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नीति आयोग का चर्चा पत्र: वर्ष 2005-06 से भारत में बहुआयामी गरीबी (NITI Aayog’s Discussion Paper: Multidimensional Poverty in India since 2005-06)

Samsul Ansari January 17, 2024 02:41 434 0

संदर्भ

नीति आयोग द्वारा जारी ‘चर्चा पत्र: वर्ष 2005-06 से भारत में बहुआयामी गरीबी’ के अनुसार, बहुआयामी गरीबी में रहने वाली भारत की आबादी का हिस्सा वर्ष 2013-14 में 29.17% से गिरकर वर्ष 2022-23 में 11.28% होने का अनुमान है।

मुख्य निष्कर्ष

  • गरीबी घटाना: नीति आयोग ने अनुमान लगाया है कि पिछले नौ वर्षों में कुल 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए हैं।
  • राज्यवार अनुमान: उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index- MPI) के आधार पर गरीब के रूप में वर्गीकृत लोगों की संख्या में सबसे तेज गिरावट दर्ज की गई।
    • उदाहरण के लिए, बिहार में वर्ष 2013-14 में MPI गरीबों की हिस्सेदारी 56.3 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 26.59 प्रतिशत हो गई।
  • पाॅवर्टी हेडकाउंट अनुपात: पाॅवर्टी हेडकाउंट अनुपात में गिरावट की गति वर्ष 2005-06 से वर्ष 2015-16 की अवधि (7.69% वार्षिक गिरावट दर) की तुलना में वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019-21 (10.66% वार्षिक गिरावट दर) के बीच बहुत तेज थी।
  • वंचन/गरीबी (Deprivation) की गंभीरता: यह व्यक्ति की औसत बहुआयामी गरीबी को मापता है जो वंचन/गरीबी से ग्रस्त है। वर्ष 2005-06 और वर्ष 2013-14 की तुलना में वर्ष 2015-16 और वर्ष 2019-21 के बीच वंचन/गरीबी में थोड़ी गिरावट आई है।
    • जीवन स्तर के मानक के अंतर्गत, वर्ष 2005-06 में वंचन/गरीबी का उच्चतम स्तर निम्न संकेतकों में भी देखा गया:-  
      • खाना पकाने हेतु ईंधन (74.40%)
      • स्वच्छता (70.92%) 
      • बैंक खातों (58.11%)
    • नवीनतम अनुमान बताते हैं कि खाना पकाने के ईंधन (43.90%) और आवास (41.37%) में सबसे अधिक वंचन जारी है, जबकि बैंक खाते (3.69%) जैसे संकेतक NFHS-5 (2019-21) के आधार पर निम्नतम वंचन स्तर बनाए रखते हैं।

  • प्रयुक्त डेटा: चर्चा पत्र, वर्ष 2015-16 और वर्ष 2019-21 में आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Surveys- NFHS) के आधार पर पहले जारी किए गए MPI डेटा का उपयोग करता है और दीर्घकालिक गरीबी प्रवृत्तियों को समझने के लिए वर्ष 2005-06 से NFHS-3 डेटा का भी उपयोग करता है।
    • इन तीन NFHS डेटासेट के आधार पर, नीति आयोग ने ऑक्सफोर्ड नीति और मानव विकास पहल (Oxford Policy and Human Development Initiative- OPHI) तथा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP) के तकनीकी इनपुट के साथ वर्ष 2013-14 और 2022-23 में MPI गरीबों की भागीदारी का अनुमान लगाया।

भारत में गरीबी अनुमान का विकास

  • वाई. के. अलघ समिति (1979): इसने पोषण संबंधी आवश्यकताओं और संबंधित उपभोग व्यय के आधार पर ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के लिए गरीबी रेखा का निर्धारण किया।
  • लकड़वाला समिति (1993): इसने सुझाव दिया कि उपभोग व्यय की गणना कैलोरी खपत के आधार पर की जानी चाहिए। राज्य-विशिष्ट गरीबी रेखाओं का निर्धारण किया जाना चाहिए।
  • सुरेश तेंदुलकर समिति (2009): भारत में गरीबी के वर्तमान आधिकारिक मानदंड तेंदुलकर समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा पर आधारित हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में 27.2 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 33.3 रुपये के दैनिक व्यय पर तय की गई है। कई लोगों द्वारा इसकी बहुत कम होने के कारण आलोचना की जाती है।
  • सी. रंगराजन समिति (2012-14): इस समिति ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए प्रतिदिन जीवन यापन करने की लागत को बढ़ाकर क्रमशः 32 रुपये और 47 रुपये कर दिया।

