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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal October 22, 2024 02:35 105 0

नसीम-अल-बह्र (Naseem-Al-Bahr)

हाल ही में भारत-ओमान द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास नसीम-अल-बह्र (Naseem-Al-Bahr) गोवा में आयोजित किया गया।

अभ्यास नसीम-अल-बह्र के बारे में

  • इसकी शुरुआत वर्ष 1993 में हुई थी
  • ओमान पहला खाड़ी देश है, जिसके साथ भारत की सेनाओं के तीनों खंड संयुक्त अभ्यास करते हैं। 
    • अभ्यास अल-नजाह (Exercise Al-Najah) → सेना अभ्यास
    • अभ्यास ईस्टर्न ब्रिज (Exercise Eastern Bridge) → वायु सेना अभ्यास 
  • प्रतिभागी: INS त्रिकंद (INS Trikand) एवं डोर्नियर समुद्री गश्ती विमान।
  • यह अभ्यास दो चरणों में आयोजित किया गया: बंदरगाह चरण के बाद समुद्री चरण।

मालाबार अभ्यास

हाल ही में आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम के तट पर ‘मालाबार अभ्यास’ संपन्न हुआ।

मालाबार अभ्यास के बारे में

  • भागीदारी: भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • इसकी शुरुआत वर्ष 1992 में भारत एवं अमेरिकी नौसेना के बीच द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास के रूप में हुई थी।
  • विस्तार 
    • वर्ष 2015 में → जापान भी शामिल हुआ।
    • वर्ष 2020 में → ऑस्ट्रेलियाई नौसेना भी शामिल हुई और इसे एक चतुर्भुज नौसैनिक अभ्यास बनाया गया।
  • यह वार्षिक रूप से हिंद महासागर एवं प्रशांत महासागर में वैकल्पिक रूप से आयोजित होता है।
  • उद्देश्य: भारत-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग एवं सुरक्षा को मजबूत करना। 
  • यह ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा एवं विकास’ (सागर) के भारत के दृष्टिकोण का समर्थन करता है।

विजयनगर साम्राज्य से संबंधित ताँबे की प्लेटें

 

हाल ही में विजयनगर साम्राज्य की मुहर वाली 16वीं शताब्दी ईसवी के ताँबे के प्लेट पर उत्कीर्ण लेख, तिरुवल्लुर जिले के मप्पेडु गाँव में श्री सिंगेश्वर मंदिर में खोजे गए।

 ताँबे के प्लेट पर उत्कीर्ण लेख का विवरण

  • कालखंड: शिलालेख 16वीं शताब्दी ईसवी पूर्व के हैं, विशेष रूप से विजयनगर साम्राज्य के कृष्णदेवराय के शासनकाल के दौरान 1513 ईसवी के हैं।
  • लिपि और भाषा: शिलालेख नंदिनागरी (Nandinagari) लिपि का उपयोग करके संस्कृत में लिखे गए हैं।
    • नंदिनागरी एक ब्राह्मी लिपि है, जो नागरी लिपि से ली गई है, जिसका उपयोग 11वीं एवं 19वीं शताब्दी के बीच दक्षिण महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश में संस्कृत में पांडुलिपियाँ तथा शिलालेख तैयार करने के लिए किया गया था।  
  • ग्राम दान: शिलालेख में राजा कृष्णदेवराय द्वारा वासलाबट्टका (Vasalabattaka) गाँव, जिसका नाम बदलकर कृष्णरायपुरा (Krishnarayapura) रखा गया था, के दान का उल्लेख है।
  • लाभार्थी: गाँव कई ब्राह्मणों को उपहार में दिया गया था।
  • सीमाएँ: इसमें दान किए गए गाँव की सीमाओं का विवरण दिया गया है, जो चंद्रगिरि (आधुनिक तिरूपति जिला, आंध्र प्रदेश) के राजा के नियंत्रण में था।

मप्पेडु में श्री सिंगेश्वर मंदिर  (Sri Singeeswarar Temple) के बारे में

  • मुख्य देवता: सिंगेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
  • निर्माण: इस मंदिर का निर्माण 976 ई. में राजराजा चोल के बड़े भाई आदित्य करिकालन चोल द्वितीय द्वारा कराया गया था।

कृष्णदेवराय के बारे में

  • शासनकाल: कृष्णदेवराय तुलुव राजवंश के थे एवं उन्होंने 1509-1529 ईसवी तक विजयनगर साम्राज्य पर शासन किया था।
  • योगदान: उन्हें उत्कृष्ट मंदिरों के निर्माण और कई महत्त्वपूर्ण दक्षिण भारतीय मंदिरों में गोपुरम (प्रवेश द्वार टॉवर) जोड़ने का श्रेय दिया जाता है।
    • उन्होंने अपनी माँ के सम्मान में विजयनगर के पास नागालपुरम् की स्थापना की।
    • उन्होंने राज्यकला पर एक तेलुगु कृति की रचना की, जिसे अमुक्तमाल्यदा (Amuktamalyada) के नाम से जाना जाता है।

