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फिजियोलॉजी या चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार

Lokesh Pal October 08, 2025 03:11 27 0

संदर्भ

फिजियोलॉजी या मेडिसिन में वर्ष 2025 के नोबेल पुरस्कार ने रेगुलेटरी T-सेल्स (Tregs) और FOXP3 पर खोजों को मान्यता दी, जिससे ऑटोइम्यून रेगुलेशन और आत्म-सहनशीलता की संबंधी समझ में परिवर्तन आया। 

  • मैरी ब्रुन्को (Mary Brunkow), फ्रेड रामस्डेल (Fred Ramsdell) और शिमोन साकागुची (Shimon Sakaguchi) को प्रतिरक्षा प्रणाली की जटिलताओं को समझने के उनके कार्य के लिए सम्मानित किया गया है।

नोबेल पुरस्कार के बारे में

  • उत्पत्ति: डायनामाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल (1833-1896) की वसीयत के तहत स्थापित नोबेल पुरस्कार, मानवता के लिए उत्कृष्ट योगदान के सम्मान में वर्ष 1901 से प्रतिवर्ष प्रदान किए जाते हैं।
  • श्रेणियाँ: ये पुरस्कार छह क्षेत्रों में प्रदान किए जाते हैं:- भौतिकी, रसायन विज्ञान, फिजियोलॉजी या चिकित्सा, साहित्य, शांति और आर्थिक विज्ञान (अंतिम पुरस्कार वर्ष 1969 में स्वीडिश सेंट्रल बैंक द्वारा जोड़ा गया था)।
  • पुरस्कार प्रदान करने वाली संस्थाएँ
    • भौतिकी, रसायन विज्ञान और अर्थशास्त्र: रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज
    • फिजियोलॉजी या चिकित्सा: कारोलिंस्का संस्थान, स्वीडन
    • साहित्य: स्वीडिश एकेडमी
    • शांति पुरस्कार: नॉर्वेजियन नोबेल समिति, ओस्लो।
  • पुरस्कार के घटक: प्रत्येक नोबेल पुरस्कार में एक स्वर्ण पदक, एक प्रमाण पत्र और एक मौद्रिक पुरस्कार (वर्तमान में वर्ष 2025 में 11 मिलियन स्वीडिश क्रोनर) शामिल है।

प्रतिरक्षा प्रणाली को समझना

  • मानव शरीर में एक शक्तिशाली और जटिल प्रतिरक्षा प्रणाली होती है, जो न केवल विभिन्न बैक्टीरिया और वायरस का प्रतिरोध करती है, बल्कि इस बात का भी संज्ञान रखती है कि किन कोशिकाओं को लक्षित नहीं करना है।
  • प्रतिरक्षा रक्षा तंत्र: मानव प्रतिरक्षा प्रणाली T-कोशिकाओं जैसी विशेष कोशिकाओं का उपयोग करके प्रतिदिन हजारों रोगाणुओं के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करती है, जो रोगजनकों का पता लगाकर उन्हें नष्ट कर देती हैं।

T-कोशिकाओं के बारे में

  • परिभाषा: T-कोशिकाएँ एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका (लिम्फोसाइट) होती हैं, जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • कार्य: उनकी प्राथमिक भूमिका ‘साइटोटॉक्सिक’ के रूप में होती है, वे असामान्य या संक्रमित कोशिकाओं का पता लगाती हैं और उन्हें नष्ट करती हैं, जिनमें वायरस या कैंसर से प्रभावित कोशिकाएँ भी शामिल हैं।
  • प्रकार
    • सहायक T-कोशिकाएँ (Helper T-cells): शरीर की निगरानी करती हैं और संक्रमण का पता चलने पर प्रतिरक्षा अलर्ट सक्रिय करती हैं।
    • घातक T-कोशिकाएँ (Killer T-cells): आक्रमणकारी रोगजनकों या संक्रमित कोशिकाओं पर सीधे हमला करके उन्हें नष्ट कर देती हैं।

  • आत्म-सहनशीलता की चुनौती: प्रतिरक्षा प्रणाली को शरीर की अपनी कोशिकाओं को भी पहचानना चाहिए और उन पर आक्रमण करने से बचना चाहिए।
    • इस तंत्र की विफलता स्व-प्रतिरक्षी रोगों का कारण बनती है, जहाँ प्रतिरक्षा कोशिकाएँ, गलती से स्वस्थ ऊतकों को नष्ट कर देती हैं।
  • थाइमस (सेंट्रल टॉलरेंस) की भूमिका: दशकों से, वैज्ञानिकों का मानना ​​था कि थायमस ग्रंथि परिपक्वता के दौरान हानिकारक T-कोशिकाओं को नष्ट करके प्रतिरक्षा स्व-सहिष्णुता सुनिश्चित करती है, इस प्रक्रिया को सेंट्रल टॉलरेंस (केंद्रीय सहिष्णुता) कहा जाता है।
    • हालाँकि, इससे यह स्पष्ट नहीं हो सका कि कुछ स्व-प्रतिक्रियाशील प्रतिरक्षा कोशिकाएँ अभी भी स्वस्थ व्यक्तियों में क्यों प्रसारित होती हैं।