गरीबी (Poverty) के बारे में

  • गरीबी: विश्व बैंक के अनुसार, गरीबी का तात्पर्य खुशहाली से वंचित होना है और इसमें कई आयाम शामिल हैं।
    • इसमें कम आय और गरिमा के साथ जीवन यापन करने के लिए आवश्यक बुनियादी वस्तुओं एवं सेवाओं को प्राप्त करने में असमर्थता शामिल है।
    • अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा वर्तमान में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 2.15 डॉलर है।
  • गरीबी के अंतर्गत शामिल हैं-
    • स्वास्थ्य एवं शिक्षा का निम्न स्तर।
    • स्वच्छ जल और स्वच्छता तक पहुँच में कमी।
    • अपर्याप्त शारीरिक सुरक्षा।
    • नेतृत्व की कमी।
    • अपर्याप्त क्षमता।
    • जीवन को बेहतर बनाने के अवसर उपलब्ध न होना।

बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index) के बारे में

  • बहुआयामी गरीबी उपाय: यह शिक्षा और बुनियादी ढाँचे तक पहुँच तथा $2.15 अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा पर मौद्रिक हेडकाउंट अनुपात को शामिल करके मौद्रिक वंचन से परे गरीबी को समझने का प्रयास करता है।


  • वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Global Multidimensional Poverty Index- MPI): यह तीव्र बहुआयामी गरीबी का एक अंतरराष्ट्रीय उपाय है जो एक व्यक्ति को एक साथ सामना करने वाले स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में तीव्र अभावों को पकड़कर पारंपरिक मौद्रिक गरीबी उपायों को पूरा करता है।
  • नीति आयोग का राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: यह बारह संकेतकों का उपयोग करके गरीबी को मापता है और वंचन का आकलन करने के लिए केवल आय के स्तर पर निर्भर रहने के बजाय गरीबी को अधिक समग्र रूप से मापने का प्रयास करता है।
  • कार्यप्रणाली: MPI की वैश्विक कार्यप्रणाली मजबूत अल्किरे और फोस्टर (Alkire and Foster- AF) पद्धति पर आधारित है।
  • भारत में गरीबी: विश्व बैंक के अनुसार, भारत में प्रति दिन 2.15 अमेरिकी डॉलर [वर्ष 2017 की  क्रय शक्ति समता (PPP) पर आधारित] पर पावर्टी हेडकाउंट अनुपात वर्ष 2015 में 18.73% से घटकर वर्ष 2021 में 11.9% हो गया।
    • भारत की बहुआयामी गरीबी में गिरावट की जारी दर के साथ, वर्ष 2024-25 तक गरीबी के एकल-अंक स्तर तक पहुँचने की उम्मीद है।


MPI को पारंपरिक उपाय की तुलना में गरीबी का अनुमान लगाने के लिए एक बेहतर उपाय माना जाता है। मौद्रिक गरीबी के पारंपरिक उपाय कई सीमाओं से ग्रस्त हैं:-

  • व्यक्तियों का समग्र कल्याण सुनिश्चित करने के लिए आय पर्याप्त शर्त नहीं है, क्योंकि कुछ मामलों में आय उन वस्तुओं पर खर्च की जाती है, जिनमें परिवार का कल्याण शामिल नहीं होता है।
  • आय अनुमानों की अनुपलब्धता के कारण, मौद्रिक गरीबी उपाय अक्सर उपभोग व्यय पर निर्भर करते हैं। यह परिवार की आय का सटीक रूप से प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, विशेषकर जब उधार लिया गया धन उपभोग में योगदान देता है।
  • घरेलू कल्याण उसके स्वयं के खर्च और लोगों की भलाई के लिए सरकार के खर्च पर निर्भर करता है। मौद्रिक गरीबी माप में सब्सिडी वाले खाद्यान्न, आश्रय, स्वच्छता, मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य तथा पोषण संबंधी सहायता जैसे सरकार के हस्तक्षेप के प्रभाव को नजरअंदाज किया जाता है।

अल्किरे और फोस्टर (AAF) पद्धति

  • यह दोहरी कटऑफ गणना पद्धति के आधार पर लोगों को गरीब या गरीब नहीं के रूप में पहचानता है।
  • यह तीव्र गरीबी का आकलन करने के लिए तैयार किए गए सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत मैट्रिक्स के आधार पर लोगों को गरीब के रूप में पहचानता है, जो पारंपरिक मौद्रिक गरीबी उपायों के लिए एक पूरक परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है।

