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नीति आयोग रिपोर्ट: भारत में EV

Lokesh Pal August 06, 2025 06:19 20 0

संदर्भ

हाल ही में नीति आयोग ने देश में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में बदलाव को गति देने के लिए अनलॉकिंग ए $200 बिलियन ऑपर्च्युनिटी: इलेक्ट्रिक व्हीकल्स इन इंडिया’ नामक रिपोर्ट जारी की।

संबंधित तथ्य

  • केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय ने भारत में इलेक्ट्रिक यात्री कारों के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना’ (Scheme to Promote Manufacturing of Electric Passenger Cars in India- SPMEPCI) के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ

  • EV  के लिए लक्ष्य: भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 30% EV की बिक्री करना है, जो वर्ष 2024 में बेची गई 2.08 मिलियन इकाइयों से अधिक है।
    • यह ईंधन की बचत और आयात पर निर्भरता में कमी, रोजगार सृजन तथा उत्सर्जन में कटौती के माध्यम से 200 बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान कर सकता है।
  • वैश्विक तुलना: भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का चलन बढ़ रहा है, लेकिन यह अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन जैसे प्रमुख बाजारों से पीछे है।
  • खंडवार प्रगति: इलेक्ट्रिक दोपहिया और तिपहिया वाहनों में उल्लेखनीय वृद्धि, इलेक्ट्रिक बसों में मध्यम प्रगति, इलेक्ट्रिक कारों की धीमी लोकप्रियता और लंबी दूरी के इलेक्ट्रिक ट्रकों की नगण्य उपस्थिति।
  • वर्तमान पहुँच: वर्ष 2024 में कुल वाहन बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी 7.6% रही, जो क्रमिक वृद्धि को दर्शाता है, लेकिन अभी भी वांछित गति से बहुत दूर है।
    • भारत को इस सीमा तक पहुँचने में लगभग 10 वर्ष लगे हैं।
  • बाधाएँ: धीमी प्रारंभिक स्वीकृति और बुनियादी ढाँचे की कमी, और पहुँच बढ़ाने के लिए रणनीतिक अनलॉक का प्रस्ताव।
  • भविष्य की आवश्यकता: वर्ष 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक वाहन बिक्री लक्ष्य को पूरा करने के लिए, भारत को अगले पाँच वर्षों में स्वीकृति दर में 22% से अधिक की वृद्धि करनी होगी।

EV के अनुकूलन में चुनौतियाँ

  • भारी EV  के लिए वित्तपोषण संबंधी बाधाएँ: उच्च लागत (ICE  वाहनों की तुलना में दो या तीन गुना अधिक) और विखंडित स्वामित्व (80% ट्रक मालिक और अधिकांश बस ऑपरेटर छोटे हैं) EMI और डेटा अनिश्चितताओं के कारण इलेक्ट्रिक बसों और ट्रकों के लिए वित्तपोषण में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमियाँ: सार्वजनिक चार्जिंग का अनुचित उपयोग, भूमि और बिजली आपूर्ति की बाधाओं और उच्च लागत (18% GST) का सामना करना पड़ता है, जो DISCOM, ULB और परिवहन एजेंसियों के बीच कमजोर समन्वय से और भी जटिल हो जाती है।
  • जागरूकता और धारणा संबंधी बाधाएँ: गलत धारणाएँ (अग्नि सुरक्षा, रेंज की चिंता) और अनियोजित जागरूकता अभियान कुल स्वामित्व लागत के लाभों को अस्पष्ट करते हैं, जिससे लागत के प्रति जागरूक भारतीय खरीदारों के बीच EV अपनाने में बाधा आती है।
  • डेटा और नियामक कमियाँ: वाहन का गलत EV वर्गीकरण और बैटरी ID का अभाव, नीति निर्माण, पुनर्चक्रण और जीवनचक्र निगरानी में बाधा डालता है, जिससे साक्ष्य-आधारित योजना कमजोर होती है।
  • भारतीय बाजार की जटिलता: 75% दोपहिया वाहनों, 98% छोटे/सार्वजनिक वाहनों और 15% यात्राओं की 10 किमी. से अधिक दूरी के साथ, EV रणनीतियों को भारत के विशिष्ट गतिशीलता पैटर्न और सामर्थ्य संबंधी चुनौतियों को प्रतिबिंबित करना चाहिए।

