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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal December 15, 2025 04:11 19 0

भारत-ओमान CEPA

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिसंबर, 2025 में प्रधानमंत्री की आधिकारिक ओमान यात्रा से पहले भारत–ओमान समग्र आर्थिक साझेदारी समझौते को स्वीकृति प्रदान की।

भारत–ओमान CEPA  के बारे में

  • भारत–ओमान द्वारा प्रस्तावित यह समग्र आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश और आर्थिक सहयोग को और मजबूत करने के लिए किया गया है।
  • प्रमुख क्षेत्र
    • व्यापार उदारीकरण: प्रमुख वस्तुओं पर शुल्क में कमी या समाप्ति, बाजार तक बेहतर पहुँच तथा सीमा शुल्क और विनियामक प्रक्रियाओं का सरलीकरण।
    • निवेश और सेवाएँ: सीमा-पार निवेश को प्रोत्साहन, सेवाओं के व्यापार को सुगम बनाना तथा संयुक्त उपक्रमों और आपूर्ति-शृंखला एकीकरण को समर्थन।
  • वर्तमान भारत–ओमान व्यापार संबंध
    • व्यापार मात्रा: द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2023–24 में 8.947 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024–25 में 10.613 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया, जो मजबूत वाणिज्यिक गति को दर्शाता है।
      • भारत के प्रमुख आयात: पेट्रोलियम उत्पाद और यूरिया, जो कुल आयात का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है।
    • निवेश संबंध: ओमान में 6,000 से अधिक भारत–ओमान संयुक्त उपक्रम संचालित हैं, जिनमें लगभग 7.5 अरब अमेरिकी डॉलर की पूँजी लगी है।
      • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश: भारत में ओमान से संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश इक्विटी प्रवाह (2000–2025) लगभग 605.57 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।
    • महत्त्व: यह मुक्त व्यापार समझौता भारत–ओमान सामरिक साझेदारी को सुदृढ़ करता है, खाड़ी सहयोग परिषद क्षेत्र में भारत की उपस्थिति को मजबूत करता है तथा भारत की पश्चिम एशिया नीति के अनुरूप व्यापार-आधारित विकास को समर्थन प्रदान करता है।

कोपरा MSP में बढ़ोतरी

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने किसानों की आय बढ़ाने और उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से वर्ष 2026 के लिए कोपरा का उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य स्वीकृत किया।

संबंधित तथ्य 

  • न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि: उचित औसत गुणवत्ता वाले मिलिंग कोपरा का न्यूनतम समर्थन मूल्य ₹12,027 प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया। बॉल कोपरा का न्यूनतम समर्थन मूल्य ₹12,500 प्रति क्विंटल तय किया गया।
    • यह मूल्य उत्पादन लागत के डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य की नीति के अनुरूप है।
  • खरीद तंत्र: राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ मूल्य समर्थन योजना के अंतर्गत केंद्रीय नोडल एजेंसियों के रूप में कार्य करना जारी रखेंगे।

कोपरा के बारे में

  • कोपरा नारियल का सूखा गूदा होता है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से कृषि-प्रसंस्करण उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
  • उपयोग: इसका उपयोग नारियल तेल, सूखे नारियल, सौंदर्य प्रसाधन, साबुन और कई खाद्य एवं औद्योगिक उत्पादन में किया जाता है।

नारियल (कोकोस न्यूसीफेरा) के बारे में

  • भारत में नारियल को कल्पवृक्ष कहा जाता है, क्योंकि यह भोजन, पेय, तेल, रेशा, ईंधन और लकड़ी प्रदान करता है।
  • उत्पत्ति: भारत–प्रशांत क्षेत्र
  • कृषि की परिस्थितियाँ
    • जलवायु: 20–32 डिग्री सेल्सियस तापमान और 100–300 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले गर्म, आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ वृद्धि।
    • मृदा एवं जल: अच्छी जलनिकास वाली बलुई दोमट या लैटराइट मृदा, पर्याप्त नमी के साथ, परंतु जलभराव नहीं।
  • शीर्ष उत्पादक
    • वैश्विक स्तर पर: इंडोनेशिया, फिलीपींस, भारत, श्रीलंका, ब्राजील।
    • भारत में: नारियल विकास बोर्ड के वर्ष 2022–23 के आँकड़ों के अनुसार कर्नाटक सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद केरल और तमिलनाडु का स्थान है।
    • नारियल विकास बोर्ड का मुख्यालय: कोच्चि, केरल।

