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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal December 11, 2025 03:18 14 0

चराईचुंग रॉयल पक्षी अभयारण्य

चराइचुंग उत्सव असम के माजुली में आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य एशिया के पहले संरक्षित रॉयल पक्षी अभयारण्य को पुनर्स्थापित करना है।

‘चराइचुंग’ उत्सव के बारे में

  • इस उत्सव का दूसरा संस्करण 7 से 10 दिसंबर तक असम के माजुली में आयोजित किया गया।
  • इसका आयोजन माजुली साहित्य सभा और स्थानीय समुदायों द्वारा किया गया था।
  • उद्देश्य: लगभग विलुप्त हो चुके ‘चराइचुंग’ रॉयल पक्षी अभयारण्य का पुनरुद्धार और संरक्षण करना।

‘चराइचुंग’ रॉयल पक्षी अभयारण्य

  • 1633 ईस्वी में अहोम राजा स्वर्गदेव प्रताप सिंह द्वारा स्थापित।
  • यह एशिया का पहला संरक्षित पक्षी अभयारण्य था।
  • यह विश्व के सबसे बड़े नदी द्वीप और भारत के प्रमुख पक्षी आवास माजुली द्वीप पर अवस्थित है।
  • यह अभयारण्य लगभग 150 प्रजातियों के स्थानीय और प्रवासी पक्षियों का आवास है और इसका महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है।

माजुली द्वीप

  • यह असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है।
  • माजुली को वर्ष 2016 में भारत का पहला द्वीपीय जिला घोषित किया गया था।
  • ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों सुबनसिरी और खेरकुटिया शुती के द्वारा निर्मित यह द्वीप, ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित है।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के बारे में

  • प्रारंभिक जीवन: 10 दिसंबर, 1878 को जन्मे चक्रवर्ती राजगोपालाचारी एक प्रख्यात भारतीय राजनेता थे।
  • लोकप्रिय रूप से राजाजी के नाम से प्रसिद्ध, उन्हें एक स्वतंत्रता सेनानी, विचारक, लेखक और राजनेता के रूप में याद किया जाता है।
  • स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश: वर्ष 1919 में महात्मा गांधी से मिलने के बाद, उन्होंने वकालत छोड़कर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए और गांधी के करीबी सहयोगी बन गए।
  • राष्ट्रीय आंदोलनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका: राजगोपालाचारी प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता संग्रामों में सक्रिय भागीदार थे। उनकी भागीदारी में शामिल हैं:
    • रॉलेट एक्ट के विरुद्ध विरोध
    • असहयोग आंदोलन
    • वायकॉम सत्याग्रह
    • सविनय अवज्ञा आंदोलन
    • स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के कारण वर्ष 1912 से वर्ष 1941 के मध्य वे पाँच बार कारावास में रहे।
    • वर्ष 1922 में गांधीजी के जेल में रहने के दौरान ‘यंग इंडिया’ के संस्करण का संपादन भी किया।
  • राजनीतिक करियर और शासन
    • पूर्व मद्रास प्रेसीडेंसी के प्रीमियर के रूप में कार्य किया।
    • स्वतंत्र भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल (वर्ष 1948–1950) बने, और इस पद पर आसीन होने वाले एकमात्र भारतीय थे।
    • बाद में उन्होंने मुक्त बाजार समर्थक तथा कांग्रेस-विरोधी विकल्प के रूप में इंडिपेंडेंस पार्टी की स्थापना की।
  • विरासत और सम्मान: उन्हें वर्ष 1954 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

समाचारों में स्थान: तंजानिया

तंजानिया में संभावित सरकार-विरोधी प्रदर्शनों से पहले प्रमुख शहरों में पुलिस और सैन्य बलों की गश्त के साथ सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।

