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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal November 03, 2025 03:51 73 0

विश्व की पहली ‘व्हाइट आइबेरियन लिंक्स’

हाल ही में स्पेन में विश्व की पहली ‘व्हाइट आइबेरियन लिंक्स’ (White Iberian Lynx) देखी गई है। वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि यह  ‘ल्यूसिज्म’ नामक एक दुर्लभ रंजकता विकार (Pigmentation Disorder) के कारण होता है, जिससे जानवरों में त्वचा या फर का रंग हल्का या ‘श्वेत’ दिखाई देता है।

आइबेरियन लिंक्स के बारे में 

  • प्रकार/स्वरूप: यह एक जंगली बिल्ली है, जो आइबेरियन प्रायद्वीप (स्पेन एवं पुर्तगाल) की स्थानीय प्रजाति है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • यह यूरेशियन लिंक्स से छोटी होती है तथा इसका वजन लगभग 50% कम है।
    • इसका आवरण भूरे रंग का होता है, कानों पर काले गुच्छे होते हैं, पूँछ छोटी और काले रंग की होती है।
  • संरक्षण स्थिति
    • आइबेरियन लिंक्स की IUCN स्थिति ‘सुभेद्य’ है।
    • यूरोपीय संघ के ‘लाइफ लिंक्स’ कार्यक्रम तथा आवास पुनर्स्थापन और आबादी प्रबंधन उपायों के परिणामस्वरूप, वन्य आवासों में इस प्रजाति की 1,500 से अधिक आबादी की उपस्थिति दर्ज की गई है।
    • CITES: परिशिष्ट I
  • पारिस्थितिक भूमिका: यह एक शीर्ष शिकारी है, जो खरगोशों की आबादी को नियंत्रित कर भूमध्यसागरीय पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाए रखने में सहायक है।

वन्यजीवों में ‘ल्यूसिज्म’

  • यह एक आनुवंशिक अवस्था है, जिसमें त्वचा, फर या पंखों में आंशिक रूप से रंजकता (Pigmentation) का अभाव होता है। अल्बिनिज्म (Albinism) के विपरीत, ल्यूसिज्म में आँखों का रंग सामान्य रहता है।
  • कारण: यह मेलानोसाइट्स (Melanocytes) के वितरण में म्यूटेशन (Mutation) के कारण होता है, न कि मेलानिन उत्पादन की कमी से।
  • प्रभाव: जानवरों का फर या त्वचा ‘श्वेत’ दिखाई देती है, लेकिन आँखों की रंजकता सामान्य रहती है।
  • पारिस्थितिकी प्रभाव
    • शिकार बन जाने या शिकार करने में कठिनाई बढ़ जाती है।
    • जंगली प्रजातियों में यह अवस्था अत्यंत दुर्लभ होती है,  क्योंकि यह जीवित रहने की क्षमता को प्रभावित करती है।
  • प्रमुख उदाहरण: बाघ (जैसे- सफेद बंगाल टाइगर) और मोर।

विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का स्थापना दिवस

हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UTs) को शुभकामनाएँ दीं, जो 1 नवंबर को अपना राज्य स्थापना दिवस मना रहे हैं। उन्होंने इन राज्यों और प्रदेशों के भारत के समग्र विकास में योगदान की सराहना की  और उनके निरंतर समृद्धि की कामना की।

1 नवंबर को स्थापना दिवस मनाने वाले राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश

  • आंध्र प्रदेश: वर्ष 1953 में तेलुगु भाषियों के लिए भाषायी आधार पर बनाया गया पहला राज्य, जिसे बाद में वर्ष 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत पुनर्गठित किया गया।
  • छत्तीसगढ़: मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद 1 नवंबर, 2000 को आदिवासी और संसाधन संपन्न क्षेत्रों के लिए केंद्रित शासन और विकास सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया।
  • कर्नाटक: पहले मैसूर राज्य के नाम से जाना जाने वाला यह राज्य 1 नवंबर, 1956 को कन्नड़ भाषी क्षेत्रों को मिलाकर पुनर्गठित किया गया था। बाद में वर्ष 1973 में इसका नाम बदलकर कर्नाटक कर दिया गया।
  • लक्षद्वीप: वर्ष 1956 में केंद्रशासित प्रदेश बना, जो अपने प्रवाल द्वीपों, समुद्री जैव विविधता और मालाबार तट के साथ सांस्कृतिक संबंधों के लिए जाना जाता है।
  • मध्य प्रदेश: 1 नवंबर, 1956 को मध्य भारतीय क्षेत्रों को समेकित करते हुए पुनर्गठित किया गया; बाद में, वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ का गठन किया गया।
  • पंजाब: वर्ष 1966 में पंजाब का पुनर्गठन किया गया, जिसके परिणामस्वरूप हरियाणा का गठन हुआ और कुछ पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल प्रदेश में स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे इसकी सिख-बहुल और पंजाबी-भाषी पहचान बरकरार रही।
  • हरियाणा: हिंदी भाषी क्षेत्रों की विशिष्ट भाषायी और सांस्कृतिक पहचान को मान्यता देने के लिए पंजाब से विभाजन के बाद वर्ष 1966 में गठित।
  • पुडुचेरी: फ्राँसीसी शासन समाप्त होने के बाद वर्ष 1954 में केंद्रशासित प्रदेश बना और वर्ष 1962 तक औपचारिक रूप से भारत के प्रशासनिक ढाँचे में शामिल हो गया।
  • केरल: 1 नवंबर, 1956 को दक्षिण केनरा जिले के त्रावणकोर-कोचीन, मालाबार और कासरगोड तालुके को मिलाकर एक एकीकृत मलयालम भाषी राज्य बनाया गया।