गरीबी कम करने के लिए सरकारी बहुआयामी दृष्टिकोण

  • भारत सरकार ने सभी आयामों में गरीबी को आधा करने के SDG-1.2 लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए लाखों व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए हैं।
  • अधिकार आधारित दृष्टिकोण: यह दृष्टिकोण इस विचार पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति के मौलिक मानवाधिकार हैं और गरीबी को इन अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है।
    • उदाहरण के लिए, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), ‘कार्य के अधिकार’ की गारंटी देता है और इसका लक्ष्य कम-से-कम 100 दिनों का वेतन रोजगार प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा बढ़ाना है।
  • उज्ज्वला योजना ने लगभग 31 करोड़ व्यक्तियों को स्वच्छ खाना पकाने का ईंधन प्रदान किया है और सौभाग्य जैसी पहल ने बिजली कवरेज में सुधार किया है, जिससे अतिरिक्त 2.86 करोड़ परिवारों को लाभ हुआ है।
  • स्वच्छ भारत मिशन (SBM) और जल जीवन मिशन (JJM) ने 14 करोड़ नल जल कनेक्शन प्रदान करके देश भर में बेहतर स्वच्छता सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं।
  • पीएम आवास योजना ने वंचितों के लिए सुरक्षित, संरक्षित और आरामदायक रहने की जगह तक पहुँच सुनिश्चित करते हुए 4 करोड़ से अधिक घरों के निर्माण की सुविधा प्रदान की।
  • कल्याणकारी दृष्टिकोण: मूल विचार गरीबी का सामना कर रहे व्यक्तियों या समुदायों को प्रत्यक्ष सहायता प्रदान करना है।
    • पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसी सरकारी पहलों ने वंचन/गरीबी को काफी हद तक कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) में 50 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले गए और इसने आबादी के एक महत्त्वपूर्ण वर्ग को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाने, सरकारी योजनाओं, बचत और ऋण तक कुशल पहुँच प्रदान करने में केंद्रीय भूमिका निभाई है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): यह आर्थिक रूप से वंचित आबादी को सब्सिडी वाले भोजन और आवश्यक वस्तुएँ प्रदान करने के लिए एक कल्याण-उन्मुख पहल है।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): कल्याण पर केंद्रित, यह मातृत्व लाभ कार्यक्रम गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान उनके स्वास्थ्य-संबंधी व्यवहार और पोषण में सुधार करने के लिए नकद प्रोत्साहन प्रदान करता है।
  • क्षमता संबंधी दृष्टिकोण: अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन द्वारा विकसित, क्षमता संबंधी दृष्टिकोण आय और भौतिक संपत्ति से ध्यान हटाकर व्यक्ति की उस जीवन को जीने की क्षमता पर केंद्रित करता है जिसे वे महत्त्व देते हैं।
    • कौशल भारत मिशन, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), जन शिक्षण संस्थान (JSS), राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्द्धन योजना (NAPS) और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITI) के माध्यम से शिल्पकार प्रशिक्षण योजना (CTS) आदि सरकार की पहल व्यक्ति की क्षमता में सुधार पर केंद्रित हैं।

चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं

  • नीति आयोग MPI के सामने आने वाली समस्याएँ: डेटा अंतराल, COVID-19 का प्रभाव, क्षेत्रीय असमानताएँ और सीमित विवरण MPI के लिए सटीक और समय पर गरीबी मूल्यांकन को प्रभावित करने वाली चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
    • उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय MPI सामाजिक बहिष्कार, भेदभाव, हिंसा, असुरक्षा और पर्यावरणीय गिरावट जैसे महत्त्वपूर्ण आयामों को बाहर करता है, जो संभावित रूप से गरीबों के जीवन की समग्र गुणवत्ता के मूल्यांकन से समझौता करता है।
  • MPI के साथ पद्धति संबंधी मुद्दे: मूल समस्या इसके विविध संकेतकों में निहित है, जिसमें इन आयामों को मापने, एकत्र करने और अद्यतन करने में कठिनाइयाँ शामिल हैं। विश्लेषक व्यापक समझ के लिए आय या उपभोग आधारित गरीबी आकलन के साथ-साथ गैर-आय संकेतकों के विश्लेषण का सुझाव देते हैं।
    • इसके अलावा, वर्ष 2011-12 के बाद उपभोक्ता व्यय पर आधिकारिक आँकड़ों की कमी सटीक गरीबी अनुमान के बारे में चिंता पैदा करती है।
  • गरीबी और असमानता में अंतर: पिछले तीन दशकों में गरीबी में गिरावट के साथ असमानता में तेजी से वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए भारत में आर्थिक असमानता सबसे बड़ी चुनौती है, जहाँ शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत हिस्सा है। इसकी तुलना में, नवीनतम विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, वर्ष 2021 में निचले स्तर के  50 प्रतिशत लोगों के पास आर्थिक संसाधनों की सिर्फ 13 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
  • अभाव की गंभीरता में गिरावट की धीमी दर: पिछले दशक की तुलना में हाल के वर्षों में वंचन/गरीबी  की गंभीरता में उसी दर से गिरावट नहीं आई है। इससे पता चलता है कि हालाँकि गरीब के रूप में वर्गीकृत लोगों की संख्या कम हो रही है लेकिन उन व्यक्तियों द्वारा अनुभव की गई गरीबी की गहनता उतनी तेजी से कम नहीं हुई है।
  • कोविड-19 प्रभाव का अधूरा प्रतिबिंब: वर्ष 2019 और 2021 के बीच एकत्र किया गया NHFS-5 डेटा, कोविड महामारी से पहले इकट्ठा किया गया था और नीति आयोग का यह चर्चा पत्र बताता है कि अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के पूर्ण प्रभाव को पूरी तरह से कैप्चर नहीं किया जा सका है। 
  • लगातार वंचन/गरीबी: कई सुधारों के बावजूद कुछ आयाम जैसे कि खाना पकाने के ईंधन और स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच, अभी भी वंचन/गरीबी के स्तर को दर्शाते हैं। इन विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करने और यह सुनिश्चित करने के प्रयास जारी रहने चाहिए कि समय के साथ सुधार कायम रहें।

