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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal December 31, 2025 02:43 4 0

मेग्नेटिक लेविटेशन (मैग्लेव)

चीन ने ‘हाई-फील्ड सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट टेक्नोलॉजी’ में हुई प्रगति को प्रदर्शित करते हुए, एक ‘सुपरकंडक्टिंग मैग्लेव व्हीकल’ को मात्र दो सेकंड में 700 किमी/घंटा की गति तक पहुँचाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया।

मेग्नेटिक लेविटेशन के बारे में

  • मेग्नेटिक लेविटेशन वह प्रौद्योगिकी है, जिसमें वस्तुओं को चुंबकीय बलों के माध्यम से निलंबित तथा संचालित किया जाता है, जिससे भौतिक संपर्क और यांत्रिक घर्षण समाप्त हो जाता है।
  • इसकी अवधारणा बीसवीं सदी के प्रारंभ में रॉबर्ट गोडार्ड और एमिल बाशेले ने प्रस्तुत की थी।

यह कैसे कार्य करता है?

  • मैग्लेव प्रणालियाँ विद्युत चुंबकों या अतिचालक चुंबकों द्वारा उत्पन्न शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग करती हैं, जो गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध बल प्रदान कर गति को स्थिर रखते हैं।
  • विद्युत-चुंबकीय निलंबन अथवा विद्युत-गतिक निलंबन के माध्यम से वाहन ऊपर उठता है, जबकि रेखीय मोटर पथ के साथ प्रणोदन और दिशा-निर्देश प्रदान करती हैं।
    • विद्युत-गतिक निलंबन (Electrodynamic Suspension) में अतिचालक चुंबक मार्गदर्शक कुंडलियों में धारा प्रेरित करते हैं, जिससे प्रतिकर्षण बल उत्पन्न होता है और उच्च गति पर वाहन उत्तोलित तथा स्थिर रहता है।

उन्नत अनुप्रयोगों में चुंबकीय क्षेत्र के स्रोत

  • उच्च चुंबकीय क्षेत्र मैगनेट कूलिंग, उत्प्रेरण तथा मैग्लेव परिवहन जैसी प्रणालियों में दक्षता के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि कार्यक्षमता सीधे क्षेत्र की तीव्रता पर निर्भर करती है।
  • अतिचालक चुंबक अत्यंत उच्च क्षेत्र उत्पन्न करते हैं, लेकिन इन्हें क्रायोजेनिक शीतलन की आवश्यकता होती है, जिससे इनका उपयोग औद्योगिक या अनुसंधान अनुप्रयोगों तक सीमित हो जाता है।
  • स्थायी चुंबक, विशेषकर नियोडिमियम–लौह–बोरॉन आधारित चुंबक, वाणिज्यिक और वाहन संबंधी उपयोगों के लिए सघन तथा ऊर्जा-कुशल विकल्प प्रदान करते हैं।

मेग्नेटिक लेविटेशन के अनुप्रयोग

  • उच्च-गति परिवहन: मैग्लेव ट्रेनें कम ऊर्जा हानि और कम रखरखाव आवश्यकताओं के साथ अति तीव्र गति से, कम घर्षण वाली यात्रा को सक्षम बनाती हैं।
  • औद्योगिक एवं वैज्ञानिक प्रणालियाँ: चुंबकीय प्रशीतन, रिएक्टरों और  परिशुद्ध उपकरणों में उपयोग, जहाँ संपर्क-रहित गति और उच्च दक्षता आवश्यक होती है।
  • भविष्य की प्रौद्योगिकियाँ: संभावित उपयोगों में हाइपरलूप परिवहन, निर्वात-नलिका और सहायक अंतरिक्ष प्रक्षेपण प्रणालियाँ शामिल हैं।

महत्त्व

चुंबकीय क्षेत्र उत्पादन में हुई प्रगति परिवहन, ऊर्जा दक्षता और निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों में व्यापक नवाचारों को गति प्रदान कर रही है।

पिनाका मल्टीपल रॉकेट लॉन्च सिस्टम (MRLS)