तंजानिया में हालिया चुनाव-विरोधी प्रदर्शन

  • विवादित चुनाव से शुरुआत: तंजानिया में 29 अक्टूबर, 2025 को आम चुनाव के दिन से व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
  • प्रदर्शनकारियों ने इस प्रक्रिया को ‘फर्जी चुनाव’ करार दिया क्योंकि प्रमुख विपक्षी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था।
  • राष्ट्रपति सामिया सुलुहू हसन को विजेता घोषित किया गया।
  • हिंसक सरकारी कार्रवाई: सरकार ने विरोध प्रदर्शनों का जवाब कठोर कार्रवाई से दिया।
  • लगातार जारी राजनीतिक संकट: संकट अभी भी कम नहीं हुआ है। सैकड़ों लोगों पर देशद्रोह के आरोप लगाए गए हैं, और सरकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने तथा विरोध प्रदर्शनों को गैरकानूनी घोषित करने की अपनी कार्रवाई जारी रखे हुए है।

तंजानिया के बारे में

  • तंजानिया, जिसका आधिकारिक नाम संयुक्त गणराज्य तंजानिया है, पूर्वी अफ्रीका का एक देश है जो भूमध्य रेखा के ठीक दक्षिण में स्थित है।
  • इसका गठन वर्ष 1964 में तंजानिया और जांजीबार के विलय से हुआ था।
  • पड़ोसी देश: उत्तर में केन्या और युगांडा; पश्चिम में बुरुंडी, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और रवांडा; दक्षिण में जाम्बिया, मलावी और मोजाम्बिक।
  • निकट स्थित जल निकाय: उत्तर में विक्टोरिया झील, पूर्व में हिंद महासागर, पश्चिम में तांगानिका झील और दक्षिण-पश्चिम में न्यासा झील।
  • राजधानी: आधिकारिक राजधानी डोडोमा है (वर्ष 1974 से), जबकि दार एस सलाम सबसे बड़ा शहर, बंदरगाह और आर्थिक केंद्र बना हुआ है।
  • अफ्रीका की सबसे ऊँची चोटी माउंट किलिमंजारो (5,895 मीटर) और विश्व की सबसे गहरी झीलों में से एक तांगानिका झील तंजानिया में स्थित हैं। 

सेन्ना स्पेक्टेबिलिस (Senna Spectabilis)

पश्चिमी घाट के प्रमुख वनों में विस्तृत आक्रामक प्रजाति सेन्ना स्पेक्टेबिलिस को समाप्त करने के लिए तमिलनाडु ने एक राज्यव्यापी अभियान प्रारंभ किया है।

‘सेन्ना स्पेक्टाबिलिस’ के बारे में

  • यह एक तीव्र गति से बढ़ने वाला, पीले फूलों वाला वृक्ष है जो ‘लेग्यूम’ फैमिली से संबंधित है और भारत के पश्चिमी घाट में एक प्रमुख आक्रामक विदेशी प्रजाति बन चुका है।
  • मूल आवास: दक्षिण और मध्य अमेरिका, विशेष रूप से ब्राजील, अर्जेंटीना, पराग्वे, बोलीविया, पेरू और वेनेजुएला।

मुख्य विशेषताएँ

  • 7–18 मीटर ऊँचे सघन, ऊँचे झुरमुट का निर्माण करता है, जिनकी सघन कैनोपी नीचे की वनस्पति को दबा देती है।
  • लंबी फलियों में अत्यधिक बीज होते हैं, जिससे यह तेजी से प्रसारित हो जाता है।
  • शुष्क आर्द्र पर्णपाती वनों, सवाना क्षेत्रों तथा सूर्यप्रकाश आधारित खुले आवासों में, यहाँ तक कि निम्नीकृत मृदा में भी सहजता से पनपता है।

पारिस्थितिकीय खतरे

  • जैव विविधता ह्रास: यह अकेले ही पूरे क्षेत्र पर अधिकार कर लेता है, स्थानीय पौधों को समाप्त कर प्राकृतिक वनों की पुनर्प्राप्ति में बाधा डालता है।
  • वन्यजीवों पर प्रभाव: हाथी, हिरण आदि शाकाहारी जीवों के चारे में कमी लाता है, जिससे उनके आवागमन और भोजन व्यवहार प्रभावित होते हैं।
  • अग्नि का जोखिम: जैव-भार की अधिकता से वनाग्नि की संवेदनशीलता बढ़ती है।
  • आवास क्षरण: पारिस्थितिक तंत्र की संरचना परिवर्तित करता है और स्थानीय प्रजातियों की पुनर्प्राप्ति को धीमा करता है।

