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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal December 24, 2025 04:01 9 0

अंजदीप

भारतीय नौसेना को स्वदेशी युद्धपोत ‘अंजदीप’ प्राप्त हुआ है, जो पनडुब्बी रोधी युद्ध उथले जल पोत की शृंखला का तीसरा पोत है; इस शृंखला में कुल आठ युद्धपोत शामिल हैं।

‘अंजदीप’ उथले जल पोत के बारे में

  • प्रकार: ‘अंजदीप’ एक उथले जल में पनडुब्बी रोधी युद्ध अभियानों के लिए अभिकल्पित युद्धपोत है।
  • निर्माण: इस पोत का निर्माण कोलकाता स्थित सार्वजनिक क्षेत्र के शिपयार्ड गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स द्वारा किया गया है।
    • यह परियोजना गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) तथा कट्टुपल्ली स्थित एल एंड टी शिपयार्ड के बीच सार्वजनिक–निजी भागीदारी के माध्यम से क्रियान्वित की गई।
  • तकनीकी विनिर्देश
    • लगभग 77 मीटर लंबा, यह वॉटरजेट प्रणोदन से संचालित भारतीय नौसेना का सबसे बड़ा युद्धपोत है, जिससे उथले जल में उच्च गतिशीलता प्राप्त होती है।
  • लड़ाकू एवं निगरानी क्षमताएँ
    • यह पोत उन्नत हल्के टॉरपीडो से सुसज्जित है।
    • इसमें स्वदेशी रूप से विकसित पनडुब्बी रोधी रॉकेट संलग्न हैं।
    • जल सोनार प्रणालियाँ जलमग्न खतरों की प्रभावी पहचान एवं अनुगमन में सक्षम है।
    • यह पोत तटीय जलक्षेत्र में पनडुब्बी रोधी अभियान संचालित करने, कम तीव्रता वाले समुद्री मिशनों में सहायता करने और बारूदी सुरंग बिछाने के अभियानों को संचालित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • स्वदेशी भाग: पोत में 80 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है।
    • इसमें स्वदेशी 30 मिमी. नौसैनिक सतह तोप संलग्न है, जो हथियार एकीकरण में आत्मनिर्भरता को दर्शाती है।
  • नामकरण
    • इस पोत का नाम कर्नाटक के कारवार तट के समीप स्थित ‘अंजदीप’ के नाम पर रखा गया है।
    • यह वर्ष 2003 में सेवा निवृत्त पूर्ववर्ती ‘INS अंजदीप’ (पेट्या श्रेणी कार्वेट) की विरासत को आगे बढ़ाता है।

पनडुब्बी रोधी उथले जल पोत कार्यक्रम के बारे में

  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य उथले तटीय जलक्षेत्र में पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता को सुदृढ़ करना है, जहाँ पारंपरिक बड़े युद्धपोतों की सीमाएँ होती हैं।
  • भारतीय नौसेना में ऐसे कुल आठ उथले जल पनडुब्बी रोधी पोत सम्मिलित किए जा रहे हैं।

‘शक्ति स्कॉलर्स’ NCW यंग रिसर्च फेलोशिप

राष्ट्रीय महिला आयोग ने भारत में महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर नीति-उन्मुख अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु ‘शक्ति स्कॉलर्स: NCW यंग रिसर्च फेलोशिप’ की शुरुआत की है।

