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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal November 06, 2025 04:51 15 0

इंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक 2025

आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) की रिपोर्टइंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक 2025” के अनुसार, महामारी के बाद हुए उच्च प्रवासन के पश्चात् वर्ष 2024 में OECD देशों में स्थायी प्रवासन में 4% की कमी दर्ज की गई।

इंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक के बारे में

  • परिचय: इंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक,  OECD की वार्षिक प्रकाशन रिपोर्ट है, जो प्रवासन प्रवृत्तियों, प्रवासियों के श्रम बाजार एकीकरण तथा सदस्य देशों की बदलती प्रवासन नीतियों का विश्लेषण करती है।
  • प्रकाशक: यह आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) द्वारा जारी की जाती है, जो वैश्विक प्रवासन गतियों, शरण प्रवृत्तियों तथा एकीकरण परिणामों पर निगरानी रखती है।
  • वैश्विक प्रमुख निष्कर्ष
    • वर्ष 2024 में OECD देशों ने कुल 62 लाख स्थायी प्रवासियों को स्वीकार किया, जो वर्ष 2019 के स्तर से 15% अधिक है। श्रम प्रवासन में गिरावट आई, जबकि मानवीय प्रवासन में वृद्धि हुई तथा अस्थायी कार्य परमिट में 26% की बढोतरी दर्ज की गई।
    • अंतरराष्ट्रीय छात्रों के आवागमन में 13% की कमी हुई, शरण हेतु आवेदन  30 लाख के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचे और यूरोपीय संघ सीमापार आवागमन में 37% की गिरावट आई।

भारत से संबंधित निष्कर्ष

  • नागरिकता प्राप्ति: वर्ष 2023 में लगभग 2.25 लाख भारतीय नागरिकों ने OECD देशों की नागरिकता प्राप्त की, जो गैर-सदस्य देशों में सबसे अधिक में से एक है।
  • अंतरराष्ट्रीय छात्र: भारत और चीन मिलकर OECD देशों में सभी अंतरराष्ट्रीय छात्रों का लगभग एक-तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो वैश्विक शैक्षणिक परिदृश्य में भारत की बढ़ती उपस्थिति को दर्शाता है।

खाद्य और कृषि की स्थिति (SOFA) रिपोर्ट, 2025 

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा जारी खाद्य और कृषि की स्थिति (SOFA) रिपोर्ट, 2025 ने चेतावनी दी है कि मानव-प्रेरित भूमि क्षरण कृषि उत्पादकता, खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलेपन को प्रभावित करते हुए एक बढ़ते वैश्विक संकट का रूप ले रहा है।

SOFA 2025 के बारे में

  • प्रकाशक: संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा।
  • उद्देश्य: रिपोर्ट अस्थिर कृषि पद्धतियों, वनों की कटाई और अत्यधिक चारण जैसी मानव गतिविधियों का विश्लेषण करती है, जो भूमि की उत्पादकता और पारिस्थितिकी कार्यों को कम करती हैं, जो सतत् खाद्य प्रणालियों के लिए आवश्यक हैं।

रिपोर्ट की प्रमुख विशेषताएँ

  • भूमि क्षरण की परिभाषा: भूमि की आवश्यक पारिस्थितिकी सेवाएँ और कृषि उत्पादकता प्रदान करने की क्षमता में दीर्घकालिक गिरावट।
  • प्रमुख कारण: यह प्राकृतिक कारणों (मृदा अपरदन, लवणीकरण) तथा मानवजनित कारणों (वनों की कटाई, अत्यधिक चारण, अनुचित सिंचाई और फसल प्रथाएँ) दोनों से प्रेरित है।
  • प्रभाव का स्तर: लगभग 1.7 अरब लोग मानव-प्रेरित भूमि क्षरण के कारण 10 प्रतिशत उपज हानि का सामना कर रहे हैं, जिसमें एशिया सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र है क्योंकि यहाँ जनसंख्या घनत्व अधिक है।
  • उत्पादकता में गिरावट: कुल कारक उत्पादकता वृद्धि, जो तकनीकी दक्षता को मापती है, 2000 के दशक से विशेषकर ग्लोबल साऊथ में कम हुई है।
  • खाद्य सुरक्षा से संबंध: पाँच वर्ष से कम आयु के लगभग 4.7 करोड़ अविकसित बच्चे उन क्षेत्रों में रहते हैं, जहाँ गंभीर उपज हानि और खाद्य असुरक्षा एक साथ पाई जाती है।
  • पारिस्थितिकी प्रभाव: क्षरण से चरागाह कमजोर होते हैं, पशुधन उत्पादकता घटती है, वनों की कटाई से जैव विविधता का नुकसान होता है और जलवायु में अस्थिरता बढ़ती है।

