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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal November 27, 2025 03:36 14 0

लचित बोरफुकन

भारतीय प्रधानमंत्री तथा गृह मंत्री ने लचित बोरफुकन को लचित दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

  • लचित दिवस प्रतिवर्ष 24 नवंबर को लचित बोरफुकन की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

लचित बोरफुकन के बारे में

  • लचित बोरफुकन का जन्म 24 नवंबर, 1622 को चरायदेव, असम में हुआ।
  • असम में उन्हें उस सेनानायक के रूप में सम्मानित किया जाता है, जिसने सराइघाट के युद्ध (1671) में राजा राम सिंह के नेतृत्व वाली मुगल सेना को पराजित किया।
  • सैन्य नेतृत्व: उन्होंने गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी पर हुए सरायघाट के युद्ध के दौरान अहोम सेनाओं के कमांडर के रूप में कार्य किया।
    • उन्हें असाधारण रणनीतिक कौशल और प्रभावी गुरिल्ला युद्ध रणनीति के लिए जाना जाता है, जिससे छोटी अहोम सेना एक बहुत बड़ी मुगल सेना से बेहतर प्रदर्शन करने में सक्षम थी।
  • अहोम प्रशासन में पद: राजा चरध्वज सिंघा द्वारा उन्हें पाँच बोरफुकन में से एक नियुक्त किया गया।
    • बोरफुकन प्रशासनिक, न्यायिक और सैन्य तीनों प्रकार के अधिकार रखते थे।
    • वे अहोम राजा के प्रतिनिधि के रूप में राज्य के पश्चिमी भाग का संचालन करते थे।
  • अंतिम वर्ष: सराइघाट विजय के लगभग एक वर्ष बाद, वर्ष 1672 में दीर्घकालिक बीमारी से उनका निधन हो गया।

अहोम साम्राज्य के बारे में

  • अहोम साम्राज्य की स्थापना मोंग माओ क्षेत्र (म्याँमार) के एक शान राजकुमार सुकफा ने की थी, जिन्होंने 1228 ई. में वर्तमान असम में प्रवेश किया था।
    • यह साम्राज्य लगभग 600 वर्षों (13वीं से 19वीं शताब्दी) तक असम के बड़े भाग पर शासन करता रहा।
  • राजनीतिक एवं सामाजिक संरचना: यह एक समृद्ध, बहु-जातीय साम्राज्य था, जिसका केंद्र उपजाऊ ब्रह्मपुत्र घाटी थी। विस्तृत धान की कृषि  इसकी आर्थिक आधारशिला थी।
    • यह अपने सुदृढ़ प्रशासनिक ढाँचे और बाह्य आक्रमणों के प्रति दृढ़ प्रतिरोध के लिए जाना जाता था।
  • मुगलों से संघर्ष: वर्ष 1615 से 1682 के बीच अहोम और मुगल साम्राज्य के बीच अनेक युद्ध हुए, जो जहाँगीर से लेकर औरंगजेब के काल तक संचालित हुए।
    • सराइघाट का युद्ध उत्तर-पूर्व में मुगल विस्तार के विरुद्ध अहोमों की सबसे निर्णायक विजय माना जाता है।

यूरेनियम (U-238) संदूषण

एक नए अध्ययन में बिहार के विभिन्न क्षेत्रों से लिए गए स्तनपान कराने वाली माताओं के दुग्ध नमूनों में यूरेनियम (U-238) के अंश पाए गए हैं। यद्यपि इसकी मात्रा वैश्विक सुरक्षा सीमा से कम है, फिर भी शिशुओं के संभावित जोखिम को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

