हाल ही में ‘ब्रेन रोट’ (Brain Rot) नामक एक शब्द को अब आधिकारिक तौर पर वर्ष 2024 के लिए ‘ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द ईयर’ के रूप में मान्यता दी गई है।
ब्रेन रोट (Brain Rot) क्या है?
यह तुच्छ या चुनौतीपूर्ण ऑनलाइन सामग्री के अत्यधिक उपभोग के कारण होने वाली मानसिक या बौद्धिक क्षमताओं में गिरावट को संदर्भित करता है।
उत्पत्ति: इस शब्द का प्रयोग पहली बार वर्ष 1854 में ‘हेनरी डेविड थोरो’ (Henry David Thoreau) द्वारा किया गया था।
आधुनिक उपयोग: सोशल मीडिया एवं ऑनलाइन संस्कृति के नकारात्मक प्रभाव का वर्णन करने के लिए इसने हाल के वर्षों में, विशेष रूप से युवा पीढ़ियों के बीच लोकप्रियता हासिल की है।
मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: इसने मानसिक स्वास्थ्य पर अत्यधिक सोशल मीडिया के उपयोग के संभावित नुकसान के बारे में चर्चा शुरू कर दी है।
महत्त्व
डिजिटल युग की घटना: यह भाषा एवं समाज पर डिजिटल संस्कृति के प्रभाव पर प्रकाश डालती है।
आत्म-जागरूकता: युवा पीढ़ी सोशल मीडिया के संभावित नकारात्मक पहलुओं को प्रतिबिंबित करने के लिए इस शब्द का उपयोग कर रही है।
सांस्कृतिक वार्तालाप: यह प्रौद्योगिकी, मानसिक स्वास्थ्य एवं ऑनलाइन संस्कृति के भविष्य के बारे में चल रही चर्चाओं में योगदान देता है।
सिंबैक्स अभ्यास
(CINBAX EXERCISE)
हाल ही में भारतीय सेना एवं कंबोडियन सेना के बीच एक संयुक्त टेबल-टॉप अभ्यास, अभ्यास सिंबैक्स (CINBAX) का पहला संस्करण आयोजित किया गया था।
अभ्यास सिंबैक्स (CINBAX) के बारे में
स्थान: विदेशी प्रशिक्षण नोड, पुणे, भारत में आयोजित किया गया।
उद्देश्य: आतंकवाद-रोधी (Counter-Terrorism- CT) अभियानों की योजना बनाना एवं उनका अनुकरण करना।
फोकस क्षेत्र
खुफिया, निगरानी एवं टोही के लिए एक संयुक्त प्रशिक्षण कार्य बल की स्थापना।
आतंकवाद-रोधी अभियानों के संचालन की योजना बनाना एवं आकस्मिकताओं पर चर्चा करना।
रामप्पा मंदिर (Ramappa Temple)
हाल ही में केंद्र सरकार ने रामप्पा क्षेत्र सतत् पर्यटन सर्किट को विकसित करने के लिए पूँजी निवेश के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को विशेष सहायता (Special Assistance to States/Union Territories for Capital Investment- SASCI) योजना के तहत ऋण को मंजूरी दी है।
रामप्पा मंदिर के बारे में
रामप्पा मंदिर, जिसे रुद्रेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भारत के तेलंगाना में अवस्थित है।
यह भगवान शिव को समर्पित है एवं इसका निर्माण 1213 ईसवी में काकतीय शासक काकती गणपति देव (Kakati Ganapathi Deva) के शासनकाल के दौरान किया गया था।
इसका निर्माण मुख्य सेनापति रूद्र समानी (Rudra Samani) की देखरेख में हुआ था।
इस मंदिर का नाम इसके मुख्य मूर्तिकार रामप्पा के नाम पर रखा गया है, जो इसे अद्वितीय बनाता है क्योंकि यह संभवतः भारत का एकमात्र मंदिर है, जिसका नाम इसके वास्तुकार के नाम पर रखा गया है।
यूनेस्को (UNESCO) के तहत मान्यता: वर्ष 2021 में, रामप्पा मंदिर को काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर, तेलंगाना के नाम से यूनेस्को (UNESCO) विश्व धरोहर स्थल के रूप में दर्ज किया गया था।
प्रमुख वास्तुशिल्प विशेषताएँ
यह काकतीय स्थापत्य शैली का एक प्रमुख उदाहरण है।
इस मंदिर की सबसे विशिष्ट विशेषताओं में से एक इसकी भूकंपरोधी वास्तुकला है।
