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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal November 25, 2025 04:26 4 0

फार्माकोजीनोमिक्स

फार्माकोजीनोमिक्स स्वास्थ्य प्रणालियों एवं औषधि-उपचार को व्यक्तिनिष्ठ बनाने में सक्षम बना रही है, जिससे ‘ट्रायल-एंड-एरर’ प्रकार की दवाइयों की पद्धति कम होती है और रोगी-सुरक्षा में सुधार आता है।

‘फार्माकोजीनोमिक्स’ के बारे में

  • ‘फार्माकोजीनोमिक्स’ वह अध्ययन है, जिसमें किसी व्यक्ति के आनुवंशिक परिवर्तन दवाओं के चयापचय, प्रभावशीलता और प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं के जोखिम को कैसे प्रभावित करते हैं, इसका विश्लेषण होता है।
  • यह उपचार को जनसंख्या-आधारित माध्यमों से हटाकर आनुवंशिक प्रोफाइल-आधारित व्यक्तिगत औषधि-उपचार की ओर ले जाता है।
  • दवा चयापचय से संबंधित एंजाइमों, विशेषकर CYP450 द्वारा होने वाले परिवर्तन यह निर्धारित करते हैं कि कोई रोगी कितना धीमा, सामान्य या अत्यंत-तेज चयापचयकर्ता है।
  • लगभग 90% लोगों में ऐसे आनुवंशिक परिवर्तन पाए जाते हैं, जो दवा-प्रतिक्रिया को बदल सकते हैं, जिससे फार्माकोजीनोमिक्स जन-स्तर पर चिकित्सकीय रूप से अत्यंत प्रासंगिक बन जाती है।

फार्माकोजीनोमिक्स के उपयोग

  • कार्डियोवैस्कुलर और रक्त-पतला करने वाली थेरेपी: CYP2C9 तथा VKORC1 की जाँच से वॉरफारिन की खुराक को व्यक्तिगत रूप से निर्धारित किया जा सकता है, जिससे रक्तस्राव का जोखिम कम होता है और चिकित्सकीय स्तर शीघ्र प्राप्त होते हैं।
    • CYP2C19 परीक्षण क्लोपिडोग्रेल के उपयोग का मार्गदर्शन करता है; धीमे चयापचयकर्ताओं को अधिक सुरक्षित वैकल्पिक एंटी-प्लेटलेट दवाएँ दी जाती हैं।
  • मानसिक-स्वास्थ्य उपचार: CYP2D6 और CYP2C19 में होने वाले परिवर्तन अवसादरोधी और मनोविक्षिप्ति रोधी दवाओं के चयापचय को प्रभावित करते हैं। परीक्षण कराने से लक्षण-नियंत्रण में सुधार होता है तथा प्रतिकूल प्रभाव कम होते हैं।
  • कैंसर-उपचार: DPYD परिवर्तन की जाँच 5-फ्लुओरोयूरासिल (5-fluorouracil) उपचार से पहले की जाती है, जिससे जीवन के लिए घातक विषाक्त प्रतिक्रियाओं को रोका जा सके और कीमोथेरेपी की सुरक्षा बढ़े।
  • गंभीर दवा-प्रतिक्रियाओं की रोकथाम: अबाकाविर से पहले HLA-B57:01 या कार्बामाजेपाइन से पहले HLA-B15:02 की जाँच करने से गंभीर अतिसंवेदनशीलता और स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम से बचाव होता है।

मुतिराओ (Mutirão) 

COP-30 के दौरान ब्राजील ने जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से बचने के संबंध में पूर्व प्रतिबद्धताओं को बनाए रखने के लिए मुतिराओ निर्णय अपनाने पर जोर दिया।