महत्त्व

न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि किसानों की आय को स्थिर करने, मूल्य जोखिम को कम करने तथा नारियल और कोपरा के प्रमुख वैश्विक उत्पादक के रूप में भारत की स्थिति को सुदृढ़ करने में सहायक होगी।

कोलसेतु (CoalSETU)

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने कोलसेतु (CoalSETU) विंडो को स्वीकृति दी है, ताकि किसी भी औद्योगिक उपयोग एवं सीमित निर्यात के लिए दीर्घकालिक कोयला लिंकेज उपलब्ध कराए जा सकें। इससे गैर-विनियमित क्षेत्र के ढाँचे का विस्तार किया गया है।

  • गैर-विनियमित क्षेत्र ढाँचा सीमेंट, इस्पात, स्पंज आयरन, एल्यूमिनियम और कैप्टिव पावर प्लांट जैसे उद्योगों को नीलामी-आधारित ईंधन आपूर्ति समझौतों के माध्यम से कोयला आपूर्ति पर केंद्रित है, जिससे पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु पुराने ईंधन आपूर्ति समझौतों से दूरी बनाई गई है।

कोलसेतु (CoalSETU) के बारे में

  • कोलसेतु (निर्बाध, दक्ष एवं पारदर्शी उपयोग हेतु कोयला लिंकेज) गैर-विनियमित क्षेत्र लिंकेज नीति, 2016 के अंतर्गत शामिल की गई एक नई नीलामी-आधारित व्यवस्था है।
  • उद्देश्य: घरेलू कोयला भंडार के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करना, व्यवसाय सुगमता को बढ़ाना, आयात पर निर्भरता कम करना तथा बदलती औद्योगिक माँग के अनुरूप कोयला आपूर्ति को समन्वित करना।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय कोयला मंत्रालय।

मुख्य विशेषताएँ

  • पात्रता: पूर्व गैर-विनियमित क्षेत्र लिंकेज, जो केवल कुछ विशिष्ट अंतिम उपयोग क्षेत्रों तक सीमित थे, के विपरीत अब कोई भी घरेलू औद्योगिक उपभोक्ता नीलामी में भाग ले सकता है।
  • नीलामी-आधारित दीर्घकालिक लिंकेज: कोयला लिंकेज दीर्घकालिक आपूर्ति हेतु पारदर्शी नीलामी के माध्यम से आवंटित किए जाएँगे।
  • उपयोग हेतु अधिक विकल्प: कोयले का उपयोग स्वयं की खपत, ‘कोल वाशिंग’ अथवा समूह कंपनियों के बीच वितरण के लिए किया जा सकता है, किंतु भारत के भीतर पुनः बिक्री निषिद्ध है।
  • निर्यात प्रावधान: आवंटित लिंकेज मात्रा के 50 प्रतिशत तक कोयला निर्यात की अनुमति है; कोकिंग कोयला इसमें शामिल नहीं है तथा व्यापारियों को बोली लगाने की अनुमति नहीं होगी।

महत्त्व

‘कोलसेतु’ कोयला क्षेत्र सुधारों को सुदृढ़ करता है, पारदर्शी आवंटन को बढ़ावा देता है, ‘कोल वाशिंग यूनिट्स’ को समर्थन प्रदान करता है, आयात को कम करता है तथा घरेलू संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग को सक्षम बनाता है।

जनगणना, 2027

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जनगणना, 2027 के संचालन हेतु ₹11,718 करोड़ को स्वीकृति दी है। यह भारत की पहली पूर्णतः डिजिटल जनगणना होगी, जिसमें देशव्यापी जातिगत  जनगणना भी शामिल होगी।

जनगणना के बारे में

  • जनगणना किसी देश में एक निश्चित समय पर सभी व्यक्तियों से संबंधित जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक आँकड़ों के संग्रह, संकलन, विश्लेषण और प्रसार की एक व्यवस्थित प्रक्रिया है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या गणना का पहला प्रयास वर्ष 1872 में (लॉर्ड मेयो के अधीन) किया गया। पहली पूर्ण एवं समकालिक जनगणना वर्ष 1881 में (लॉर्ड रिपन के अधीन) हुई, जिससे दशकीय परंपरा स्थापित हुई।
    • स्वतंत्रता के बाद पहली जनगणना वर्ष 1951 में हुई, जिसने वर्ष 1948 के जनगणना अधिनियम के तहत आधुनिक, उत्तर-औपनिवेशिक शृंखला की शुरुआत की।