केरल पिरवी

  • केरल पिरवी, जिसका अर्थ है “केरल का जन्म”, 1 नवंबर, 1956 को राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत राज्य के गठन की याद में मनाया जाता है।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: यह दिन केरल की भाषायी एकता, विरासत और परंपराओं का जश्न मनाता है, जो भारत की सांस्कृतिक भव्यता में इसके सदियों पुराने योगदान को दर्शाता है।
  • समारोह: पूरे केरल में लोग पारंपरिक पोशाक पहनते हैं और स्कूलों में मलयाला भाषा वारम (मलयालम भाषा सप्ताह) मनाया जाता है, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम, निबंध और मातृभाषा के प्रति प्रेम को बढ़ावा देने वाले प्रदर्शन शामिल होते हैं।

अफ्रीकी साँपों के विष रोध हेतु नया ‘एंटी-वेनम’

हाल ही में डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने एक नवीन व्यापक-स्पेक्ट्रम एंटीवेनम (Broad-Spectrum Antivenom) विकसित करने की घोषणा की है, जो 17 अफ्रीकी सर्प प्रजातियों के विष के विरुद्ध प्रभावी पाया गया है।

नए ‘एंटी-वेनम’ (New Antivenom) के बारे में

  • इस फॉर्मूलेशन में आठ सावधानीपूर्वक चयनित नैनोबॉडीज को एक मिश्रण में मिलाया गया है, जिसे एक साथ कई प्रकार के विषों को निष्क्रिय करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • विकसिकर्ता: टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ डेनमार्क (DTU) के वैज्ञानिकों द्वारा उन्नत जैव प्रौद्योगिकी एवं एंटीबाडी अभियांत्रिकी तकनीकों का प्रयोग कर विकसित।
  • उद्देश्य: नवीन अनुसंधान पारंपरिक ‘एंटी-वेनम’ की उस सीमाबद्धता को दूर करने पर केंद्रित हैं, जिसके कारण वर्तमान उपचार केवल सीमित सर्प-प्रजातियों के विष पर ही प्रभावी होते हैं।।
  • प्रभावशीलता: प्रयोगशाला परीक्षणों से पता चला कि यह कोबरा और रिंकहल सहित 17 अफ्रीकी साँप प्रजातियों के विष के विरुद्ध प्रभावी है, तथा ऊतक क्षति और प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को कम करता है।
  • प्रयुक्त तकनीक: यह एक आधुनिक आणविक तकनीक है, जो वैज्ञानिकों को प्रभावी एंटीबॉडी खंडों (Antibody Fragments) या नैनोबॉडीज को तेजी से चयनित, प्रतिकृत, और अनुकूलित करने में सक्षम बनाती है।
    • उच्च गुणवत्ता वाले प्रतिविषों का बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव होता है। पशु-आधारित एंटी वेनम पर निर्भरता समाप्त होती है।
  • सुगमता एवं लागत: यह तकनीक कम लागत पर बड़े पैमाने पर उत्पादन को सक्षम बनाती है, जिससे अफ्रीका एवं विकासशील क्षेत्रों में सर्पदंश उपचार की उपलब्धता में सुधार होने की संभावना है।
  • सीमाएँ: ब्लैक माम्बा (Black Mamba) और फॉरेस्ट ‘कोबरा’ जैसे कुछ विषों के विरुद्ध यह केवल आंशिक रूप से प्रभावी  सिद्ध हुआ है।

शोधकर्ताओं ने अधिक अनुकूलन और मानव नैदानिक परीक्षणों की आवश्यकता पर बल दिया है, ताकि सुरक्षा एवं प्रभावकारिता की पुष्टि हो सके।

नौरादेही अभयारण्य

हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने घोषणा की है कि नौरादेही अभयारण्य को राज्य में चीतों के तीसरे आवास स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। यह पहल कुनो राष्ट्रीय उद्यान और गांधी सागर अभयारण्य को आवास स्थल के रूप में विकसित करने के बाद की जाएगी।

