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युगांडा में गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन (Non-Aligned Summit in Uganda)

Samsul Ansari January 05, 2024 07:16 474 0

संदर्भ

भारत के विदेश मंत्री युगांडा में होने वाले गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement-NAM) शिखर सम्मेलन में भाग लेने जा रहे हैं तथा वहाँ वह संभवतः ग्लोबल साउथ (Global South) और अफ्रीका के साथ अपने संबंधों को और मजबूत बनाने का प्रस्ताव रख सकते हैं।

संबंधित तथ्य 

  • NAM शिखर सम्मेलन: 19वाँ NAM शिखर सम्मेलन 17 से 20 जनवरी तक आयोजित किया जाएगा है।
  • इससे पहले 15 जनवरी को विदेश मंत्रियों की बैठक होगी। विदेश मंत्री द्वारा इसके अलावा कई द्विपक्षीय बैठकों में भाग लेने का अनुमान है।
  • NAM का मेजबान: युगांडा वर्ष 2024-2027 के दौरान NAM समूह की अध्यक्षता करेगा। 
    • युगांडा जनवरी 2024 में दो महत्त्वपूर्ण आयोजनों की मेजबानी करने के लिए तैयार है, जिसमें NAM शिखर सम्मेलन और G77 व चीन के द्वारा आयोजित तीसरा दक्षिण शिखर सम्मेलन (3rd South Summit) शामिल हैं।

G77 और दक्षिण शिखर सम्मेलन या साउथ समिट

  • G77 समूह: यह संयुक्त राष्ट्र में विकासशील देशों का सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है।
    • यह दक्षिणी देशों को अपने सामूहिक आर्थिक हितों को स्पष्ट करने और बढ़ावा देने तथा उनकी संयुक्त वार्ता क्षमता को बढ़ाने का साधन प्रदान करता है।
  • दक्षिण शिखर सम्मेलन: यह G77 समूह का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है।
  • पहला दक्षिण शिखर सम्मेलन वर्ष 2000 में हवाना, क्यूबा में आयोजित किया गया था।
  • दूसरा दक्षिण शिखर सम्मेलन 2005 में दोहा, कतर में आयोजित किया गया था।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन के बारे में

पाँच सिद्धांत 

i. दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए पारस्परिक सम्मान

ii. परस्पर गैर-आक्रामकता

iii. परस्पर गैर-हस्तक्षेप,

iv. समानता और पारस्परिक लाभ 

v. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व

  • NAM का संदर्भ और अवधारणा:  “गुटनिरपेक्षता” शब्द का प्रयोग पहली बार संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि  वी. के. मेनन द्वारा वर्ष 1953 के अपने संयुक्त राष्ट्र भाषण के दौरान किया गया था। बाद में, भारतीय प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने वर्ष 1954 के कोलंबो भाषण में पंचशील (पाँच संयम- Five restraints) को रेखांकित करते हुए इसे शामिल किया, जिसने बाद में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी।
  •  उत्पत्ति: समूह की मूल अवधारणा वर्ष 1955 में इंडोनेशिया के बांडुंग में आयोजित अफ्रीकी-एशियाई सम्मेलन के दौरान हुई चर्चा से उत्पन्न हुई है।
    • NAM का पहला शिखर सम्मेलन वर्ष 1961 में बेलग्रेड, यूगोस्लाविया में हुआ था।
  • इसकी स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेताओं में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज टीटो, मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर, घाना के राष्ट्रपति क्वामे नक्रूमा (Kwame Nkrumah) और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो शामिल थे।
  • NAM का आधार: शीतयुद्ध के दौरान, गुटनिरपेक्षता का विचार तीसरी दुनिया के देशों या  थर्ड वर्ड कंट्रीज (Third World Countries) की इस इच्छा से उपजा था कि वह पश्चिम और पूर्व के बीच वैचारिक टकराव में न फँसे।
    • तीसरी दुनिया: एक राजनीतिक पदनाम है, जो मूल रूप से उन देशों को संदर्भित करने के लिए उपयोग किया जाता है, जो अमेरिका के नेतृत्व वाली पहली दुनिया (पूँजीवादी देश) या सोवियत संघ के नेतृत्व वाली दूसरी दुनिया (कम्युनिस्ट देश) का हिस्सा नहीं थे।
  • फोकस: तीसरी दुनिया के देश राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष, गरीबी उन्मूलन और आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहते थे।
  • सदस्य देश: NAM में अफ्रीका के 53 देश, एशिया के 40 देश, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन के 26 देश और यूरोप का एक देश (बेलारूस) शामिल है।
  • पर्यवेक्षक: 18 देश और 10 अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो NAM के पर्यवेक्षक हैं।