चुनौतियों पर नियंत्रण पाने के लिए सिफारिशें

  • प्रोत्साहन से अधिदेश की ओर बदलाव: शून्य उत्सर्जन वाहन (Zero Emission Vehicle- ZEV) समय-सीमा की घोषणा करना, कॉरपोरेट औसत ईंधन दक्षता (Corporate Average Fuel Efficiency – CAFÉ) मानदंडों का विस्तार करना और उत्तरोत्तर कड़े नियमों के माध्यम से आंतरिक दहन इंजन (Internal Combustion Engine- ICE) वाहनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना।

कैफे मानदंड

  • ऐसे नियम, जो कार निर्माताओं को यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करते हैं कि किसी वित्तीय वर्ष में बेचे गए उनके नए वाहनों का पूरा बेड़ा एक विशिष्ट औसत ईंधन दक्षता को पूरा करता है तथा इसके विस्तार से, अधिकतम औसत कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन लक्ष्य को भी पूरा करता है।
    • विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE), कैफे मानदंडों के कार्यान्वयन और निगरानी के लिए नोडल एजेंसी है।
    • कैफे I (2017-22): CO₂ लक्ष्य – 130 ग्राम/किमी.।
    • कैफे II (2022- आगे): कठोर लक्ष्य – 113 ग्राम/किमी. (13% कटौती)।
    • कैफे III और IV (प्रस्तावित): सरकार ने भविष्य में और भी कठोर चरणों का प्रस्ताव दिया है, जिसमें कैफे III के लिए लगभग 91.7 ग्राम/किमी. का लक्ष्य रखा गया है, जिसे वर्षं 2027 से लागू किया जाएगा।

कैफे मानदंड बनाम भारत स्टेज (BS) मानदंड

  • फोकस: कैफे मानदंड CO₂ उत्सर्जन (जलवायु परिवर्तन) को नियंत्रित करते हैं, जबकि BS मानदंड NOx, CO, PM और अन्य प्रदूषकों (स्थानीय वायु गुणवत्ता) को नियंत्रित करते हैं।
  • कार्यक्षेत्र: कैफे मानदंड किसी निर्माता की कुल बिक्री के बेड़े-व्यापी औसत पर लागू होते हैं, जबकि BS मानदंड प्रत्येक वाहन मॉडल पर लागू होते हैं।
  • उद्देश्य: कैफे मानदंडों का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैसों को कम करना और ईंधन अर्थव्यवस्था में सुधार करना है, जबकि BS मानदंडों का उद्देश्य हानिकारक प्रदूषकों को कम करना और स्थानीय वायु गुणवत्ता में सुधार करना है।

माँग पक्ष प्रोत्साहन

  • वाहन खरीद सब्सिडी
  • इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए कम पंजीकरण शुल्क
  • इलेक्ट्रिक वाहनों पर कम जीएसटी
  • बिजली शुल्क में कमी
माँग पक्ष अधिदेश

  • बेड़े का एक निश्चित हिस्सा शून्य उत्सर्जन वाले वाहनों का होगा।
  • कड़े वाहन उत्सर्जन मानक
  • ICE के लिए उच्च पंजीकरण शुल्क
  • ICE ईंधन पर उच्च कर
आपूर्ति पक्ष प्रोत्साहन

  • उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन
  • प्रमुख घटकों पर कम आयात शुल्क
  • मूल्यह्रास की बढ़ी हुई दरें
आपूर्ति पक्ष अधिदेश

  • उत्पादन का एक निश्चित हिस्सा ZEVS का होगा।
  • सभी निर्मित वाहनों के लिए कड़े उत्सर्जन मानक निर्धारित करना।
  • ICE वाहनों के लिए उच्च इनपुट मूल्य

