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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal November 16, 2024 05:17 52 0

अभ्यास ‘पूर्वी प्रहार’

भारतीय सेना के नेतृत्व में अरुणाचल प्रदेश में चलाया जा रहा ‘पूर्वी प्रहार’ 10 नवंबर से शुरू होकर 18 नवंबर तक चलेगा। 

अभ्यास  ‘पूर्वी प्रहार’ के बारे में

  • यह एक त्रि-सेवा (सेना, नौसेना, वायु सेना) संयुक्त सैन्य अभ्यास है, जिसका नेतृत्व भारतीय सेना कर रही है
  • उद्देश्य: यह अभ्यास अरुणाचल प्रदेश में भारत की पूर्वी सीमा पर एक मजबूत रक्षा स्थिति बनाए रखने के लिए आयोजित किया जाता है।
  • अभ्यास में उन्नत लड़ाकू विमान, चिनूक एवं उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर (रुद्र) जैसे हेलीकॉप्टर, M777 अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर तोपों के साथ शामिल होंगे।
  • महत्त्व 
    • रणनीतिक निवारक क्षमताओं का निर्माण: इस अभ्यास का उद्देश्य भूमि, वायु एवं समुद्र में निर्बाध, बहु-डोमेन संचालन को निष्पादित करके पूर्वी क्षेत्र में भारत की रणनीतिक निवारक क्षमताओं को सुदृढ़ करना है।
    • नवोन्मेषी प्रौद्योगिकियों का एकीकरण: सटीक हमलों एवं परिचालन लचीलेपन की अनुमति देने वाली स्थितिजन्य जागरूकता बढ़ाने के लिए स्वार्म ड्रोन तथा लोइटरिंग म्यूनिशन जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के साथ संचालन।
    • कॉमन ऑपरेटिंग पिक्चर (Common Operating Picture- COP): इसका उद्देश्य तीनों सेनाओं के बीच समन्वय को अनुकूलित करने के लिए संयुक्त नियंत्रण संरचनाओं के माध्यम से एक कॉमन ऑपरेटिंग पिक्चर (COP) विकसित करना है।
    • अनुकूलन: सेनाओं को अधिक सटीकता और समन्वय के साथ कार्य करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे संयुक्त सेनाएँ युद्ध की बदलती प्रकृति के प्रति अधिक अनुकूलनशील बन जाती हैं।

अफ्रीकी हाथी

37 देशों (1964-2016) में 475 स्थलों पर अफ्रीकी हाथियों पर किए गए एक व्यापक अध्ययन से पता चला है कि सवाना हाथियों की संख्या में 70% और वन हाथियों की संख्या में 90% की कमी आई है, जिसका मुख्य कारण अवैध शिकार और आवास का ह्रास है।

  • सर्वेक्षण स्थलों पर कुल आबादी में औसतन 77% की गिरावट आई है।

‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ पत्रिका में प्रकाशित शोध के मुख्य निष्कर्ष 

  • मुख्य खतरे
    • अवैध शिकार: हाथीदाँत के लिए, हाथियों के शिकार ने इनकी आबादी को अधिक प्रभावित किया है।
    • पर्यावास हानि: कृषि विस्तार पर्यावास हानि का शीर्ष कारक है।
  • जनसंख्या रुझान में क्षेत्रीय भिन्नताएँ 
    • उत्तरी अफ्रीका: विशेष रूप से साहेल क्षेत्र को सबसे अधिक नुकसान का सामना करना पड़ा, माली, चाड एवं नाइजीरिया में आबादी नष्ट हो गई।
    • दक्षिणी अफ्रीका: प्रभावी संरक्षण उपायों के कारण विशेष रूप से बोत्सवाना, जिम्बाब्वे एवं नामीबिया में सर्वेक्षण किए गए 42% स्थलों पर सकारात्मक वृद्धि के रुझान दिखे है।
  • अनुमानित आबादी: संरक्षणवादियों का अनुमान है कि वर्ष 2016 तक 4,15,000 से 5,40,000 अफ्रीकी हाथी बचे थे।

