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केले की जीन-एडिटिंग

Lokesh Pal March 12, 2025 03:25 7 0

संदर्भ

ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने एक नया आनुवंशिक रूप से उन्नत केले की प्रजाति विकसित की है, जो उन्हें लंबे समय तक संगृहीत रखने तथा भूरा होने से बचाएगा।

केले के बारे में

  • जीनस: केले मूसासी (Musaceae) परिवार के मूसा जीनस का एक लंबा, खाद्य फल (वनस्पति विज्ञान में एक बेरी) है। 
  • प्रजातियाँ: आधुनिक खाद्य किस्में दो प्रजातियों अर्थात् मूसा एक्यूमिनाटा (Musa Acuminata) और मूसा बाल्बिसियाना (Musa Balbisiana) और उनके प्राकृतिक सँकर से विकसित हुई हैं।
  • मूल: केले की खेती दक्षिण-पूर्व एशिया के आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में हुई, जहाँ भारत इसका एक उद्गम केंद्र रहा है। फल केला (मूसा प्रजाति) भारत में आम के बाद दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण फलदार फसल है, जो मूल रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया के वर्षा वनों में पाई जाती है।
  • सातवीं शताब्दी के दौरान इसकी खेती मिस्र और अफ्रीका तक फैल गई। वर्तमान में केले की खेती भूमध्य रेखा के 300 उत्तर और 300 दक्षिण के बीच दुनिया के गर्म उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जा रही है।

आनुवंशिक रूप से इंजीनियर्ड केले के बारे में

  • विकसितकर्ता: जीएम केले को ब्रिटेन स्थित बायोटेक कंपनी ट्रॉपिक (Tropic) द्वारा विकसित किया गया है।
  • कंपनी का दावा है कि जीएम केला छिलने के बाद भी 12 घंटे तक ताजा एवं पीला रहता है, तथा फसल कटाई और परिवहन के दौरान टकराने पर इसके भूरे होने की संभावना भी कम होती है।
  • उद्देश्य: उपज में वृद्धि करना, शेल्फ-लाइफ को बढ़ाना तथा पनामा रोग (Panama Disease) और ब्लैक सिगाटोका रोग (Black Sigatoka Disease) जैसे रोगों के प्रति केले की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करना।

  • प्रयुक्त तकनीक: CRISPR जैसी उन्नत जीन एडिटिंग तकनीक के साथ-साथ जीन साइलेंसिंग टूल GEiGS (जीन एडिटिंग प्रेरित जीन साइलेंसिंग) का उपयोग रोग प्रतिरोधक क्षमता और बेहतर गुणवत्ता जैसे मूल्यवान गुणों को विकसित करने के लिए किया गया है।
  • विधि: मौजूदा केले के जीन में एंजाइम पॉलीफेनोल ऑक्सीडेज (Polyphenol Oxidase-PPO) का उत्पादन अक्षम किया जाता है।
    • यह संशोधन केले के भूरे होने को तो रोकता है, लेकिन उसके पकने की प्रक्रिया को नहीं रोकता है।
  • महत्त्व
    • खाद्य अपशिष्ट में कमी: नई केले की किस्म में खाद्य अपशिष्ट में 25% से अधिक की कमी लाने की क्षमता है, क्योंकि इससे आपूर्ति शृंखला में भूरापन कम होगा और पकने में देरी होगी।
    • CO2 उत्सर्जन: नॉन-ब्राउनिंग केले की किस्म अकेले केले के निर्यात बाजार में 9 मिलियन टन से अधिक CO2 उत्सर्जन में कमी ला सकती है, जो प्रत्येक वर्ष सड़क से 2 मिलियन यात्री वाहनों को हटाने के बराबर है।
  • अनुकूलन
    • नॉन-ब्राउनिंग जीन-एडिटेड केले को फिलीपींस में उत्पादन के लिए मंजूरी दे दी गई है।
    • जीएम आर्कटिक सेब को वर्ष 2017 से अमेरिका में व्यावसायिक बिक्री के लिए मंजूरी दी गई थी।
      • ओकानागन स्पेशियलिटी फ्रूट्स इंक (Okanagan Specialty Fruits Inc.) द्वारा विकसित आर्कटिक सेबों में भी इसी जीन (PPO) को निष्क्रिय कर दिया गया था। 

केले का भूरा होना (Browning of Bananas)

  • पकने की प्रक्रिया: केले अपने पकने के चक्र के दौरान गहरे हरे रंग से लेकर पकने और खाने योग्य होने पर स्वादिष्ट पीले रंग में बदल जाते हैं तथा अपने जीवन चक्र के अंत में एथिलीन नामक हार्मोन के कारण उनका रंग हल्का भूरा हो जाता है।
  • एथिलीन उत्पादन: खरबूजे और खट्टे फलों जैसे अन्य फलों के विपरीत केले की कटाई के बाद भी एथिलीन का उत्पादन जारी रहता है।
    • केले के प्रबंधन के दौरान एथिलीन के संपर्क में आने से कई जीनों में रासायनिक अभिक्रिया शुरू हो जाती है, जैसे कि एंजाइम पॉलीफेनोल ऑक्सीडेज (PPO) का उत्पादन।
    • एथिलीन की अधिक मात्रा के उत्पादन से इसके पकने और भूरे होने की प्रक्रिया में तेजी आती है।
  • पॉलीफेनोल ऑक्सीडेज (Polyphenol Oxidase-PPO): यह एंजाइम केले के भूरे रंग के लिए जिम्मेदार है।
    • PPO ऑक्सीजन के संपर्क में आता है और केले में मौजूद पीले रंग को भूरे रंग में बदल देता है।
    • टमाटर, खरबूजे, कीवीफ्रूट और मशरूम में भी पॉलीफेनोल ऑक्सीडेज के उत्पादन को रोकने का काम किया गया है।