गोपुरम (मंदिर टॉवर) के निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली ईंटें मिट्टी, बबूल की लकड़ी, भूसी एवं हरड़ के फल के मिश्रण से बनाई गई हैं।
ये ईंटें हल्की हैं एवं जल पर तैर सकती हैं, जिससे मंदिर भूकंपीय गतिविधि के प्रति लचीला हो जाता है।
इस मंदिर के निर्माण में सैंडबॉक्स तकनीक का उपयोग किया गया।
इस तकनीक में नींव के गड्ढे को रेत-चूना, गुड़ एवं काली हरड़ के मिश्रण से भर दिया जाता था।
यह मिश्रण भूकंप के दौरान एक कुशन के रूप में कार्य करता है, जिससे संरचनात्मक क्षति को रोका जा सकता है।
इस मंदिर में कई जटिल नक्काशीदार खंभे हैं, जो इस तरह से अवस्थित हैं कि वे सूर्य की प्रकाश के साथ संरेखित होते हैं।
इनमें से एक स्तंभ पर भगवान कृष्ण की नक्काशी है एवं जब इस स्तंभ पर धीरे से चोट की जाती है तो इससे संगीतमय स्वर उत्पन्न होता है।
सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्त्व: रामप्पा मंदिर मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है एवं स्थानीय रूप से इसे श्री रुद्रेश्वर स्वामी मंदिर के रूप में जाना जाता है।
मंदिर त्रिकुटलायम (तीन देवताओं) संरचना का अनुसरण करता है, क्योंकि इसमें भगवान शिव, भगवान विष्णु एवं भगवान सूर्य की मूर्तियाँ हैं।
एक्सिओम मिशन 4 (Ax-4)
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि जिन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station- ISS) के आगामी एक्सिओम-4 मिशन के लिए चुना गया है, उन्होंने प्रशिक्षण का प्रारंभिक चरण पूरा कर लिया है।
एक्सिओम-4 मिशन (Ax-4) के बारे में
एक्सिओम-4 मिशन (Ax-4) अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए एक निजी अंतरिक्ष उड़ान है, जो भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच अंतरिक्ष सहयोग में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
यह एक्सिओम मिशन 1, एक्सिओम मिशन 2 एवं एक्सिओम मिशन 3 के बाद एक्सिओम स्पेस की चौथी उड़ान होगी।
यह मिशन नासा (NASA) के सहयोग से निजी तौर पर वित्तपोषित अमेरिकी अंतरिक्ष अवसंरचना डेवलपर एक्सिओम स्पेस द्वारा संचालित है।
मिशन के उद्देश्य:लो अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit- LEO) में एक स्थायी मानव उपस्थिति स्थापित करना तथा 14 दिनों के लिए ISS के साथ जुड़ना।
अंतरिक्ष यान: मिशन स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन अंतरिक्ष यान का उपयोग करेगा।
भारतीय अंतरिक्ष यात्री: दो भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों, ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एवं ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालाकृष्णन नायर को मिशन के लिए चुना गया था।
उन्होंने अगस्त 2024 में अमेरिका में प्रशिक्षण शुरू किया। शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले दूसरे भारतीय होंगे।
अजमेर शरीफ, ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती एवं शाही जामा मस्जिद
हाल ही में अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के सर्वेक्षण का अनुरोध करते हुए न्यायालयों में याचिकाएँ दायर की गई हैं, इस दावे के आधार पर कि इसका निर्माण हिंदू एवं जैन मंदिरों को ध्वस्त करके किया गया था।
इसी तरह की याचिकाएँ उत्तर प्रदेश के संभल में शाही जामा मस्जिद के संबंध में भी दायर की गई हैं, जिसमें आरोप लगाया गया है कि इसे प्राचीन हरि हर मंदिर की जगह पर बनाया गया था।
अजमेर शरीफ के बारे में
