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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal December 30, 2025 04:25 14 0

‘फ्रीक्वेंसी कॉम्ब’ 

‘फ्रीक्वेंसी कॉम्ब’ आधारित लेजर प्रणाली का उपयोग खगोल विज्ञान और परिशुद्ध भौतिकी में प्रकाश की आवृत्तियों को अत्यधिक उच्च शुद्धता के साथ मापने के लिए तेजी से बढ़ रहा है।

‘फ्रीक्वेंसी कॉम्ब’ के बारे में

  • ‘फ्रीक्वेंसी कॉम्ब’ एक विशेष प्रकार का लेजर स्रोत है, जिसका वर्णक्रम बड़ी संख्या में समान अंतराल पर स्थित, पृथक आवृत्तियों द्वारा निर्मित होता है, जो कंघी के दाँतों के समान प्रतीत होता है।
  • प्रकाशीय ‘फ्रीक्वेंसी कॉम्ब’ के आविष्कार के लिए वर्ष 2005 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

मुख्य विशेषताएँ

  • समान अंतराल वाली आवृत्तियाँ: पारंपरिक लेजर, जहाँ एक ही आवृत्ति उत्सर्जित करते हैं, वहीं ‘फ्रीक्वेंसी कॉम्ब’ हजारों अत्यंत शुद्ध रूप से अंतरित आवृत्ति रेखाएँ उत्पन्न करती है, जिनमें असाधारण नियमितता होती है।
  • ‘मोड-लॉक्ड लेजर’ से उत्पत्ति: यह सामान्यतः ‘मोड-लॉक्ड लेजर’ के माध्यम से उत्पन्न की जाती है, जो एक निश्चित पुनरावृत्ति दर पर अत्यंत लघु और आवर्ती प्रकाश स्पंद उत्सर्जित करते हैं।
  • अत्यधिक परिशुद्धता और स्थिरता: आवृत्तियों का समान अंतराल किसी स्थिर संदर्भ के साथ तुलना के माध्यम से अज्ञात प्रकाश आवृत्तियों को मापने में सक्षम बनाता है, जिससे अत्यंत उच्च परिशुद्धता प्राप्त होती है।

अनुप्रयोग

  • परमाणु घड़ी अंशांकन: ‘फ्रीक्वेंसी कॉम्ब’ प्रकाशीय आवृत्तियों और सूक्ष्म तरंग मानकों के बीच सेतु का कार्य करती हैं, जिससे परमाणु घड़ियों में अत्यधिक सटीक समय-निर्धारण संभव होता है।
  • भौतिकी में सटीक मापन: गुरुत्वाकर्षण, गति अथवा मूलभूत भौतिक प्रभावों से उत्पन्न अत्यंत सूक्ष्म आवृत्ति परिवर्तनों का पता लगाने में इनका उपयोग किया जाता है।
  • खगोल विज्ञान और वर्णक्रमिकी: ग्रहों की खोज करने वाले स्पेक्ट्रोग्राफ जैसे उपकरण माप को कैलिब्रेट करने और सूक्ष्म तारकीय कंपन के माध्यम से ‘एक्सोप्लैनेट’ का पता लगाने के लिए ‘फ्रीक्वेंसी कॉम्ब’ का उपयोग करते हैं।

माउंट एटना

सिसिली में अवस्थित माउंट एटना में दिसंबर 2025 में पुनः विस्फोट हुआ, जिससे राख और लावा का उत्सर्जन हुआ। इसके परिणामस्वरूप विमानन चेतावनियाँ जारी की गईं तथा वैज्ञानिक निगरानी को और अधिक सघन किया गया।