शिमोन साकागुची का योगदान (1990 का दशक)

  • 1990 के दशक के मध्य में, जापानी प्रतिरक्षाविज्ञानी शिमोन साकागुची ने यह दिखाकर मौजूदा समझ को चुनौती दी कि T-कोशिकाओं का एक विशेष वर्ग प्रतिरक्षा प्रणाली के ‘सुरक्षा कवच’ के रूप में कार्य करता है।
  • चूहों पर किए गए प्रयोगों के माध्यम से, उन्होंने प्रदर्शित किया कि जब इन कोशिकाओं को हटा दिया गया, तो जानवरों में गंभीर स्वप्रतिरक्षी विकार विकसित हो गए, जबकि उन्हें पुनर्स्थापित करने से रोग की रोकथाम हुई।
  • उन्होंने इन्हें रेगुलेटरी ‘टी-सेल्स’ (Tregs) नाम दिया, अर्थात ऐसी प्रतिरक्षा कोशिकाएँ जो अत्यधिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को दबाने के साथ-साथ ‘पेरिफेरल टॉलरेंस’ (Peripheral Tolerance) बनाए रखती हैं, जिससे शरीर अपनी स्वयं की कोशिकाओं को पहचानकर उनके विरुद्ध आक्रमण से बचता है।
  • उनके कार्य ने ‘पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस’ (Peripheral Immune Tolerance) की अवधारणा की नींव रखी, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि प्रतिरक्षा प्रणाली संतुलित बनी रहे।

मैरी ब्रुन्को (Mary Brunkow), फ्रेड रामस्डेल (Fred Ramsdell) का योगदान

  • लगभग उसी समय, अमेरिकी वैज्ञानिक मैरी ब्रुनको और फ्रेड रैम्सडेल उन बीमार चूहों पर अध्ययन कर रहे थे, जिनमें घातक स्वप्रतिरक्षी विकार विकसित हो गए थे। उनके आनुवंशिक विश्लेषण से एक जीन में X गुणसूत्र पर उत्परिवर्तन का पता चला, जिसकी उन्होंने पहचान की और उसे FOXP3 नाम दिया।
  • ह्यूमन लिंक – IPEX सिंड्रोम: बाद में यही उत्परिवर्तन एक दुर्लभ मानव स्वप्रतिरक्षी रोग, IPEX (प्रतिरक्षा विकार, बहुअंतःस्रावी विकार, आंत्रविकृति, X-लिंक्ड) सिंड्रोम से पीड़ित पुरुषों में पाया गया। इससे यह सिद्ध हुआ कि FOXP3 प्रतिरक्षा विनियमन के लिए महत्त्वपूर्ण है।

दो खोजों को एकीकृत करना

  • कुछ वर्ष बाद, सकागुची ने प्रदर्शित किया कि FOXP3 जीन रेगुलेटरी T-सेल्स (Tregs) के विकास और कार्य को नियंत्रित करता है।
  • इन निष्कर्षों ने मिलकर प्रतिरक्षा स्व-सहनशीलता को आणविक और कोशिकीय आधार प्रदान किया।

चिकित्सा और वैज्ञानिक महत्त्व

  • ये खोजें बताती हैं कि कैसे प्रतिरक्षा प्रणाली स्वयं और दूसरों के बीच अंतर करती है, जिससे स्व-प्रतिरक्षी विकारों की रोकथाम होती है।
  • अनुसंधान का नया क्षेत्र: उनके कार्य ने प्रतिरक्षा-नियमन जीव विज्ञान के क्षेत्र को जन्म दिया, जिससे विभिन्न रोगों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित या संशोधित करने के तरीकों पर शोध को बढ़ावा मिला।
  • चिकित्सीय निहितार्थ
    • स्वप्रतिरक्षी रोग: अब उपचारों का ध्यान रेगुलेटरी T-सेल्स (Tregs) को बढ़ावा देने पर केंद्रित है ताकि प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ ऊतकों पर आक्रमण न कर सके।
    • कैंसर: ट्यूमर अक्सर प्रतिरक्षा हमले से बचने के लिए रेगुलेटरी T-सेल्स (Tregs) का उपयोग सुरक्षा कवच के रूप में करते हैं। अनुसंधान कैंसर कोशिकाओं के प्रतिरक्षा विनाश को बढ़ाने के लिए ट्यूमर के आसपास रेगुलेटरी T-सेल्स (Tregs) को बाधित करने के तरीकों की खोज कर रहा है।
    • अंग और स्टेम कोशिका प्रत्यारोपण: रेगुलेटरी टी-सेल्स (Tregs) की समझ प्रत्यारोपण अस्वीकृति (Transplant Rejection) को रोकने और प्रत्यारोपण की सफलता दर को बढ़ाने हेतु प्रभावी चिकित्सीय रणनीतियाँ विकसित करने में मार्गदर्शक सिद्ध होती है।

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