की वे और अन्य दूरस्थ आकाशगंगाओं में स्थित समान प्रोटोस्टार्स की खोज को प्रोत्साहित करेगा, जिससे जीवन की उत्पत्ति की रासायनिक प्रक्रिया का पता लगाया जा सके।

अंतरराष्ट्रीय आर्य शिखर सम्मेलन, 2025

भारतीय प्रधानमंत्री नई दिल्ली में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय आर्य शिखर सम्मेलन, 2025 में भाग लेंगे। यह सम्मेलन महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती और आर्य समाज की 150 वर्षों की गौरवशाली विरासत को समर्पित है।

अंतरराष्ट्रीय आर्य शिखर सम्मेलन, 2025 के बारे में

  • परिचय:  यह सम्मेलन रोहिणी, नई दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है, यह “ज्ञान ज्योति महोत्सव” का एक प्रमुख भाग है।
  • थीम:  इस सम्मेलन की थीम है “सेवा के 150 स्वर्णिम वर्ष (150 Golden Years of Service)”, जो आर्य समाज के शिक्षा, सामाजिक सुधार एवं नैतिक उत्थान में पिछली शताब्दी से निरंतर योगदान को दर्शाता है।
  • मुख्य उद्देश्य: वैदिक ज्ञान, स्वदेशी मूल्य और राष्ट्र निर्माण की भावना को पुनर्जीवित करना। इसे विकसित भारत@2047 लक्ष्य के साथ संरेखित किया गया है।
  • महत्त्व 
    • यह महर्षि दयानंद सरस्वती के सुधारवादी एवं शैक्षिक दर्शन को आधुनिक भारत में सुदृढ़ करता है।
    • यह आर्य समाज की नैतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान की भूमिका को पुनः मान्यता प्रदान करता है।
    • यह वैदिक आदर्शों से प्रेरित नैतिक नेतृत्व, स्वावलंबन और युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।

आर्य समाज के बारे में 

  • आर्य समाज की स्थापना वैदिक शिक्षाओं की शुद्धता की पुनर्स्थापना और हिंदू समाज में व्याप्त मूर्ति पूजा, अंधविश्वास एवं जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से की गई थी।
  • स्थापना: इसकी स्थापना 10 अप्रैल, 1875 को बॉम्बे (अब मुंबई) में स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा की गई थी।
  • मिशन एवं मुख्य मूल्य
    • एकेश्वरवाद, नैतिकता और समानता पर आधारित तथा वैदिक सिद्धांतों की ओर लौटने का आह्वान किया।
    • दयानंद एंग्लो वैदिक संस्थानों के माध्यम से शिक्षा, महिला सशक्तीकरण और सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया।
    • मानव सेवा  और सत्यनिष्ठा  को जीवन के मूल कर्तव्यों के रूप में प्रतिपादित किया।

3I/ATLAS अंतरतारकीय धूमकेतु

हाल ही में अंतरतारकीय धूमकेतु 3I/ATLAS ने 30 अक्टूबर, 2025 को सूर्य के सबसे निकटतम बिंदु (पेरिहिलियन) तक पहुँचते हुए अपनी सबसे चमकीली और सक्रिय अवस्था प्राप्त की। इसकी गतिविधियों की निगरानी नासा (NASA) और विभिन्न वैश्विक अंतरिक्ष मिशनों द्वारा की जा रही है।

3I/ATLAS के बारे में

  • अंतरतारकीय धूमकेतु:  3I/ATLAS एक अंतरतारकीय धूमकेतु है अर्थात् इसे सूर्य की परिक्रमा की आवश्यकता नहीं है। यह सौरमंडल के भीतरी भाग से केवल एक बार गुजरकर पुनः अंतरतारकीय अंतरिक्ष में लौट जाएगा।
  • सूर्य के समीपता: यह धूमकेतु 1.35 AU (लगभग 125 मिलियन मील) की दूरी पर अपने पेरिहिलियन बिंदु पर पहुँचा। सूर्य की ऊष्मा से सतह की बर्फ पिघलने (सब्लिमेशन) के कारण तीव्र गैस उत्सर्जन हुआ और कोमा (coma) का निर्माण हुआ।
  • धूमकेतु की गतिविधि: पेरिहीलियन के दौरान गैस उत्सर्जन से दो विशिष्ट पुच्छल (Tail) का निर्माण होता है:
    • धूल पुच्छल (Dust Tail): सौर विकिरण द्वारा संचालित।
    • आयन पुच्छल (Ion Tail): सौर पवन (Solar Wind) द्वारा प्रेरित।
  • अवलोकन नेटवर्क: नासा के साइकी (Psyche), लुसी (Lucy) तथा ESA के जूस (JUICE) मिशन सहित कई अंतरिक्ष यान इसकी गतिविधियों का अवलोकन कर रहे हैं।
    • नासा के मार्स मिशनों ने भी 3 अक्टूबर, 2025 को धूमकेतु के निकट से गुजरने के दौरान इसके अवलोकन किए।
  • रासायनिक संरचना: प्रारंभिक निष्कर्षों से पता चला है कि इसमें कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और निकल की असामान्य रूप से अधिक मात्रा पाई गई है। यह संकेत देता है कि इसकी उत्पत्ति संभवतः किसी धातु अधिकता वाले आणविक बादल में हुई, जो लगभग सात अरब वर्ष पूर्व किसी अन्य तारा प्रणाली में बना था।
  • वैज्ञानिक महत्त्व: 3I/ATLAS का अध्ययन वैज्ञानिकों को अंतरतारकीय पिंडों और सौरमंडलीय धूमकेतुओं के रासायनिक संकेतों की तुलना करने में सहायता करता है। यह ग्रह निर्माण और प्रारंभिक ब्रह्मांडीय रसायन शास्त्र को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण संकेत प्रदान करता है।

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