‘माउंट एटना’ के बारे में

  • ‘माउंट एटना’ यूरोप का सबसे सक्रिय स्तरीय ज्वालामुखी (Stratovolcano) है और अपने बार-बार होने वाले विस्फोटों के कारण विश्व के सबसे अधिक अध्ययन किए गए ज्वालामुखियों में से एक है।
  • स्तरीय ज्वालामुखी (Stratovolcano) वह तीव्र ढाल वाला, शंक्वाकार ज्वालामुखी होता है, जो लावा प्रवाह, राख और ज्वालामुखीय अपशिष्ट की वैकल्पिक परतों से निर्मित होता है तथा प्रायः विस्फोटक उद्गार उत्पन्न करता है।
  • अवस्थिति: यह इटली के सिसिली द्वीप के पूर्वी तट पर आयोनियन सागर की ओर अवस्थित है।
  • भौगोलिक विशेषताएँ: ‘माउंट एटना’ भूमध्यसागरीय द्वीप पर स्थित सबसे ऊँचा पर्वत है। इसमें शिखरीय क्रेटर, सिंडर शंकु, विस्तृत लावा प्रवाह युक्त ‘दे बोवे’ नामक अवसाद क्षेत्र सम्मिलित हैं।
  • पारिस्थितिकी महत्त्व: इस ज्वालामुखी पर विशिष्ट पारिस्थितिकी क्षेत्र पाए जाते हैं, जो उपजाऊ कृषि ढलानों से लेकर ऊँचाई पर स्थित अल्पाइन एवं लावा-प्रधान क्षेत्रों तक विस्तृत हैं, जहाँ स्थानिक वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।
  • मान्यता: वर्ष 2013 में माउंट एटना को इसकी उत्कृष्ट ज्वालामुखीय सक्रियता और वैज्ञानिक महत्त्व के कारण यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में आधिकारिक रूप से शामिल किया गया।

टाइगर स्टेट

रतनमहल वन्यजीव अभयारण्य में बाघ की उपस्थिति की पुष्टि के बाद, 33 वर्षों के अंतराल के पश्चात् गुजरात ने पुनः अपना “टाइगर स्टेट” दर्जा प्राप्त किया है, जिसकी पुष्टि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा की गई।

“टाइगर स्टेट” बनने की शर्तें

  • बाघ की पुष्टि: कोई राज्य तभी “टाइगर स्टेट” के रूप में योग्य माना जाता है, जब NTCA वैज्ञानिक साक्ष्यों, जैसे कैमरा ट्रैप या फुटप्रिंट के माध्यम से बाघों की उपस्थिति की आधिकारिक पुष्टि करे।
  • अखिल भारतीय बाघ गणना में शामिल होना: राज्य को राष्ट्रीय बाघ गणना में शामिल होना चाहिए, जो NTCA की देख-रेख में समय-समय पर आयोजित की जाती है।
  • आवास की व्यवहार्यता: शिकार प्रजातियों की उपलब्धता, जल स्रोत, आवासीय संपर्कता तथा प्रभावी संरक्षण तंत्र बाघ आबादी को बनाए रखने के लिए अनिवार्य हैं।

“टाइगर स्टेट” के रूप में गुजरात

  • NTCA की पुष्टि: वर्ष 2025 में मध्य गुजरात स्थित रतनमहल वन्यजीव अभयारण्य से प्राप्त कैमरा ट्रैप साक्ष्यों के आधार पर गुजरात में बाघ की उपस्थिति की पुष्टि हुई।
  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: स्थानीय स्तर पर बाघों के विलुप्त होने के बाद वर्ष 1992 की बाघ गणना से बाहर किए जाने पर गुजरात ने अपना “टाइगर स्टेट” दर्जा खो दिया था।
  • संरक्षण उपाय: गुजरात वन विभाग ने पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन को सुदृढ़ किया है, जिसमें शिकार प्रजातियों की वृद्धि, जल प्रावधान, अग्नि-निवारण तथा उन्नत कैमरा ट्रैप निगरानी शामिल है।
  • पारिस्थितिकी महत्त्व: गुजरात भारत का एकमात्र राज्य बन गया है, जहाँ शेर, बाघ और तेंदुआ तीन बिग कैट  शिकारी एक साथ पाए जाते हैं, जो सफल वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को दर्शाता है।
  • भविष्य की दिशा: बाघ आवास को मजबूत करने तथा रतनमहल को बाघ अभयारण्य घोषित करने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं, ताकि दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित हो सके।