यूरेनियम संदूषण पर मुख्य निष्कर्ष

  • बिहार भर में 40 स्तनपान कराने वाली माताओं पर किए गए अध्ययन में 100% स्तन दूध के नमूनों में यूरेनियम पाया गया, जिसमें कटिहार में सबसे अधिक व्यक्तिगत मान और खगड़िया में सबसे अधिक जिला औसत पाया गया।
  • सभी दुग्ध नमूनों में यूरेनियम मौजूद था। 70% शिशुओं में जोखिम भागफल (Hazard Quotient-HQ) > 1, जो संभावित गैर-कैंसरजन्य जोखिम को दर्शाता है।
  • शोधकर्ताओं के अनुसार, माताओं द्वारा अवशोषित अधिकांश यूरेनियम मूत्र के माध्यम से निष्कासित हो जाता है, स्तन-दुग्ध में केंद्रित नहीं होता।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि स्तनपान जारी रहना चाहिए, जब तक कोई चिकित्सीय निषेध न हो, क्योंकि इसके पोषण एवं प्रतिरक्षा लाभ कहीं अधिक हैं।

यूरेनियम संदूषण के बारे में

  • यूरेनियम संदूषण से आशय मृदा, भू-जल, सतही जल या खाद्य स्रोतों में अधिक यूरेनियम की उपस्थिति से है, जो सामान्यतः प्राकृतिक भू-वैज्ञानिक प्रक्रियाओं या मानव-जनित गतिविधियों के कारण होती है।
    • जब यूरेनियम का स्तर सुरक्षित सीमा से ऊपर पहुँच जाता है, तब यह सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा पर्यावरणीय चिंता का विषय बनता है।
  • WHO पेयजल में यूरेनियम की अस्थायी सीमा 30 माइक्रोग्राम/लीटर निर्धारित करता है; कुछ देश, जैसे जर्मनी, और सख्त मानक (10 माइक्रोग्राम/लीटर) अपनाते हैं।
    • अध्ययन में मापी गई दूध (स्तनपान कराने वाली माताओं के) की सांद्रता 0-5.25 µg/L थी, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के जल दिशानिर्देश से कम थी।
  • संदूषण के स्रोत
    • यूरेनियम प्राकृतिक रूप से ग्रेनाइट एवं शैलों में पाया जाता है और अपक्षय से भूजल में पहुँच जाता है।
    • मानवजनित स्रोतों में खनन, कोयला दहन, परमाणु उद्योग उत्सर्जन और फॉस्फेट उर्वरक शामिल हैं।
    • भारत के 18 राज्यों के 151 जिलों में जल प्रदूषण की सूचना है, जिसमें बिहार का 1.7% भूजल प्रभावित है।

यूरेनियम संपर्क का स्वास्थ्य प्रभाव

  • शिशु अधिक संवेदनशील होते हैं, क्योंकि उनकी विष सहनीय क्षमता सीमित होती है।
  • संभावित प्रभावों में गुर्दे के विकास में कमी, तंत्रिका-विकास में देरी, तथा संज्ञानात्मक कमी जैसे दीर्घकालिक जोखिम के कारण IQ में कमी शामिल है।

विक्रम-I ऑर्बिटल रॉकेट

प्रधानमंत्री ने स्काईरूट के नए इनफिनिटी परिसर का उद्घाटन किया तथा विक्रम–1 ऑर्बिटल रॉकेट का अनावरण किया, जो भारत के निजी अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।