‘शक्ति स्कॉलर्स’ NCW यंग रिसर्च फेलोशिप के बारे में

  • उद्देश्य: इस फेलोशिप का उद्देश्य साक्ष्य-आधारित, बहु-विषयक अनुसंधान को प्रोत्साहित करना है, जिससे नीति निर्माण को दिशा प्राप्त हुई तथा महिलाओं के अधिकार, सुरक्षा और सशक्तीकरण से संबंधित हस्तक्षेपों को सुदृढ़ किया जा सके।
  • मुख्य विषयगत क्षेत्र
    • यह फेलोशिप महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा पर शोध का समर्थन करती है।
    • इसमें लैंगिक हिंसा और न्याय तक पहुँच शामिल है।
    • इसमें साइबर सुरक्षा और सामाजिक-आर्थिक स्थिति संबंधी ढाँचों का कार्यान्वयन भी शामिल है।
    • यह महिलाओं के नेतृत्व, राजनीतिक भागीदारी और शासन पर केंद्रित है।
    • यह स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और कौशल विकास का अध्ययन करती है।
    • इसमें आर्थिक सशक्तीकरण, श्रम बल में भागीदारी, सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाएँ और कार्य-जीवन संतुलन भी शामिल हैं।
  • पात्रता मानदंड
    • फेलोशिप भारतीय नागरिकों के लिए 21 से 30 वर्ष आयु वर्ग के लिए उपलब्ध है।
    • आवेदकों के पास किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से कम-से-कम स्नातक डिग्री होनी चाहिए।
    • स्नातकोत्तर या उससे उच्च अनुसंधान डिग्री कर रहे अथवा पूर्ण कर चुके अभ्यर्थियों को प्राथमिकता दी जाएगी।
    • स्वतंत्र शोधकर्ता, जिनके पास प्रमाणित अनुसंधान अनुभव हो, भी पात्र हैं।
  • वित्तीय सहायता: चयनित अभ्यर्थियों को ₹1 लाख की अनुसंधान अनुदान राशि प्रदान की जाएगी।
    • यह अनुदान अनुसंधान कार्य की प्रगति से संबद्ध किश्तों में जारी किया जाएगा।
  • अवधि: फेलोशिप की अवधि छह माह होगी।

सुपरकिलोनोवा 

खगोलविदों ने संभावित सुपरकिलोनोवा के प्रमाणों की सूचना दी है। यह एक दुर्लभ ब्रह्मांडीय विस्फोट है, जिसे लगभग 1.3 अरब प्रकाश-वर्ष दूर देखा गया है और जिसमें सुपरनोवा तथा किलोनोवा दोनों के गुण सम्मिलित हैं।

  • प्रकाश-वर्ष वह दूरी है, जिसे प्रकाश निर्वात में एक वर्ष में तय करता है, जो लगभग 9.46 × 10¹² किलोमीटर के बराबर होती है।

सुपरकिलोनोवा के बारे में

  • परिभाषा: सुपरकिलोनोवा एक काल्पनिक, अत्यधिक ऊर्जावान ब्रह्मांडीय विस्फोट है, जो दो न्यूट्रॉन तारों के विलय से उत्पन्न सामान्य किलोनोवा से भी अधिक शक्तिशाली माना जाता है।
  • निर्माण प्रक्रिया
    • जब दो न्यूट्रॉन तारे टकराते हैं, तो सोना, प्लेटिनम और नियोडिमियम जैसे भारी रेडियोधर्मी तत्त्व बाहर की ओर उत्सर्जित हो जाते हैं।
    • इन तत्त्वों के रेडियोधर्मी अपक्षय से दृश्य तथा अवरक्त प्रकाश उत्सर्जित होता है, जिसे ‘किलोनोवा’ के रूप में देखा जाता है।
    • सुपरकिलोनोवा में अतिरिक्त ऊर्जा स्रोतों की उपस्थिति के कारण यह खगोलीय घटना अधिक दीप्तिमान होती है और इसकी अवधि सामान्य से अधिक लंबी हो जाती है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • वर्धित प्रकाश: पिंड पर गिरने वाले पदार्थ से उत्पन्न अतिरिक्त ऊष्मा आस-पास के उत्सर्जित पदार्थ को और अधिक तीव्र बना देती है।
    • नीला उत्सर्जन: उच्च तापमान विकिरण को स्पेक्ट्रम के नीले सिरे की ओर स्थानांतरित कर देता है।
    • द्वि-चरणीय विकास: प्रारंभिक अवस्था में यह ‘किलोनोवा’ जैसा व्यवहार दिखा सकता है, जो बाद में सुपरनोवा के समान प्रतीत हो सकता है।
  • वैकल्पिक मॉडल: एक नवीन प्रस्तावित परिदृश्य के अनुसार, पहले एक विशाल तारा सुपरनोवा के रूप में प्रस्फुटित होता है, जिससे दो न्यूट्रॉन तारों का निर्माण होता है, जो बाद में विलय होकर अत्यधिक चमक युक्त ‘किलोनोवा’ उत्पन्न करते हैं।

