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कृत्रिम झीलों को आर्द्रभूमि का दर्जा नहीं

Lokesh Pal October 10, 2025 03:47 15 0

संदर्भ 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि मानव-निर्मित झीलें (जैसे नागपुर की फुटला झील) आर्द्रभूमि संरक्षण एवं प्रबंधन नियम, 2017 के तहत आर्द्रभूमि  की श्रेणी में नहीं आतीं।

महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • हालाँकि, न्यायालय ने माना कि ऐसे कृत्रिम जल निकायों को अभी भी सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत के तहत संरक्षित किया जाना चाहिए, जिससे नागरिकों के स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार (अनुच्छेद-21) के हिस्से के रूप में पारिस्थितिकी संतुलन और सतत् विकास सुनिश्चित हो सके।
  • यह निर्णय इस बात को रेखांकित करता है कि शहरी विकास और पारिस्थितिकी संरक्षण को संविधान के पर्यावरणीय दायित्व के तहत एक साथ सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 

  • कानूनी आधार: पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित।
  • प्रतिस्थापन: इसने आर्द्रभूमि नियम, 2010 को प्रतिस्थापित किया।
  • उद्देश्य: भारत की आर्द्रभूमियों का संरक्षण, सुविचारित उपयोग, और वैज्ञानिक प्रबंधन, विकेंद्रीकृत शासन के माध्यम से सुनिश्चित करना।

नियमों के मुख्य प्रावधान

  • आर्द्रभूमि में दलदली, पीटलैंड, या जल–क्षेत्र (प्राकृतिक या कृत्रिम, स्थायी अथवा अस्थायी) शामिल हैं, लेकिन धान के खेतों और मानव–निर्मित जलाशयों (पेयजल या मत्स्यपालन हेतु) को इससे बाहर रखा गया है।
  • प्रतिबंधित गतिविधियाँ
    • पुनर्भरण या अतिक्रमण
    • औद्योगिक या निर्माण गतिविधियाँ
    • अशोधित अपशिष्ट या ठोस अपशिष्ट  का निकास
    • स्थायी निर्माण, संरक्षण या सामुदायिक हित के उद्देश्य से।
  • नियामक संस्थाएँ
    • राष्ट्रीय आर्द्रभूमि समिति (NWC): नीति और समन्वय के लिए सलाह प्रदान करती है।
    • राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण (SWA): मुख्यमंत्री या पर्यावरण मंत्री की अध्यक्षता में राज्य के अंतर्गत आर्द्रभूमि की पहचान, अधिसूचना और प्रबंधन के लिए उत्तरदायी।
  • पहचान और अधिसूचना: राज्य सरकारें पारिस्थितिक महत्त्व के आधार पर आर्द्रभूमि की सूची तैयार करेंगी और अधिसूचना व सीमांकन के प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगी।
  • एकीकृत प्रबंधन योजना (IMP): प्रत्येक अधिसूचित आर्द्रभूमि के लिए एक IMP आवश्यक है, जो संरक्षण और आजीविका आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाए रखे।
  • अंतरराष्ट्रीय समन्वय: ये नियम रामसर सम्मेलन (वर्ष 1971) के सिद्धांतों के अनुरूप हैं, जिसे भारत ने अनुमोदित किया है।

न्यायालय के निर्णय के मुख्य बिंदु 

  • कृत्रिम झीलें ‘आर्द्रभूमि’ नहीं हैं- 
    • केवल प्राकृतिक जल–स्रोत ही विधिक आर्द्रभूमि की परिभाषा में आते हैं।
    • मानव–निर्मित झीलें, जो सिंचाई या मानव उपयोग हेतु निर्मित की गई हैं, जैसे- फुटला झील, इस श्रेणी में शामिल नहीं होतीं।
  • सार्वजनिक न्यास सिद्धांत का विस्तार
    • यह सिद्धांत एम.सी. मेहता बनाम कमलनाथ (वर्ष 1997) मामले में विकसित हुआ, जिसके अनुसार प्राकृतिक संसाधन राज्य के पास जनता के ट्रस्ट के रूप में होते हैं।
    • सर्वोच्च न्यायलय ने इसके दायरे को बढ़ाकर कृत्रिम जल–स्रोतों को भी शामिल किया, उनकी पारिस्थितिक महत्ता को मान्यता दी।
    • इस प्रकार, यह राज्य का ट्रस्टी दायित्व है कि वह इन झीलों का संरक्षण और प्रबंधन सामूहिक हित में करे।
  • अनुच्छेद 21- स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार
    • न्यायालय ने कहा कि सरकारों पर संवैधानिक दायित्व है कि वे इन संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन करें ताकि नागरिकों का स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार सुरक्षित रहे।

पूर्व निर्णय

  • सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (वर्ष 1991)
  • ए.पी. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनाम प्रो. एम.वी. नायडू (वर्ष 1999) इस मामले के निर्णय में कहा गया कि ‘स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण’ अनुच्छेद-21 के तहत जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है।

  • सतत् विकास का सिद्धांत
    • न्यायालय ने कहा कि सतत् विकास और पर्यावरण संरक्षण एक-दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं।
    • शहरी विकास परियोजनाएँ तभी आगे बढ़ सकती हैं, जब वे पारिस्थितिकी अखंडता को बनाए रखें।

फुटला झील, नागपुर 

  • अवस्थिति: नागपुर, महाराष्ट्र में स्थित; लगभग 60 एकड़ में विस्तृत है।
  • इतिहास: यह झील लगभग 200 वर्ष प्राचीन है, जिसका निर्माण भोसले राजाओं ने 18वीं शताब्दी में कराया था।
  • उद्देश्य: प्रारंभ में इसे जल–भंडारण के रूप में निर्मित किया गया था, जबकि वर्तमान में यह मनोरंजन और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है।

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