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ध्वनि प्रदूषण

Lokesh Pal September 04, 2025 03:05 130 0

संदर्भ

भारत में शहरी ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य और संवैधानिक मुद्दा है, जहाँ स्कूलों, अस्पतालों तथा आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि का स्तर प्रायः सीमा से अधिक हो जाता है।

  • तनाव, उच्च रक्तचाप और नींद में बाधा जैसे इसके मूक प्रभाव इसे एक अदृश्य खतरा बना देते हैं।

ध्वनि प्रदूषण के बारे में

  • ध्वनि प्रदूषण को अवांछित, हानिकारक या अत्यधिक ध्वनि के रूप में परिभाषित किया जाता है जो सामान्य मानवीय गतिविधियों, स्वास्थ्य और पर्यावरण में हस्तक्षेप करती है।
  • नियामक सीमाएँ: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियम, 2000 के अंतर्गत परिवेशी ध्वनि मानक निर्धारित करता है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) सड़कों के लिए 53 dB, रेलवे के लिए 45 dB और रात के समय 40 dB की ध्वनि स्तर की अनुशंसा करता है।
    • ध्वनि संबंधी दिशा-निर्देश: WHO विभिन्न वातावरणों के लिए परिवेशी ध्वनि स्तर की अनुशंसा करता है – शांत क्षेत्रों में सुरक्षित सीमा दिन में 50 dB(A) और रात में 40 dB(A) है।
      • दिन के समय: 53 dB तक (सड़क यातायात वाले आवासीय क्षेत्र)।
      • रात के समय: नींद और मानसिक स्वास्थ्य में व्यवधान से बचने के लिए यह 40 dB से अधिक नहीं होना चाहिए।

पहलू शहरी ध्वनि प्रदूषण ग्रामीण ध्वनि प्रदूषण
शोर के स्रोत यातायात भीड़, औद्योगिक गतिविधि, निर्माण स्थल, सार्वजनिक कार्यक्रम (त्योहार, रैलियाँ), मनोरंजक स्थान (सिनेमा, पब, शॉपिंग क्षेत्र)। कृषि मशीनरी (ट्रैक्टर, हल), पशुओं की आवाजें, स्थानीय त्योहार, परिवहन (जैसे- ट्रैक्टर, बसें)।
तीव्रता और आवृत्ति उच्च तीव्रता, विशेष रूप से वाणिज्यिक और यातायात क्षेत्रों में। दिन तथा रात भर लगातार संपर्क, प्रायः 60-70 dB से अधिक। दिन के समय कम तीव्रता, लगभग 50-55 dB, कृषि गतिविधियों के दौरान 65 dB तक पहुँच जाती है। अधिक स्थानीयकृत।
स्वास्थ्य और सामाजिक प्रभाव लगातार संपर्क से तनाव, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, नींद में बाधा, संज्ञानात्मक हानि और सामाजिक कल्याण में कमी आती है। तनाव तथा नींद की गड़बड़ी जैसे संभावित स्वास्थ्य प्रभाव, लेकिन शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम गंभीर। 
नीति और नियामक फोकस CPCB तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (SPCB) द्वारा सक्रिय रूप से विनियमित। आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्रों में ध्वनि स्तर के लिए सख्त दिशा-निर्देश। ध्वनि नियमन को कम प्राथमिकता। ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगीकरण और शहरी विस्तार के कारण बढ़ती चिंता।
सांस्कृतिक और सामाजिक स्वीकृति तेज आवाजों के प्रति उच्च सहनशीलता, विशेष रूप से त्योहारों और सार्वजनिक आयोजनों के दौरान। शोर को सामान्य बना दिया गया है, जिससे प्रवर्तन कठिन हो गया है। ध्वनि के प्रति अधिक संवेदनशील; ग्रामीण क्षेत्रों में आमतौर पर शांत वातावरण का अनुभव होता है, हालाँकि बढ़ता औद्योगिकीकरण इसमें बदलाव ला रहा है।

PWOnlyIAS विशेष

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और ध्वनि प्रदूषण से निपटने में इसकी भूमिका के बारे में