जनगणना, 2027 के बारे में

  • जनगणना, 2027 भारत की 16वीं जनगणना तथा स्वतंत्रता के बाद की 8वीं जनगणना होगी और यह विश्व का सबसे बड़ा डिजिटल प्रशासनिक एवं सांख्यिकीय अभ्यास होगा।
  • डिजिटल स्वरूप: यह पहली कागज-रहित जनगणना होगी, जिसमें मोबाइल अनुप्रयोग, वेब पोर्टल, भू-टैगिंग और स्व-गणना की सुविधा होगी; साथ ही डेटा संरक्षण के उपाय डिजाइन में अंतर्निहित होंगे।
    • जनगणना प्रबंधन एवं निगरानी प्रणाली पोर्टल के माध्यम से वास्तविक समय में कार्यों की निगरानी होगी।
    • सेवा के रूप में जनगणना व्यवस्था से मंत्रालयों को नीति-निर्माण हेतु स्वच्छ, मशीन द्वारा पठनीय आँकड़े उपलब्ध होंगे।
    • तकनीकी अनुप्रयोग: प्रभार अधिकारियों के लिए वेब-आधारित गृह-सूची खंड निर्माता अनुप्रयोग उपलब्ध होगा तथा आम जनता को स्व-गणना का विकल्प दिया जाएगा।

जनगणना के चरण

  • चरण 1–गृह-सूचीकरण एवं आवास जनगणना (अप्रैल–सितंबर 2026): आवास की स्थिति, सुविधाएँ, परिसंपत्तियाँ तथा भू-स्थानिक मानचित्रण सम्मिलित होंगे; व्यक्तिगत डेटा का संग्रह नहीं होगा।
  • चरण 2-जनगणना (फरवरी 2027 से): आयु, लिंग, शिक्षा, व्यवसाय, धर्म, भाषा, प्रवासन, प्रजनन तथा जाति सहित जनसांख्यिकीय, सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक आँकड़े एकत्र किए जाएँगे।
    • विशेष क्षेत्र: लद्दाख तथा जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के हिमाच्छादित क्षेत्रों में जनगणना सितंबर 2026 में की जाएगी।
  • जाति गणना: वर्ष 1931 के बाद पहली बार विस्तृत जाति एवं उप-जाति से संबंधित आँकड़े, जिनमें अन्य पिछड़ा वर्ग भी शामिल हैं, चरण 2 में एकत्र किए जाएंगे। यह निर्णय राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की स्वीकृति के बाद लिया गया है।
  • संचालन: जनगणना का संचालन भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय द्वारा किया जाएगा। लगभग 30 लाख क्षेत्रीय कार्मिक इसमें संलग्न होंगे।

महत्त्व 

जनगणना 2027 साक्ष्य-आधारित शासन, कल्याणकारी योजनाओं के सटीक लक्ष्यीकरण, आरक्षण नीतियों तथा भारत की सामाजिक-आर्थिक विविधता की सम्यक समझ के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण आँकड़े उपलब्ध कराएगी।

राष्ट्रीय फिल्म विरासत मिशन (NFHM)

राष्ट्रीय फिल्म विरासत मिशन (NFHM) के अंतर्गत भारत ने आधुनिक अभिलेखीय तकनीकों के माध्यम से अपनी सिनेमाई विरासत के संरक्षण हेतु फिल्म का डिजिटलीकरण किया है।

