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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal December 10, 2025 04:46 17 0

मायलोमा के लिए एंटीबॉडी थेरेपी

एक नई द्विविशिष्ट एंटीबॉडी थेरेपी, लिनवोसेल्टामैब, ने सभी 18 परीक्षण रोगियों में पता लगाने योग्य मल्टीपल मायलोमा कोशिकाओं को नष्ट करके उल्लेखनीय प्रारंभिक परिणाम दिखाए।

लिनवोसेल्टामैब की प्रमुख विशेषताएँ

  • रोग अवलोकन: इस थेरेपी से अत्यधिक संवेदनशील परीक्षणों पर ‘कोई पता लगाने योग्य रोग नहीं’ उत्पन्न हुआ, जो अवशिष्ट मायलोमा कोशिकाओं को दबाने की मजबूत क्षमता का संकेत देता है।
  • प्रत्यारोपण-मुक्त दृष्टिकोण: लिनवोसेल्टामैब रोगियों को उच्च-खुराक कीमोथेरेपी और अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण से बचने में मदद कर सकती है, जो वर्तमान में मानक अग्रिम पंक्ति हस्तक्षेप बने हुए हैं।
  • प्रतिरक्षा-लक्षित परिशुद्धता
    • लिनवोसेल्टामैब कैंसर कोशिकाओं पर हमला करने वाली T कोशिकाओं पर मौजूद प्रोटीन CD3 और मल्टीपल मायलोमा कोशिकाओं पर पाए जाने वाले प्रोटीन ‘बी-सेल मैचुरेशन एंटीजन’ (B-Cell Maturation Antigen- BCMA) से जुड़कर कार्य करता है। इन कोशिकाओं को संपर्क में लाकर, एंटीबॉडी कैंसर के विरुद्ध शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को उत्तेजित करता है।

मल्टीपल मायलोमा के बारे में

  • परिचय: मल्टीपल मायलोमा अस्थि मज्जा में प्लाज्मा कोशिकाओं का कैंसर है, जो असामान्य M-प्रोटीन का उत्पादन करती हैं, जिससे सामान्य रक्त कोशिका निर्माण बाधित होता है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: रोगियों में आमतौर पर कैल्शियम का स्तर बढ़ना, गुर्दे की खराबी, एनीमिया और हड्डियों में घाव (CRAB) जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, जो फ्रैक्चर, दर्द और अंग क्षति का कारण बन सकते हैं।
  • निदान और चरण निर्धारण: निदान M-प्रोटीन परीक्षण, अस्थि मज्जा बायोप्सी और इमेजिंग पर आधारित होता है; यह बीटा-2 माइक्रोग्लोबुलिन और एल्ब्यूमिन के स्तर पर आधारित अंतरराष्ट्रीय चरण निर्धारण प्रणाली का उपयोग करता है।
  • उपचार: उपचारों में कीमोथेरेपी, इम्यूनोमॉड्यूलेटर, लक्षित थेरेपी (जैसे- पोमालिडोमाइड) और ऑटोलॉगस स्टेम-सेल प्रत्यारोपण शामिल हैं, हालाँकि इसका कोई स्थायी उपचार मौजूद नहीं है।

एंटीबॉडी थेरेपी के बारे में

  • परिचय: एंटीबॉडी थेरेपी, कैंसर कोशिकाओं या प्रतिरक्षा संकेतकों को सटीक रूप से लक्षित करने के लिए एंटीबॉडी का उपयोग करती है, जो आधुनिक ऑन्कोलॉजी की आधारशिला बन गई है।
  • यह कैसे कार्य करता है: मोनोक्लोनल एंटीबॉडी विशिष्ट एंटीजन से जुड़ते हैं, वृद्धि संकेतों को अवरुद्ध करते हैं, प्रतिरक्षा हानि को उत्प्रेरित करते हैं।
  • अनुप्रयोग: इनका व्यापक रूप से कैंसर, स्व-प्रतिरक्षी रोगों और वायरल संक्रमणों के विरुद्ध उपयोग किया जाता है, जो बेहतर उपचार सहनशीलता के साथ उच्च विशिष्टता प्रदान करते हैं।