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की स्थापना वर्ष 1974 में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत की गई थी।
  • इसके तत्त्वावधान में: यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • उद्देश्य: CPCB का कार्य देश भर में प्रदूषण नियंत्रण उपायों का समन्वय और निगरानी करना है। यह राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (SPCB) के साथ मिलकर पर्यावरण कानूनों का प्रवर्तन सुनिश्चित करता है और वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण के मानक निर्धारित करता है।
  • मुख्य कार्य
    • मानक निर्धारित करना: CPCB ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियम, 2000 के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों के लिए परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक, उद्योगों के लिए उत्सर्जन मानक और परिवेशी ध्वनि सीमाएँ निर्धारित करता है।
    • प्रदूषण की निगरानी: यह एक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NAMP) संचालित करता है, परिवेशी वायु गुणवत्ता, जल गुणवत्ता और ध्वनि स्तर पर आँकड़े एकत्र करता है, और भारत में पर्यावरण प्रदूषण की स्थिति पर रिपोर्ट प्रकाशित करता है।
    • अनुसंधान एवं जागरूकता: CPCB प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों पर अनुसंधान करता है और नागरिकों एवं उद्योगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों में शामिल करने के लिए जन जागरूकता अभियान संचालित करता है।
    • सलाहकार की भूमिका: यह राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और सरकारी एजेंसियों को प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण रणनीतियों के संबंध में तकनीकी सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करता है।
  • ध्वनि प्रदूषण में CPCB की भूमिका 
    • परिवेशी ध्वनि मानक: ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियम, 2000 के अनुसार, CPCB ने आवासीय, वाणिज्यिक, औद्योगिक और शांत क्षेत्रों जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए अनुमेय ध्वनि स्तर निर्धारित किए हैं। ये सीमाएँ जन स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता की रक्षा के लिए निर्धारित की गई हैं।
    • ध्वनि निगरानी: वर्ष 2011 में शुरू किए गए राष्ट्रीय परिवेशी ध्वनि निगरानी नेटवर्क (NANMN) के माध्यम से, CPCB प्रमुख शहरों में ध्वनि के स्तर की निगरानी करता है और शहरी ध्वनि प्रदूषण संबंधी वास्तविक समय आधारित आँकड़े तैयार करता है।
    • नीति और प्रवर्तन: यद्यपि CPCB को मानक निर्धारित करने का कार्य सौंपा गया है, ध्वनि सीमाओं का प्रवर्तन आमतौर पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) और स्थानीय प्राधिकरणों द्वारा किया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और ध्वनि प्रदूषण से निपटने में इसकी भूमिका 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की स्थापना वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष एजेंसी के रूप में हुई थी, जो वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है।
  • कार्यादेश: WHO का मिशन स्वास्थ्य को बढ़ावा देना, विश्व को सुरक्षित रखना और दुर्बल लोगों की सेवा करना है।
    • इसका उद्देश्य वैश्विक स्वास्थ्य मानक निर्धारित करना, वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दों पर नेतृत्व प्रदान करना तथा स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने में देशों की सहायता करना है, जिनमें ध्वनि प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय कारकों के कारण उत्पन्न चुनौतियाँ भी शामिल हैं।
  • ध्वनि प्रदूषण से निपटने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका
    • शोर पर अग्रणी शोध: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ध्वनि प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में अग्रणी रहा है।
      • इसने विश्व स्वास्थ्य संगठन की पर्यावरणीय रोग भार शृंखला सहित कई वैश्विक अध्ययन किए हैं, जो ध्वनि प्रदूषण को एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिम के रूप में पहचानते हैं।
    • स्वास्थ्य जोखिम मानचित्रण: WHO ने विशेष रूप से शहरी परिवेश में अत्यधिक शोर के संपर्क में आने से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों, जैसे हृदय रोग, निद्रा विकार, श्रवण हानि और तनाव, का मानचित्रण किया है।
    • शोर संपर्क पर दिशा-निर्देश: WHO ने विभिन्न शोर स्रोतों (जैसे- यातायात, उद्योग, विमान) के लिए सुरक्षित संपर्क सीमाओं पर साक्ष्य-आधारित दिशा-निर्देश विकसित किए हैं, यह मानते हुए कि ध्वनि प्रदूषण केवल एक व्यवधान ही नहीं बल्कि एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है।
    • स्वास्थ्य प्रभाव सीमाएँ: WHO विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और पहले से किसी बीमारी से ग्रस्त लोगों के लिए 50 dB या उससे अधिक के संपर्क को मानव स्वास्थ्य के लिए संभावित रूप से हानिकारक मानता है।
    • प्रलेखित जोखिम: उनका शोध दीर्घकालिक ध्वनि प्रदूषण के संपर्क को उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और स्ट्रोक के बढ़ते जोखिम से जोड़ता है।
      • विश्व स्वास्थ्य संगठन के पर्यावरणीय ध्वनि दिशा-निर्देश (2009, अद्यतन 2018) देशों और नीति निर्माताओं को शोर के हानिकारक प्रभावों को कम करने के तरीकों पर विस्तृत मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
    • अंतर-क्षेत्रीय सहयोग: विश्व स्वास्थ्य संगठन पर्यावरणीय ध्वनि नियंत्रण के लिए समग्र दृष्टिकोण विकसित करने हेतु UNEP (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम), EU (यूरोपीय संघ) और राष्ट्रीय सरकारों जैसे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर कार्य करता है।
    • शहरी ध्वनि नियंत्रण: विश्व स्वास्थ्य संगठन ऐसी शहरी नियोजन रणनीतियों का समर्थन करता है, जो शहरी डिजाइन में ध्वनि नियंत्रण उपायों को शामिल करती हैं, जैसे-हरित स्थान, ध्वनिक अवरोध और यातायात नियंत्रण उपाय।
    • स्वास्थ्य अभियान: विश्व स्वास्थ्य संगठन ऐसे जन स्वास्थ्य अभियानों का समर्थन करता है, जो नागरिकों को शोर के स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में शिक्षित करते हैं और समुदाय-आधारित ध्वनि निगरानी और शोर कम करने की प्रथाओं को प्रोत्साहित करते हैं।
    • प्रशिक्षण कार्यक्रम: विश्व स्वास्थ्य संगठन स्थानीय सरकारों और जन स्वास्थ्य पेशेवरों को ध्वनि विनियमन, निगरानी तकनीकों और प्रवर्तन में सुधार के लिए क्षमता निर्माण संसाधन प्रदान करता है।