  • प्रचुरता-आधारित इलेक्ट्रिक वाहन परिनियोजन (Saturation-Based EV Deployment): उदाहरण के लिए, 5 शहरों को 100% ई-बसों, ई-पैराट्रांजिट और ई-फ्रेट वाहनों से युक्त करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू करना, और गहन रूप से अपनाने के लिए इसे 100 शहरों तक बढ़ाना।
    • वर्ष 2009 में शुरू किए गए चीन के ‘10 शहर, 1000 वाहन’ कार्यक्रम का लक्ष्य प्रति शहर 1,000 नए ऊर्जा वाहन संचालित करना था, जिसमें बसों, टैक्सियों और सरकारी वाहनों के बेड़े पर सब्सिडी और स्थानीय नीतियों के साथ ध्यान केंद्रित किया गया था।
    • इसे 25 से अधिक शहरों तक विस्तारित किया गया, जिससे घरेलू विनिर्माण, उन्नत बैटरी तकनीक को बढ़ावा मिला, चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण हुआ और चीन के वैश्विक इलेक्ट्रिक वाहन नेतृत्व की नींव रखी गई।
  • भारी इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए किफायती वित्तपोषण: ई-बसों और ई-ट्रकों के लिए कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करने हेतु सार्वजनिक और बहुपक्षीय योगदानों से एक मिश्रित निधि का निर्माण करना, जिससे छोटे ऑपरेटरों की पूँजीगत लागत कम हो।
  • रणनीतिक अवसंरचना और प्रौद्योगिकी प्रोत्साहन: बैटरी लीजिंग, एकीकृत EV ऐप और विशेष EV पॉवर लाइनों का विकास करना, साथ ही चार्जिंग केंद्रों के लिए 20 उच्च-घनत्व वाले गलियारों की पहचान करना।
  • जागरूकता और डेटा प्रणालियाँ: प्रदर्शन संबंधी भ्रांतियों को दूर करने और साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण का समर्थन करने के लिए राष्ट्रव्यापी जागरूकता कार्यक्रम और व्यापक इलेक्ट्रिक वाहनों डेटाबेस स्थापित करना।

PWOnlyIAS विशेष

भारत का ऑटोमोटिव क्षेत्र

  • वैश्विक स्थान: उत्पादन के मामले में भारत दुनिया भर में चौथा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार है और बिक्री के मामले में तीसरा सबसे बड़ा बाजार है।
  • आर्थिक योगदान: ऑटोमोटिव क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 7.1% का योगदान देता है और रोजगार एवं विनिर्माण का एक प्रमुख चालक है।
  • प्रमुख विकास चालक (सरकारी पहल)
    • ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स (PLI-ऑटो) के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना: इसका उद्देश्य उन्नत ऑटोमोटिव प्रौद्योगिकी (AAT) उत्पादों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है।
    • उन्नत रसायन सेल (PLI-ACC) के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना: इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए घरेलू बैटरी निर्माण को बढ़ावा देती है।
    • फेम (हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्रता से अपनाना और विनिर्माण) योजना: इलेक्ट्रिक वाहन खरीदारों और चार्जिंग बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती है।
    • इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम (EMPS) 2024: फेम II योजना समाप्त होने के बाद, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक दोपहिया और तिपहिया वाहनों के लिए इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए डिजाइन की गई एक नई योजना।

इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (2013): इलेक्ट्रिक वाहनों और हाइब्रिड तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक नीतिगत ढाँचे के रूप में कार्य करती है।
  • हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्रता से अपनाना और निर्माण (FAME I – 2015, FAME II – 2019): इलेक्ट्रिक वाहनों अपनाने में तेजी लाने के लिए माँग प्रोत्साहन और चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर सहायता प्रदान करती है।
  • राज्यों की इलेक्ट्रिक वाहन नीतियाँ (वर्ष 2017 से आगे): राज्य इलेक्ट्रिक वाहनों के स्थानीय विकास हेतु सब्सिडी, कर छूट और चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर सहायता प्रदान करते हैं।
    • उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र इलेक्ट्रिक वाहन नीति-2025 इलेक्ट्रिक दोपहिया, तिपहिया, निजी चार पहिया वाहनों और कुछ इलेक्ट्रिक बसों के आधार मूल्य पर 10% सब्सिडी प्रदान करती है।
  • PLI-ACC, 2021: आयात पर निर्भरता कम करने के लिए घरेलू बैटरी निर्माण को बढ़ावा देता है।
  • बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम (2022): इलेक्ट्रिक वाहन बैटरियों के सुरक्षित संग्रहण और पुनर्चक्रण के लिए उत्पादकों की जिम्मेदारी को बढ़ाता है।
    • इन नियमों में सभी तरह की बैटरियों जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी, पोर्टेबल बैटरी, ऑटोमोटिव बैटरी और औद्योगिक बैटरी को कवर किया गया है।

निष्कर्ष

भारत के EV परिवर्तन के लिए जनादेश, वित्तीय सहायता, बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा और जागरूकता की आवश्यकता है, चीन जैसे वैश्विक मॉडल से सीखना और वर्ष 2030 तक 30% EV बिक्री को पूरा करने तथा सतत्, सस्ती और प्रौद्योगिकी-संचालित गतिशीलता प्राप्त करने के लिए भारतीय बाजार की जटिलता को संबोधित करना होगा।

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