भारत के ऊर्जा लक्ष्य

भारत ने वर्ष 2025 में गैर-जीवाश्म स्रोतों से अपनी स्थापित विद्युत क्षमता का 50% हासिल कर लिया है, जिससे उसने वर्ष 2030 की समय-सीमा से पाँच वर्ष पहले ही पंचामृत लक्ष्य प्राप्त कर लिया है।

ऊर्जा क्षेत्र में प्रमुख उपलब्धि

  • 50% गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य: राष्ट्रीय सौर मिशन और राष्ट्रीय पवन ऊर्जा मिशन जैसी योजनाओं के माध्यम से भारत ने कुल 485 गीगावाट में से 243 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता स्थापित की है।
  • भारत के ऊर्जा मिश्रण के घटक
    • 485 गीगावाट, जिसमें से 243 गीगावाट, या लगभग 50 प्रतिशत, गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त हुई है।
    • भारत में 116 गीगावाट सौर क्षमता है, जिसे वर्ष 2030 तक 292 गीगावाट तक पहुँचाने का महत्त्वाकाँक्षी लक्ष्य है।

उपलब्धि में योगदान देने वाले कारक

  • MNRE और विद्युत मंत्रालय (MoP) द्वारा नीतिगत प्रोत्साहन: हरित ऊर्जा गलियारा, नवीकरणीय क्रय दायित्व (RPO) और उच्च दक्षता वाले सौर मॉड्यूल के लिए उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसे नीतिगत उपायों ने नवीकरणीय ऊर्जा स्थापना में तेजी लाई।
  • बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा कार्यान्वयन: सौर पार्क विकास कार्यक्रम, अल्ट्रा मेगा नवीकरणीय ऊर्जा पावर पार्क (Ultra Mega Renewable Energy Power Parks- UMREPP) और पीएम कुसुम कार्यक्रम के तहत सौर पंपिंग द्वारा प्रगति संभव हुई।
  • तकनीकी और बाजार विस्तार: ‘हरित ऊर्जा मुक्त पहुँच नियम, 2022’ के माध्यम से बेहतर ग्रिड एकीकरण, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के अंतर्गत प्रारंभ की गई प्रतिस्पर्द्धी सौर नीलामियों ने लागत में कमी लाने और स्थापना को प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • संस्थागत निगरानी: ऊर्जा संबंधी स्थायी समिति और केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority-CEA) ने निगरानी, ​​समय पर समीक्षा और राष्ट्रीय नवीकरणीय लक्ष्यों के साथ संरेखण सुनिश्चित किया।

भारत का पंचामृत लक्ष्य

  • गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता: वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: वर्ष 2030 तक नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% पूरा करना।
  • उत्सर्जन में कमी: वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 अरब टन कम करना।
  • कार्बन तीव्रता: वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता (प्रति इकाई GDP उत्सर्जन) को वर्ष 2005 के स्तर से 45% कम करना।
  • नेट जीरो उत्सर्जन: वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करना।

जापान में भूकंप

जापान के उत्तर-पूर्वी भाग में 7.5 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आया, तथा प्रशांत महासागर के तटीय क्षेत्रों में सुनामी आ गई।