मुतिराओ के बारे में

  • मुतिराओ ब्राजील की सामूहिक लामबंदी की परंपरा है, जिसका उपयोग COP-30 में विवादास्पद जलवायु मुद्दों पर समन्वित सहमति-निर्माण को तेज करने के लिए किया जा रहा है।
  • मुतिराओ की आवश्यकता
    • इसका उद्देश्य UAE सहमति (COP 28) के दौरान हुए पूर्व समझौतों को ठोस और समन्वित वैश्विक कार्यवाही में बदलना है।
    • यह पेरिस समझौते के कार्यान्वयन चक्र पर समयबद्ध प्रगति सुनिश्चित कर बहुपक्षीय जलवायु कूटनीति में विश्वास बहाली चाहता है।

UAE सहमति

  • यह एक वैश्विक समझौता है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग न करने, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने तथा ऊर्जा दक्षता को दो गुना करने का है।
  • यह जलवायु वित्त के लिए नए ढाँचे, वन-विनाश रोकने तथा मेथेन उत्सर्जन के समाधान की भी बात करता है, ताकि वर्ष 2050 तक नेट जीरो लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।

इसके कार्यान्वयन में बाधाएँ

  • वार्ता-स्थितियों में पृथक दृष्टिकोण: विकसित और विकासशील देशों में अनुकूलन वित्त, सार्वजनिक वित्त के कानूनी दायित्व एवं जलवायु कार्यवाही में समता को लेकर गहरे मतभेद बने हुए हैं।
  • जलवायु वित्त संरचना पर विवाद: अनुकूलन वित्त को तीन गुना करने, जलवायु वित्त की परिभाषा तय करने तथा ‘न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल’ के तहत बाध्यकारी तंत्र स्थापित करने पर सहमति नहीं है।
  • जीवाश्म ईंधन संक्रमण-रोडमैप पर प्रतिरोध: पेट्रोलियम-निर्भर देश और जीवाश्म ईंधन-आधारित अर्थव्यवस्थाएँ जीवाश्म ईंधनों से दूर जाने के संरचित रोडमैप का विरोध कर रही हैं, जिससे सहमति-आधारित प्रगति जोखिम में है।
  • व्यापार-उपायों को लेकर तनाव: विकासशील देश एकपक्षीय व्यापार उपायों के विरुद्ध सुरक्षा प्रावधान चाहते हैं, जबकि विकसित देश बिना स्पष्ट व्यापार-प्रतिबद्धता के व्यापक आर्थिक भाषा को प्राथमिकता देते हैं।

निष्कर्ष

‘मुतिराओ’ की सफलता वित्त, व्यापार और जीवाश्म ईंधन संक्रमण से जुड़े मतभेदों के समाधान पर निर्भर करती है, जिससे COP-30 वैश्विक जलवायु सहयोग और आपसी विश्वास की एक निर्णायक परीक्षा बन जाती है।

भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP)

ITBP ने अपनी विस्तार योजना के तहत भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 10 सर्व-महिला सीमा चौकियों की स्थापना की घोषणा की है।

भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के बारे में

  • गृह मंत्रालय के अंतर्गत एक विशिष्ट केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, जिसका दायित्व भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (लंबाई 3,488 किलोमीटर) की सुरक्षा और अत्यधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में संचालन करना है।
  • स्थापना: भारत-चीन युद्ध के बाद 24 अक्टूबर, 1962 को भारत-तिब्बत सीमा को सुदृढ़ करने हेतु गठित।
    • प्रारंभ में CRPF अधिनियम के अंतर्गत; बाद में ITBPF अधिनियम 1992 एवं नियम 1994 के माध्यम से सशक्त किया गया।
    • 4 बटालियन से विस्तार पाकर यह उच्च-तुंगता पर कार्यरत एक बड़ा बल बन गया, जो 9,000–14,000 फीट से अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में कार्यरत है।
    • वर्ष 2004 में ‘वन बॉर्डर, वन फोर्स‘ सिद्धांत के तहत ITBP ने लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में संपूर्ण वास्तविक नियंत्रण रेखा की विशिष्ट जिम्मेदारी का प्रबंधन किया।
  • ध्येय वाक्य: ‘शौर्य – दृढ़ता – कर्मनिष्ठा’
  • ITBP के प्रमुख कार्य
    • सीमा सुरक्षा: काराकोरम दर्रे (लद्दाख) से जचेप ला (अरुणाचल) तक भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा की सुरक्षा, जिसमें अत्यधिक ऊँचाई वाली चौकियाँ शामिल हैं।
    • प्रशिक्षण एवं विशिष्टीकरण: पर्वत युद्ध, स्कीइंग, रॉक-क्राफ्ट तथा शून्य से नीचे तापमान में जीवित रहने की विशेषज्ञता।
    • औली स्थित पर्वतारोहण एवं सामरिक प्रशिक्षण संस्थानों का संचालन।
    • आपदा राहत एवं मानवीय भूमिका: हिमस्खलन, भूकंप और बादल-फटने की घटनाओं के दौरान राहत-बचाव अभियान।
      • सीमा समुदायों के लिए चिकित्सकीय एवं पशुचिकित्सा शिविरों का संचालन।
    • आंतरिक सुरक्षा दायित्व: आवश्यकता पड़ने पर नक्सल-रोधी अभियानों, चुनाव सुरक्षा और VIP सुरक्षा में सहयोग।
    • नागरिक सहभागिता: सीमा गाँवों में सामुदायिक पहुँच कार्यक्रमों के माध्यम से सैन्य-नागरिक सहयोग को प्रोत्साहन।
  • पूर्ण -महिला सीमा चौकियाँ (BOP): लुकुंग (लद्दाख) और थांगी (हिमाचल प्रदेश) से प्रारंभ करते हुए 10 पूर्ण-महिला BOP स्थापित।
    • ऊँचाई-वाले सीमा सुरक्षा दायित्वों में महिलाओं की अग्रिम तैनाती को सुदृढ़ करती हैं।
    • ITBP के कार्मिक-ढाँचे के आधुनिकीकरण और विविधीकरण की व्यापक पहल का हिस्सा।

महत्त्व

वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत की अग्रिम उपस्थिति को मजबूत करता है तथा राष्ट्रीय सुरक्षा भूमिकाओं में लैंगिक समावेशन को आगे बढ़ाता है।

भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश

न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने 24 नवंबर, 2025 को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद ग्रहण किया। उन्होंने न्यायमूर्ति बी.आर. गवई का स्थान लिया।

न्यायमूर्ति सूर्य कांत के बारे में

  • सर्वोच्च न्यायालय के एक प्रतिष्ठित न्यायाधीश, जो संवैधानिक अधिकारों, संघवाद, लैंगिक न्याय और निर्वाचन पारदर्शिता से जुड़े महत्त्वपूर्ण निर्णयों के लिए जाने जाते हैं।
  • हरियाणा से आने वाले प्रथम प्रधान न्यायाधीश, जिनका कार्यकाल नवंबर 2025 से फरवरी 2027 तक रहेगा।
  • प्रारंभिक जीवन एवं न्यायिक भूमिका
  • जन्म: 10 फरवरी, 1962, हिसार।
    • वरिष्ठ अधिवक्ता और हरियाणा के महाधिवक्ता।
    • वर्ष 2018 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश।
    • सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति, अधिकार-केंद्रित निर्णयों के लिए प्रसिद्ध।
  • प्रमुख न्यायिक योगदान
    • महत्त्वपूर्ण निर्णय: अनुच्छेद-370, पेगासस निगरानी मामला, बिहार मतदाता सूची विवाद, राजद्रोह धारा 124(A) पर रोक, AMU अल्पसंख्यक दर्जा पुनर्विचार।
      • निर्वाचन आयोग को, बिहार के 65 लाख वंचित मतदाताओं का खुलासा करने का आदेश दिया।
    • लैंगिक न्याय को सुदृढ़ किया: महिला सरपंच पद की पुनर्स्थापना, बार एसोशिएसन में महिलाओं हेतु एक-तिहाई आरक्षण को मान्यता।
      • “वन रैंक, वन पेंशन” को बनाए रखा, महिला अधिकारियों की स्थायी कमीशन याचिकाओं की सुनवाई की।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI)