वैज्ञानिक महत्त्व

  • खगोल भौतिकीय अंतर्दृष्टि: यह असामान्य रूप से प्रकाशीय क्षणिक घटनाओं की व्याख्या में सहायक है, जो अब तक ज्ञात श्रेणियों में आसानी से व्यवस्थित नहीं होतीं।
  • तत्त्व निर्माण की समझ: न्यूट्रॉन तारा संलयन के माध्यम से भारी तत्त्वों के निर्माण की प्रक्रिया को समझने में सहायता करता है।
  • भविष्य का अनुसंधान: इसकी पुष्टि के लिए और अधिक प्रेक्षणों की आवश्यकता है, किंतु यह खोज अत्यधिक ब्रह्मांडीय विस्फोटों के अध्ययन में नई दिशाएँ निर्धारित होती है।

घोस्टपेयरिंग (GhostPairing)

CERT-In ने भारतीय उपयोगकर्ताओं को ‘घोस्टपेयरिंग’ नामक एक उच्च-गंभीरता युक्त साइबर अपराध के बारे में चेतावनी दी है, जो डिवाइस-लिंकिंग सुविधा का दुरुपयोग करके व्हाट्सऐप अकाउंट को अपने नियंत्रण में ले सकता है।

  • भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-In) भारत की राष्ट्रीय नोडल एजेंसी है, जो कंप्यूटर सुरक्षा घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने और भारतीय इंटरनेट क्षेत्र की सुरक्षा-संबंधी रक्षा को सुदृढ़ करने के लिए उत्तरदायी है।

‘घोस्टपेयरिंग’ के बारे में

  • परिभाषा: ‘घोस्टपेयरिंग’ एक नई साइबर-आक्रमण तकनीक है, जो बिना पासवर्ड, OTP की चोरी या सिम-स्वैपिंग के व्हाट्सऐप अकाउंट तक पूर्ण पहुँच प्रदान कर देती है।
  • कार्यप्रणाली
    • यह हमला व्हाट्सऐप की डिवाइस-लिंकिंग सुविधा का उपयोग करता है, जिसके माध्यम से एक ही अकाउंट को अनेक उपकरणों पर उपयोग किया जा सकता है।
  • कार्यप्रणाली
    • पीड़ितों को “नमस्ते, यह तस्वीर देखो” जैसे संदेश प्राप्त होते हैं, जो किसी विश्वसनीय संपर्क से आए हुए प्रतीत होते हैं।
    • लिंक पर क्लिक करने से फेसबुक जैसे फर्जी पेज खुलते हैं, जहाँ पहचान “सत्यापित” करने के लिए कहा जाता है।
    • उपयोगकर्ता अपना फोन नंबर दर्ज कर देते हैं और अनभिज्ञता पूर्वक हमलावर के उपकरण को लिंक्ड डिवाइस के रूप में अधिकृत कर देते हैं।

संबद्ध खतरे

  • अकाउंट हैक करना: हमलावर व्हाट्सऐप वेब की तरह ही चैट, मीडिया और ग्रुप चैट तक रियल-टाइम पहुँच प्राप्त कर लेते हैं।
  • प्रतिरूपण और धोखाधड़ी: हैक किए गए अकाउंट का उपयोग संदेश भेजने और संपर्कों को धोखा देने के लिए किया जाता है, जिससे हमला और भी विस्तारित होता है।
  • गोपनीयता उल्लंघन: व्यक्तिगत, पेशेवर और गोपनीय संचार अनधिकृत पक्षों के समक्ष उजागर हो जाते हैं।

