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‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ की समाप्ति

Lokesh Pal December 26, 2024 03:19 19 0

संदर्भ

हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने सभी सरकारी विद्यालयों में कक्षा 5 और 8 के छात्रों के लिए ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ (No-Detention Policy) को समाप्त कर दिया है।

संबंधित तथ्य

  • वर्ष 2019 में शिक्षा के अधिकार अधिनियम में संशोधन को मंजूरी मिलने के बाद नीति को समाप्त कर दिया गया था।
  • दिसंबर 2024 में आधिकारिक अधिसूचना जारी होने के बाद ही यह लागू हुआ।

नो-डिटेंशन पॉलिसी 

  • इसे शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया था। 
  • RTE अधिनियम की धारा 16 में यह प्रावधान है कि कक्षा 1-8 तक के किसी भी बच्चे को प्राथमिक शिक्षा पूरी होने तक स्कूल से रोका या निकाला नहीं जा सकता। 
  • प्राथमिक उद्देश्य: ड्रॉपआउट को कम करना, सीखना आनंददायक बनाना और छात्रों में असफलता के डर को दूर करना।

नीति को रद्द करने के कारण

  • सीखने के परिणाम: नीति के कारण छात्रों में जवाबदेही की कमी के कारण शैक्षणिक प्रदर्शन में गिरावट आई।
    • राज्यों में आधारभूत सीखने का स्तर खराब पाया गया।
  • उच्च असफलता दर: कई छात्र उच्च स्तर पर, विशेष रूप से कक्षा 10 और 12 में, कमजोर आधारभूत कौशल के कारण असफल हो गए।
    • वर्ष 2017 में प्रकाशित एक PRS रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि प्राथमिक से माध्यमिक शिक्षा में संक्रमण दर कम थी, जिसके परिणामस्वरूप विशेष रूप से कक्षा 10 में उच्च ड्रॉपआउट दर थी।
  • राज्य प्रतिक्रिया: 23 राज्यों ने सीखने की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव का हवाला देते हुए नीति में संशोधन का अनुरोध किया।
    • बिहार, राजस्थान और असम जैसे राज्यों ने नीति के कार्यान्वयन के बारे में चिंताओं को उजागर किया।
  • पंजाब द्वारा उठाई गई चिंताएँ: पंजाब सरकार ने वर्ष 2014 में ‘सीखने के परिणामों में भारी गिरावट’ का हवाला देते हुए ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ का विरोध किया।
    • ‘लर्निंग आउटकम इवैल्यूएशन सिस्टम’ (Learning Outcome Evaluation System-LOES) (2016): पंजाब ने RTE अधिनियम का पालन करते हुए कक्षा 5 और 8 के छात्रों के मूल्यांकन के लिए LOES की शुरुआत की।
      • इस प्रणाली ने छात्रों को परीक्षा देने की अनुमति दी, लेकिन उन्हें रोका नहीं; इसके बजाय, खराब प्रदर्शन वाले छात्रों को सुधारात्मक कोचिंग दी गई।

संशोधित RTE नियम (2024) के प्रमुख प्रावधान

  • ‘डिटेंशन’ के मानदंड: कक्षा 5 और 8 के छात्र जो वर्ष के अंत में होने वाली परीक्षा में असफल होते हैं, उन्हें पुनः परीक्षा में असफल होने के बाद डिटेंशन किया जा सकता है।
    • पुनः परीक्षा से पहले दो महीने की सुधारात्मक अनुदेश अवधि प्रदान की जाएगी।
  • सुधारात्मक उपाय: विशेष इनपुट और शिक्षकों एवं अभिभावकों के बीच सहयोग के माध्यम से सीखने के अंतराल को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
    • शिक्षक छात्रों और उनके अभिभावकों दोनों को सीखने के परिणामों को बेहतर बनाने के लिए मार्गदर्शन करेंगे।
  • परीक्षा पैटर्न: समग्र विकास पर ध्यान देने के साथ, योग्यता आधारित परीक्षाएँ, रटने की शिक्षा का स्थान लेंगी।
  • स्कूल की जवाबदेही: स्कूल प्रमुखों को निरुद्ध किए गए छात्रों का रिकॉर्ड रखना होगा और उनकी प्रगति की बारीकी से निगरानी करनी होगी।

कार्यान्वयन और प्रयोज्यता

  • संशोधित नियम केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और सैनिक स्कूलों सहित केंद्र सरकार द्वारा संचालित 3,000 से अधिक स्कूलों पर लागू होते हैं।
  • राज्यों को यह निर्णय लेने का अधिकार है कि वे नीति को अपनाएँ या नहीं, क्योंकि विद्यालयी शिक्षा राज्य का विषय है।

राज्यों में वर्तमान स्थिति

  • जिन राज्यों ने नीति को समाप्त कर दिया है: असम, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों ने कक्षा 5 और 8 के लिए ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ को समाप्त कर दिया है।
  • नीति को जारी रखने वाले राज्य: तमिलनाडु और केरल उन राज्यों में से हैं, जो ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ का पालन जारी रख रहे हैं।
    • तमिलनाडु का तर्क आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों के लिए बाधाएँ पैदा करने से बचना और कक्षा 8 तक निर्बाध शिक्षा सुनिश्चित करना है।

आलोचना और चुनौतियाँ

  • उच्च ड्रॉपआउट: नए नियमों से छात्रों पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे ‘ड्रॉपआउट दर’ बढ़ सकती है।
  • प्रशासनिक चुनौतियाँ: सुधारात्मक उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करना स्कूलों के लिए प्रशासनिक चुनौतियाँ खड़ी कर सकता है।
  • असमानता: राज्यों में शैक्षिक प्रणालियों में असमानता बढ़ सकती है, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच में असमानताएँ पैदा हो सकती हैं।

शिक्षा पर प्रभाव

  • सीखने के परिणामों पर अधिक ध्यान: सीखने के परिणामों पर ध्यान देने से स्कूलों और छात्रों के बीच जवाबदेही में सुधार होने की उम्मीद है।
  • बढ़ी हुई जवाबदेही: शिक्षक और स्कूल, अधिगम अंतराल को दूर करने और उपचारात्मक उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए अधिक जिम्मेदार होंगे।

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