  • मुख्य न्यायाधीश भारतीय न्यायपालिका के प्रमुख होते हैं, सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही का संचालन करते हैं और संविधान की रक्षा सुनिश्चित करते हैं।
  • संवैधानिक प्रावधान
    • अनुच्छेद-124: सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना व न्यायाधीशों, जिसमें CJI भी शामिल हैं, की नियुक्ति से संबंधित प्रावधान।
    • अनुच्छेद-145: सर्वोच्च न्यायालय को नियम बनाने का अधिकार, CJI  के पर्यवेक्षण में।
    • अनुच्छेद-146: सर्वोच्च न्यायालय के कर्मचारियों की नियुक्ति का नियंत्रण CJI  के पास।
    • अनुच्छेद-130: सर्वोच्च न्यायालय की पीठ में परिवर्तन हेतु CJI  की स्वीकृति आवश्यक।
  • CJI की नियुक्ति
    • नियुक्ति: भारत के राष्ट्रपति द्वारा।
    • परंपरा: वरिष्ठता-आधारित परंपरा, सर्वोच्च न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश नामित किया जाता है।
    • प्रक्रिया: सेवानिवृत्त होने वाले CJI  अपने उत्तराधिकारी (वरिष्ठतम पात्र न्यायाधीश) का नाम सुझाते हैं।
    • केंद्रीय विधि मंत्रालय नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी करता है।
  • कार्यकाल: नियुक्ति के बाद 65 वर्ष की आयु तक पद पर रहते हैं, संविधान में निश्चित कार्यकाल निर्दिष्ट नहीं है।
  • त्याग-पत्र: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, जिनमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं, राष्ट्रपति को लिखित त्याग-पत्र प्रस्तुत कर सकते हैं।
  • CJI  का पद से हटाया जाना (महाभियोग प्रक्रिया): केवल सिद्ध दुराचार या अक्षमता पर हटाए जा सकते हैं।
    • प्रस्ताव किसी भी सदन में शुरू हो सकता है, जिसके लिए 100 लोकसभा सदस्यों या 50 राज्यसभा सदस्यों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है, जिसके बाद तीन सदस्यीय समिति आरोपों की जाँच करती है।
    • यदि समिति आरोपों को बरकरार रखती है, तो दोनों सदनों को कुल सदस्यता के विशेष बहुमत और उपस्थित एवं मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों द्वारा प्रस्ताव पारित करना होगा, जिसके बाद राष्ट्रपति निष्कासन आदेश जारी करता है।
  • पात्रता: मुख्य न्यायाधीश के लिए कोई अलग पात्रता नहीं है; यह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान ही है, जो इस प्रकार है
    • भारत का नागरिक हो।
    • 5 वर्ष तक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो, या
    • 10 वर्ष तक उच्च न्यायालय में अधिवक्ता रहा हो, या
    • राष्ट्रपति की राय में विशिष्ट न्यायविद् हो।
  • CJI  की भूमिकाएँ एवं उत्तरदायित्व
    • न्यायिक नेतृत्व: संवैधानिक पीठों का नेतृत्व; कानून की एकरूप व्याख्या सुनिश्चित करना।
      • न्यायिक कार्यप्रणाली और मिसालों की निरंतरता का पर्यवेक्षण।
    • प्रशासनिक प्राधिकारी: मामलों का आवंटन, पीठों का गठन, न्यायालय कैलेंडर का प्रबंधन।
      • सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री, कर्मचारियों और आंतरिक प्रक्रियाओं की देख-रेख।
    • कोलेजियम प्रमुख: सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण का नेतृत्व।
      • न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
    • संवैधानिक संरक्षक: मूल संरचना और मौलिक अधिकारों की रक्षा।
      • आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रपति को न्यायिक और संवैधानिक मामलों पर सलाह देना।