सुनामी के बारे में

  • यह एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ है ‘बंदरगाह तरंग’। यह जल के भीतर भूकंप या ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण उत्पन्न होने वाली विशाल समुद्री तरंगों की एक शृंखला है।
    • जल की एक बड़ी मात्रा के अचानक विस्थापन से सुनामी लहरें बनती हैं।
  • सुनामी निर्माण प्रक्रिया
    • भूकंप समुद्र तल के बड़े हिस्से को विस्थापित कर सकते हैं, जिससे जल में शॉकवेव उत्पन्न होती हैं।
    • इसी तरह, जल के नीचे ज्वालामुखी विस्फोट, विस्फोटक बल के साथ जल को विस्थापित कर सकते हैं, जिससे सुनामी आ सकती है।
  • सुनामी लहरों की विशेषताएँ: सुनामी तरंगें सैकड़ों फीट ऊँची हो सकती हैं और गहरे जल में जेट विमानों जितनी तेज गति से यात्रा कर सकती हैं। हालाँकि, उथले जल में पहुँचने पर इनकी गति धीमी हो जाती है।
  • सुनामी निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक: सुनामी का निर्माण कई कारकों पर निर्भर करता है, जिनमें समुद्र तल का आकार, भूकंप या ज्वालामुखी विस्फोट की दूरी और दिशा शामिल हैं।

जापान भूकंप और सुनामी के प्रति संवेदनशील क्यों है?

  • जापान प्रशांत महासागर के सबसे सक्रिय भूकंपीय विवर्तनिक क्षेत्र ‘प्रशांत अग्नि वलय’ पर स्थित है, जिसमें प्रशांत, यूरेशियन और इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेटें शामिल हैं।
  • इन प्लेटों के निरंतर आपस में टकराने और घर्षण के कारण प्रायः भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट और सुनामी आती रहती हैं।

स्थल के बारे में

  • स्थान: भूकंप जापान के उत्तर-पूर्वी प्रशांत तट के पास, आओमोरी में आया।
    • यह क्षेत्र वर्ष 2011 के तोहोकू 9.0 भूकंप-सुनामी स्थल के निकट है, जिसके कारण तैयारियाँ और परमाणु सुरक्षा जाँचें बढ़ा दी गई हैं।
  • अग्नि वलय: जापान ‘प्रशांत अग्नि वलय’ पर स्थित है, जो एक अत्यधिक सक्रिय विवर्तनिक क्षेत्र है जहाँ प्रायः भूकंपों और सुनामी के लिए जिम्मेदार है।

अभयारण्य वन्यजीव सेवा पुरस्कार 2025

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS)की  वैज्ञानिक परवीन शेख को उनकी ‘नेस्ट गार्जियन-Nest Guardian’ पहल के लिए अभयारण्य वन्यजीव सेवा पुरस्कार 2025 प्राप्त हुआ।

  • ‘नेस्ट गार्जियन’ पहल एक समुदाय-नेतृत्व वाला संरक्षण कार्यक्रम है, जो शिकार और मानवीय व्यवधान जैसे खतरों से असुरक्षित ‘इंडियन स्कीमर’ पक्षी और अन्य प्रजातियों की रक्षा पर केंद्रित है।

नेस्ट गार्जियन की प्रमुख उपलब्धियाँ

  • समुदाय-नेतृत्व आधारित ‘घोंसला संरक्षक’ पक्षियों की सफलता: इस पहल ने घोंसलों की उत्तरजीविता दर को लगभग शून्य से बढ़ाकर 60% कर दिया, जिससे संवेदनशील रेतीली बस्तियों को शिकारियों और व्यवधानों से बचाया जा सका।
  • स्किमर संरक्षण का दीर्घकालिक प्रभाव: उनकी निरंतर निगरानी, ​​आवास मूल्यांकन संबंधी अध्ययनों ने भारत में इंडियन स्कीमर की आबादी को जनवरी 2024 तक 1812 तक बढ़ाने में योगदान दिया, जिसमें चंबल में 544 थे।
  • आजीविका एकीकरण: इस कार्यक्रम ने नदी पर निर्भर तथा हाशिए पर स्थित परिवारों के लिए सार्थक आय स्रोत उत्पन्न किया, जिससे संरक्षण को सामुदायिक कल्याण के साथ जोड़ा गया।

