भारत सरकार ने महिला स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को कृषि सेवाओं के लिए ड्रोन प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाने के लिए ‘नमो ड्रोन दीदी’ (Namo Drone Didi)योजना शुरू की है।
स्वयं सहायता समूह (SHGs) क्या हैं?
ये लोगों के अनौपचारिक संगठन हैं, जो मुद्दों को सुलझाने एवं अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक साथ आर्थिक कार्य करते हैं।
उद्देश्य: यह समूह अपने सदस्यों के सामाजिक एवं आर्थिक कल्याण के उत्थान पर ध्यान केंद्रित करता है।
‘नमो ड्रोन दीदी’ योजना के बारे में
लॉन्च वर्ष: वर्ष 2024 में
फंडिंग: ₹1261 करोड़
लक्ष्य: 14,500 चयनित महिला SHGs को कृषि संबंधी किराये की सेवाओं के लिए ड्रोन प्रदान करना।
अवधि: वर्ष2024-25 से वर्ष 2025-26 तक।
उद्देश्य: ड्रोन प्रौद्योगिकी के माध्यम से तरल उर्वरक एवं कीटनाशक अनुप्रयोग जैसी कृषि सेवाओं को सुविधाजनक बनाना।
योजना की मुख्य विशेषताएँ
यह एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है।
ड्रोन प्रावधान: 14,500 महिला स्वयं सहायता समूहों को उर्वरक एवं कीटनाशकों के छिड़काव जैसे कार्यों के लिए किसानों को किराये की सेवाएँ प्रदान करने के लिए ड्रोन प्राप्त होंगे।
वित्तीय सहायता: केंद्र सरकार ड्रोन और सहायक उपकरण की लागत का 80%, अधिकतम 8 लाख रुपये प्रति स्वयं सहायता समूह प्रदान करेगी।
प्रशिक्षण एवं सहायता: SHG सदस्यों को ड्रोन संचालित करने और उनके रखरखाव के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा।
कार्यान्वयन: ‘लीड फर्टिलाइजर कंपनियाँ’(LFCs) राज्य स्तर पर योजना को लागू करने, राज्य विभागों, ड्रोन निर्माताओं एवं SHG के साथ समन्वय करने के लिए जिम्मेदार होंगी।
निगरानी: एक समर्पित IT-आधारित प्रबंधन सूचना प्रणाली (Management Information System- MIS) ड्रोन संचालन एवं सेवा वितरण को ट्रैक करेगी।
आयरन बीम
(Iron Beam)
इजरायल ने आयरन बीम लेजर आधारित मिसाइल रक्षा प्रणाली के लिए लगभग 2 बिलियन शेकेल (Shekels) (इजरायल की मौद्रिक इकाई) के समझौते पर हस्ताक्षर किए।
आयरन बीम (Iron Beam) के बारे में
यह एक उच्च शक्ति वाली लेजर प्रणाली है।
आयरन बीम का उद्देश्य एवं आवश्यकता
उन्नत रक्षा: आयरन बीम का लक्ष्य इजरायल की अवरोधन क्षमताओं में सुधार करना है, विशेष रूप से ड्रोन एवं कम दूरी के प्रोजेक्टाइल जैसे छोटे हवाई खतरों के लिए।
आयरन डोम का पूरक: आयरन बीम आयरन डोम जैसी प्रणालियों के साथ कार्य करेगा, जो रॉकेट के खिलाफ कम दूरी की रक्षा प्रदान करता है।
बहु-आयामी खतरों का जवाब: इजरायल को गाजा एवं लेबनान जैसे क्षेत्रों से लगातार हवाई खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें हमास के समर्थन में हिजबुल्लाह के हालिया प्रक्षेप्य हमले भी शामिल हैं।
आयरन बीम के लाभ
लागत दक्षता: लेजर आधारित प्रणाली पारंपरिक इंटरसेप्टर मिसाइलों का एक सस्ता विकल्प प्रदान करती है।
सुरक्षा में वृद्धि: यह इजरायल की बहुस्तरीय रक्षा प्रणाली को बढ़ाता है, उच्च मात्रा वाले रॉकेट एवं ड्रोन हमलों की प्रतिक्रिया में सुधार करता है तथा महंगे मिसाइल इंटरसेप्टर पर निर्भरता को कम करता है।
आयरन बीम रक्षा प्रणाली के लिए चुनौतियाँ
तकनीकी चुनौतियाँ
लक्ष्यीकरण सटीकता: एक ही समय में कई तेज गति वाली वस्तुओं को सटीक रूप से लक्षित करना कठिन है।
आकार में कमी: इस प्रणाली को विमान में फिट करने लायक छोटा बनाना चुनौतीपूर्ण है।
परिचालन चुनौतियाँ
मौसम का प्रभाव: खराब मौसम, जैसे बादल या कोहरा, लेजर की प्रभावशीलता को कम कर सकता है।
कम दृश्यता: खराब दृश्यता के कारण खतरों का सटीक रूप से पता लगाना एवं रोकना कठिन हो जाता है।
तार्किक चुनौतियाँ
सिस्टम अनुकूलता: आयरन बीम को आयरन डोम जैसी मौजूदा रक्षा प्रणालियों से जोड़ने के लिए सावधानीपूर्वक योजना की आवश्यकता होती है।
उच्च प्रारंभिक लागत: यद्यपि परिचालन लागत कम हो सकती है, प्रारंभिक विकास एवं तैनाती महंगी है।
तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन से चीनी अंतरिक्ष यात्री की वापसी
तीन चीनी अंतरिक्ष यात्री तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन (Tiangong Space Station) पर छह महीने रहने के बाद पृथ्वी पर लौट आए।
चालक दल 1:24 बजे चीन के भीतरी मंगोलिया क्षेत्र में एक दूरस्थ लैंडिंग क्षेत्र में उतरा।
ताइकोनॉट्स (Taikonauts) (चीनी अंतरिक्ष यात्री) प्रयोग करते हैं, स्पेसवॉक करते हैं एवं स्टेशन को अंतरिक्ष मलबे से बचाने के लिए उपकरण स्थापित करते हैं।
तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन के बारे में
निर्मित किया गया है: तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन एक T आकार का अंतरिक्ष स्टेशन है, जिसका अर्थ है ‘स्वर्गीय महल’ (Heavenly Palace) एवं इसे चीनी मानवयुक्त अंतरिक्ष एजेंसी (Chinese Manned Space Agency- CMSA) द्वारा बनाया गया था।
कक्षा: यह 217 एवं 280 मील (340 से 450 किलोमीटर) के बीच की ऊँचाई पर पृथ्वी की निचली कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
इसकी कक्षीय ऊँचाई लगभग अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के समान है।
लॉन्च: अंतरिक्ष स्टेशन को 3 मॉड्यूल में बनाया गया था एवं इसे वर्ष 2021 तथा वर्ष 2022 के बीच लॉन्च किया गया था।
अंतरिक्ष स्टेशन के बारे में
अंतरिक्ष स्टेशन, अंतरिक्ष यान के रूप में कृत्रिम उपग्रह हैं, जो पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं एवं विस्तारित अवधि के लिए मानव निवास का समर्थन करने के लिए डिजाइन किए गए हैं।
ये दबावयुक्त बाड़ों, विद्युत, आपूर्ति एवं पर्यावरण प्रणालियों से सुसज्जित हैं।
उदाहरण: अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) एक अंतरिक्ष स्टेशन का एक प्रसिद्ध उदाहरण है, जो प्रत्येक 90 मिनट में लगभग 17,500 मील प्रति घंटे की गति से पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
ISS यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, कनाडा एवं जापान के बीच एक “सहकारी कार्यक्रम” है तथा इसका स्वामित्व किसी एक देश के पास नहीं है।
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bhartiya Antriksh Station- BAS): भारत अपनी बड़ी अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाओं के हिस्से के रूप में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) नामक अपने स्वयं के मॉड्यूलर अंतरिक्ष स्टेशन की योजना बना रहा है।
अपेक्षित लॉन्च: पहला मॉड्यूल वर्ष 2028 में लॉन्च होने की उम्मीद है एवं शेष मॉड्यूल वर्ष 2035 तक लॉन्च होने की उम्मीद है।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए ICMR की ‘फर्स्ट इन द वर्ल्ड चैलेंज’ पहल
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने ‘फर्स्ट इन द वर्ल्ड चैलेंज’ (First in the World Challenge) नामक एक नई उच्च जोखिम, उच्च इनाम पहल की घोषणा की है।
उद्देश्य: भारतीय वैज्ञानिकों को नवीन विचारों के साथ आने एवं कठिन स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करना।
प्रस्ताव: यह योजना बेहतर स्वास्थ्य परिणामों के लिए संभावित ‘अपनी तरह के पहले’ बायोमेडिकल एवं तकनीकी नवाचारों के साथ महत्त्वपूर्ण व्यापक प्रभाव वाले अनुसंधान विचारों को वित्तपोषित करने का प्रस्ताव करती है।
जिन प्रस्तावों का लक्ष्य ‘वृद्धिशील ज्ञान’ या ‘प्रक्रिया नवाचार’ है, उन्हें इस योजना के माध्यम से वित्तपोषित नहीं किया जाएगा।
मानदंड: ऐसे विचार जो नवीन हों, लीक से हटकर हों, भविष्यवादी हों एवं नए ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करते हों। अग्रणी स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों (टीके, औषधियाँ/चिकित्सीय, निदान आदि) की खोज/विकास जिसके बारे में आज तक दुनिया में कभी सोचा, परीक्षण या प्रयास नहीं किया गया है, उस पर विचार किया जाएगा।