भारत के अंतिम पाँच प्रधान न्यायाधीश

  • 49 – यू.यू. ललित (अगस्त 2022 – नवंबर 2022)
  • 50 – डी.वाई. चंद्रचूड़ (नवंबर 2022 – नवंबर 2024)
  • 51 – संजीव खन्ना (नवंबर 2024 – मई 2025)
  • 52 – बी.आर. गवई (मई 2025 – नवंबर 2025)
  • 53 – सूर्य कांत (नवंबर 2025 – फरवरी 2027)

रैंडम फॉरेस्ट (Random Forest)

हाल ही में एक अध्ययन ने प्राचीन रासायनिक संकेतों का पता लगाने के लिए रैंडम फॉरेस्ट (Random Forest) मॉडलों का उपयोग किया, जिससे संकेत प्राप्त होता है कि प्रकाश-संश्लेषी सूक्ष्मजीव लगभग 2.5 अरब वर्ष पहले अस्तित्व में थे।

रैंडम फॉरेस्ट के बारे में

  • रैंडम फॉरेस्ट एक समष्टिगत मशीन-लर्निंग तकनीक है, जो अनेक ‘डिसीजन ट्रीज” (Decision Trees) को संयोजित कर वर्गीकरण और प्रतिगमन आधारित कार्यों हेतु अधिक स्थिर, विश्वसनीय और सटीक पूर्वानुमान प्रदान करती है।
  • ‘डिसीजन ट्रीज’ (Decision Trees): यह एक पर्यवेक्षित शिक्षण एल्गोरिथ्म है, जो पूर्वानुमान के लिए प्रवाह-चार्ट जैसी संरचना वाले मॉडल का निर्माण करता है।
    • इसमें आंतरिक नोड ‘इफ-देन’ (if-then) नियमों (गुणों पर परीक्षण) का प्रतिनिधित्व करते हैं, शाखाएँ उन परीक्षणों के परिणाम दर्शाती हैं, और ‘लीफ-नोड’ अंतिम निर्णय या पूर्वानुमान दर्शाते हैं।
    • इन मॉडलों का उपयोग वर्गीकरण और प्रतिगमन दोनों में किया जाता है।
  • ‘डिसीजन ट्रीज’ कैसे कार्य करता है: यह प्रत्येक नोड पर प्रश्नों की एक शृंखला द्वारा डेटा को विभाजित करता है (जैसे- ‘क्या आयु 30 से अधिक है?’), और शाखाओं के माध्यम से आगे बढ़ते हुए लीफ नोड पर पहुँचकर एक सार्थक, तर्कसंगत एवं उपयोगी अंतिम निर्णय प्रदान करता है।
  • ‘सिंगल ट्री’ की सीमाएँ: ‘सिंगल ट्री’ सरल और आसानी से व्याख्यायित होने वाले मॉडल होते हैं, परंतु ये प्रायः अति-अनुरूपण का शिकार हो जाते हैं तथा प्रशिक्षण डाटा के विशेष या आकस्मिक पैटर्न को भी ग्रहण कर लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी सामान्यीकरण क्षमता कम हो जाती है।
  • रैंडम फॉरेस्ट की मुख्य विशेषताएँ
    • अनेक वृक्षों का समूह: रैंडम फॉरेस्ट अनेक स्वतंत्र ‘डिसीजन ट्रीज’ का निर्माण करता है, जिनमें से प्रत्येक को डेटा के यादृच्छिक उपसमूहों के आधार पर प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे विविधता सुनिश्चित होती है।
    • पूर्वानुमान तंत्र: वर्गीकरण में प्रत्येक ‘ट्री’ एक मत प्रदान करता है, और सर्वाधिक प्राप्त मत संबंधी परिणाम अंतिम पूर्वानुमान का आधार बन जाता है। वहीं, प्रतिगमन में सभी ‘ट्रीज’ के पूर्वानुमानों का औसत मान ही अंतिम परिणाम माना जाता है।
    • त्रुटि में कमी: ‘ट्रीज’ के बीच यादृच्छिक विविधताओं के कारण त्रुटियाँ समाप्त हो जाती हैं, जिससे ‘सिंगल ट्री’ की तुलना में सटीकता बढ़ती है तथा पक्षपात–प्रसरण असंतुलन कम होता है।

