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राज्यसभा के लिए सदस्यों का नामांकन

Lokesh Pal July 15, 2025 02:17 12 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने चार प्रतिष्ठित व्यक्तियों को राज्यसभा के लिए नामित किया है।

राज्यसभा के लिए वर्तमान नामांकनों के बारे में

  • मनोनीत सदस्य: इनमें शामिल हैं:-
    • हर्षवर्धन श्रृंगला, पूर्व विदेश सचिव
    • उज्ज्वल निकम, 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले के मामले में विशेष लोक अभियोजक
    • सी. सदानंदन मास्टर, केरल के भाजपा नेता
    • डॉ. मीनाक्षी जैन, एक प्रसिद्ध इतिहासकार।

मनोनीत सदस्यों की नियुक्ति को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधान

  • स्रोत: भारत के राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए सदस्यों के नामांकन का प्रावधान आयरिश संविधान से लिया गया है।
  • संविधान का अनुच्छेद-80(1): यह अनुच्छेद निर्धारित करता है कि राज्यसभा में 250 से अधिक सदस्य नहीं होंगे, जिनमें से 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाएँगे।
  • अनुच्छेद-80 का खंड (3): यह निर्दिष्ट करता है कि राष्ट्रपति साहित्य, विज्ञान, कला या समाज सेवा में विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों को मनोनीत कर सकते हैं।
    • उदाहरण: राकेश सिन्हा (साहित्य), इलैयाराजा (कला) आदि।
    • यद्यपि अनुच्छेद-80(1)(a) में 12 सदस्यों के मनोनयन की बात कही गई है, अनुच्छेद-80(3) में इन मनोनयनों के मानदंड स्पष्ट रूप से निर्धारित किए गए हैं।
  • कार्यकाल: राज्यसभा में मनोनीत सदस्यों का कार्यकाल छह वर्ष का होता है और एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं, जो निर्वाचित सदस्यों के कार्यकाल के अनुरूप है।
  • अधिकार और विशेषाधिकार: राज्यसभा में मनोनीत सदस्यों को निर्वाचित सदस्यों के समान अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। उन्हें सदन में अपनी सदस्यता ग्रहण करने के छह महीने के भीतर किसी राजनीतिक दल में शामिल होने की अनुमति होती है।
    • वे बहस में भाग ले सकते हैं, विधेयकों पर मतदान कर सकते हैं और संसदीय समितियों में सेवा दे सकते हैं।
    • हालाँकि, वे राष्ट्रपति के चुनाव में मतदान करने के हकदार नहीं हैं, वे उपराष्ट्रपति के चुनाव में मतदान कर सकते हैं।

राज्यसभा में मनोनीत सीटों के पीछे तर्क

  • मूल तर्क: राज्यसभा में मनोनीत सदस्यों का विचार संसदीय बहसों में बौद्धिक और व्यावसायिक विशेषज्ञता लाने के लिए प्रस्तावित किया गया था।
  • निर्माताओं का दृष्टिकोण: जैसा कि संविधान प्रारूप समिति के सदस्य एन. गोपालस्वामी अय्यंगर ने कहा था, इस प्रावधान का उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों को भागीदारी प्रदान करना था, जो चुनावी राजनीति में सक्रिय न हों, लेकिन अपने ज्ञान और अनुभव के कारण महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकें।
  • उद्देश्य का कमजोर होना: हालाँकि, समय के साथ, इस आदर्श को कुछ हद तक कमजोर किया गया है। आलोचकों का तर्क है कि एक के बाद एक सरकारों ने इस प्रावधान का प्रयोग राजनीतिक सहयोगियों को पुरस्कृत करने या उच्च सदन में अपनी संख्या बढ़ाने के लिए किया है, जिससे इसके मूल उद्देश्य को नुकसान पहुँचा है।