विजयनगर साम्राज्य के बारे में

  • स्थापना: विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई. में संगम राजवंश के हरिहर एवं बुक्का ने की थी।
  • राजधानी: इसकी राजधानी हंपी थी।
    • इसे वर्ष 1986 में यूनेस्को (UNESCO) द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
  • भौगोलिक विस्तार: साम्राज्य उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर भारतीय प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था।
  • विजयनगर के राजवंश: विजयनगर साम्राज्य पर चार प्रमुख राजवंशों का शासन था: संगम राजवंश, सालुव राजवंश, तुलुव राजवंश एवं अराविदु राजवंश।

मूनलाइट कार्यक्रम (Moonlight Program)

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency- ESA) ने मूनलाइट कार्यक्रम (Moonlight Program) शुरू किया है, जिसका लक्ष्य चंद्रमा पर दूरसंचार एवं नेविगेशन सेवाओं के लिए एक समर्पित उपग्रह समूह विकसित करना है। 

मूनलाइट कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएँ

  • उपग्रह तारामंडल: कार्यक्रम में पाँच उपग्रह शामिल होंगे, एक उच्च-डेटा-दर संचार के लिए एवं चार नेविगेशन के लिए।
  • चंद्रमा-पृथ्वी कनेक्टिविटी: उपग्रह 4,00,000 किलोमीटर के नेटवर्क को कवर करेंगे, जो तीन ग्राउंड स्टेशनों के माध्यम से चंद्रमा को पृथ्वी से जोड़ेगा।
  • कवरेज: मूनलाइट कार्यक्रम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कवरेज प्रदान करेगा, जो ध्रुवीय बर्फ की उपस्थिति के कारण शोध का क्षेत्र है, जिसका उपयोग जल, ऑक्सीजन एवं रॉकेट ईंधन के लिए किया जा सकता है।
  • महत्त्व: मूनलाइट पहल का उद्देश्य उपग्रह नेविगेशन, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग एवं डेटा शेयरिंग जैसी सेवाओं को चंद्रमा के लिए आसान बनाना है।
    • सटीक चंद्र लैंडिंग एवं पृथ्वी तथा चंद्रमा के बीच एक उच्च गति, कम विलंबता संचार नेटवर्क स्थापित करना।
    • मिशन साझा संचार एवं नेविगेशन बुनियादी ढाँचे की पेशकश करके भविष्य के चंद्र मिशन की लागत को कम करेगा, व्यक्तिगत सेटअप की आवश्यकता को समाप्त करेगा तथा यह चंद्रमा पर दीर्घकालिक मानव मौजूदगी के लिए भी महत्त्वपूर्ण होगा।
    • यह वाणिज्यिक डेटा रिले सेवाएँ प्रदान करके निजी कंपनियों के लिए अवसर उत्पन्न करेगा, चंद्र-संबंधित बढ़ते बाजार को बढ़ावा देगा।
  • साझेदारी: मूनलाइट ESA, टेलीस्पाजियो (Telespazio) एवं यूनाइटेड किंगडम तथा इतालवी अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच एक सहयोग है। 
  • ESA, लूनानेट (LunaNet) पर नासा (NASA) एवं JAXA के साथ भी कार्य कर रहा है, ताकि भविष्य के चंद्रमा पर बुनियादी ढाँचे के साथ अनुकूलता सुनिश्चित हो सके।
  • वैश्विक चंद्र नेविगेशन प्रणाली (Global Lunar Navigation System): अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों एवं निजी संस्थाओं के लिए वैश्विक संचार तथा नेविगेशन प्रणाली का समर्थन करने के लिए मूनलाइट वर्ष 2029 में पहले चंद्र नेविगेशन इंटरऑपरेबिलिटी परीक्षणों से गुजरेगी।

समयरेखा एवं विकास 

  • लूनर पाथफाइंडर (Lunar Pathfinder): मूनलाइट कार्यक्रम के पहले चरण में लूनर पाथफाइंडर (Lunar Pathfinder) को लॉन्च करना शामिल है, जो ‘सरे सैटेलाइट टेक्नोलॉजी लिमिटेड’ (Surrey Satellite Technology Ltd- SSTL) द्वारा विकसित एक संचार रिले उपग्रह है, जो वर्ष 2026 में परिचालन शुरू करने के लिए तैयार किया जा रहा है।
    • लूनर पाथफाइंडर वाणिज्यिक डेटा रिले सेवाएँ प्रदान करेगा एवं लूनर उपयोग के लिए मौजूदा पृथ्वी-परिक्रमा नेविगेशन उपग्रहों का परीक्षण करेगा।
  • पूर्ण तैनाती: मूनलाइट की सेवाओं की पूर्ण तैनाती वर्ष 2030 तक होने की उम्मीद है।

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