रतनमहल वन्यजीव अभयारण्य के बारे में

  • रतनमहल वन्यजीव अभयारण्य अपने सघन वनों, ऊबड़-खाबड़ भू-भाग और स्लॉथ बियर की उच्च संख्या के कारण पारिस्थितिकी रूप से महत्त्वपूर्ण है, जो इसे गुजरात में एक प्रमुख वन्यजीव आवास के रूप में स्थापित करता है।
  • अवस्थिति: यह अभयारण्य मध्य गुजरात के दाहोद जिले में, बारिया और छोटा उदयपुर के निकट, गुजरात–मध्य प्रदेश सीमा के निकट स्थित है।
  • वनस्पतियाँ: इसमें तलहटी क्षेत्रों में शुष्क सागौन वन, मिश्रित पर्णपाती वन, शुष्क बाँस क्षेत्र तथा तेंदू (तिमरू) और सदड़ वृक्षों के समूह शामिल हैं।
  • वन्यजीव: गुजरात के रतनमहल वन्यजीव अभयारण्य में स्लॉथ बियर की सबसे बड़ी आबादी पाई जाती है और साथ ही यहाँ तेंदुओं की भी आबादी पाई जाती है।
  • संरक्षण: महुआ और जामुन वृक्षों की प्रचुरता महत्त्वपूर्ण खाद्य संसाधन उपलब्ध कराती है, जिससे यह अभयारण्य स्लॉथ बियर के व्यवहार अध्ययन के लिए आदर्श बनता है।
  • जल-परिस्थितिकी महत्त्व: ये वन पनाम नदी के जलग्रहण क्षेत्र का निर्माण करते हैं, जो मध्य गुजरात में जल संरक्षण और सिंचाई आवश्यकताओं का समर्थन करते हैं।

क्षेत्रीय स्तर प्रदूषण प्रतिक्रिया अभ्यास (RPREX-2025)

बढ़ते समुद्री व्यापार के बीच बड़े पैमाने पर समुद्री तेल प्रदूषण से निपटने की तैयारी को सुदृढ़ करने के लिए, भारतीय तटरक्षक बल ने मुंबई तट के समीप RPREX-2025 का आयोजन किया।

RPREX-2025 के बारे में

  • RPREX-2025 भारतीय तटरक्षक बल द्वारा आयोजित एक क्षेत्रीय स्तर का प्रदूषण प्रतिक्रिया अभ्यास है, जिसका उद्देश्य समुद्री तेल रिसाव की घटना से निपटने हेतु भारत की तैयारी का परीक्षण करना है।
  • अवस्थिति: यह अभ्यास अरब सागर में मुंबई तट के पास आयोजित किया गया, जो अत्यधिक समुद्री यातायात वाला क्षेत्र है और तेल प्रदूषण की घटनाओं के प्रति संवेदनशील है।
  • प्रतिभागी: इस अभ्यास में भारतीय तटरक्षक बल, तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम, मुंबई पत्तन प्राधिकरण, राज्य वन एवं मत्स्य विभाग, तटीय पुलिस, पत्तन संचालक तथा निजी तेल-प्रबंधन एजेंसियाँ शामिल रहीं।
  • मुख्य फोकस क्षेत्र
    • बहु-एजेंसी समन्वय: केंद्रीय, राज्य, पत्तन तथा वाणिज्यिक हितधारकों के बीच एकीकृत प्रतिक्रिया पर बल, साझा उत्तरदायित्व मॉडल के अंतर्गत।
    • संचालनात्मक तत्परता: प्रदूषण नियंत्रण पोतों, स्किमर उपकरणों, नियंत्रण अवरोधों तथा वास्तविक-समय संचार प्रणालियों के माध्यम से प्रतिक्रिया की गति और प्रभावशीलता का परीक्षण।
    • तटीय एवं पर्यावरण संरक्षण: प्रदूषण की घटनाओं के दौरान तटरेखा की रक्षा, मैंग्रोव संरक्षण और मत्स्यपालन जैसी स्थानीय आजीविका की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
  • अभ्यास की रूपरेखा: RPREX-2025 दो-चरणीय दृष्टिकोण पर आधारित था, पहले चरण में योजना सम्मेलन और टेबल-टॉप अभ्यास तथा दूसरे चरण में तेल टैंकरों के बीच टक्कर की समुद्री अनुकरण गतिविधि आयोजित की गई।
  • महत्त्व: इस अभ्यास ने राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा आकस्मिक योजना को मान्य किया तथा समुद्री प्रदूषण के प्रति त्वरित एवं समन्वित प्रतिक्रिया की भारत की क्षमता को सुदृढ़ किया।

राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा आकस्मिकता योजना (NOS-DCP) के बारे में

  • राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा आकस्मिकता योजना समुद्री तेल एवं रासायनिक रिसाव की तैयारी और प्रतिक्रिया हेतु भारत का ढाँचा है।
  • इस योजना को वर्ष 1993 में स्वीकृति मिली और वर्ष 1996 में आधिकारिक रूप से लागू किया गया।
  • योजना की स्वीकृति से पूर्व, मार्च 1986 में भारतीय तटरक्षक बल (ICG) को भारतीय जलक्षेत्र में तेल रिसाव से निपटने हेतु केंद्रीय समन्वय प्राधिकरण नामित किया गया था।

INS वाघशीर/ वाग्शीर

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू कर्नाटक के तट पर INS वाघशीर/वाग्शीर पर सवार हुई, और पनडुब्बी में यात्रा करने वाली दूसरी भारतीय राष्ट्रपति बन गईं।

  • ए.पी.जे. अब्दुल कलाम वर्ष 2006 में पनडुब्बी में यात्रा करने वाले पहले भारतीय राष्ट्राध्यक्ष बने, जब उन्होंने INS सिंधु रक्षक में यात्रा की थी।

INS वाघशीर/ वाग्शीर के बारे में

  • परिचय: INS वाघशीर भारतीय नौसेना की प्रोजेक्ट-75 के तहत शामिल की गई कलवरी-श्रेणी (स्कॉर्पीन-श्रेणी) पनडुब्बियों के पहले बैच की छठी और अंतिम पनडुब्बी है।
    • 15 जनवरी, 2025 को प्रारंभ हुआ था।
    • इसका नाम गहन समुद्र में पाई जाने वाली घातक शिकारी मछली ‘सैंडफिश’ के नाम पर रखा गया है।
    • इसका निर्माण फ्राँसीसी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) द्वारा किया गया है।
  • अन्य पनडुब्बियाँ: INS कलवरी, खंडेरी, करंज, वेला और वगीर।
  • विशेषताएँ
    • उन्नत स्टील्थ: अत्यंत कम शोर और बेहतर हाइड्रोडायनामिक डिजाइन, जो इसे विश्व की सबसे शांत पनडुब्बियों में से एक बनाता है।
    • परिचालन क्षमताएँ
      • लंबाई: 67.5 मीटर
      • गति: 20 समुद्री मील (जल  के अंदर)
      • गहराई: 350 मीटर से अधिक
      • क्षमता: 50 दिनों तक।
    • हथियार प्रणालियाँ: टॉरपीडो, जहाज-रोधी मिसाइलें, बारूदी सुरंग बिछाने की क्षमता और टॉरपीडो-रोधी उपाय।
    • स्वदेशी प्रणालियाँ: वातानुकूलन संयंत्र, आंतरिक संचार नेटवर्क और Ku-बैंड सैटकॉम।
    • चालक दल: 8 अधिकारी और 35 नाविक।
  • अनुप्रयोग
    • समुद्री सुरक्षा: हिंद महासागर क्षेत्र में सतह-रोधी और पनडुब्बी-रोधी युद्ध।
    • रणनीतिक प्रतिरोध समर्थन: खुफिया जानकारी एकत्रित करना, निगरानी और समुद्री क्षेत्र में हस्तक्षेप रोधी अभियान।
    • रक्षा में आत्मनिर्भरता: आत्मनिर्भर भारत के तहत भारत की स्वदेशी पनडुब्बी निर्माण क्षमता को मजबूत करना।

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