सुरक्षा उपाय एवं निवारक कदम

  • उपयोगकर्ता-स्तरीय सावधानियाँ
    • संदिग्ध लिंक पर क्लिक करने से बचें, भले ही वे ज्ञात संपर्कों से आए हों।
    • व्हाट्सऐप या फेसबुक सत्यापन का दावा करने वाली बाह्य वेबसाइटों पर फोन नंबर कभी दर्ज न करें।
    • नियमित रूप से सेटिंग्स लिंक्ड डिवाइसेज की जाँच करना और अज्ञात उपकरणों को तुरंत हटाना।
  • संगठनात्मक उपाय
    • फिशिंग और सामाजिक अभियांत्रिकी पर साइबर सुरक्षा जागरूकता प्रशिक्षण आयोजित करना।
    • त्वरित पहचान और अकाउंट पुनर्प्राप्ति के लिए स्पष्ट घटना-प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल स्थापित करना।
    • दूरसंचार साइबर सुरक्षा संशोधन नियम, 2025 के अनुसार, अनुप्रयोग-आधारित संचार सेवाओं को उपयोगकर्ता के उपकरण में सक्रिय सिम कार्ड से निरंतर रूप से संबद्ध रखना अनिवार्य किया गया है।

काशीवाजकी- करिवा परमाणु संयंत्र

जापान ने काशिवाजाकी–कारिवा परमाणु संयंत्र को पुनः आरंभ करने की स्वीकृति प्रदान की है, जो फुकुशिमा दुर्घटना के लगभग 15 वर्ष बाद परमाणु ऊर्जा की ओर रणनीतिक वापसी का संकेत देती है।

काशिवाजाकी–कारिवा परमाणु विद्युत संयंत्र के बारे में

  • काशिवाजाकी–कारिवा, विश्व का सबसे बड़ा परमाणु विद्युत संयंत्र है जो वर्ष 2011 की फुकुशिमा आपदा के बाद बंद कर दिया गया था।
  • संरचना एवं संचालन: इसमें सात रिएक्टर हैं और इसका संचालन टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी द्वारा किया जाता है।
  • विशेषताएँ: रिएक्टर 1 से 5 मानक ‘बोइल्ड वाटर रिएक्टर’ (BWRs) हैं, जबकि इकाइयाँ 6 और 7 प्रथम उन्नत ‘बोइल्ड वाटर रिएक्टर’ हैं। कुल शुद्ध क्षमता लगभग 8.2 गीगावाट (8,212 मेगावाट) है, जो जापान में लाखों घरों को विद्युत आपूर्ति करती है।
  • हालिया स्वीकृति: निगाटा प्रीफेक्चर असेंबली ने राज्यपाल के प्रति विश्वास मत को मंजूरी दे दी, जिससे प्रभावी रूप से पुनः आरंभ करने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
    • रिएक्टर संख्या 6 के जनवरी, 2026 तक संचालन पुनः शुरू करने की संभावना है।
  • रणनीतिक औचित्य: जापान आयातित जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाना चाहता है, जो उसकी 60–70 प्रतिशत विद्युत आपूर्ति का स्रोत हैं।
  • ऊर्जा संक्रमण लक्ष्य: जापान का लक्ष्य वर्ष 2040 तक परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत तक बढ़ाना तथा विद्युत क्षेत्र में कार्बन-उत्सर्जन में कमी को तीव्र करना है।
  • सुरक्षा और जन-विरोध: फुकुशिमा की स्मृतियों और भूकंपीय जोखिमों के कारण स्थानीय विरोध प्रदर्शन जारी हैं।
  • विश्वास की कमी: टोक्यो इलेक्ट्रिक पॉवर कंपनी की पूर्व विफलताओं ने नियामक निगरानी और आपातकालीन तैयारी को लेकर चिंताएँ बढ़ाई हैं।

शीर्ष परमाणु ऊर्जा उत्पादक देश: संयुक्त राज्य अमेरिका (95 गीगावाट), फ्राँस (61 गीगावाट), चीन (57 गीगावाट), रूस (29 गीगावाट) और दक्षिण कोरिया (26 गीगावाट)।

  • इन पाँच देशों की संयुक्त हिस्सेदारी वैश्विक परमाणु उत्पादन क्षमता का लगभग 71 प्रतिशत है (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी, जून 2025)।