विक्रम–1 ऑर्बिटल रॉकेट के बारे में

  • विक्रम–1 स्काईरूट एयरोस्पेस का प्रथम कक्षीय-श्रेणी प्रक्षेपण वाहन है, जिसे छोटे उपग्रहों को निम्न-पृथ्वी कक्षा (LEO) में कुशलता और शीघ्रता से स्थापित करने हेतु विकसित किया गया है।
    • निम्न-पृथ्वी कक्षा (LEO) लगभग 160 किमी. से 1000 किमी. की ऊँचाई तक विस्तृत होती है, जहाँ अधिकांश उपग्रह तथा अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन स्थित होते हैं।
    • LEO का चयन कम प्रक्षेपण ऊर्जा की आवश्यकता और पृथ्वी अवलोकन हेतु अनुकूल स्थितियों के कारण किया जाता है।
  • विकसितकर्ता: स्काईरूट एयरोस्पेस, हैदराबाद
    • निजी इकाई, जिसकी स्थापना IIT पूर्व छात्रों तथा पूर्व इसरो वैज्ञानिकों द्वारा की गई।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • बहु-चरणीय हल्का ढाँचा: पूर्ण कार्बन-फाइबर संरचना, जो उच्च शक्ति-भार अनुपात प्रदान करती है।
      • बहु-चरणीय ठोस-ईंधन विन्यास: सरल, सुदृढ़ और कम-रखरखाव संचालन सुनिश्चित करता है।
    • क्षमता: LEO में लगभग 300 किलोग्राम पेलोड रख सकता है और एक ही मिशन में कई उपग्रहों को तैनात करने में सक्षम है
    • त्वरित प्रक्षेपण तैयारी: ठोस प्रणोदन के कारण 24 घंटे के भीतर संयोजन और प्रक्षेपण संभव।
    • न्यूनतम प्रक्षेपण अधिसंरचना की आवश्यकता, जिससे लचीले प्रक्षेपण स्थलों का उपयोग संभव।

महत्त्व

  • निजी अंतरिक्ष पारितंत्र को बल: भारत के उभरते छोटे-उपग्रह प्रक्षेपण बाजार को सुदृढ़ करता है।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों की सफलता दर्शाता है, जिससे निजी विनिर्माण और नवाचार को प्रोत्साहन मिला है।
  • औद्योगिक विस्तार: स्काईरूट के नए 200,000 वर्ग फुट के इन्फिनिटी कैंपस द्वारा समर्थित, जो प्रति माह एक कक्षीय रॉकेट का उत्पादन करने में सक्षम है।
  • रणनीतिक मूल्य: स्वदेशी अंतरिक्ष पहुँच को मजबूत करता है, विदेशी प्रक्षेपकों पर निर्भरता घटाता है तथा वाणिज्यिक, वैज्ञानिक और रक्षा पेलोडों को समर्थन देता है।

ऑर्बिटल तथा सब-ऑर्बिटल रॉकेट

  • ऑर्बिटल रॉकेट: यह एक पेलोड को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करता है, जिसके लिए बहुत उच्च वेग (~7.8 किमी./सेकेंड) की आवश्यकता होती है ताकि वस्तु लगातार ग्रह की परिक्रमा करती रहे।
    • इसरो का विश्वसनीय कक्षीय रॉकेट: PSLV (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान)।
  • सब-ऑर्बिटल रॉकेट: यह अंतरिक्ष तक तो पहुँचता है, परंतु कक्षीय वेग प्राप्त नहीं करता और पृथ्वी की परिक्रमा किए बिना वापस लौट आता है।
    • इसरो का उदाहरण: RH–200 (रोहिणी साउंडिंग रॉकेट)।
  • उद्देश्य: कक्षीय रॉकेट का उपयोग उपग्रह तैनाती और लंबी अवधि के मिशनों के लिए किया जाता है, जबकि उप-कक्षीय रॉकेट का उपयोग मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी परीक्षण, सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण प्रयोगों या लघु अंतरिक्ष उड़ानों के लिए किया जाता है।

राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार 2025 

हाल ही में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार, 2025 प्रदान किए गए, साथ ही भारत के दुग्ध क्षेत्र को सुदृढ़ करने हेतु प्रमुख पहलों का शुभारंभ किया गया।

राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार (NGRA) के बारे में

  • पशुधन व दुग्ध क्षेत्र में प्रदान किए जाने वाले सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मानों में से एक, जो प्रतिवर्ष राष्ट्रीय दुग्ध दिवस पर प्रदान किया जाता है।
  • उद्देश्य: नस्ल सुधार, दुग्ध उत्पादन तथा वैज्ञानिक दुग्ध-प्रबंधन को बढ़ावा देना।
  • प्रारम्भ: वर्ष 2021 में राष्ट्रीय गोकुल मिशन (RGM) के तहत स्वदेशी गाय-भैंस नस्लों के उन्नयन हेतु प्रारंभ।
  • उद्देश्य
    • उत्कृष्ट योगदान के लिए दुग्ध किसानों, सहकारिताओं व हितधारकों को मान्यता प्रदान करना।
    • स्वदेशी नस्लों के वैज्ञानिक प्रबंधन व सतत् दुग्ध प्रथाओं को प्रोत्साहित करना।
    • प्रजनन, चारा प्रबंधन तथा उत्पादन दक्षता में नवाचार को बढ़ावा देना।
    • विश्व के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक के रूप में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को और मजबूत करना।
  • पुरस्कार: प्रमाण पत्र और स्मृति-चिह्न।
  • पुरस्कार की श्रेणियाँ
    • सर्वश्रेष्ठ दुग्ध किसान (स्वदेशी गाय/भैंस नस्ल पालक)
    • सर्वश्रेष्ठ कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन
    • सर्वश्रेष्ठ दुग्ध सहकारी समिति / दुग्ध उत्पादक कंपनी / दुग्ध किसान उत्पादक संगठन
  • विशेष श्रेणी पुरस्कार: उपर्युक्त तीनों श्रेणियों में पूर्वोत्तर क्षेत्र / हिमालयी राज्यों के विजेताओं हेतु विशेष पुरस्कार।

अन्य प्रारंभ की जाने वाली पहलें

  • उच्च गुणवत्ता वाले पशुधन उत्पादन को बढ़ाने के लिए नस्ल गुणन फार्म (Breed Multiplication Farms)।
  • न्यूनतम पशु-चिकित्सा अवसंरचना दिशा-निर्देश: राष्ट्रीय स्तर पर एकरूप मानक स्थापित करने हेतु।
  • मूल पशुपालन सांख्यिकी 2025: नीतिगत योजना हेतु आँकड़ा-आधारित दृष्टिकोण को सुदृढ़ करना।
  • डेयरी लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति शृंखला को मजबूत करने के लिए 20 NPDD-सहायता प्राप्त दूध टैंकरों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया।

राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के बारे में

  • परिचय: राष्ट्रीय दुग्ध दिवस प्रति वर्ष 26 नवंबर को मनाया जाता है। यह दिवस श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गीज कुरियन की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • महत्त्व: यह दिवस भारत के करोड़ों दुग्ध किसानों के योगदान का सम्मान करता है, जो देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं और वैश्विक दुग्ध उत्पादन में भारत की अग्रणी स्थिति को सशक्त बनाते हैं।
  • भारत का दुग्ध क्षेत्र: भारत वैश्विक दुग्ध उत्पादन का लगभग एक-चौथाई योगदान देता है। वर्ष 2014 से अब तक पिछले 11 वर्षों में क्षेत्र की वृद्धि लगभग 70 प्रतिशत रही है। यह क्षेत्र 8 करोड़ से अधिक किसानों को रोजगार प्रदान करता है और समावेशी, महिला-प्रधान ग्रामीण विकास को गति प्रदान करता है।

अभ्यास अजेय वारियर-25

भारत और ब्रिटेन ने आतंकवाद-रोधी संयुक्त परिचालन क्षमता को बढ़ाने हेतु राजस्थान में अभ्यास अजेय वारियर-25 के आठवें संस्करण की शुरुआत की।

अजेय वारियर-2025 के बारे में

  • अजेय वारियर भारत-ब्रिटेन का द्विवार्षिक संयुक्त सैन्य अभ्यास है, जिसका उद्देश्य व्यावसायिक सहयोग को सुदृढ़ करना और दोनों सेनाओं के बीच पारस्परिक संचालन-क्षमता को बढ़ाना है।
  • अवस्थिति: विदेश प्रशिक्षण नोड, महाजन फील्ड फायरिंग रेंज, राजस्थान।
  • मुख्य फोकस क्षेत्र
    • यह अभ्यास संयुक्त राष्ट्र अधिदेश के तहत आयोजित किया जाता है और अर्द्ध-शहरी परिवेश में आतंकवाद-रोधी अभियानों पर केंद्रित है।
    • इसमें ब्रिगेड स्तर पर संयुक्त मिशन योजना, समेकित सामरिक अभ्यास, परिदृश्य-आधारित सिमुलेशन, तथा कंपनी-स्तरीय फील्ड अभ्यास शामिल हैं।
    • दोनों सेनाओं से 240-240 सैनिकों की समान भागीदारी, जिसमें भारतीय सेना का प्रतिनिधित्व सिख रेजिमेंट द्वारा किया जा रहा है।
  • महत्त्व: यह अभ्यास परिचालन समन्वय को मजबूत करता है, श्रेष्ठ प्रथाओं के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है तथा भारत-संयुक्त राजशाही रक्षा सहयोग को सुदृढ़ कर क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक अभियानों को समर्थन प्रदान करता है।