  • मुख्य अंतर: सामान्य ध्वनि एक अस्थायी व्यवधान हो सकता है, लेकिन ध्वनि प्रदूषण तब उत्पन्न होता है, जब ध्वनि का स्तर लगातार, बार-बार और हानिकारक होता है तथा सुरक्षित सीमा को पार कर जाता है।
  • ध्वनि प्रदूषण के स्रोत
    • परिवहन और यातायात: सड़कों पर भीड़भाड़, लगातार हॉर्न बजना, रेलवे गतिविधियाँ और विमानों की लैंडिंग के कारण उच्च-डेसिबल का शोर होता है, जो भारतीय महानगरों में प्रायः 65-70 dB(A) से भी अधिक होता है।
    • उद्योग और निर्माण: पाइल ड्राइवर, ड्रिल और जैकहैमर का उपयोग करने वाली फैक्ट्रियाँ, कार्यशालाएँ और निर्माण परियोजनाएँ, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, लगातार उच्च-डेसिबल शोर पैदा करती हैं।
    • सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ: त्योहारों, शादियों, राजनीतिक रैलियों और धार्मिक जुलूसों में लाउडस्पीकर, डीजे और पटाखों का उपयोग करने से अत्यधिक शोर होता है, जो कभी-कभी 100 dB से भी ऊपर के असुरक्षित स्तर तक पहुँच जाता है।
    • घरेलू और व्यावसायिक उपकरण: डीजल जनरेटर, वाटर पंप, कंप्रेसर और हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग (Heating, Ventilation, and Air Conditioning- HVAC) सिस्टम परिवेशी शोर के स्तर को बढ़ा देते हैं।
    • मनोरंजन और बाजार स्थल: थिएटर, पब और भीड़-भाड़ वाले शॉपिंग कॉम्प्लेक्स स्थानीय ध्वनि परिदृश्य को स्वीकार्य आवासीय मानकों से कहीं अधिक बढ़ा देते हैं।
  • ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव
    • स्वास्थ्य पर प्रभाव: लगातार शोर के संपर्क में रहने से श्रवण शक्ति में कमी, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और निद्रा संबंधी विकार हो सकते हैं। यह तनाव हार्मोन के स्राव को भी बढ़ाता है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।
    • संज्ञानात्मक प्रभाव: उच्च स्तर के शोर के संपर्क में आने वाले बच्चों में सीखने में कठिनाई, ध्यान की अवधि में कमी और स्मृति हानि देखी जाती है, जिससे दीर्घकालिक शैक्षिक परिणाम प्रभावित होते हैं।
    • सामाजिक और संवैधानिक प्रभाव: लगातार शोर उत्पादकता को कम करता है, चिड़चिड़ापन बढ़ाता है और सामाजिक संघर्ष पैदा करता है। मानसिक शांति को प्रभावित करके, यह अनुच्छेद-21 के तहत सम्मानपूर्वक जीने के संवैधानिक अधिकार की पहुँच  को कम करता है।
      • अनुच्छेद 48A पर्यावरण संरक्षण का प्रावधान करता है।
    • पारिस्थितिकी प्रभाव: ऑकलैंड विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 2025 में किए गए एक अध्ययन सहित, अध्ययनों से पता चलता है कि शोर जानवरों के संचार और प्रजनन चक्र को बाधित करता है। ध्वनि प्रदूषण पेड़ों पर भी दबाव डालता है, जिससे उनकी वृद्धि और शहरी जैव विविधता प्रभावित होती है।