प्रतिभागी: प्रस्ताव किसी व्यक्ति या शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा प्रस्तुत किए जा सकते हैं (या तो एक ही संस्थान से अथवा कई संस्थानों से)।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR)
यह बायोमेडिकल अनुसंधान के निर्माण, समन्वय एवं प्रचार के लिए भारत में शीर्ष निकाय है।
स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1911 में ‘इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन’ (Indian Research Fund Association- IRFA) के रूप में हुई थी एवं यह दुनिया के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है।
वर्ष 1949 में, IRFA को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के रूप में पुनः नामित किया गया था।
फंडिंग: ICMR को भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है।
अध्यक्षता: परिषद के शासी निकाय की अध्यक्षता केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री करते हैं।
राष्ट्रीय रजिस्ट्री: वर्ष 2007 में, संगठन ने क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री-भारत की स्थापना की, जो क्लिनिकल परीक्षणों के लिए भारत की राष्ट्रीय रजिस्ट्री है।
भारत, अल्जीरिया ने रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए
द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर भारत एवं अल्जीरिया के बीच समझौता ज्ञापन (MoU) रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
MoU के मुख्य बिंदु
उन्नत रक्षा सहयोग: समझौता ज्ञापन रक्षा क्षेत्र में सहयोग के लिए एक रूपरेखा स्थापित करता है, जो आपसी समझ, ज्ञान साझा करने एवं रणनीतिक हितों को मजबूत करने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों पर केंद्रित है।
विशेषज्ञता का आदान-प्रदान: इसमें सैन्य अनुभवों एवं विशेषज्ञता को साझा करने के प्रावधान शामिल हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ भारत के पास विशेषज्ञता है, जैसे रक्षा उत्पादन, इसकी ‘मेक इन इंडिया’ तथा ‘मेक फॉर द वर्ल्ड’ पहल के हिस्से के रूप में।
शांतिपूर्ण समाधानों के प्रति प्रतिबद्धता: भारत ने संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान पर अपने रुख पर जोर दिया, भारत को एक विश्वसनीय वैश्विक भागीदार या विश्व बंधु के रूप में प्रदर्शित किया।
रक्षा विंग को फिर से खोलना: भारत ने अल्जीरिया में अपनी रक्षा विंग को फिर से स्थापित किया, भारत में अल्जीरिया की रक्षा विंग को फिर से खोलने का स्वागत करते हुए, द्विपक्षीय रक्षा कूटनीति के लिए एक नई प्रतिबद्धता का संकेत दिया।
‘डिजिटल इंडिया कॉमन सर्विस सेंटर’ (DICSC) परियोजना
केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत के 10 जिलों में 4,740 केंद्रों तक विस्तार करने की योजना के साथ उत्तर प्रदेश के पीलीभीत एवं गोरखपुर में ‘डिजिटल इंडिया कॉमन सर्विस सेंटर’ (DICSC) परियोजना शुरू कर रहा है।
‘डिजिटल इंडिया कॉमन सर्विस सेंटर’ (DICSC) परियोजना के बारे में
उद्देश्य: नागरिकों को सुलभ ई-गवर्नेंस, वित्तीय एवं वाणिज्यिक सेवाएँ प्रदान करके, डिजिटल समावेशन तथा सशक्तीकरण सुनिश्चित करके ग्रामीण भारत में डिजिटल विभाजन को पाटना।
सेवा की पेशकश: प्रत्येक DICSC केंद्र आधार पंजीकरण, बैंकिंग, वित्तीय नियोजन, टेली-लॉ, टेलीमेडिसिन, शिक्षा एवं ई-कॉमर्स सहित कई आवश्यक सेवाएँ प्रदान करेगा, जो हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड के साथ बहु-कार्यात्मक केंद्र के रूप में कार्य करेगा।
बजट आवंटन: 31.6 करोड़ रुपये।
केंद्रीकृत निगरानी: CSC ई-गवर्नेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड परियोजना कार्यान्वयन एवं तकनीकी निगरानी, पारदर्शिता तथा कुशल सेवा वितरण को बढ़ावा देगी।
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