DRDO ने पिनाका लॉन्चर से 120 किलोमीटर की मारक क्षमता वाले लॉन्ग-रेंज गाइडेड रॉकेट (LRGR-120) का सफल परीक्षण किया, जो भारत की लंबी दूरी की तोपों की क्षमता में वृद्धि करता है।

पिनाका मल्टीपल रॉकेट लॉन्च सिस्टम के बारे में

  • पिनाका मल्टीपल रॉकेट लॉन्च सिस्टम (MRLS) एक अप्रत्यक्ष क्षेत्रीय रॉकेट फायर प्रणाली है, जिसे शत्रु के विस्तृत क्षेत्रीय लक्ष्यों पर कम समय में उच्च आयतन का रॉकेट फायर प्रदान करने के लिए विकसित किया गया है।
  • विकसितकर्ता: यह प्रणाली रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन की आयुध अनुसंधान एवं विकास स्थापना द्वारा, अन्य प्रयोगशालाओं के सहयोग से स्वदेशी रूप से विकसित की गई है।
  • संचालन पृष्ठभूमि: पिनाका को सर्वप्रथम कारगिल युद्ध के दौरान तैनात किया गया था, जहाँ इसने दुर्गम पहाड़ी इलाकों में दुश्मन के ठिकानों को प्रभावी ढंग से निष्क्रिय कर दिया था।

पिनाका मल्टीपल रॉकेट लॉन्च सिस्टम की प्रमुख विशेषताएँ

  • फायर की क्षमता एवं विन्यास: प्रत्येक लॉन्चर में 12 रॉकेट होते हैं, और एक मानक बैटरी में छह लॉन्चर होते हैं, जिससे कम समय में 72 रॉकेट दागे जा सकते हैं।
  • मारक-क्षमता एवं सटीकता: इस प्रणाली की मारक क्षमता 60-75 किलोमीटर है, जबकि निर्देशित संस्करण सटीक लक्ष्यीकरण के लिए INS/GPS नेविगेशन का उपयोग करते हैं।
    • हाल ही में परीक्षण की गई LRGR-120 की मारक क्षमता 120 किलोमीटर तक बढ़ जाती है।
  • गतिशीलता एवं लचीलापन: टाट्रा ट्रक पर लगा पिनाका उच्च गतिशीलता प्रदान करता है और एक ही लॉन्चर प्लेटफॉर्म से कई प्रकार के रॉकेट दाग सकता है।

महत्त्व

LRGR–120 के सफल परीक्षण से लंबी दूरी की गाइडेड तोपें विकसित करने की भारत की क्षमता प्रमाणित होती है। इससे गहन आक्रमण क्षमता बढ़ती है, प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है, आयात पर निर्भरता कम होती है और पिनाका की निर्यात क्षमता और भविष्य में भारतीय सेना में इसके शामिल होने की संभावना मजबूत होती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था 2047 के विजन के पथ पर अग्रसर

अर्न्स्ट एंड यंग (EY) की एक रिपोर्ट के अनुसार, सतत् विकास, डिजिटल शक्ति और उच्च मूल्य वाली सेवाओं के विस्तार के चलते भारत वर्ष 2047-48 तक 26 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

  • अर्न्स्ट एंड यंग (EY) एक ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय पेशेवर सेवा नेटवर्क है, जिसे “बिग फोर” लेखा फर्मों में से एक के रूप में जाना जाता है, जो वैश्विक स्तर पर आश्वासन, परामर्श, कर, रणनीति और लेनदेन में सेवाएँ प्रदान करता है।
  • यह अर्न्स्ट एंड यंग ग्लोबल लिमिटेड के अंतर्गत सदस्य फर्मों का एक नेटवर्क है, जो पूँजी बाजारों में विश्वास और भरोसा बनाने पर केंद्रित है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • दीर्घकालिक आर्थिक विकास: भारत की वार्षिक औसत विकास दर लगभग 6% रहने की संभावना है, जिससे यह आने वाले दशकों में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन जाएगी।
  • वैश्विक आर्थिक स्थिति: अनुमान है कि भारत वर्ष 2030 तक जर्मनी और जापान को पीछे छोड़कर अमेरिका और चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
  • आय में वृद्धि: अनुमान है कि प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2047-48 तक 15,000 अमेरिकी डॉलर से अधिक हो जाएगी, जो वर्तमान स्तर से लगभग छह गुना अधिक है और यह व्यापक आर्थिक विस्तार को दर्शाती है।
  • सेवा-आधारित विकास: IT और BPO के नेतृत्व में सेवा निर्यात में तेजी से वृद्धि हुई है, जिसे भारत में वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) के लगभग 45% की मेजबानी से समर्थन मिला है।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था की शक्ति: मजबूत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, व्यापक इंटरनेट पहुँच और डिजिटल भुगतान ने नवाचार, उद्यमिता और शासन दक्षता को गति प्रदान की है।