भारतीय राजनीति के संदर्भ में मनोनीत सदस्यों का महत्त्व

  • विशेषज्ञता और ज्ञान: इनके समावेश से सदन में विशेषज्ञता का मिश्रण सुनिश्चित होता है।
    • उदाहरण: योजना आयोग के पूर्व सदस्य डॉ. नरेंद्र जाधव को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया। उन्होंने शिक्षा, योजना और विकास से संबंधित विभिन्न विधेयकों और समितियों में योगदान दिया है।
  • अंतराल को कम करना: वे विधायी मंशा को जमीनी निहितार्थों से जोड़ते हैं।
    • उदाहरण: अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल से पूर्व मनोनीत सदस्य के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान आर्थिक चर्चाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • प्रतिनिधित्वहीनों का प्रतिनिधित्व: वे उन अभिव्यक्तिओं का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, जिन्हें चुनावी प्रक्रिया में अनदेखा किया जा सकता है।
    • उदाहरण: विश्व मुक्केबाजी चैंपियन और ओलंपिक पदक विजेता मैरी कॉम को वर्ष 2016 में राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था। वह खेल विकास, महिला सशक्तीकरण और आदिवासी कल्याण की प्रबल समर्थक रही हैं।
  • राष्ट्रीय हित: वे प्रायः क्षेत्रीय हितों की बजाय राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हैं।
    • उदाहरण: ISRO के पूर्व अध्यक्ष और पद्मश्री पुरस्कार विजेता कस्तूरीरंगन को वर्ष 2003 में राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था। उन्होंने राष्ट्रीय विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • सांस्कृतिक एकीकरण: उनका नामांकन भारत की सांस्कृतिक विविधता को प्रतिबिंबित और बढ़ावा दे सकता है।
    • उदाहरण: प्रसिद्ध संगीतकार जाकिर हुसैन को कला, विशेष रूप से शास्त्रीय संगीत का प्रतिनिधित्व करने के लिए नामित किया गया था।
  • आदर्श: अपने-अपने क्षेत्रों में उनकी उपलब्धियाँ प्रेरणा का स्रोत हैं।
    • उदाहरण: क्रिकेट के दिग्गज सचिन तेंदुलकर को नामित किया गया था, जो खेलों में उनकी उत्कृष्टता को दर्शाता है।
  • निर्देशित नीति निर्माण: उनकी विशेषज्ञताएँ सूक्ष्म नीति-निर्माण का मार्गदर्शन करती हैं।
    • उदाहरण: अर्थशास्त्री भालचंद्र मुंगेकर ने नामित सदस्य के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान आर्थिक नीति चर्चाओं को समृद्ध बनाया।

राज्यसभा सदस्यों का चुनाव कैसे होता है?

  • राज्यसभा एक स्थायी सदन है और इसका विघटन नहीं होता। निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए, अनुच्छेद-83(1) के अनुसार, इसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं और इन रिक्तियों को भरने के लिए द्विवार्षिक चुनाव होते हैं।
  • कुल 245 सदस्यों में से 233 राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं, जबकि 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।
  • त्याग-पत्र, अयोग्यता या मृत्यु के कारण रिक्तियों को उपचुनावों के माध्यम से भरा जाता है और ऐसे सदस्य अपने पूर्ववर्तियों के शेष कार्यकाल तक सेवा करते हैं।

चुनाव प्रक्रिया और सीट आवंटन

  • संविधान की चौथी अनुसूची प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश को उनकी जनसंख्या के आधार पर आवंटित राज्यसभा सीटों की संख्या निर्धारित करती है।
  • सदस्यों का चुनाव निर्वाचित विधायकों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत (STV) प्रणाली के अंतर्गत अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से किया जाता है।
  • उदाहरण
    • यदि केवल एक रिक्ति है, तो आवश्यक मत = (कुल डाले गए मत ÷ 2) + 1
    • उदाहरण के लिए, 100 वोट पड़े → 51 वोट चाहिए।
    • यदि कई रिक्तियाँ हैं, तो सूत्र इस प्रकार होगा: (कुल वोट × 100) ÷ (रिक्तियों की संख्या + 1) + 1
    • उदाहरण के लिए, 3 रिक्तियों के लिए 100 वोट → (100 × 100) ÷ (3 + 1) + 1 = 2501

विधान निर्माण से परे राज्यसभा का महत्त्व

यद्यपि धन विधेयकों को पारित करने में राज्यसभा की भूमिका सीमित है (यह केवल परिवर्तनों की सिफारिश कर सकती है, जिन्हें लोकसभा स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है), फिर भी इसके पास कई विशिष्ट शक्तियाँ हैं:

  • अनुच्छेद-249 के अंतर्गत, यदि राज्यसभा (दो-तिहाई बहुमत से) यह कहते हुए प्रस्ताव पारित करती है कि यह राष्ट्रीय हित में आवश्यक है, तो संसद राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
  • अनुच्छेद-312 के अंतर्गत, राज्यसभा नई अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन की अनुशंसा कर सकती है।
  • अनुच्छेद-352 (राष्ट्रीय आपातकाल), 356 (राष्ट्रपति शासन), या 360 (वित्तीय आपातकाल) के अंतर्गत आपातकालीन उद्घोषणाओं की स्थिति में, राज्यसभा की स्वीकृति अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है, विशेषतः यदि लोकसभा भंग हो या सत्र में न हो।

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