बायोमास-पेलेट प्लांट

हरियाणा के रेवाड़ी में एक नया बायोमास-पेलेट प्लांट का उद्घाटन किया गया।

बायोमास-पेलेट प्लांट के बारे में

  • बायोमास-पेलेट कृषि अवशेषों से निर्मित संपीडित जैव-ईंधन इकाइयाँ होती हैं, जिन्हें तापीय विद्युत संयंत्रों में कोयले के स्थान पर स्वच्छ दहन हेतु उपयोग किया जाता है।
  • उत्पादन विधि: धान के भूसे, सरसों के भूसे, कपास के डंठल और जैविक अपशिष्ट जैसे टोरेफाइड या प्रसंस्कृत फसल अवशेषों का उपयोग।
  • विशेषता: संपीड़न प्रक्रिया एकसमान, उच्च-घनत्व वाला ईंधन बनाती है जो हीटिंग, खाना पकाने और विद्युत उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन का एक कुशल और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प है।
  • महत्त्व
    • यह कोयले के साथ को-फायरिंग को सक्षम बनाता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन और वायु प्रदूषण कम होता है।
    • अवशेष क्रय के माध्यम से किसानों के लिए अतिरिक्त आय स्रोत का सृजन।
    • ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा तथा चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था को समर्थन।
    • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने में मदद करता है और भारत के नेट-जीरो लक्ष्यों का समर्थन करता है।

अपशिष्ट-से-ऊर्जा को बढ़ावा देने हेतु सरकारी पहल

  • अनिवार्य जैव-द्रव्य सह-दहन नीति: सभी कोयला-आधारित ताप विद्युत संयंत्रों को 5% बायोमास/MSW (नगरपालिका ठोस अपशिष्ट) चारकोल का सह-दहन करना होगा, जबकि NCR संयंत्रों को 7% का उपयोग करना होगा।
    • NCR  संयंत्रों में कम-से-कम 50% बायोमास स्थानीय धान के अवशेषों से प्राप्त किया जाना चाहिए, जिससे पराली जलाने की प्रवृत्ति में प्रत्यक्ष रूप से कमी आएगी।
  • अपशिष्ट आपूर्ति शृंखलाओं का सुदृढ़ीकरण: स्रोत-आधारित पृथक्करण प्रणाली, विनियामक ढाँचे तथा MSW-चारकोल प्रसंस्करण क्षमता का विस्तार।
    • नीतिगत प्रेरणा का लक्ष्य एक सक्षम अपशिष्ट-से-ऊर्जा तंत्र का निर्माण, जिससे गीले एवं पृथक न किए गए अपशिष्ट की चुनौती का समाधान हो सके।

महाभारत अनुभव केंद्र

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने ‘पंचजन्य’ का उद्घाटन किया तथा कुरुक्षेत्र, हरियाणा में महाभारत अनुभव केंद्र का अवलोकन किया।

‘पंचजन्य’ के बारे में

  • ‘पंचजन्य’ भगवान कृष्ण के पवित्र शंख को समर्पित एक स्मारक है, जो महाभारत में दिव्य शक्ति और धर्म के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित है।
  • महत्त्व
    • कुरुक्षेत्र की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व, जो भगवद्गीता की भूमि है।
    • कृष्ण के कर्तव्य एवं धर्म के आह्वान की ऐतिहासिक महत्ता को सुदृढ़ करता है।
    • कुरुक्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक स्थल का संवर्द्धन, जिससे विरासत पर्यटन एवं तीर्थ मार्गों को बल मिलता है।