नौरादेही अभयारण्य के बारे में 

  • अवस्थिति
    • मध्य प्रदेश के सागर, दमोह, नरसिंहपुर एवं रायसेन जिलों में स्थित। यह सतपुड़ा–मैकाल परिदृश्य का हिस्सा है।
    • क्षेत्रफल: लगभग 1,200 वर्ग किलोमीटर, जो इसे मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा वन्यजीव अभयारण्य बनाता है।
  • स्थापना: वर्ष 1975 में अधिसूचित किया गया।
  • वनस्पतियाँ
    • प्रमुख प्रकार: उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन 
    • मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ: यहाँ सागौन (टेक्टोना ग्रैंडिस), साजा (टर्मिनलिया टोमेंटोसा), बीजा, तेंदू, बाँस और घास के मैदान विस्तृत हैं।
  • जंतु
    • स्तनधारी: तेंदुआ, भारतीय भेड़िया, भालू, लकड़बग्घा, चीतल, साँभर, नीलगाय, काला हिरन, और जंगली सूअर।
    • पक्षी: 200 से अधिक प्रजातियाँ, जिनमें मोर, तोते, और प्रवासी जलपक्षी शामिल हैं।
  • पारिस्थितिकी महत्त्व
    • वन्यजीव गलियारा:  यह पन्ना टाइगर रिजर्व और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के बीच एक महत्त्वपूर्ण जैविक संपर्क मार्ग के रूप में कार्य करता है।
    • जलागम क्षेत्र: यह नर्मदा और गंगा नदी प्रणाली की सहायक नदियों का अधिग्रहण क्षेत्र है।
    • संरक्षण मूल्य: यह वन्यजीवों के प्रसार और आनुवंशिक विविधता के संरक्षण हेतु महत्त्वपूर्ण बफर क्षेत्र का कार्य करता है।

चीतों का संरक्षण

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत में एशियाई चीता को वर्ष 1952 में विलुप्त घोषित किया गया था।
  • प्रोजेक्ट चीता: भारत सरकार द्वारा वर्ष 2022 में अफ्रीकी चीता के पुनः स्थानांतरण का प्रयास प्रारंभ हुआ। प्रथम चरण कुनो राष्ट्रीय उद्यान  में शुरू किया गया।
  • नोडल एजेंसी: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA), केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के अंतर्गत।
  • कार्यान्वयन सहयोगी संस्थाएँ: वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (WII), टाइगर कंजर्वेशन फंड (नामीबिया)।

स्वस्थ नारी सशक्त परिवार अभियान

भारत ने “स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार अभियान” के अंतर्गत महिला स्वास्थ्य एवं डिजिटल वेलनेस के क्षेत्र में तीन गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स स्थापित किए हैं। यह उपलब्धि देशभर में जन-भागीदारी आधारित स्वास्थ्य जागरूकता और डिजिटल स्वास्थ्य नवाचार का उदाहरण प्रस्तुत करती है।

स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार अभियान के बारे में 

  • उद्देश्य: महिलाओं के लिए निवारक स्वास्थ्य देखभालडिजिटल स्वास्थ्य पहुँच और सामुदायिक भागीदारी को सशक्त बनाना।
  • प्रारंभ एवं अवधि: अभियान का आयोजन 17 सितंबर से 2 अक्टूबर, 2025 के बीच किया गया।
  • इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं में रोगों की प्रारंभिक पहचान और इनकी जाँच-आधारित रोकथाम करना है।
  • नोडल मंत्रालय एवं सहयोगी: केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय प्रमुख नोडल एजेंसी रहा। इसमें 20 से अधिक केंद्रीय मंत्रालयों, चिकित्सा महाविद्यालयों, केंद्रीय संस्थानों तथा निजी स्वास्थ्य संगठनों ने सहभागिता की।
  • सामुदायिक भागीदारी: अभियान में व्यापक स्तर पर जन-भागीदारी सुनिश्चित की गई —
    • 5 लाख पंचायती राज प्रतिनिधि
    • 1.14 करोड़ विद्यार्थी
    • 94 लाख स्वयं सहायता समूह के सदस्य
    • 5 लाख अन्य सामुदायिक हितधारक

अभियान की रिकॉर्ड उपलब्धियाँ

  • एक महीने में सबसे बड़ा स्वास्थ्य प्लेटफॉर्म पंजीकरण: एक महीने के भीतर डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफॉर्म पर 3.21 करोड़ से अधिक व्यक्तियों ने पंजीकरण कराया, जो किसी एकल स्वास्थ्य अभियान के तहत वैश्विक स्तर पर दर्ज की गई अब तक की सबसे अधिक संख्या है।
  • एक सप्ताह में सर्वाधिक ऑनलाइन ‘ब्रेस्ट कैंसर’ परीक्षण: ऑनलाइन ‘ब्रेस्ट कैंसर’ परीक्षण के लिए रिकॉर्ड 9.94 लाख महिलाओं ने पंजीकरण कराया, जिससे महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का शीघ्र पता लगाने और जागरूकता को बढ़ावा मिला।
  • राज्य स्तर पर सर्वाधिक ऑनलाइन महत्त्वपूर्ण संकेत जांच: राज्य स्तर पर, एक सप्ताह के भीतर 1.25 लाख लोगों ने ऑनलाइन महत्त्वपूर्ण संकेत परीक्षण में भाग लिया।

इससे डिजिटल स्वास्थ्य नवाचार, अंतर-मंत्रालयी समन्वय और स्वस्थ महिला, सशक्त परिवार और विकसित भारत के लिए जमीनी स्तर पर सार्वजनिक भागीदारी के प्रति भारत की प्रतिबद्धता प्रदर्शित हुई।

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