महत्त्व

  • विश्वसनीय और सुदृढ़ परिणाम: अनेक ‘ट्रीज’ का लाभ उठाकर, रैंडम फॉरेस्ट अधिक सुसंगत परिणाम उत्पन्न करता है और हस्तक्षेप आधारित, अपूर्ण या जटिल डेटा का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करता है।
  • वैज्ञानिक और व्यावहारिक उपयोगिता: सूक्ष्म पैटर्न का पता लगाने की इसकी क्षमता इसे पारिस्थितिकी, चिकित्सा, वित्त जैसे क्षेत्रों में और हाल ही में, भू-वैज्ञानिक नमूनों में प्राचीन जैव-चिह्नों की पहचान करने के योग्य बनाती है।

ऑपरेशन क्रिस्टल फोर्ट्रेस

दिल्ली में ऑपरेशन क्रिस्टल फोर्ट्रेस के तहत 328 किलोग्राम मेथमफेटामाइन (Methamphetamine) जब्त की गई।

ऑपरेशन ‘क्रिस्टल फोर्ट्रेस’ के बारे में

  • परिचय: ऑपरेशन क्रिस्टल फोर्ट्रेस एक इंटेलिजेंस-आधारित बहु-एजेंसी कार्रवाई है, जिसे नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) और दिल्ली पुलिस ने संयुक्त रूप से संचालित किया।
  • लक्ष्य एवं दायरा: यह अभियान उच्च-मात्रा सिंथेटिक ड्रग तस्करी नेटवर्क को बाधित करने पर केंद्रित था, जो भारत और विदेशों में संचालित होता है।

मेथमफेटामाइन के बारे में

  • मेथमफेटामाइन एक शक्तिशाली सिंथेटिक उत्तेजक है, जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापक रूप से इसकी तस्करी की जाती है।
  • मुख्य विशेषताएँ: यह क्रिस्टलीय पाउडर या ‘बर्फ’ के रूप में दिखाई देता है, इसका परिवहन आसान है और यह उच्च लाभ प्रदान करता है, जिससे यह संगठित अपराध नेटवर्क के लिए आकर्षक बन जाता है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: मेथमफेटामाइन के उपयोग से गंभीर लत, आक्रामक व्यवहार, हृदय संबंधी क्षति, संज्ञानात्मक गिरावट और दीर्घकालिक तंत्रिका संबंधी क्षति होती है।
  • मेथमफेटामाइन का विनियमन: मेथमफेटामाइन को भारत में स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985  के तहत विनियमित किया जाता है।
    • इसे अधिनियम के तहत साइकॉट्रोपिक पदार्थ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
    • प्रतिबंध: अधिनियम किसी भी साइकॉट्रोपिक पदार्थ का उत्पादन, निर्माण, बिक्री, खरीद, परिवहन, भंडारण, उपयोग या सेवन निषिद्ध करता है, सिवाय चिकित्सा या वैज्ञानिक प्रयोजनों के और उचित अनुमति, लाइसेंस या परमिट के साथ।
  • प्रवर्तन: केंद्रीय और राज्य सरकार की विभिन्न एजेंसियाँ, जिनमें NCB और राज्य पुलिस बल शामिल हैं, जिन्हें अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन: NDPS अधिनियम को भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र साइकॉट्रोपिक पदार्थ कन्वेंशन, 1971 के तहत प्रतिबद्धताओं को पूरा करने हेतु बनाया गया।