तमिलनाडु के उन्मूलन अभियान का महत्व

  • भारत के सबसे बड़े आक्रामक प्रजाति-उन्मूलन कार्यक्रमों में से एक, जिसका लक्ष्य वर्ष 2026 तक 2,446 हेक्टेयर क्षेत्र से सेन्ना स्पेक्टाबिलिस का पूर्ण उन्मूलन है।
  • आक्रामक पौधों के उन्मूलन एवं पुनर्स्थापन नीति के राज्य-स्तरीय क्रियान्वयन का उत्कृष्ट उदाहरण।
  • हाथी और बाघ परिदृश्यों में दीर्घकालिक आवास पुनर्प्राप्ति हेतु स्थानीय घासों और झाड़ियों के साथ पारिस्थितिकीय पुनर्स्थापन का समावेश।

ओरंगुटान (Orangutans)

चक्रवात-जनित बाढ़ और भूस्खलन ने उत्तर सुमात्रा के वनों को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया है, जिसके कारण तपानुली ओरंगुटान आबादी को अपने प्राकृतिक आवासों से बाहर निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

ओरंगुटान के बारे में

  • ओरंगुटान अत्यंत बुद्धिमान वानर प्रजाति हैं, जो उन्नत समस्या-समाधान क्षमता, सांस्कृतिक शिक्षण और जटिल उपकरण-उपयोग के लिए प्रसिद्ध हैं। इनकी संज्ञानात्मक क्षमता मनुष्यों के सबसे निकट मानी जाती है।
  • प्रजातियाँ: WWF के अनुसार, तीन प्रजातियाँ मौजूद हैं:-
    • बोर्नियन, सुमात्रन और तपनुली
  • आवास: ये बोर्नियो (इंडोनेशिया और मलेशिया) तथा सुमात्रा (इंडोनेशिया) के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में पाए जाते हैं। जबकि तपानुली प्रजाति एक लघु, पर्वतीय वन क्षेत्र तक सीमित है।
  • मुख्य विशेषताएँ: सभी प्रजातियों में घने लाल रंग के बाल होते हैं, जबकि सुमात्रा के ओरंगुटानों के चेहरे के बाल लंबे होते हैं।
  • यह मुख्यतः वृक्षवासी (आर्बोरियल) होते हैं और भोजन तथा सुरक्षा के लिए वृक्षों की शाखाओं के बीच प्रसारित होते हैं।
    • सुमात्राई प्रजाति बोर्नियन ओरंगुटानों की अपेक्षा अधिक सामाजिक बंधन स्थापित करतीहै।
  • औजारों का उपयोग करने की क्षमता: ओरंगुटान औजारों के निर्माण में उल्लेखनीय नवाचार प्रदर्शित करते हैं, जैसे कि जाँच के लिए छड़ियों का उपयोग करना, हथौड़ा मारने के लिए पत्थरों का उपयोग करना, कीड़ों को काटने या निकालने के लिए तेज औजार बनाना, और माताओं या साथियों से दूरदर्शिता और सांस्कृतिक शिक्षा का प्रदर्शन करना।
  • आहार: इनका आहार मुख्यतः जंगली फलों पर आधारित होता है, जिसमें अंजीर, लीची और ड्यूरियन शामिल हैं।
  • IUCN स्थिति: गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered)

मुख्य खतरे

  • वनों की तीव्र कटाई, खनन और आवास विखंडन से वृक्ष-छत्र (कैनोपी) विखंडित हो रहे हैं, जिससे बाढ़ के प्रभाव बढ़ जाते हैं और ओरंगुटान का सुरक्षित आवागमन सीमित हो जाता है, यह उनके विलुप्ति संबंधी जोखिम को गंभीर रूप से बढ़ाता है।
    • आवास की हानि उन्हें भूमि पर उतरने के लिए मजबूर करती है, जिससे उनकी संवेदनशीलता और तनाव दोनों बढ़ते हैं।