विकसित भारत विजन 2047 के तहत प्रमुख आर्थिक लक्ष्य

  • आर्थिक विकास: लगभग 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की जीडीपी हासिल करना, जिससे भारत विश्व की अग्रणी आर्थिक शक्तियों में शामिल हो जाएगा।
  • आय और समावेशन: समावेशी और रोजगार-आधारित विकास के माध्यम से प्रति व्यक्ति आय को लगभग 18,000 अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना और गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य प्राप्त करना।
  • ऊर्जा परिवर्तन: सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा क्षमता को चालीस गुना और परमाणु ऊर्जा क्षमता को दस गुना बढ़ाना।

महत्त्व

EY के अनुमान विकसित भारत की परिकल्पना के साथ काफी हद तक संरेखित हैं, जो वर्ष 2047 तक भारत की व्यापकता, स्थिरता और डिजिटल नेतृत्व को संयोजित करने की क्षमता को रेखांकित करते हैं।

पारसी महा

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जमशेदपुर में 22वें पारसी महासमारोह और ओल चिकी लिपि के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्र निर्माण में भाषा और जनजातीय संस्कृति पर जोर दिया।

पारसी महा के बारे में

  • पारसी महा, संथाली भाषा, साहित्य और स्वदेशी परंपराओं को बढ़ावा देने के लिए आयोजित संथाली समुदाय का एक प्रमुख सांस्कृतिक सम्मेलन है।
  • आयोजक: अखिल भारतीय संथाली लेखक संघ।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: यह संथाली लेखकों, विद्वानों और कलाकारों के लिए मौखिक परंपराओं, लोक साहित्य तथा सामूहिक सांस्कृतिक स्मृति को संरक्षित करने का एक मंच प्रदान करता है।

ओल चिकी लिपि के बारे में

  • परिचय: ओल चिकी संथाली भाषा की विशेष लिपि है, जो संथाली समुदायों को एक एकीकृत और ध्वन्यात्मक लेखन प्रणाली प्रदान करती है।
  • विकासकर्ता: इस लिपि का विकास वर्ष 1925 में पंडित रघुनाथ मुर्मू ने संथाली भाषा को अनेक लिपियों में लिखने से उत्पन्न विसंगतियों को दूर करने के लिए किया था।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: ओल चिकी संथाली पहचान और सांस्कृतिक दृढ़ता का प्रतीक है, जो मातृभाषा में शिक्षा, साहित्य तथा शासन को संभव बनाती है।
    • संविधान का संथाली भाषा में अनुवाद करने में इसका उपयोग आदिवासी समुदायों की समावेशिता, भाषायी गरिमा और लोकतांत्रिक भागीदारी को मजबूत करता है।

इन समारोहों में समावेशी राष्ट्रीय विकास में स्वदेशी भाषाओं, शिक्षा और पर्यावरण के अनुकूल जनजातीय ज्ञान की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी तत्परता मूल्यांकन ढाँचा

भारत के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार अजय कुमार सूद ने अनुसंधान से लेकर बाजार में लाने तक प्रौद्योगिकी की परिपक्वता का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन करने के लिए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी तत्परता आकलन ढाँचा का अनावरण किया।

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी तत्परता मूल्यांकन ढाँचा (NTRAF)