इंडोनेशिया पोलियो मुक्त घोषित

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने देशव्यापी सघन टीकाकरण अभियान के बाद जून 2024 से टाइप-2 पोलियो वायरस का कोई मामला सामने नहीं आने की पुष्टि के बाद इंडोनेशिया को पोलियो मुक्त घोषित किया हैl

हालिया प्रकोप एवं नियंत्रण पर मुख्य बिंदु

  • इंडोनेशिया में पोलियो का प्रकोप: इंडोनेशिया के आचेह, बेंटेन, जावा, मालुकु और पापुआ क्षेत्रों में कई मामले देखे गए, जिसको लेकर अक्टूबर 2022 में सघन टीकाकरण अभियान शुरू किया गयाl
  • रोकथाम के उपाय: nOPV2 की लगभग 60 मिलियन अतिरिक्त खुराक और मजबूत IPV कवरेज ने तेजी से प्रकोप नियंत्रण में योगदान दिया है l
    • 27 जून, 2024 को अंतिम मामले की रिपोर्ट के साथ संचरण समाप्त हो गयाl
  • वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल के आकलन (2023–2025) ने पुष्टि की कि इंडोनेशिया ने प्रकोप को समाप्त करने के सभी मानदंडों को पूरा किया हैl
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रकोप-समापन मानदंड के अनुसार, मानव और पर्यावरण में लगातार 12 महीनों तक वायरस का पता न चलना आवश्यक हैl

पोलियोमायलिटिस (पोलियो) के बारे में 

  • पोलियोमाइलाइटिस एक अत्यधिक संक्रामक वायरल रोग है, जो मुख्य रूप से पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है।
  • संचरण: यह मुख्यतः मल-मौखिक मार्ग से व्यक्ति-से-व्यक्ति संपर्क या दूषित जल या भोजन के माध्यम से फैलता है।
  • प्रभाव: यह वायरस आँत में गुणन वृद्धि करता है और तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण कर सकता है, जिससे लकवा हो सकता है।
  • वैश्विक स्तर पर ‘वाइल्ड पोलियोवायरस स्ट्रेन’ की स्थिति
    • टाइप 1: वर्ष 2022 तक पाकिस्तान और अफगानिस्तान में एंडेमिक बना हुआ हैl
    • टाइप 2: वर्ष 1999 में उन्मूलित घोषित किया गया है।
    • टाइप 3: वर्ष 2020 में उन्मूलन घोषित कर दिया गया।
  • टीका-व्युत्पन्न पोलियो: ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV) में पोलियोवायरस का एक कमजोर रूप होता है, जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है।
    • कम टीकाकरण वाली आबादी में, एक्सक्रीटेड वैक्सीन वायरस (Excreted Vaccine Virus) प्रसारित हो सकता है, आनुवंशिक परिवर्तन से गुजर सकता है, और परिसंचारी टीका-व्युत्पन्न पोलियोवायरस (Circulating Vaccine-Derived Poliovirus-cVDPV) उत्पन्न करने में सक्षम रूप में परिवर्तित हो सकता है।
    • cVDPV के संचरण को रोकने के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन उच्च गुणवत्ता वाले टीकाकरण अभियान के कई दौर आयोजित करने की सिफारिश करता हैl
  • निवारक उपाय: OPV और IPV
    • ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV): इसमें लाइव एटेन्यूएटेड पोलियो वायरस होता है, जिसे मुँह के माध्यम से प्रदान किया जाता है।
      • यह आँतों की मजबूत प्रतिरक्षा को प्रेरित करता है और सामुदायिक संचरण को रोकने में मदद करता है l
        • nOPV2 एक आनुवंशिक रूप से स्थिर संस्करण है, जिसे टीके से उत्पन्न पोलियोवायरस के जोखिम को कम करने के लिए डिजाइन किया गया है।
    • निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (IPV): IPV में एक मृत वायरस होता है, जिसे इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाता है।
      • यह प्रणालीगत प्रतिरक्षा प्रदान करता है और व्यक्तियों को पक्षाघात से बचाता है।
      • हाल ही में इंडोनेशिया ने सुरक्षा स्तर बढ़ाने के लिए हेक्सावेलेंट DPT-HB-Hib-IPV वैक्सीन का प्रयोग शुरू किया है।
  • भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2014 में पोलियो-मुक्त दर्जा प्राप्त हुआ था और यहाँ वाइल्ड पोलियोवायरस का अंतिम मामला वर्ष 2011 में दर्ज किया गया था।