अफ्रीकी हाथी के बारे में 

  • सबसे बड़ा स्थलीय स्तनपायी: अफ्रीकी हाथी पृथ्वी पर सबसे बड़े स्थलीय जानवर हैं, जिनकी दो मुख्य उप-प्रजातियाँ हैं: सवाना हाथी और वन हाथी।
  • सवाना एवं वन हाथी के बीच अंतर:
    • सवाना हाथी बड़े होते हैं, उनके दाँत बाहर की ओर मुड़े होते हैं।
    • वन हाथी छोटे, गहरे रंग के एवं सीधे दाँत वाले होते हैं, जो नीचे की ओर निर्देशित होते हैं।
  • अफ्रीकी हाथियों की प्रमुख विशेषताएँ 
    • सूंड: अफ्रीकी हाथियों की सूंड की नोक पर दो “उंगलियाँ” होती हैं, जो वस्तुओं को पकड़ने की उनकी क्षमता को बढ़ाती हैं।
    • त्वचा की बनावट: झुर्रियों वाली त्वचा जो जल संरक्षित रखती है, गर्म, शुष्क जलवायु के लिए अनुकूलित होती है।
    • सामाजिक संरचना: एक मातृसत्ता के नेतृत्व में करीबी पारिवारिक इकाइयाँ
    • संचार: लंबी दूरी के संचार के लिए इन्फ्रासोनिक कॉल का उपयोग करते हैं, जो  स्वरों की एक शृंखला है।
    • एलोमदरिंग: यह एक देखभाल करने वाला व्यवहार है, जहाँ युवा मादा हाथी बच्चे को पालने में माँ की सहायता करती हैं।
  • जीवनकाल एवं प्रजनन
    • जीवन काल: 60 से 70 वर्ष
    • गर्भाधान अवधि: लगभग 22 महीने
  • पर्यावास: सवाना घास के मैदान तथा शुष्क रेगिस्तान
  • वर्ष 2021 तक IUCN की रेड लिस्ट में स्थिति 
    • सवाना हाथी: लुप्तप्राय
    • वन हाथी: गंभीर रूप से संकटग्रस्त
  • हाथियों का पारिस्थितिकी महत्त्व
    • पारिस्थितिकी तंत्र इंजीनियर: हाथी बीज फैलाकर एवं वन पुनर्जनन में सहायता करके आवास बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • वे वन एवं घास के मैदानों को संतुलित करके एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी भूमिका निभाते हैं।
    • कार्बन चक्र एवं जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव: वन हाथी तेजी से बढ़ने वाले झाड़ियों को खाते हैं, जिससे वन की सतह पतली हो जाता है एवं बड़े, कार्बन-भंडारण करने वाले पेड़ों के विकास को बढ़ावा मिलता है।
      • उनकी गतिविधियाँ कार्बन भंडारण के लिए वर्षावन की क्षमता को बढ़ाती है, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायता मिलती है।

वैज्ञानिक रूप से मान्य पारंपरिक ज्ञान (SVASTIK)

CISR-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान (National Institute of Science Communication and Policy Research- NIScPR) तथा गुरुग्राम विश्वविद्यालय ने संयुक्त रूप से पारंपरिक ज्ञान के संचार एवं प्रसार पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (Communication and Dissemination of Traditional Knowledge- CDTK-2024) का उद्घाटन किया है।

  • सम्मेलन का उद्देश्य वैज्ञानिक सत्यापन के माध्यम से पारंपरिक ज्ञान को उजागर करना है।

SVASTIK के बारे में 

  • यह भारत से समाज तक वैज्ञानिक रूप से मान्य पारंपरिक ज्ञान को बढ़ावा देने एवं संचार करने की एक राष्ट्रीय पहल है।
  • नोडल निकाय: CSIR-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान (CSIR-NIScPR) को इस राष्ट्रीय पहल को लागू करने के लिए नोडल संगठन के रूप में नियुक्त किया गया है।
  • ज्ञान का प्रसार: इस पहल के एक भाग के रूप में, पारंपरिक ज्ञान पर सरलीकृत रचनात्मक सामग्री को सोशल मीडिया के माध्यम से 17 भारतीय भाषाओं में डिजिटल प्लेटफॉर्मों के माध्यम से प्रसारित किया जा रहा है।

CSIR-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान (NIScPR) के बारे में 