भारत और NAM

  • संस्थापक सदस्य: भारत NAM के संस्थापक सदस्यों में से एक है और इसने वर्ष 1983 में नई दिल्ली में 7वें NAM शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी।
  • भारत के लिए NAM की उपयोगिता: इसने अंतरराष्ट्रीय मंचों और मामलों में भारत को एक उच्च स्थान और मजबूत आवाज प्रदान की है। भारत ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में उभरने के लिए NAM जैसी पहल का लाभ उठा सकता है।
    • वर्ष 2023 में भारत की G-20 की अध्यक्षता ने ग्लोबल साउथ की चिंताओं को G-20 नेताओं के एजेंडे में सबसे आगे रखा है।
    •  उदाहरण के लिए, भारत द्वारा आयोजित वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट (Voice of the Global South Summit) में लगभग 130 देशों की भागीदारी देखी गई है।

NAM की वर्तमान प्रासंगिकता

  • विश्व व्यवस्था में NAM की उपयोगिता: यह देखते हुए कि दुनिया का आधा हिस्सा अभी भी NAM से संबंधित मुद्दों से जूझ रहा है, यह निम्नलिखित क्षेत्रों में सहायक हो सकता है:
    • संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों का पुनर्गठन तथा लोकतंत्रीकरण करना। 
    •  खाद्य सहयोग, जनसंख्या, व्यापार और निवेश के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना।
    • व्यापार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के न्यायसंगत अंतरराष्ट्रीय प्रवाह को सुनिश्चित करना।
    • विकासशील देशों में हस्तक्षेप और आर्थिक शर्तों के थोपने का विरोध करना।
  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ाना: भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव  (शीतयुद्ध के बाद) के बीच, आंदोलन का ध्यान दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने की ओर केंद्रित हो रहा है।
    • विदेशी ऋण और गरीबी जैसी ग्लोबल साउथ द्वारा सामना की जाने वाली आम समस्याओं को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया है।
  • विकासशील विश्व में 4F तक पहुँच सुनिश्चित करना: NAM निश्चितता, पारदर्शिता और समानता के साथ विकासशील दुनिया को खाद्य, वित्त, ईंधन और उर्वरक ( Food, Finance, Fuel and Fertilizers) की उपलब्धता सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • विश्वव्यापी संकट के प्रति समन्वित, समावेशी और न्यायसंगत वैश्विक प्रतिक्रिया:  NAM वैश्विक संकट के खिलाफ लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय एकजुटता को बढ़ावा दे सकता है।
    • भारतीय प्रधानमंत्री ने “कोविड-19 के खिलाफ एकजुट” (United Against COVID-19) विषय पर आधारित ऑनलाइन NAM शिखर सम्मेलन में भाग लिया, जिसमें महामारी के संकट को संबोधित किया गया। शिखर सम्मेलन का उद्देश्य कोविड-19 से लड़ने में वैश्विक एकजुटता को बढ़ावा देना और राज्यों तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों को सामूहिक रूप से महामारी से निपटने के लिए प्रेरित करना था।
  • अंतरराष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान: NAM विकसित और विकासशील देशों के बीच विभिन्न विषयों पर विवादों को बातचीत और शांतिपूर्वक हल करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक भागीदार के मामले में निष्पक्ष निर्णय लिया जाए।
  • चर्चा का मंच: NAM शिखर सम्मेलन का एक महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि यह आंदोलन के नेताओं को द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय चिंता के मुद्दों पर एक-दूसरे से मिलने और विचार-विमर्श करने का अवसर प्रदान करता है।