महत्त्व 

इंडोनेशिया की सफलता WHO पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र की पोलियो मुक्त स्थिति को मजबूत करती है और उच्च टीकाकरण कवरेज, तीव्र निगरानी तथा समन्वित वैश्विक साझेदारी के महत्त्व को दर्शाती है।

गुरु तेग बहादुर

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरु तेग बहादुर को उनके 350वें शहीदी दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की तथा उनके साहस, बलिदान और धार्मिक स्वतंत्रता के स्थायी संदेश पर जोर दिया।

गुरु तेग बहादुर के बारे में

  • गुरु तेग बहादुर (1621-1675) नौवें सिख गुरु थे और उत्पीड़ित समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उन्हें हिंद-दी-चादर के रूप में सम्मानित किया जाता है।
  • उनका जन्म छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद के सबसे छोटे पुत्र त्याग मल के रूप में हुआ था।
  • मुगल सेनाओं के विरुद्ध युद्ध में उनके पराक्रम के लिए उन्हें तेग बहादुर (‘तलवार के पराक्रमी’) नाम मिला।
  • वर्ष 1664 में, वह गुरु हर किशन के बाद नौवें गुरु बने और उनके पुत्र गुरु गोबिंद सिंह बाद में दसवें गुरु बने।
  • प्रमुख योगदान
    • आध्यात्मिक और साहित्यिक योगदान: उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब में 100 से अधिक भजनों की रचना की, जिनमें भक्ति, वैराग्य, विनम्रता, गरिमा और ईश्वर के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है।
    • संस्थागत और सामाजिक योगदान: उन्होंने पंजाब में आनंदपुर साहिब की स्थापना की, जो बाद में सिख आध्यात्मिक जीवन का केंद्र बन गया और 1699 ईसवी में खालसा का जन्मस्थान बन गया।
    • अभियान: उन्होंने सिख शिक्षाओं का प्रसार करने तथा करुणा और समानता को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर यात्रा की।
      • उन्होंने उत्पीड़न का सामना कर रहे समुदायों को सहायता प्रदान की और अंतःकरण की स्वतंत्रता के सिद्धांत को कायम रखा।
      • उन्होंने कश्मीरी पंडितों और अन्य गैर-मुसलमानों के जबरन धर्मांतरण का विरोध किया तथा उनके अपने धर्म का पालन करने के अधिकार की रक्षा की।
  • शहादत: औरंगजेब के आदेश पर इस्लाम धर्म अपनाने से इनकार करने पर 1675 ईसवी में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और दिल्ली में सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई।
  • विरासत स्थल: गुरुद्वारा सीस गंज साहिब, उनकी फाँसी का स्थल है, जबकि गुरुद्वारा रकब गंज साहिब शवाधान स्थल है।
  • स्थायी महत्त्व: उनकी शहादत को प्रतिवर्ष 24 नवंबर (नानकशाही कैलेंडर) को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के लिए सर्वोच्च बलिदान का प्रतीक है।

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