महाभारत अनुभव केंद्र के बारे में

  • महाभारत अनुभव केंद्र एक सच्चिदानुभूति आधारित केंद्र है, जिसे आगंतुकों को महाभारत की प्रमुख घटनाओं का आधुनिक कथन शैली से सजीव अनुभव कराने हेतु विकसित किया गया है।
  • अवस्थिति: कुरुक्षेत्र, महाभारत का पारंपरिक युद्धक्षेत्र और वह स्थान जहाँ भगवद् गीता का प्राकट्य हुआ था।
  • विशेषताएँ
    • डिजिटल प्रतिष्ठापन, थीम आधारित दीर्घाएँ, अंतरक्रियात्मक डिस्प्ले तथा महाभारत की प्रमुख घटनाओं के कलात्मक पुनर्निर्माण।
    • महाभारत की शाश्वत दार्शनिक, सांस्कृतिक एवं नैतिक शिक्षाओं को विशेष रूप से उजागर करने हेतु निर्मित।
  • महत्त्व: विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं एवं तीर्थयात्रियों के लिए एक शैक्षिक एवं सांस्कृतिक केंद्र के रूप में कार्य करता है।

फुजीवारा अंतःक्रिया 

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वेदर मॉडल बंगाल की खाड़ी में दो चक्रवाती तूफानों के बनने की संभावना का संकेत देते हैं, जिसमें फुजिवारा जैसी घटना की दुर्लभ संभावना भी है।

फुजीवारा प्रभाव के बारे में

  • परिभाषा: फुजीवारा प्रभाव (जिसे फुजीवारा अंतःक्रिया या द्विआधारी चक्रवात अंतःक्रिया भी कहा जाता है) एक प्राकृतिक वायुमंडलीय घटना है, जिसमें दो निकटवर्ती चक्रवात या हरिकेन मध्य से ऊपरी वायुमंडलीय परतों में एक-दूसरे के साथ अंतःक्रिया करने लगते हैं।
  • पारस्परिक परिक्रमण: इस अंतःक्रिया के दौरान दोनों चक्रवातों के केंद्र आपस में एक साझा बिंदु के चारों ओर परिक्रमण करने लगते हैं। यह परिक्रमण वामावर्त दिशा में होता है।
  • निर्धारक कारक: इस साझा परिक्रमण बिंदु का स्थान चक्रवाती गर्तों की तीव्रता और सापेक्ष द्रव्यमान पर निर्भर करता है।
  • खोज: इसका प्रथम वर्णन वर्ष 1921 में जापानी मौसम वैज्ञानिक डॉ. साकुहै फुजीवारा ने किया, जिनके नाम पर यह घटना जानी जाती है।
  • घटनाएँ: यह अंतर्क्रिया आमतौर पर तब होती है, जब दो चक्रवात एक-दूसरे से लगभग 1,400 किमी. की सीमा में आते हैं (दूरी आकार और तीव्रता के अनुसार बदलती रहती है)।
  • संभावित परिणाम
    • तीव्रता में वृद्धि: यह प्रक्रिया कभी-कभी एक अधिक शक्तिशाली चक्रवात के विकसित होने को बढ़ावा देती है।
    • विलय: अधिक शक्तिशाली चक्रवात कमजोर चक्रवात को अवशोषित कर सकता है।
    • प्रतिकर्षण: कुछ मामलों में, प्रणालियाँ परस्पर क्रिया के बाद अलग हो सकती हैं।
    • पथ विचलन: दोनों चक्रवातों की चाल अनियमित हो सकती है, जिससे पूर्वानुमान जटिल हो जाते हैं।
      • फुजीवारा प्रभाव दो चक्रवातों की पारस्परिक क्रिया के परिणामस्वरूप एक या दोनों चक्रवातों के मूल मार्ग को बदल या मोड़ सकता है।

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