भारत की स्थिति

  • उच्च उपज हानि: भारत उन देशों में से एक है, जो मानव-प्रेरित भूमि क्षरण से सबसे अधिक प्रभावित हैं, जिससे कृषि उत्पादकता में महत्त्वपूर्ण अंतर देखा गया है।
  • कृषि भूमि का परित्याग: लगभग 36 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि प्रतिवर्ष क्षरण के कारण परित्याग कर दी जाती है, जिससे ग्रामीण आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।

सतत् भूमि उपयोग के लिए नीतिगत सिफारिशें

  • विनियामक उपाय: भूमि उपयोग क्षेत्र निर्धारण, वनों की कटाई पर प्रतिबंध और मृदा संरक्षण के अनिवार्य प्रावधान।
  • प्रोत्साहन आधारित नीतियाँ: पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान के माध्यम से सतत् प्रथाओं को वित्तीय प्रोत्साहन देना।
  • क्रॉस-अनुपालन तंत्र: सरकारी सहायता को पर्यावरणीय मानकों के अनुपालन से जोड़ना।
  • भूमि क्षरण तटस्थता: ‘अवॉइड, रिड्यूस एंड रिवर्स’ के सिद्धांत को अपनाकर सतत् भूमि पुनर्स्थापन और खाद्य प्रणाली की लचीलापन सुनिश्चित करना।
    • LDN वह अवस्था है, जहाँ भूमि संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता स्थिर रहती है या बढ़ती है, ताकि पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों को बनाए रखा जा सके और खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ किया जा सके।

पंपादुम शोला राष्ट्रीय उद्यान

पंपादुम शोला राष्ट्रीय उद्यान आक्रामक ऑस्ट्रेलियन वॉटल प्लांटेशन के कारण दशकों से हो रहे क्षरण के बाद, सफल पारिस्थितिक पुनरुद्धार का साक्षी बन रहा है।

पंपादुम शोला राष्ट्रीय उद्यान के बारे में

  • पंपादुम शोला केरल का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान है, जो इडुक्की जिले में अवस्थित है तथा लगभग 1,300 हेक्टेयर ऊँचाई वाले भू-भाग को आच्छादित करता है, जिसकी ऊँचाई 1,900–2,300 मीटर के मध्य है।
  • पारिस्थितिकी विशिष्टता: यह पश्चिमी घाट के दक्षिणतम शोला-घासभूमि परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करता है, जो विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत शृंखलाओं में से एक है, जो हिमालय से भी प्राचीन है।
    • यह उद्यान नीलगिरी मार्टेन, केरल लाफिंग थ्रश तथा दुर्लभ ऑर्किड जैसे स्थानिक प्रजातियों का आवास है, जिससे यह एक महत्त्वपूर्ण जैव-विविधता हॉटस्पॉट बनता है।
  • जलवैज्ञानिक महत्त्व: पंपादुम घासभूमियाँ प्राकृतिक स्पंज की तरह कार्य करती हैं, जो वर्षा जल को संचित करती हैं और पांबर एवं वैगई नदियों की प्रमुख धाराओं को पोषित करती हैं, जो तमिलनाडु के मैदानी भागों के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
  • ऑस्ट्रेलियन वॉटल: अकेशिया मियरन्सी (Acacia Mearnsii) जिसे सामान्यतः ब्लैक वॉटल’ या ‘ऑस्ट्रेलियन वॉटल’ कहा जाता है, को ब्रिटिशों द्वारा 1900 के दशक की शुरुआत में इसके टैनिन-समृद्ध छाल के कारण चमड़ा उत्पादन हेतु प्रस्तुत किया गया था।
    • यह एक आक्रामक प्रजाति है, जो पश्चिमी घाट में तीव्र गति से प्रसारित हो रही है, जिससे देशज घासों का विस्थापन, मृदा का कठोर होना, स्थायी जलधाराओं का सूखना तथा स्थानीय जैव-विविधता में गंभीर गिरावट हो रही है।
  • पुनर्स्थापन अभियान: वर्ष 2015 की एक वनाग्नि ने पारिस्थितिकी क्षरण की वास्तविक स्थिति को प्रदर्शित किया, जिसके बाद केरल वन विभाग ने बड़े पैमाने परवॉटल’ को हटाने की प्रक्रिया प्रारंभ की।
    • वर्ष 2020 से वर्ष 2024 के बीच, 475 हेक्टेयर क्षेत्र में जड़ों की निकासी, समोच्च बंधन (कॉनटूर बंडिंग) और देशज घासों के पुनः बीजारोपण के माध्यमवॉटल’ को हटाया गया।
  • पुनर्स्थापन का पारिस्थितिकी प्रभाव: पुनः उभरती घास प्रजातियों ने मृदा की आर्द्रता में सुधार किया, भूजल पुनर्भरण को बढ़ाया तथा लुप्त हो चुकी धाराओं को पुनर्जीवित किया।
    • देशज जीव-जंतुओं, जिनमें नीलगिरी मार्टेन तथा घासभूमि पक्षी शामिल हैं, ने पुनर्स्थापित क्षेत्रों में लौटना प्रारंभ कर दिया है।
  • नीति एवं सामुदायिक भागीदारी: केरल की वर्ष 2021 की पारिस्थितिकी-पुनर्स्थापन नीति ने उच्चभूमि पारिस्थितिकी तंत्रों से वॉटल और नीलगिरी जैसी विदेशी प्रजातियों को हटाने को प्राथमिकता दी।
    • स्थानीय समुदाय, जिन्हें पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन तकनीकों में प्रशिक्षित किया गया है, अब स्थानीय कार्यों का नेतृत्व कर रहे हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र की सतत् पुनर्बहाली सुनिश्चित हो रही है।