सर्वोच्च न्यायालय ने ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ के लिए सुरक्षा उपायों को और कठोर  किया

सर्वोच्च न्यायालय ने ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ की सुरक्षा के लिए सख्त संरक्षण उपायों को सुदृढ़ किया है, जिसके तहत राजस्थान और गुजरात में हरित ऊर्जा गलियारा के मार्गों का पुनर्निर्धारण किया गया है, ताकि विद्युत पारेषण विस्तार के स्थान पर संरक्षण को प्राथमिकता दी जा सके।

‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ के बारे में

  • परिचय: ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ विश्व के सबसे वजनदार पक्षियों में से एक है तथा भारत के घासभूमि पारिस्थितिकी तंत्र की एक प्रमुख प्रजाति है।
  • आवास: मुख्यतः शुष्क और अर्द्ध-शुष्क घासभूमियों में पाया जाता है।
  • वितरण क्षेत्र: इसका विस्तार मुख्यतः भारत तक सीमित है तथा पाकिस्तान के एक छोटे भाग में भी पाया जाता है।
    • भारत की लगभग 90 प्रतिशत आबादी राजस्थान (जैसलमेर/बाड़मेर) में स्थित है।
    • यह गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी पाया जाता है।
  • खतरे
    • विद्युत लाइनों से टकराव, आवास का क्षरण तथा अतीत में शिकार का दबाव।
    • अवसंरचना और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के कारण आवास का विखंडन
  • संरक्षण स्थिति: अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा अत्यंत संकटग्रस्त के रूप में सूचीबद्ध।
  • संरक्षित क्षेत्र: राजस्थान में रेगिस्तानी राष्ट्रीय उद्यान (DNP) (प्रजनन कार्यक्रमों का एक प्रमुख केंद्र), रोलपाडु वन्यजीव अभयारण्य (आंध्र प्रदेश) और कच्छ बस्टर्ड अभयारण्य (गुजरात)।
  • संरक्षण प्रयास
    • ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ परियोजना (राजस्थान): शेष आबादी के संरक्षण हेतु वर्ष 2013 में प्रारंभ की गई।
    • आवास सुधार और संरक्षण प्रजनन: राष्ट्रीय प्रतिपूरक वनीकरण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण द्वारा वित्तपोषित एक प्रमुख पहल, जिसमें स्थल पर संरक्षण और बंदी प्रजनन दोनों को सम्मिलित किया गया है।

‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ की सुरक्षा हेतु सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख दिशा-निर्देश

  • संरक्षण सर्वोपरि: अत्यंत संकटग्रस्त ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ का संरक्षण अनिवार्य घोषित किया गया, जिसे अवसंरचनात्मक सुविधा पर प्राथमिकता दी गई।
  • हरित ऊर्जा गलियारों का पुनर्निर्धारण: राजस्थान में 14,013 वर्ग किलोमीटर और गुजरात में 740 वर्ग किलोमीटर के प्राथमिक संरक्षण क्षेत्र निर्धारित किए गए, जिनमें नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार को सीमित किया गया।
  • पारेषण प्रतिबंध: संवेदनशील आवासों में ऊपर से गुजरने वाली विद्युत लाइनों को भूमिगत करने, पुनर्मार्गित करने या इन्सुलेट करने का निर्देश दिया गया तथा विद्युत निकासी को सीमित, निर्दिष्ट गलियारों तक बाध्य किया गया।
  • संतुलित दृष्टिकोण: न्यायालय ने पूर्ण भूमिगत पारेषण लाइनों को अस्वीकार करते हुए सीमित हरित ऊर्जा गलियारा निरंतरता की अनुमति दी, साथ ही ऊर्जा नियोजन में पारिस्थितिकी सीमाओं को समाहित किया।

महत्त्व: यह निर्णय जैव-विविधता संरक्षण और ऊर्जा संक्रमण को एकीकृत करता है तथा स्वच्छ ऊर्जा विकास और पारिस्थितिकी अस्तित्व के बीच संतुलन स्थापित करने की भारत की दृष्टि को नए सिरे से परिभाषित करता है।

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