अभयारण्य वन्यजीव सेवा पुरस्कार के बारे में

  • परिचय: अभयारण्य वन्यजीव सेवा पुरस्कार भारत में उत्कृष्ट जमीनी स्तर पर संरक्षण प्रभाव प्रदर्शित करने वाले व्यक्तियों को सम्मानित करता है।
  • स्थापना: सैंक्चुअरी नेचर फाउंडेशन द्वारा स्थापित है, जो सैंक्चुअरी  एशिया (प्रथम अंक: वर्ष 1981 में) का भी प्रकाशन करता है।
  • यह प्रतिवर्ष अग्रणी संरक्षण नायकों को सम्मानित करता है।
  • उद्देश्य और मानदंड: यह पूरे भारत में पारिस्थितिक, वन्यजीव और जलवायु चुनौतियों का समाधान करने वाले विज्ञान-समर्थित, समुदाय-एकीकृत संरक्षण प्रयासों का सम्मान करता है।
  • महत्त्व: यह पुरस्कार क्षेत्र-आधारित संरक्षण कार्यों की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बढ़ाता है और प्रजाति-पुनर्प्राप्ति कार्यक्रमों के लिए समर्थन को मजबूत करता है।

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) के बारे में

  • BNHS भारत का प्रमुख संरक्षण अनुसंधान संस्थान है जो जैव विविधता संरक्षण के लिए समर्पित है।
  • स्थापना: प्रकृतिवादियों द्वारा वर्ष 1883 में मुंबई में स्थापित, BNHS को भारत सरकार द्वारा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन (Scientific and Industrial Research Organisation- SIRO) के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • भूमिका एवं गतिविधियाँ: BNHS राष्ट्रव्यापी पारिस्थितिक अनुसंधान करता है, शिक्षा कार्यक्रम संचालित करता है, संरक्षण परियोजनाओं (मैंग्रोव, आर्द्रभूमि, घास के मैदान) का नेतृत्व करता है और नागरिक विज्ञान पहलों का समन्वय करता है।
  • वैश्विक भागीदारी: यह बर्डलाइफ इंटरनेशनल जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करता है, जिससे विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में वैज्ञानिक और संरक्षण संबंधी पहुँच का विस्तार होता है।

ब्रिटेन के वित्त मंत्रालय ने चरमपंथियों पर प्रतिबंध लगाए

भारत विरोधी चरमपंथी संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने के ब्रिटेन के निर्णय का भारत ने स्वागत किया है।

प्रतिबंधों के बारे में

  • चरमपंथी नेटवर्कों को निशाना बनाना: प्रतिबंधों के तहत भारत-विरोधी चरमपंथ और हिंसा को बढ़ावा देने वाले व्यक्तियों और संगठनों को ‘ब्लैक लिस्ट’ में डाला गया है।
  • वित्तीय और परिचालन प्रतिबंध: इसने चरमपंथी गतिविधियों को रोकने के लिए संपत्ति जब्त, वित्तपोषण अवरोध और यात्रा प्रतिबंध लगाए।
  • आतंकवाद-रोधी (प्रतिबंध) EU निकास विनियम, 2019 ब्रिटेन के वित्त मंत्रालय को आतंकवाद में संलिप्तता के संदिग्ध व्यक्तियों और संस्थाओं की संपत्ति जब्त करने और उन पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है।

प्रतिबंधों पर भारत का दृष्टिकोण

  • ब्रिटेन की कार्रवाई का समर्थन: भारत ने इस बात की पुष्टि की कि ये संस्थाएँ वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा हैं और ब्रिटेन के इस कदम का आतंकवाद-विरोधी निर्णायक कदम के रूप में स्वागत किया।
  • अवैध धन प्रवाह पर अंकुश लगाने का महत्त्व: भारत ने इस बात पर जोर दिया कि प्रतिबंध वित्तीय चैनलों को अवरुद्ध करने और उग्रवाद का समर्थन करने वाले अंतरराष्ट्रीय आपराधिक नेटवर्क को नष्ट करने में सहायक हैं।
  • द्विपक्षीय सहयोग को सुदृढ़ करना: इस कार्रवाई को आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के विरुद्ध भारत-ब्रिटेन के रणनीतिक गठबंधन को और मजबूत करने के रूप में देखा जा रहा है।

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