एंजाइम पॉलीफेनोल ऑक्सीडेज (PPO) के बारे में

  • पॉलीफेनॉल ऑक्सीडेज (PPO) एक ताँबा युक्त एंजाइम है, जो व्यापक रूप से पौधों, जानवरों, फलों, बैक्टीरिया और कवक में पाया जाता है और एंजाइमेटिक ब्राउनिंग और रक्षा तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • कार्यप्रणाली
    • एंजाइमेटिक ब्राउनिंग: PPO एंजाइमेटिक ब्राउनिंग प्रतिक्रिया के लिए जिम्मेदार है, जो तब होती है, जब पौधे के ऊतकों को नुकसान पहुँचता है या तनाव होता है, जिससे गहरे रंग के पिगमेंट बनते हैं।
    • फेनोलिक यौगिकों का ऑक्सीकरण: PPO ऑक्सीजन की उपस्थिति में मोनोफेनॉल और ओ-डिफेनॉल (O-Diphenols) के ऑक्सीकरण को ओ-क्विनोन (O-Quinones) में उत्प्रेरित करता है, जो फिर मेलेनिन जैसे भूरे या काले रंग के पिगमेंट बनाने के लिए पॉलीमराइज हो सकते हैं।
  • पॉलीफेनॉल ऑक्सीडेज (PPO) गतिविधि को प्रभावित करने वाले कारक: नीचे दिए गए कारक एंजाइम की उत्प्रेरक दक्षता और एंजाइमेटिक ब्राउनिंग की दर को प्रभावित कर सकते हैं।
    • तापमान: PPO गतिविधि तापमान पर निर्भर होती है, जिसमें विभिन्न पौधों की प्रजातियाँ अलग-अलग इष्टतम तापमान प्रदर्शित करती हैं, जो आम तौर पर 30-50 °C की सीमा में होता है।
      • उदाहरण: कोको पल्प (Cocoa Pulp) और बीज में PPO गतिविधि धीरे-धीरे बढ़ते तापमान के साथ कम हो गई, जो दर्शाता है कि उच्च तापमान अनुकूल नहीं है।
    • pH: इष्टतम pH से विचलन PPO अस्थिरता और प्रक्रिया को धीमा करने का कारण बन सकता है।
    • ऑक्सीजन: PPO गतिविधियाँ ऑक्सीजन की उपस्थिति पर निर्भर करती हैं, क्योंकि ये एंजाइम की उत्प्रेरक अभिक्रिया के लिए एक आवश्यक सह-कारक है।
      • उदाहरण: ऑक्सीजन का स्तर फलों और सब्जियों में एंजाइमेटिक ब्राउनिंग की दर को प्रभावित कर सकता है।
    • माइक्रोबियल गतिविधि: माइक्रोबियल गतिविधियाँ भी PPO गतिविधि को प्रभावित कर सकती हैं, क्योंकि कुछ सूक्ष्मजीव ऐसे यौगिक उत्पन्न कर सकते हैं, जो PPO गतिविधि को बाधित या उत्तेजित करते हैं।
    • कटाई से पहले की स्थितियाँ: तनाव या पोषक तत्त्वों की कमी जैसी कटाई से पहले की स्थितियाँ PPO की अभिव्यक्ति और गतिविधियों को प्रभावित कर सकती हैं।
  • औद्योगिक अनुप्रयोग
    • खाद्य उद्योग: PPO-उत्प्रेरित ब्राउनिंग वांछनीय हो सकती है, उदाहरण के लिए, आलूबुखारा, डार्क किशमिश, काली चाय और ग्रीन कॉफी बीन्स के उत्पादन में।
    • बायोसेंसर: PPO का उपयोग विभिन्न नमूनों में फिनोल जैसे विशिष्ट यौगिकों की उपस्थिति का पता लगाने के लिए विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए बायोसेंसर के विकास में बायोकैटेलिस्ट के रूप में किया जा सकता है।
    • अपशिष्ट जल उपचार: PPO, विशेष रूप से टायरोसिनेस और लैकेस का उपयोग फिनोल को हटाकर औद्योगिक अपशिष्ट जल के उपचार के लिए किया जा सकता है और अपशिष्ट जल से प्रदूषकों को हटाने के लिए बायोरेमेडिएशन प्रक्रियाओं में इसका उपयोग किया जा सकता है।
    • फार्मास्यूटिकल और कॉस्मेटिक उद्योग: PPO को फार्मास्यूटिकल और कॉस्मेटिक उद्योगों में बायोकैटेलिस्ट के रूप में नियोजित किया गया है।

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