PWOnlyIAS विशेष

ध्वनि बनाम ध्वनि प्रदूषण

  • ध्वनि: कोई भी अप्रिय या अवांछित ध्वनि; अल्पकालिक और व्यक्तिपरक—जैसे, कुछ मिनटों के लिए हॉर्न बजना या हथौड़े की आवाज। यह कष्टप्रद हो सकता है, किंतु अनिवार्य रूप से स्थायी क्षति नहीं पहुँचाता।
  • ध्वनि प्रदूषण: लगातार या बार-बार होने वाला उच्च-डेसिबल का संपर्क, जो CPCB या WHO के मानकों को पार कर जाता है। यह स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र को स्पष्ट रूप से नुकसान पहुँचाता है, जिससे यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य और शासन संबंधी मुद्दा बन जाता है।

ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिए भारत में की गई कार्रवाई

  • कानूनी ढाँचा: पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियम, 2000, औद्योगिक, वाणिज्यिक, आवासीय तथा शांत क्षेत्रों के लिए परिवेशी ध्वनि सीमाएँ निर्धारित करते हैं।
  • राष्ट्रीय परिवेशी ध्वनि निगरानी नेटवर्क (National Ambient Noise Monitoring Network -NANMN): CPCB द्वारा वर्ष 2011 में ध्वनि पर वास्तविक समय के आँकड़े एकत्र करने के लिए शुरू किया गया।
    • हालाँकि, यह एक नीतिगत उपकरण के बजाय एक डेटा संग्रह के रूप में अधिक कार्य करता है, जिसमें सेंसर की व्यवस्था त्रुटिपूर्ण है और जवाबदेही बहुत कम है।
  • न्यायिक हस्तक्षेप: सर्वोच्च न्यायालय ने रात 10 बजे के बाद लाउडस्पीकरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। पटना उच्च न्यायालय ने स्कूलों, अस्पतालों और कॉलेजों के आसपास हॉर्न-मुक्त क्षेत्र घोषित किया है, जबकि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने त्योहारों के दौरान निगरानी का आदेश दिया है।
  • सरकारी उपाय
    • दिल्ली सरकार ने स्थानीय निकायों और थाना प्रभारियों (SHO) को सख्त प्रवर्तन के लिए सशक्त बनाने का प्रस्ताव रखा।
    • तमिलनाडु ने दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में ध्वनि मानचित्रण के लिए धनराशि स्वीकृत की।
    • हैदराबाद पुलिस ने जुलूसों के दौरान डीजे और पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठन: आवाज फाउंडेशन (मुंबई) जैसे संगठन जनहित याचिकाएँ (PIL) दायर करते हैं, ध्वनि मानचित्रण को बढ़ावा देते हैं।

ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिए वैश्विक पहल और सर्वोत्तम अभ्यास

  • यूरोप: ध्वनि से होने वाली बीमारियों और मृत्यु दर के आँकड़े नीति को सक्रिय रूप से आकार देते हैं।
    • यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी ने हाल ही में शहरी ध्वनि प्रदूषण की वार्षिक आर्थिक लागत 100 बिलियन यूरो (€) आँकी है, जिससे गति क्षेत्रों और जोनिंग ढाँचों में पुनः डिजाइनिंग को बढ़ावा मिला है।
  • वेल्स साउंडस्केप्स अधिनियम, 2024: ध्वनि वातावरण को विनियमित करने और स्वस्थ ध्वनि परिदृश्यों को बढ़ावा देने वाला दुनिया का पहला कानून।
  • नीदरलैंड विमानन मॉडल: शिफोल हवाई अड्डे ने विमानन शोर को 15-20% तक कम करने के लिए उड़ानों की संख्या सीमित कर दी, जो मजबूत नीतिगत प्रतिबद्धता दर्शाता है।
  • फ्राँस की नागरिक भागीदारी: सोनोरेजे ऐप नागरिकों को शोर स्रोतों की रिपोर्ट करने और उनका मानचित्रण करने की अनुमति देता है, जो शासन को सामुदायिक सहभागिता से जोड़ता है।
  • वैश्विक गठबंधन: समुद्री ध्वनि प्रदूषण से निपटने के उद्देश्य से, शांत महासागर के लिए उच्च महत्त्वाकांक्षा गठबंधन (2025) ने 37 देशों को साथ लाकर साझा प्रयास शुरू किए हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देश: यातायात, रेल और वायु शोर के लिए साक्ष्य-आधारित जोखिम सीमाएँ प्रदान करना।

भारत के लिए खतरों पर प्रकाश डालने वाली रिपोर्टें

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट (2018): यूरोप में वायु प्रदूषण के बाद शोर को दूसरा सबसे बड़ा पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिम बताया गया है, जिसमें भारतीय शहरों के लिए भी कुछ उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट: दिल्ली, मुंबई, बंगलूरू और कोलकाता जैसे शहरों में, विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों के पास, शोर के नियमित उल्लंघन को दर्शाती है।
  • लैंसेट अध्ययन (2021): दीर्घकालिक शोर के संपर्क और हृदय एवं तंत्रिका संबंधी रोगों के बीच सीधा संबंध पाया गया, जिससे भारत में स्वास्थ्य सेवा का बोझ बढ़ गया।
  • यूएनईपी रिपोर्ट (2022): भारतीय शहरी ध्वनि परिदृश्यों को उभरते हुए हॉटस्पॉट बताया गया, नीतिगत सुधार और अंतर-एजेंसी समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया गया।
    • शहरी नियोजन, हरित अवसंरचना और परिवहन सुधारों में शोर संबंधी चिंताओं को एकीकृत करके सकारात्मक ध्वनि परिदृश्य की ओर बढ़ने का समर्थन किया गया।

ध्वनि प्रदूषण एक सतत् समस्या क्यों है?