  • CSIR-NIScPR वर्ष 2021 में अस्तित्व में आया।
  • यह विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार (Science, Technology, and Innovation- STI) नीति अनुसंधान एवं संचार के लिए एक थिंक टैंक तथा संसाधन केंद्र के रूप में कार्य करता है।

BRICS ने तुर्किए को साझेदार का दर्जा देने की पेशकश की

तुर्किए के वाणिज्य मंत्री ने हाल ही में एक साक्षात्कार में BRICS द्वारा भागीदार देश का दर्जा दिए जाने की पुष्टि की है।

BRICS द्वारा ‘साझेदार देश का दर्जा’

  • इस श्रेणी को ब्रिक्स सदस्यों द्वारा 16वें BRICS शिखर सम्मेलन में “कजान घोषणा” द्वारा पेश किया गया था।
  • यह स्थिति BRICS के संगठनात्मक ढाँचे में परिवर्तन प्रक्रिया है, जो ब्लॉक के भविष्य के विस्तार का मार्गदर्शन करेगी।
  • भागीदार देशों को आमंत्रित किया गया: ब्रिक्स द्वारा “साझेदार राज्यों” की श्रेणी में 13 देशों को आमंत्रित किया गया था, जिनमें शामिल हैं,
  • तुर्की, इंडोनेशिया, अल्जीरिया, बेलारूस, क्यूबा, ​​बोलीविया, मलेशिया, उज्बेकिस्तान, कजाखस्तान, थाईलैंड, वियतनाम, नाइजीरिया एवं युगांडा। 

BRICS के बारे में

  • BRICS एक संक्षिप्त नाम है, जो दुनिया की पाँच प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन एवं दक्षिण अफ्रीका का प्रतिनिधित्व करता है। 
  • प्रतिपादन: BRIC शब्द पहली बार वर्ष 2001 में ब्रिटिश अर्थशास्त्री जिम ओ’नील द्वारा ब्राजील, रूस, भारत एवं चीन की अर्थव्यवस्थाओं का वर्णन करने के लिए प्रतिपादित किया गया था।
  • शिखर सम्मेलन: समूह को वर्ष 2006 में BRIC विदेश मंत्रियों की बैठक में औपचारिक रूप दिया गया था। 
  • रूस ने जून 2009 में येकातेरिनबर्ग, में पहले आधिकारिक BRIC शिखर सम्मेलन की मेजबानी की
  • सदस्यता: BRICS, 9 सदस्यों का एक समूह है, जिसमें मूल 4 देश  (ब्राजील, रूस, भारत, चीन) एवं दक्षिण अफ्रीका (2010), ईरान, मिस्र, इथियोपिया तथा संयुक्त अरब अमीरात (2024) शामिल हैं।
  • आर्थिक प्रतिनिधित्व: विस्तारित समूह के साथ, BRICS दुनिया की 45% आबादी एवं 28.5 ट्रिलियन डॉलर (वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 28%) मूल्य की अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करेगा।

दक्षिण एशियाई दूरसंचार नियामक परिषद (SATRC-25) की 25वीं बैठक

दक्षिण एशियाई दूरसंचार नियामक परिषद (South Asian Telecommunication Regulators’ Council- SATRC-25) की 25वीं बैठक 11-13 नवंबर, 2024 को नई दिल्ली, भारत में संपन्न हुई। 

मुख्य तथ्य

  • मेजबानी: भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) ने एशिया-प्रशांत दूरसंचार (Asia-Pacific Telecommunity- APT) के साथ साझेदारी में संपन्न हुई।
  • कार्रवाई के लिए आह्वान: बैठक SATRC नियामकों से सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान करने एवं उभरती प्रौद्योगिकियों में चुनौतियों का समाधान करने के लिए सहयोग करने के लिए एक एकीकृत आह्वान के साथ संपन्न हुई।

SATRC के बारे में

  • यह एशिया-प्रशांत दूरसंचार (APT) के तहत एक पहल है। 
  • गठन: एशिया एवं प्रशांत के लिए APT और ITU क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा वर्ष 1997 में स्थापित किया गया।
  • मिशन: यह दक्षिण एशिया के दूरसंचार क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग एवं सामंजस्यपूर्ण नियमों को बढ़ावा देता है।
  • सदस्य देश: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, ईरान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान एवं श्रीलंका।
  • फोकस क्षेत्र: डिजिटल समावेशन, नियामक नवाचार, नीति संरेखण, एवं दक्षिण एशिया में डिजिटल डिवाइड को कम करना।