  • परिचय: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी तत्परता मूल्यांकन ढाँचा एक मानकीकृत तंत्र है, जिसका उपयोग नवाचार परियोजनाओं के संपूर्ण जीवनचक्र में उनकी परिपक्वता का आकलन करने के लिए किया जाता है।
  • उद्देश्य: इस ढाँचे का उद्देश्य तत्परता स्तरों के मूल्यांकन के लिए एक एकीकृत, साक्ष्य-आधारित मापदंड तैयार करना है, जिससे सूचित वित्तपोषण, नीतिगत निर्णय और सुगम व्यावसायीकरण संभव हो सके।
  • नोडल एजेंसी: इस ढाँचे को प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय के अंतर्गत भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के सहयोग से विकसित किया गया है।
  • प्रमुख विशेषताएँ
    • यह स्पष्ट रूप से परिभाषित और वस्तुनिष्ठ मानदंडों का उपयोग करके प्रयोगशाला स्तर के अनुसंधान से लेकर वाणिज्यिक उपयोग तक प्रौद्योगिकी प्रगति का मापन करता है।
    • यह ढाँचा राष्ट्रीय मिशनों के अंतर्गत अनेक अनुसंधान एवं विकास वित्तपोषण पहलों के लिए परिचालन आधारशिला के रूप में कार्य करेगा।
  • डीपटेक इकोसिस्टम के लिए महत्त्व: यह ढाँचा शोधकर्ताओं, निवेशकों और नीति निर्माताओं के लिए एक सामान्य भाषा बनाकर शिक्षा जगत और उद्योग के बीच लंबे समय से चले आ रहे अंतर को कम करता है।
    • यह मूल्यांकन को व्यक्तिपरक दावों से सत्यापन योग्य साक्ष्यों की ओर ले जाता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सार्वजनिक धन का उपयोग विस्तार योग्य और बाजार के लिए तैयार नवाचारों को समर्थन देने के लिए किया जाए।

NTRAF वैज्ञानिक अनुसंधान को औद्योगिक विस्तारशीलता और राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं के साथ जोड़कर भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करता है।

धसान नदी

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने झाँसी में धसान नदी में रेत खनन के लिए पर्यावरण मंजूरी रद्द करने के खिलाफ दायर अपील को प्रक्रियात्मक विलंब और नियमों का पालन न करने का हवाला देते हुए खारिज कर दिया।

धसान नदी के बारे में

  • परिचय: धसान नदी बुंदेलखंड क्षेत्र की एक महत्त्वपूर्ण नदी है और बेतवा नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है।
  • उत्पत्ति: यह नदी मध्य प्रदेश के रायसेन जिले की बेगमगंज तहसील से निकलती है।
  • मार्ग और स्थिति: धसान नदी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र से होकर बहती है।
    • यह उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले की दक्षिण-पूर्वी सीमा का एक काफी बड़ा हिस्सा बनाता है।
  • लंबाई और वितरण: नदी की कुल लंबाई लगभग 365 किलोमीटर है।
    • लगभग 240 किलोमीटर नदी मध्य प्रदेश से होकर प्रवाहित होती है, 54 किलोमीटर अंतरराज्यीय सीमा बनाती है और 71 किलोमीटर उत्तर प्रदेश में स्थित है।
  • धसान नदी, बेतवा नदी की दाहिनी सहायक नदी है, जो अंततः यमुना नदी में मिल जाती है और इस प्रकार गंगा नदी प्रणाली का हिस्सा बन जाती है।
  • बुनियादी ढाँचा: धसान नदी पर लेहचुरा बाँध का निर्माण किया गया है, जो मुख्य रूप से धसान नहर प्रणाली के माध्यम से सिंचाई में सहायता करता है।

हालिया नियामक कार्रवाई नदी की पारिस्थितिकी संवेदनशीलता और रेत खनन गतिविधियों में कठोर अनुपालन की आवश्यकता को उजागर करती है।

INSV कौंडिन्य

हाल ही में भारतीय नौसेना के नौकायन पोत (INSV) कौंडिन्य ने पोरबंदर (गुजरात) से मस्कट (ओमान) तक अपनी पहली समुद्री यात्रा शुरू की।

  • प्राचीन व्यापार मार्गों का पता लगाने वाली यह परियोजना संस्कृति मंत्रालय और भारतीय नौसेना के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है।