चीता

भारत दिसंबर 2025 तक प्रोजेक्ट चीता” के अंतर्गत बोत्सवाना से आठ और चीतों के एक नए समूह का आयात करेगा। वर्तमान में ये चीते बोत्सवाना में क्वारंटीन  हैं।

प्रोजेक्ट चीता के बारे में 

  • वर्ष 2022 में प्रारंभ किया गयाप्रोजेक्ट चीता” भारत की ऐसी पहल है, जिसके माध्यम से विलुप्त हो चुकी चीता प्रजाति (जो वर्ष 1952 में भारत से समाप्त हो गई थी) को उसके ऐतिहासिक आवास क्षेत्र में पुनः स्थापित किया जा रहा है।
  • निगरानी संस्था: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) इस परियोजना की निगरानी कर रहा है।
  • पूर्व स्थानांतरण: सितंबर 2022 में नामीबिया से आठ चीतों को भारत लाया गया, जिसके बाद फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से बारह चीतों को स्थानांतरित किया गया। यह विश्व का पहला अंतर-महाद्वीपीय मांसाहारी प्रजाति स्थानांतरण (Intercontinental Carnivore Translocation) था।
  • संरक्षण उपाय: आयातित चीतों को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़े जाने से पहले 2–3 माह तक क्वारंटीन में रखा जाता है।
  • उपलब्धियाँ: प्रारंभिक चुनौतियों के बावजूद, भारत में अब तक 16 चीतों का जन्म हो चुका है, जिससे परियोजना प्रारंभ होने के बाद कुल आबादी में शुद्ध रूप से 7 की वृद्धि हुई है। यह पारिस्थितिकी अनुकूलन की क्रमिक प्रगति को दर्शाता है।

चीता के बारे में

  • चीता (एसिनोनिक्स जुबेटस/Acinonyx jubatus) विश्व का सबसे तेज गति वाला स्थलीय प्राणी है। इसकी अफ्रीकी उपप्रजाति (ए. जे. जुबेटस/A. j. jubatus) को भारत में पुनः बसाया जा रहा है।
  • कुल आबादी: नवंबर 2025 तक भारत में कुल 27 चीते हैं, जिनमें से 24 कुनो राष्ट्रीय उद्यान में तथा 3 गाँधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में हैं।
  • IUCN स्थिति
    • अफ्रीकी चीता: सुभेद्य (Vulnerable)
    • एशियाई चीता: अति संकटग्रस्त (Critically Endangered)।

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