मुख्य उद्देश्य एवं विषय-वस्तु

  • थीम: “विकास एवं समावेशन के लिए दूरसंचार तथा ICT विकास में तेजी लाना,” 
    • इसकी चर्चा दक्षिण एशिया में आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति का समर्थन करने के लिए डिजिटल परिवर्तन पर केंद्रित थी।
  • प्राथमिक लक्ष्य: सहयोग को मजबूत करना, नियामक चुनौतियों का समाधान करना एवं पूरे दक्षिण एशिया में एक समावेशी डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना।

एशिया-प्रशांत दूरसंचार समुदाय के बारे में 

  • यह एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है।
  • गठन:  वर्ष 1979
  • मुख्यालय: बैंकॉक, थाईलैंड।
  • द्वारा स्थापित: एशिया प्रशांत दूरसंचार का संविधान नामक एक अंतरराष्ट्रीय संधि। 
  • मिशन: यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों के विकास को बढ़ावा देता है।

‘क्रिनम एंड्रिकम’

हाल ही में वनस्पतिशास्त्रियों ने आंध्र प्रदेश के पूर्वी घाट क्षेत्र में क्रिनम एंड्रीकम नामक फूल वाले पौधे की एक नई प्रजाति की खोज की है।

मुख्य तथ्य 

  • अवस्थिति: सप्परला हिल्स (Sapparla Hills), अल्लूरी सीतारमा राजू जिला, आंध्र प्रदेश में 1,141 मीटर की ऊँचाई पर देखा गया।

क्रिनम एंड्रीकम के बारे में

  • यह वैक्सी व्हाइट फूल है, जो अप्रैल से जून तक खिलता है।
  • तना एवं पत्तियाँ
    • ऊँचे तने पर उगता है, एवं 100 सेमी. तक पहुँचता है।
    • पत्तियाँ बड़ी, अंडाकार, चिकने एवं पूरे किनारों वाली होती हैं, जो इसके विशिष्ट रूप को जोड़ती हैं।
  • पर्यावास: पूर्वी घाट की विशिष्ट सूखी, चट्टानी दरारों के लिए अनुकूलित।

प्रमुख  विशेषताएँ एवं वर्गीकरण

  • फैमिली एवं जीनस: क्रिनम जीनस के तहत, अमेरीलिडेसी फैमिली का हिस्सा।
  • विशिष्ट लक्षण
    • चौड़े, तिरछे पेरियनथ लोब (फूल के बाहरी हिस्से)।
    • गुच्छेदार फूल, प्रति समूह 12 से 38 फूल तक।
    • डंठल वाले फूल (डंठल जैसी संरचना), जो इसे समान प्रजातियों के बीच अद्वितीय बनाते हैं।
  • नामकरण एवं स्थानिकवाद
    • नाम की उत्पत्ति: इसकी खोज के राज्य आंध्र प्रदेश के सम्मान में इसका नाम क्रिनम एंड्रीकम रखा गया है।
      • स्थानिक प्रकृति: इस वृद्धि से भारत में कुल क्रिनम प्रजातियाँ 16 हो गई हैं, जिनमें से कई प्रजातियाँ इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय हैं।
  • संरक्षण की स्थिति एवं खतरे
    • वर्तमान वितरण: सप्परला हिल्स तक सीमित, लगभग 1,000 परिपक्व पौधे देखे गए हैं।
    • खतरे: पर्यटन, वनाग्नि एवं चराई जैसी मानवीय गतिविधियों से संभावित जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
    • संरक्षण स्थिति: इसके सीमित वितरण एवं पर्यावरणीय खतरों के कारण IUCN दिशा-निर्देशों के तहत अस्थायी रूप से ‘डेटा की कमी’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • संरक्षण: भविष्य में अध्ययन के लिए भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के केंद्रीय राष्ट्रीय हरबेरियम एवं डेक्कन क्षेत्रीय केंद्र में संरक्षित किया गया।

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