इस यात्रा का महत्त्व

  • समुद्री विरासत का पुनरुद्धार: प्राचीन जहाज निर्माण और नौवहन तकनीकों की व्यावहारिक बुद्धिमत्ता को प्रदर्शित करता है।
  • स्वदेशी ज्ञान प्रणालियाँ: आधुनिक अनुभवात्मक शिक्षा में ‘टांकाई पद्धति’ जैसी पारंपरिक इंजीनियरिंग विधियों की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालता है।
  • सांस्कृतिक कूटनीति: यह समकालीन समुद्री कूटनीति के पूरक के रूप में अरब प्रायद्वीप और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत के ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करती है।
  • स्थिरता: यह पर्यावरण के अनुकूल, पवन ऊर्जा से चलने वाले नौवहन पर जोर देती है, जो कम कार्बन उत्सर्जन वाला विकल्प प्रदान करता है और डिजाइन के माध्यम से लचीलापन प्रदर्शित करता है।

INSV कौंडिन्य के बारे में

  • INSV कौंडिन्य एक गैर-लड़ाकू पारंपरिक नौकायन पोत है, जिसे प्राचीन भारतीय जहाज निर्माण परंपराओं को दर्शाते हुए धातु के ‘फास्टनरों’ के बिना बनाया गया है।
  • इसका डिजाइन और निर्माण टंकाई पद्धति से गहराई से जुड़ा हुआ है, जो इसे भारत की समुद्री विरासत का जीवंत प्रतीक बनाता है।
  • ऐतिहासिक महत्त्व
    • डिजाइन प्रेरणा: अजंता गुफाओं (महाराष्ट्र) की गुफा संख्या 17 में स्थित 5वीं शताब्दी ईसवी की भित्तिचित्र में चित्रित जहाज पर आधारित।
    • साहित्यिक संदर्भ: परमार वंश के राजा भोज द्वारा रचित 11वीं शताब्दी के संस्कृत ग्रंथ युक्तिकल्पतरु से इसकी पुष्टि होती है।
    • प्रमुख विषयवस्तु
      • गंडाभेरुंडा: पाल पर बना दो सिर वाला पौराणिक पक्षी, जिसका संबंध कदंब और विजयनगर राजवंशों से है।
      • सिम्हा याली: जहाज के आगे के हिस्से पर बनी शेर जैसी रक्षक आकृति।
      • हड़प्पा का लंगर (Anchor): डेक पर लगा पत्थर का लंगर, जो सिंधु घाटी सभ्यता की समुद्री शक्ति को दर्शाता है।

टांकाई पद्धति (पारंपरिक जहाज निर्माण) के बारे में

  • तकनीक: यह 2,000 वर्ष पुरानी विधि है, जिसमें लकड़ी के तख्तों (टीक, साल या आम) को धातु की कीलों से ठोकने के बजाय नारियल के रेशे की रस्सियों से सिलकर जोड़ा जाता है।
  • संरचनात्मक लाभ: लोहे की अनुपस्थिति जंग लगने से बचाती है और पतवार को लहरों की ऊर्जा को लचीले ढंग से अवशोषित करने की अनुमति देती है, जिससे दरारें नहीं पड़तीं।
  • जलरोधीकरण: जोड़ों को प्राकृतिक रेजिन (डामर), कपास और मछली के तेल या पशु वसा से बंद किया जाता है।
  • प्रचालन: प्राचीन नौवहन पद्धतियों का पालन करते हुए, यह पूरी तरह से पवन-चालित और मैनुअल रूप से चप्पू द्वारा संचालित है।

कौंडिन्य के बारे में

  • वे पहली शताब्दी ईसवी के एक भारतीय व्यापारी-नाविक थे।
  • विरासत: उन्होंने मेकांग डेल्टा की यात्रा की, रानी सोमा से विवाह किया और फुनन साम्राज्य (आधुनिक कंबोडिया) की सह-स्थापना की, जो दक्षिण-पूर्व एशिया का पहला भारतीयकृत राज्य था।
  • इतिहास का संरक्षण: उनकी कहानी कंबोडियाई और वियतनामी अभिलेखों में जीवित है, हालाँकि भारतीय ग्रंथों में यह अनुपस्थित है, जो भारत के खोए हुए समुद्री वृत्तांतों को पुनर्जीवित करने में कौंडिन्य जैसी परियोजनाओं के महत्त्व को उजागर करती है।

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