NAM से जुड़ी चुनौतियाँ

  • भारत के लिए प्रासंगिकता में कमी: भारत का प्रमुख राष्ट्रीय हित वैश्विक राजनीति के केंद्रीय स्तंभों में से एक बनना है, ऐसे में NAM आज उतना प्रासंगिक नहीं रहा है।
    • उदाहरण के लिए, भारत के विदेश मंत्री ने हाल ही में कहा कि NAM एक विशेष समय  में पैदा हुआ विचार है और उनका मानना ​​है कि भारत को NAM से कार्रवाई की स्वतंत्रता की अवधारणा का पालन करते हुए, समकालीन बदलावों पर कुशलतापूर्वक प्रतिक्रिया देने के लिए इससे आगे बढ़ना चाहिए।
    • वर्ष 2019 में अजरबैजान में और वर्ष 2016 में वेनेजुएला में हुए गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व उपराष्ट्रपति स्तर पर किया गया था। यह लगातार दूसरी बार था जब भारतीय प्रधानमंत्री शिखर सम्मेलन में अनुपस्थित रहे।
  • NAM का उद्देश्य पूरा हुआ: NAM का मुख्य उद्देश्य नव स्वतंत्र तीसरी दुनिया के देशों को उन गैर-जरूरी मुद्दों से दूर रखना था, जो उन्हें किसी भी गुट में शामिल होने पर परेशान कर सकते थे। चूँकि शीतयुद्ध समाप्त हो गया है,  इसलिए NAM का उद्देश्य अब अस्तित्व में नहीं है, जिसके कारण NAM का भी अस्तित्व समाप्त हो जाना चाहिए।
    • इसके अलावा NAM के एजेंडे का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा सभी उपनिवेशित देशों के उपनिवेशवाद को खत्म करने पर जोर देना था जिसे अब हासिल भी किया जा चुका है।
  • एजेंडा आगे बढ़ाने का उपकरण: NAM की कभी-कभी अपने मूल उद्देश्य से भटकने और सदस्य देशों द्वारा अपने व्यक्तिगत एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक उपकरण के रूप में इसका दुरुपयोग करने के लिये इसकी आलोचना की गई है।
    • उदाहरण के लिए, अजरबैजानी राष्ट्रपति ने NAM के अध्यक्ष के रूप में पाकिस्तान के एजेंडे को आगे बढ़ाया और चीन को समूह के पर्यवेक्षक के रूप में अपना एजेंडा आगे बढ़ाने की कोशिश करते हुए भी देखा गया है।
  • निष्प्रभावी संगठन (Toothless Organisation): आज, संयुक्त राष्ट्र के बाद देशों का दूसरा सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय संगठन काफी हद तक निष्प्रभावी है। चूँकि NAM एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए एक मंच के रूप में भी कार्य करने की स्थिति में नहीं है।
    • NAM के पास कोई चार्टर नहीं है और इस पर कोई सख्त नियम नहीं है सदस्य देशों को एक-दूसरे के कार्यों का बचाव करना है या नहीं।

आगे की राह

  • बढ़ती असमानता से निपटना: ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट के अनुसार, आज दुनिया की सबसे अमीर 1% आबादी के पास 70% से अधिक वैश्विक संपत्ति है। उत्तर और दक्षिण, अमीर तथा गरीब एवं पूँजीपति व श्रमिक वर्गों के बीच बढ़ती असमानताओं की पृष्ठभूमि में, आज NAM और अधिक आवश्यक है।
    • NAM विकासशील देशों को आर्थिक असमानताओं को सामूहिक रूप से संबोधित करने एक मंच प्रदान करता है, जिससे एक अधिक संतुलित और समावेशी वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
  • NAM’s के हितों के क्षेत्र को बढ़ाना: वैश्विक राजनीति में लगातार प्रासंगिक और प्रभावशाली बने रहने के लिए, NAM को तत्काल नए विषयों और मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। अपने दायरे को व्यापक बनाते हुए, NAM ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, एड्स जैसी स्वास्थ्य चिंताओं, नशीले पदार्थों की तस्करी, बढ़ती गरीबी, खाद्य संकट और बेरोजगारी जैसे विभिन्न वैश्विक मुद्दों को शामिल कर सकता है।
  • अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में सुधारों को आगे बढ़ाना: अब समय आ गया है कि गुटनिरपेक्ष देश अतीत का मूल्यांकन करें और भविष्य की नीतियों को तैयार करें ताकि वह वर्तमान अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बदल सकें।
    • कोई भी NAM देश अकेले इन नई वास्तविकताओं का सामना नहीं कर सकता। इसलिए, NAM के देशों को समान विचार और कार्रवाई के लिए एक साथ रहना और कार्य करना जारी रखना चाहिए।
  • भारत और गुटनिरपेक्ष आंदोलन: भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सिद्धांतों और उद्देश्यों के प्रति प्रतिबद्ध है, जिसमें फिलिस्तीनी मुद्दे के लिए लंबे समय से चली आ रही एकजुटता और समर्थन भी शामिल है।

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