सबसे पवित्र तीर्थस्थल: अजमेर शरीफ दरगाह भारत के सबसे पवित्र मुस्लिम तीर्थस्थलों में से एक है, जो राजस्थान के अजमेर में अवस्थित है।
यह फारस के सूफी संत ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती (Khwaja Moin-ud-din Chishti) को समर्पित है।
निर्माण: इस दरगाह का निर्माण मुगल सम्राट हुमायूँ ने ख्वाजा चिश्ती के निधन के बाद उनके सम्मान में कराया था।
योगदान
बुलंद दरवाजा निर्माण (1460 ई.): सुल्तान महमूद खान खिलजी एवं उनके बेटे गियासुद्दीन ने दरगाह के विशाल उत्तरी प्रवेश द्वार बुलंद दरवाजा का निर्माण कराया।
सफेद संगमरमर का गुंबद (1532 ईसवी): अजमेर दरगाह का वर्तमान सफेद संगमरमर का गुंबद मुगल सम्राट हुमायूँ के शासनकाल के दौरान 1532 ईसवी में बनाया गया था।
अकबर के अधीन विस्तार: दरगाह का प्रमुख विस्तार सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान हुआ।
चिश्ती संप्रदाय के कट्टर अनुयायी अकबर ने 1579 ईसवी तक 14 बार दरगाह का दौरा किया।
1570 के दशक की शुरुआत में, अकबर ने मंदिर के दक्षिणी प्रवेश द्वार के पश्चिम में अकबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था।
जहाँगीर की सोने की रेलिंग (1616 ई.): 1616 ई. में, जहाँगीर ने ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती की कब्र के चारों ओर जाली के साथ एक सोने की रेलिंग के निर्माण का आदेश दिया, जिससे मंदिर की वास्तुकला की भव्यता बढ़ गई।
शाहजहाँ का योगदान: सम्राट शाहजहाँ ने दरगाह परिसर के भीतर मस्जिदों के निर्माण में योगदान दिया।
ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती के बारे में
अजमेर में आगमन: ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती, जिन्हें कुछ लोग पैगंबर मुहम्मद का वंशज मानते हैं, 1192 ईसवी में लाहौर के रास्ते अजमेर पहुँचे एवं वहीं बस गए, जहाँ वह अपनी मृत्यु (1236 ईसवी) तक रहे।
मुहम्मद गोरी का भारत पर आक्रमण: वह मुहम्मद गोरी द्वारा भारत पर आक्रमण के दौरान भारत आए थे।
पहला अनुयायी: मोइन-उद-दीन ने कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को अपना पहला अनुयायी स्वीकार किया।
चिश्ती सिलसिला: ऐसा माना जाता है कि उन्होंने भारत में चिश्ती सिलसिले की शुरुआत की एवं स्थापना की।
मान्यताएँ: ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती की मुख्य मान्यताएँ अल्लाह के साथ एकीकरण करना, ईश्वर के प्रति समर्पण, पवित्र जीवन जीना, सरल भाषा का उपयोग, विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच सहिष्णुता, असहाय एवं गरीबों के लिए दया एवं दान देना था।
शाही जामा मस्जिद, संभल, उत्तर प्रदेश के बारे में
संरक्षित स्मारक की स्थिति: जामा मस्जिद ‘एक संरक्षित स्मारक है’, जिसे 22 दिसंबर, 1920 को प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 की धारा 3, उप-धारा (3) के तहत अधिसूचित किया गया था।
राष्ट्रीय महत्त्व: इसे ‘राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक’ घोषित किया गया है एवं भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) की वेबसाइट पर इसे केंद्रीय संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल किया गया है।
ऐतिहासिक महत्त्व: यह मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल के दौरान पानीपत एवं अयोध्या में बनी तीन प्रमुख मस्जिदों में से एक है।
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