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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal December 27, 2025 04:07 14 0

संथाली भाषा में भारत का संविधान

हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने संथाली भाषा (ओल चिकी लिपि) में भारत का संविधान जारी किया, जिससे आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भाषाओं में संविधान का आधिकारिक अनुवाद पूर्ण हो गया।

संथाली भाषा के बारे में

  • संथाली (संताली), जिसे इसके वक्ता ‘होरो रोर’ के नाम से जानते हैं, भारत की सर्वाधिक बोली जाने वाली जनजातीय भाषाओं में से एक है तथा संथाल समुदाय की प्रमुख भाषायी पहचान है।
  • उत्पत्ति एवं भाषा परिवार
    • यह ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषा परिवार की मुंडा शाखा से संबंधित है।
    • हो और मुंडारी भाषाओं से निकट संबंध।
    • पूर्वी भारत की सबसे प्राचीन जीवंत भाषाओं में गिनी जाती है।
  • लिपि: ओल चिकी लिपि का प्रयोग, जिसका निर्माण पंडित रघुनाथ मुर्मू ने किया।
    • वर्ष 2025 में ओल चिकी लिपि की शताब्दी पूर्ण होती है।
    • पूर्व में यह बांग्ला, ओड़िया और रोमन लिपियों में लिखी जाती थी।
  • भौगोलिक विस्तार एवं वक्ता: मुख्यतः झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और बिहार में बोली जाती है।
    • बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में भी इसके वक्ता पाए जाते हैं।
  • आधुनिक स्थिति
    • 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से आठवीं अनुसूची में शामिल।
    • विद्यालयों में शिक्षण, साहित्य, मीडिया और डिजिटल मंचों पर उपयोग।
    • सांस्कृतिक मान्यता और भाषायी सशक्तीकरण का प्रतीक।

जिन भाषाओं में भारत का संविधान प्रकाशित है

  • मूल एवं प्रारंभिक अनुवाद: वर्ष 1950 में भारत का संविधान मूल रूप से हिंदी और अंग्रेजी में अंगीकृत किया गया।
  • 75वाँ संविधान दिवस विमोचन: 26 नवंबर, 2025 को राष्ट्रपति ने 9 भाषाओं असमिया, बोडो, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी और तेलुगु में अनूदित संस्करण जारी किए।
  • आठवीं अनुसूची का पूर्ण कवरेज: दिसंबर 2025 में संथाली (ओल चिकी लिपि) संस्करण के विमोचन के साथ संविधान अब आठवीं अनुसूची की सभी 22 भाषाओं में उपलब्ध है।

महत्त्व

संथाली भाषा में संविधान का प्रकाशन जनजातीय समावेशन को सुदृढ़ करता है, संवैधानिक साक्षरता को बढ़ावा देता है तथा भाषायी विविधता और लोकतांत्रिक पहुँच के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को सशक्त करता है।

कैमेलिया साइनेंसिस पौधे से निर्मित  अर्क  को ही ‘चाय’ का दर्जा 

हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने भारत में “चाय” के लिए लेबलिंग मानकों को और अधिक कठोर किया है।

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के निर्देश के प्रमुख बिंदु

  • “चाय” शब्द के उपयोग पर प्रतिबंध: केवल कैमेलिया साइनेंसिस पौधे से तैयार अर्क को ही खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के अंतर्गत चाय माना जाएगा।
  • हर्बल अर्क की गलत लेबलिंग: “हर्बल चाय”, “फूलों की चाय” और “रूइबोस चाय” जैसे उत्पादों को गलत लेबलिंग की श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि ये चाय के पौधे से प्राप्त नहीं होते।
  • प्रवर्तन और अनुपालन: प्राधिकरण ने निर्माताओं, विपणनकर्ताओं, आयातकों, विक्रेताओं और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को ऐसे दुरुपयोग को बंद करने का निर्देश दिया है, जिसे राज्य प्राधिकरणों द्वारा सख्ती से लागू किया जाएगा।

कैमेलिया साइनेंसिस के बारे में

  • कैमेलिया साइनेंसिस वह पौध प्रजाति है, जिससे काली, हरी, सफेद और ‘इंस्टेंट’ चाय का उत्पादन होता है।
  • यह प्रजाति पूर्वी एशिया, भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण-पूर्व एशिया की मूल प्रजाति है। इसके प्रमुख उत्पत्ति क्षेत्र चीन (युन्नान), भारत (असम) और हिमालय के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय पर्वतीय क्षेत्र हैं।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • सदाबहार झाड़ी या छोटा वृक्ष
    • पत्तियों में पॉलीफिनॉल और कैफीन की प्रचुरता।
  • खेती की परिस्थितियाँ
    • जलवायु: उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय, गर्म एवं आर्द्र।
    • तापमान: 20°C–30°C।
    • वर्षा: 150–300 सेमी., समान रूप से वितरित।
    • मिट्टी: हल्की अम्लीय, झरझरी, कैल्शियम-रहित।
    • आर्द्रता: लगभग 80%, पाला-मुक्त क्षेत्र।