  • कमजोर प्रवर्तन: यद्यपि नियम मौजूद हैं, परंतु अपर्याप्त जनशक्ति, डेसिबल मीटर की कमी और दंडात्मक प्रावधानों के अभाव से उनका प्रभावी क्रियान्वयन संभव नहीं हो पा रहा है।
  • सांस्कृतिक सामान्यीकरण: त्योहारों, शादियों और रैलियों के दौरान शोरगुल वाले समारोह सामाजिक रूप से स्वीकार्य हैं, जिससे प्रवर्तन राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो जाता है।
  • निगरानी की कमियाँ: राष्ट्रीय परिवेशी शोर निगरानी नेटवर्क (NANMN) निष्क्रिय रूप से कार्य करता है, सेंसर की खराब स्थिति और प्रवर्तन से कोई संबंध न होने के कारण, इसकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।
  • जन जागरूकता की कमी: नागरिक ध्वनि प्रदूषण को स्वास्थ्य के लिए खतरा मानने के बजाय केवल एक व्यवधान मानते हैं, जिससे नागरिक अक्रियता और उदासीनता पैदा होती है।
  • नीतिगत जड़ता: वर्ष 2000 में बनाए गए नियम अब अप्रासंगिक हो चुके हैं, तथा भारत, यूरोपीय देशों द्वारा अपनाए गए सक्रिय उपायों की तुलना में पिछड़ा हुआ है।
  • खंडित शासन: पुलिस, नगर पालिकाओं और प्रदूषण बोर्डों के बीच साझा जिम्मेदारियाँ कमजोर जवाबदेही और समन्वय की कमी का कारण बनती हैं।
  • बुनियादी ढाँचा और रसद दबाव: अनियोजित बुनियादी ढाँचे के विस्तार और रसद-संचालित यातायात में वृद्धि ने मौजूदा सड़क नेटवर्क पर अत्यधिक बोझ डाला है, जिससे गंभीर व्यस्तता, पर्यावरणीय तनाव और समग्र संकट और भी बदतर हो गया है।