राष्ट्रीय फिल्म विरासत मिशन के बारे में

  • राष्ट्रीय फिल्म विरासत मिशन की शुरुआत वर्ष 2015 में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा भारत की समृद्ध फिल्म विरासत के संरक्षण, पुनर्स्थापन और डिजिटलीकरण के उद्देश्य से की गई थी।
  • उद्देश्य
    • संकटग्रस्त फिल्म सामग्री की सुरक्षा करना।
    • उन्नत तकनीक के माध्यम से ऐतिहासिक भारतीय फिल्मों का पुनर्स्थापन करना।
    • दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित करना तथा सार्वजनिक पहुँच उपलब्ध कराना।
  • नोडल एजेंसी: राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार, भारत (पुणे) इस मिशन की कार्यान्वयन एजेंसी है, जो पुनर्स्थापन, डिजिटलीकरण, भंडारण और संरक्षित फिल्मों की उपलब्धता के लिए उत्तरदायी है।
  • मुख्य उपलब्धियाँ
    • व्यापक डिजिटलीकरण: फीचर फिल्मों, वृत्तचित्रों और लघु फिल्मों सहित 1,469 फिल्म शीर्षकों का डिजिटलीकरण किया गया है। कुल कंटेंट लगभग 4.3 लाख मिनट की है।
    • उन्नत पुनर्स्थापन: फिल्मों का पुनर्स्थापन उच्च गुणवत्ता चित्र और ध्वनि तकनीकों के माध्यम से किया गया। अभिलेखीय सुरक्षा के लिए नएइंटर-नेगेटिव’ तैयार किए गए।
    • संरक्षण एवं पहुँच: डिजिटलीकृत फिल्मों को सुरक्षित रूप से राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार में संगृहित किया गया है। इन्हें इसके आधिकारिक डिजिटल मंचों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है।
    • महत्त्व: राष्ट्रीय फिल्म विरासत मिशन भारत की सिनेमाई धरोहर की रक्षा करता है, सांस्कृतिक निरंतरता को बढ़ावा देता है तथा ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण भारतीय फिल्मों तक राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर पहुँच सुनिश्चित करता है।

राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार, भारत (पुणे) के बारे में

  • राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार की स्थापना वर्ष 1964 में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत एक मीडिया इकाई के रूप में की गई थी।
  • यह भारत की फिल्म तथा गैर-फिल्म सिनेमाई विरासत के संरक्षण हेतु नोडल भंडार के रूप में कार्य करता है।
  • इसका मुख्यालय पुणे में अवस्थित है तथा क्षेत्रीय केंद्र बेंगलुरु, कोलकाता और तिरुवनंतपुरम में हैं।

विनायक दामोदर सावरकर

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अंडमान और निकोबार में विनायक दामोदर सावरकर को उनकी कविताओं के संग्रह सागर प्राण तलमल्ला’ (Sagara Prana Talamalla) के 115 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

  • इस अवसर पर सेल्युलर जेल में वीर सावरकर की प्रतिमा का भी अनावरण किया गया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनके बलिदान, संकल्प और अटूट समर्पण का प्रतीक है।

वीर सावरकर के बारे में

  • विनायक दामोदर ‘वीर’ सावरकर (1883–1966) एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिक विचारक, वकील और लेखक थे तथा हिंदू राष्ट्रवाद के प्रमुख प्रवर्तकों में से एक थे।
  • प्रारंभिक जीवन
    • जन्म: 28 मई, 1883, भगूर, नासिक (महाराष्ट्र)। विद्यालय जीवन से ही क्रांतिकारी राजनीति में सक्रिय रहे और बाद में फर्ग्यूसन कॉलेज, पुणे में अध्ययन के दौरान भी क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े रहे।
  • विदेश में क्रांतिकारी गतिविधियाँ: यूनाइटेड किंगडम में विधि की पढ़ाई के दौरान इंडिया हाउस जैसे संगठनों से जुड़े। राष्ट्रीय आंदोलनों से प्रेरित होकर ‘फ्री इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना की।
  • कारावास के वर्ष: वर्ष 1910 में गिरफ्तार किए गए सावरकर को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और वर्ष 1911 में उन्हें सेलुलर जेल (काला पानी) में कैद कर दिया गया, जहाँ उन्होंने भीषण कठिनाइयों का सामना किया।
  • साहित्यिक योगदान: उन्होंने द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस (1857)’ और हिंदुत्व’ सहित अनेक प्रभावशाली कृतियाँ लिखीं। ये रचनाएँ मुख्यतः रत्नागिरि में कैद के दौरान लिखी गईं।
  • संबद्ध संगठन: मित्र मेला, अभिनव भारत सभा, इंडिया हाउस, फ्री इंडिया सोसाइटी से जुड़े रहे। वर्ष 1937 से वर्ष 1943 तक हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे।
  • वर्ष 1924 में रिहा होने के बाद सामाजिक और वैचारिक आंदोलनों का नेतृत्व किया। 26 फरवरी, 1966 को अनशन द्वारा देह त्याग किया।

यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का दर्जा प्राप्त

हाल ही में इटालियन भोजन परंपरा को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची में आधिकारिक रूप से शामिल किया गया है। इस प्रकार यह दर्जा प्राप्त करने वाली संपूर्ण राष्ट्रीय पाक परंपरा वाली विश्व की पहली रसोई संस्कृति बन गई है।

मुख्य मान्यता के बारे में

  • यह यूनेस्को द्वारा संपूर्ण राष्ट्रीय पाक परंपरा को दी गई एक ऐतिहासिक मान्यता है, जिसमें किसी एक व्यंजन के स्थान पर संपूर्ण खाद्य संस्कृति को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर माना गया है।
  • आधिकारिक शीर्षक: ‘इटैलियन कुकिंग: बिट्वीन सस्टेनेबिलिटी ऐंड बायो-कल्चरल डाइवर्सिटी’ (Italian cooking: Between sustainability and biocultural diversity)
  • प्रदानकर्ता: यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा हेतु अंतरसरकारी समिति
  • अवस्थिति: यह अभिलेखन समिति के 20वें सत्र के दौरान किया गया, जिसकी मेजबानी भारत के नई दिल्ली में हुई।
  • दर्जा प्रदान किए जाने के कारण: यूनेस्को ने इटालियन पाक परंपरा में निहित गहन सांस्कृतिक और सामाजिक समन्वय को मान्यता दी, जो निम्नलिखित प्रमुख विशेषताओं से परिभाषित है:-
    • विनोदशीलता (Conviviality): साझा भोजन के सामाजिक अनुष्ठान पर जोर, जो पारिवारिक और सामुदायिक जुड़ाव, आत्मीयता और संवाद को प्रोत्साहित करता है।
    • पीढ़ीगत ज्ञान का हस्तांतरण: पाक कौशल, व्यंजन विधियाँ और स्मृतियाँ अनौपचारिक रूप से, विशेषकर परिवार में दादा-दादी से पोते-पोती तक, पीढ़ी दर पीढ़ी संप्रेषित होती हैं।
    • स्थायित्त्व: यह परंपरा अपशिष्ट-विरोधी दर्शन पर आधारित है, जिसमें शून्य-अपशिष्ट आधारित व्यंजन, मौसमी और स्थानीय उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाता है।
    • जैव-सांस्कृतिक विविधता: विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट खाद्य परंपराओं, भोजन और स्थानीय भू-क्षेत्र के गहरे संबंध तथा क्षेत्रीय पहचान की विशिष्टता का उत्सव मनाया जाता है।
  • महत्त्व और प्रभाव
    • वैश्विक रूप से प्रथम: इटली संपूर्ण राष्ट्रीय भोजन परंपरा के लिए यह व्यापक मान्यता प्राप्त करने वाला विश्व का पहला देश बन गया है।
    • सांस्कृतिक पहचान: यह इटली की सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्रीय गौरव को सशक्त रूप से मजबूत करता है।
    • आर्थिक संरक्षण: यह दर्जा वैश्विक स्तर पर इटैलियन जैसे नामों’ वाले नकली खाद्य उत्पादों के विरुद्ध संघर्ष में सहायक है और इटली के कृषि-खाद्य निर्यात के मूल्य की रक्षा करता है।
    • संरक्षण: यह सतत् खाद्य प्रथाओं, पारंपरिक कारीगरी तकनीकों और क्षेत्रीय जैव-सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण को समर्थन प्रदान करता है।
  • विशिष्टता
    • पूर्ववर्ती यूनेस्को अभिलेखनों में सामान्यतः विशिष्ट अनुष्ठानों या तकनीकों को मान्यता दी गई थी (जैसे- फ्राँसीसी पाक भोजन या नेपल्स की पिज्जा-निर्माण परंपरा)
    • इसके विपरीत, इटालियन भोजन परंपरा का यह अभिलेखन दैनिक, विविध और देशव्यापी खाद्य अभ्यास को मान्यता देता है, जो सतत् और स्थानीय पहचान से गहराई से संबंधित है।

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