चाय उत्पादन

  • चाय बोर्ड ऑफ इंडिया: यह चाय अधिनियम, 1953 के अंतर्गत स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जिसका मुख्यालय कोलकाता, पश्चिम बंगाल में है।
    • यह उत्पादन, गुणवत्ता, निर्यात और भौगोलिक संकेतक संरक्षण (जैसे दार्जिलिंग चाय) का नियमन करता है।
  • उत्पादन स्थान: भारत विश्व में चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और काली चाय का सबसे बड़ा उत्पादक है।
    • भारत ने वर्ष 2024 में 1,284.78 मिलियन किलोग्राम चाय का उत्पादन किया।
    • चीन विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • भारत के प्रमुख क्षेत्र: असम राष्ट्रीय उत्पादन में लगभग 55% का योगदान देता है।
    • तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक का संयुक्त योगदान लगभग 17%।

महत्त्व

यह निर्देश उपभोक्ताओं के लिए पारदर्शिता सुनिश्चित करता है, पारंपरिक चाय की पहचान की रक्षा करता है और भ्रामक लेबलिंग प्रथाओं से भारत के चाय क्षेत्र को सुरक्षित रखता है।

किम्बरले प्रक्रिया (KP)

भारत 1 जनवरी, 2026 से किम्बरले प्रक्रिया की अध्यक्षता ग्रहण करेगा, इससे पूर्व वह 25 दिसंबर, 2025 से उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा।

किम्बरले प्रक्रिया के बारे में

  • किम्बरले प्रक्रिया सरकारों, हीरा उद्योग और नागरिक समाज को सम्मिलित करने वाला एक त्रिपक्षीय अंतरराष्ट्रीय तंत्र है, जिसका उद्देश्य कच्चे हीरों के वैश्विक व्यापार का विनियमन करना है।
  • उद्देश्य: वैध हीरा आपूर्ति शृंखला में कॉन्फ्लिक्ट डायमंड्स’ (Conflict Diamonds) के प्रवेश को रोकना, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुरूप है।
    • कॉन्फ्लिक्ट डायमंड्स (Conflict Diamonds) वे कच्चे हीरे होते हैं, जिनका उपयोग विद्रोही समूह सशस्त्र संघर्षों के वित्तपोषण हेतु करते हैं।
  • प्रमाणीकरण तंत्र: किम्बरले प्रक्रिया प्रमाणन योजना के अंतर्गत भागीदार केवल अन्य सदस्य देशों के साथ ही कच्चे हीरों का व्यापार कर सकते हैं, जिसके साथ एक प्रमाण-पत्र अनिवार्य होता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि हीरे संघर्ष संबंधी घटनाओं से मुक्त रहें।
  • उत्पत्ति: किम्बरले प्रक्रिया का उद्भव 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध में अंगोला, सिएरा लियोन और लाइबेरिया में हीरों से संबंधित संघर्ष की घटनाओं के बाद हुई।
    • इसका नाम दक्षिण अफ्रीका के किम्बरले नगर पर रखा गया, जहाँ मई 2000 में सहमति बनी। प्रमाणन योजना 1 जनवरी, 2003 से प्रभावी हुई।
  • भारत की भागीदारी: भारत किम्बरले प्रक्रिया का एक संस्थापक सदस्य और प्रमुख सहभागी है तथा वर्ष 2003 से इसमें सक्रिय रूप से संलग्न है।
    • भारत ने इससे पूर्व वर्ष 2008 में इसकी अध्यक्षता की थी और वर्ष 2026 में पुनः नेतृत्व करेगा, जो पारदर्शी एवं उत्तरदायी हीरा व्यापार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर वैश्विक विश्वास को दर्शाता है।
  • राष्ट्रीय निकाय: रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्द्धन  परिषद भारत में किम्बरले प्रक्रिया प्रमाणन योजना के अंतर्गत आयात और निर्यात प्राधिकरण के रूप में कार्य करती है।

महत्त्व

भारत का यह नेतृत्व ऐसे समय में सामने आया है, जब वैश्विक स्तर पर हीरा उद्योग में सतत् स्रोतों, डिजिटल अनुरेखण और सुदृढ़ शासन व्यवस्था पर विशेष बल दिया जा रहा है।

राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल

अटल बिहारी वाजपेयी की 101वीं जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री ने उनकी राष्ट्रीय विरासत के सम्मान में लखनऊ में राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल का उद्घाटन किया।

  • 25 दिसंबर अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है, जिसे सुशासन दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल के बारे में

  • राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल लखनऊ में स्थित एक राष्ट्रीय स्मारक है, जो भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन, आदर्शों और योगदान को समर्पित है। यह भारत की राष्ट्रवादी और शासन परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता है।
  • अवस्थिति: लखनऊ के वसंत कुंज क्षेत्र में लगभग 65 एकड़ में विस्तृत है।
  • बहुउद्देशीय स्मारक: विभिन्न विषयों और उपयोगिता के साथ स्मारक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक स्थलों का समन्वय।
  • भव्य प्रतिमाएँ: अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 65 फीट ऊँची कांस्य प्रतिमाएँ।
    • ये प्रतिमाएँ राष्ट्र निर्माण, राजनीतिक विचारधारा और सार्वजनिक सेवा में उनकी भूमिका का प्रतीक हैं।
  • कमलाकार संग्रहालय: कमल के आकार में निर्मित एक आधुनिक संग्रहालय, जिसका क्षेत्रफल लगभग 98,000 वर्ग फीट है।
    • भारत की राष्ट्रीय यात्रा और नेतृत्व विरासत को प्रदर्शित करने हेतु उन्नत डिजिटल एवं अनुभवात्मक तकनीकों का उपयोग।

महत्त्व

राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित निस्वार्थ नेतृत्व, सुशासन और राष्ट्रवाद के आदर्शों का संरक्षण तथा प्रचार करता है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI)

26 दिसंबर, 2025 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 100 वर्ष पूर्ण होते हैं। यह अवसर कानपुर सम्मेलन, 1925 में इसकी स्थापना की स्मृति में मनाया जा रहा है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के बारे में

  • भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टियों में से एक है, जिसकी स्थापना समाजवादी विचारधारा के माध्यम से मजदूरों और किसानों को संगठित करने तथा ब्रिटिश साम्राज्यवाद का विरोध करने के उद्देश्य से की गई थी।
  • संस्थापक: इसका उद्भव सामूहिक रूप से मानवेन्द्र नाथ रॉय, श्रीपाद अमृत डांगे, मुजफ्फर अहमद, सिंगारवेलु चेट्टियार और शौकत उस्मानी जैसे नेताओं के प्रयासों से हुआ।
  • भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
    • साम्राज्यवाद-विरोधी आंदोलन: औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध पूर्ण स्वतंत्रता और एक श्रमिक-किसान गणराज्य की वकालत की।
    • मजदूर और किसान आंदोलन: कम्युनिस्ट नेताओं ने अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (वर्ष 1920), तेभागा आंदोलन, बंगाल (वर्ष 1946–47) और तेलंगाना सशस्त्र किसान संघर्ष (वर्ष 1946–51) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • दमन के बावजूद प्रतिरोध: नेताओं को कानपुर बोल्शेविक षड्यंत्र मामला (वर्ष 1923) और मेरठ षड्यंत्र मामला (वर्ष 1929) जैसे कठोर औपनिवेशिक दमन का सामना करना पड़ा।
    • संयुक्त मोर्चे: साम्राज्यवाद-विरोधी आंदोलन को व्यापक बनाने हेतु कांग्रेस समाजवादी पार्टी (वर्ष 1934) जैसी समाजवादी शक्तियों के साथ सहयोग किया।
  • विभाजन: वर्ष 1964 में वैचारिक मतभेदों—विशेषकर चीनी–सोवियत विभाजन और कांग्रेस के साथ संबंधों—के कारण पार्टी का बड़ा विभाजन हुआ, जिससे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का गठन हुआ।
    • इसके बाद वर्ष 1969 के आस-पास माओवादी रुझान वाले कई गुटों के अलग होने से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी–लेनिनवादी) का गठन हुआ।
  • वर्तमान स्थिति
    • CPI एक संवैधानिक संसदीय दल के रूप में कार्य करती है, जिसकी विधानसभाओं में उपस्थिति तथा ट्रेड यूनियनों एवं जनसंगठनों से मजबूत संबद्धता है।
      • यह सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और मजदूर अधिकारों की निरंतर वकालत करती है।
    • मुख्यालय: नई दिल्ली स्थित अजय भवन।
    • कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) केरल, तमिलनाडु और मणिपुर में एक राज्य स्तरीय पार्टी है।
      • राष्ट्रीय दल का दर्जा: कमजोर चुनावी प्रदर्शन के कारण अप्रैल 2023 में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा वापस ले लिया गया।

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