आगे की राह

  • विनियमनों को अद्यतन करना: विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप ध्वनि प्रदूषण नियम (2000) को संशोधित करना; इसमें Lden (दिन-शाम-रात स्तर) और Lnight  (रात्रि स्तर) जैसे समय-भारित संकेतक शामिल करना।
    •  Lden तथा Lnight WHO के शोर संकेतक हैं, जिनका उपयोग दीर्घकालिक पर्यावरणीय शोर से उत्पन्न जोखिम के स्वास्थ्य प्रभाव का आकलन करने के लिए किया जाता है
      • Lden​ (दिन-शाम-रात स्तर): यह 24 घंटे का स्वास्थ्य-आधारित शोर औसत है, जिसमें शाम के शोर पर 5 dB और रात के शोर पर 10 dB का दंड जोड़ा जाता है ताकि बढ़ी हुई परेशानी और व्यवधान को दर्शाया जा सके। इसका प्रयोग समग्र शोर मानचित्रण और परेशानी के आकलन के लिए किया जाता है।
      • Lnight (रात्रि स्तर): रात्रि के समय (रात 10 बजे से सुबह 7 बजे तक) शोर का एक विशिष्ट औसत। इसका एकमात्र उद्देश्य नींद में बाधा के जोखिम को मापना और उसका आकलन करना है, जो एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है।
  • शोर निगरानी का विकेंद्रीकरण: स्थानीय निकायों को वास्तविक समय के शोर डेटा तक पहुँच प्रदान करके और उन्हें शोर नियमों को लागू करने के लिए जिम्मेदार बनाकर राष्ट्रीय परिवेश शोर निगरानी नेटवर्क (NANMN) को प्रवर्तन से जुड़े उपकरण में परिवर्तित करना।
    • शहरों और नगर पालिकाओं को वास्तविक समय के आँकड़ों के आधार पर उल्लंघनों पर तत्काल कार्रवाई करने के लिए सशक्त बनाना, जैसे अत्यधिक शोर के लिए जुर्माना लगाना और अस्पतालों व स्कूलों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में जोनिंग अनुपालन सुनिश्चित करना।
    • इससे यह सुनिश्चित होगा कि डेटा प्रदर्शनात्मकता से आगे बढ़कर स्थानीय प्रवर्तन के लिए एक मूल्यवान उपकरण बन जाए, जिससे ध्वनि प्रदूषण विनियमन अधिक प्रभावी और समयबद्ध हो सके।
  • ध्वनिक लचीलेपन के लिए शहरी नियोजन: शहरी नियोजन में ध्वनिक लचीलेपन को एकीकृत करना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शहरों को न केवल गति और विस्तार के लिए, बल्कि ध्वनिक सुधार के लिए भी डिजाइन किया गया हो।
    • शहरी शोर के स्तर को कम करने के लिए स्कूलों, अस्पतालों और आवासीय क्षेत्रों के आस-पास हरित पट्टी, ध्वनिक अवरोध और शांत क्षेत्र का निर्माण करना।
    • शहरी नियोजन में शांत वातावरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और रहने योग्य तथा सतत् शहरी स्थान बनाने के लिए बुनियादी ढाँचे के विकास और स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में शोर कम करने की रणनीतियों को शामिल किया जाना चाहिए।
  • उत्सव और नागरिक नियंत्रण: त्योहारों, सार्वजनिक आयोजनों और धार्मिक समारोहों के दौरान अत्यधिक शोर को नियंत्रित करने के लिए शोर के लिए समय-सीमा और डेसिबल सीमा लागू करना।
    • उत्सवों के दौरान ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए पर्यावरण-अनुकूल पटाखे या लेजर शो जैसे विकल्पों को बढ़ावा देना, जिससे सांस्कृतिक गतिविधियों को संरक्षित रखने में मदद मिलेगी और साथ ही उनका पर्यावरणीय प्रभाव भी कम होगा।
    • त्यौहार और नागरिक नियंत्रण प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने से जन स्वास्थ्य से समझौता किए बिना आनंददायक उत्सव मनाए जा सकेगा।
  • जागरूकता और शिक्षा को संस्थागत बनाएँ: ‘नो हॉर्निंग डे’ जैसे जन जागरूकता अभियानों को संस्थागत बनाना और उन्हें स्कूलों, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWAs) और कार्यस्थलों पर लक्षित सतत् व्यवहारिक अभियानों में विस्तारित करना।
    • इन अभियानों का उद्देश्य नागरिकों को ध्वनि के स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में शिक्षित करना और ध्वनि शिष्टाचार को एक नागरिक गुण के रूप में बढ़ावा देना है, जिससे लोगों को अपने ध्वनि प्रभावों के प्रति अधिक जागरूक होने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
    • शोर से जुड़े सामाजिक मानदंडों को बदलने के लिए नागरिक भागीदारी महत्त्वपूर्ण है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि लोग स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता पर इसके हानिकारक प्रभाव को समझ सकें।
  • राष्ट्रीय ध्वनिक नीति तैयार करना: मंत्रालयों, नगरीय निकायों और प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को एक साथ लाने के लिए एक राष्ट्रीय ध्वनिक नीति बनाना, जिससे अंतर-एजेंसी समन्वय सुनिश्चित हो और ध्वनि प्रदूषण कानूनों का प्रभावी प्रवर्तन हो।
    • इस नीति में स्पष्ट शिकायत निवारण प्रणालियाँ शामिल होनी चाहिए, नागरिकों को उल्लंघनों की रिपोर्ट करने का अधिकार दिया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सामुदायिक भागीदारी नीति-निर्माण प्रक्रिया का हिस्सा हो।
    • स्थानीय समुदायों के साथ सक्रिय जुड़ाव से ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिए एक अधिक समावेशी दृष्टिकोण तैयार होगा और यह सुनिश्चित होगा कि सभी हितधारक एक शांत, स्वस्थ वातावरण बनाने में शामिल हों।

निष्कर्ष

ध्वनि प्रदूषण एक अप्रत्यक्ष जन स्वास्थ्य आपातकाल है, जो कल्याण, पारिस्थितिकी और संवैधानिक अधिकारों को नष्ट कर रहा है। शांत और स्वस्थ भारतीय शहरों के निर्माण के लिए, कानून, तकनीक, शहरी डिजाइन और नागरिक भागीदारी का सम्मिश्रण करते हुए, अधिकार-आधारित, बहु-एजेंसी दृष्टिकोण आवश्यक है।

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