अन्य चुनौतियाँ

  • क्षेत्रीय असमानताएँ: कई आर्थिक सुधारों के बावजूद उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों को अभी भी गरीबी कम करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • SDG लक्ष्य-1.2 की अधूरी उपलब्धि: हालाँकि भारत को SDG लक्ष्य-1.2 निर्धारित समय से पहले हासिल होने की संभावना है लेकिन गरीबी के आयामों का व्यापक रूप से आकलन करना महत्त्वपूर्ण है और इन सभी पहलुओं में गरीबी को संबोधित करना सतत विकास के लिए आवश्यक है।

आगे की राह

  • लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता: बैंक खातों तक पहुँच की कमी को मापने वाले संकेतक में सबसे तेज गिरावट देखी गई।
    • इससे पता चलता है कि वित्तीय समावेशन कार्यक्रम (पीएम जन-धन योजना) जैसे लक्षित हस्तक्षेप, गरीबी में कमी पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।
  • एकीकृत नीति दृष्टिकोण: गरीबी उन्मूलन नीतियों में अधिकार आधारित, कल्याण और क्षमता दृष्टिकोण के एकीकरण को मजबूत करना तथा व्यापक रणनीतियाँ विकसित करना, जो तत्काल जरूरतों को संबोधित करती हैं, मौलिक मानवाधिकारों का सम्मान करती हैं एवं पूर्ण जीवन जीने के लिए व्यक्तियों की क्षमताओं को बढ़ाती हैं।
    • आकांक्षी जिला कार्यक्रम के शुभारंभ के बाद से, योजना में शामिल सभी 112 अविकसित जिलों ने अपने प्रदर्शन में सुधार किया है।
  • यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI): अर्थशास्त्री भारत सहित विकासशील देशों में UBI की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं, जहाँ सभी नागरिकों, अमीर और गरीब, को नकद हस्तांतरण वितरित किया जाता है, जो लालफीताशाही को खत्म कर सकता है और गरीबी में कमी ला सकता है।
  • सफल पहलों को बनाए रखना और मजबूत करना: पोषण अभियान, पीएम आवास योजना और प्रधान मंत्री जन-धन योजना जैसी पहलों को पहचानना और बनाए रखना। इन कार्यक्रमों को उनके निरंतर प्रभाव को सुनिश्चित करने और विशेष रूप से खाना पकाने के ईंधन तथा स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच की कमी को दूर करने के लिए मजबूत करना।
  • क्षेत्रीय फोकस बढ़ाना: उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों के अनुरूप गरीबी उन्मूलन पहलों को तैयार करके क्षेत्रीय असमानताओं को संबोधित करना।
  • डेटा संग्रह तंत्र विकसित करना: गरीबी की गतिशीलता पर COVID-19 महामारी के प्रभाव को बेहतर ढंग से विश्लेषित करने के लिए निगरानी और डेटा संग्रह तंत्र विकसित करना। उभरते आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करने के लिए गरीबी मैट्रिक्स को नियमित रूप से अपडेट करें, यह सुनिश्चित करते हुए कि हस्तक्षेप उभरती चुनौतियों के प्रति उत्तरदायी हैं।

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