पारंपरिक चिकित्सा पर दूसरा WHO वैश्विक शिखर सम्मेलन

भारत, नवाचार और साक्ष्य-आधारित पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देने के लिए दिसंबर 2025 में नई दिल्ली में आयोजित होने वाले दूसरे WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन की सह-मेजबानी करेगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के पारंपरिक चिकित्सा पर वैश्विक शिखर सम्मेलन के बारे में

  • पारंपरिक चिकित्सा पर वैश्विक शिखर सम्मेलन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नेतृत्व वाला एक प्लेटफार्म है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के भीतर साक्ष्य-आधारित पारंपरिक, पूरक और एकीकृत चिकित्सा को मजबूत करने के लिए देशों को एक साथ लाता है।
  • उद्देश्य 
    • इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य पारंपरिक चिकित्सा को वैज्ञानिक मान्यता प्रदान करना, नवाचार को बढ़ावा देना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में इसका सुरक्षित एकीकरण सुनिश्चित करना है।
    • इसका मुख्य लक्ष्य अनुसंधान को बढ़ावा देना, नियामक ढाँचों को सुदृढ़ करना और जैव विविधता एवं स्वदेशी ज्ञान संरक्षण पर वैश्विक सहयोग को बेहतर बनाना है।
    • यह सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और स्वास्थ्य संबंधी सतत् विकास लक्ष्यों का समर्थन करता  है।
  • प्रतिभागी: इस शिखर सम्मेलन में वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ता, मंत्री, नीति निर्माता, शोधकर्ता, स्वास्थ्य विशेषज्ञ, चिकित्सक और शैक्षणिक एवं उद्योग क्षेत्रों के प्रतिनिधि भाग लेते हैं।

पहला शिखर सम्मेलन और उसका परिणाम

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का पहला वैश्विक शिखर सम्मेलन अगस्त 2023 में गुजरात के गांधीनगर में आयोजित किया गया था, जिसकी सह-मेजबानी WHO और भारत सरकार ने की थी।
  • इस शिखर सम्मेलन ने साक्ष्य-आधारित पारंपरिक चिकित्सा को स्वास्थ्य प्रणालियों में एकीकृत करने की वैश्विक पहल की शुरुआत की।
  • शिखर सम्मेलन में गुजरात घोषणापत्र जारी किया गया, जो अनुसंधान, विनियमन, स्थिरता, डिजिटल स्वास्थ्य को अपनाने और पारंपरिक चिकित्सा के जिम्मेदार उपयोग के लिए प्रतिबद्धताओं को रेखांकित करने वाली एक वैश्विक कार्यसूची है।

पारंपरिक चिकित्सा

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पारंपरिक चिकित्सा (TM) को विभिन्न संस्कृतियों के ज्ञान, कौशल और प्रथाओं के समग्र समूह के रूप में परिभाषित करता है, जो सिद्धांतों, मान्यताओं और अनुभवों पर आधारित है और जिसका उपयोग स्वास्थ्य बनाए रखने और शारीरिक/मानसिक रोगों के उपचार के लिए किया जाता है। यह जैव चिकित्सा से अलग है, लेकिन वैज्ञानिक रूप से विकसित हो रही है।
    • उदाहरण: आयुर्वेद (भारत), एक्यूपंक्चर/जड़ी-बूटियों सहित पारंपरिक चीनी चिकित्सा (TCM), यूनानी (ग्रीक-अरबी मूल), सिद्ध (दक्षिण भारत) और काम्पो (जापान)।
  • यह समग्र, प्रकृति-आधारित है, तथा संतुलन (मन, शरीर, पर्यावरण) पर जोर देता है तथा इसमें आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ पौधों पर आधारित उपचार (जैसे हर्बल चिकित्सा) और आध्यात्मिक/मैनुअल थेरेपी शामिल हैं।

महत्व: यह शिखर सम्मेलन वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित पारंपरिक चिकित्सा में वैश्विक विश्वसनीयत को मजबूत करता है और पारंपरिक उपचार प्रणालियों के भविष्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य एकीकरण को आकार देने में भारत के नेतृत्व को सुदृढ़ करता है।

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