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भारत में पोषण संकट

Lokesh Pal March 11, 2024 05:45 122 0

संदर्भ

हाल ही में 92 निम्न और मध्यम आय वाले देशों (Low- and Middle-Income Countries- LMIC) में जीरो-फूड चिल्ड्रेन अर्थात ‘जिन बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता है की गणना करने वाले एक अध्ययन में भारत को गरीब देशों की श्रेणी में रखा गया है।

अध्ययन के बारे में 

  • यह शोध JAMA नेटवर्क पत्रिका में प्रकाशित हुआ था और इसमें 92 LMIC में छह से 23 महीने की आयु के 2,76,379 शिशुओं पर अध्ययन किया गया था।
  • डेटा संग्रह के तरीके: शोधकर्ताओं ने जनसांख्यिकीय और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (Demographic and Health Surveys- DHS) और मल्टीपल इंडिकेटर क्लस्टर (Multiple Indicator Cluster- MICS) सर्वेक्षण से डेटा एकत्र किया।
  • अवधि: 20 मई, 2010 से 27 जनवरी, 2022 तक।
  • भारत विशिष्ट डेटा: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के वर्ष 2019-2021 डेटा का उपयोग किया गया।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • जीरो फूड चिल्ड्रेन की व्यापकता: भारत में सबसे अधिक 7 मिलियन (सर्वेक्षण में सभी जीरो फूड चिल्ड्रेन का लगभग आधा) ‘जीरो- फूड’ चिल्ड्रेन हैं।
    • 3 प्रतिशत जीरो-फूड चिल्ड्रेनके साथ, भारत पश्चिमी अफ्रीकी देशों गिनी (21.8 प्रतिशत) और माली (20.5 प्रतिशत) के बाद वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर था। नाइजीरिया‘जीरो-फूड’ के अंतर्गत आने वाले बच्चों की संख्या (9,62,000) के साथ दूसरे स्थान पर है, उसके बाद पाकिस्तान (8,49,000) का स्थान है।
  • क्षेत्रीय भिन्नताएँ: ‘जीरो-फूड’ उदाहरणों की व्यापकता, क्षेत्रों के अनुसार अलग-अलग है, सबसे अधिक दर दक्षिण एशिया (7 प्रतिशत) और पश्चिम तथा मध्य अफ्रीका (10.5 प्रतिशत) में देखी गई है।
  • स्तनपान पर डेटा: ‘जीरो-फूड’ की स्थिति का अनुभव करने वाले 99 प्रतिशत से अधिक बच्चों को स्तनपान कराया गया था।
  • प्रत्येक उम्र में जीरो-फूडकी स्थिति में भिन्नता: 6 से 11 महीने की आयु के 20 प्रतिशत बच्चों को ‘जीरो-फूड’ मिलता था, जो 12 से 17 महीने की उम्र के बच्चों के लिए घटकर 6 प्रतिशत और 18 से 23 महीने की आयु के बच्चों के लिए 4.1 प्रतिशत हो गया।

जीरो फूड चिल्ड्रेन (Zero Food Children)

  • वे बच्चे जिन्होंने 24 घंटों के दौरान किसी भी प्रकार का दूध, खाद्य फार्मूला या ठोस अथवा तरल भोजन का सेवन नहीं किया है।
  • लगभग छह महीने की उम्र में, बच्चे को आवश्यक पोषण प्रदान करने के लिए स्तनपान पर्याप्त नहीं रहता है।

भारत संबंधी विशिष्ट निष्कर्ष

  • शून्य-प्रोटीन (Zero-Protein): 6-23 महीने के आयु वर्ग के 80% से अधिक बच्चोंने पूरे दिन(‘शून्य-प्रोटीन’) में किसी भी प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन नहीं किया था।
    • NFHS-5 के आँकड़ों के अनुसा, 6-23 महीने की आयु के लगभग 40% बच्चों ने पूरे दिन कोई अनाज (रोटी, चावल आदि) नहीं खाया।
  • जीरो मिल्क (Zero-Milk):6-23 महीने के आयु वर्ग के 10 में से छह शिशु प्रत्येक दिन किसी भी रूप में दूध का सेवन नहीं करते हैं।

भारत की पोषण स्थिति (Nutritional Status of India)

भारत में बाल कुपोषण (Child Malnutrition in India)

  • लंबे समय से चली आ रही बाल कुपोषण चुनौती: वर्ष 1992-1993 में पहले राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey- NFHS) से पता चला कि चार वर्ष से कम उम्र के आधे से अधिक बच्चे कम वजन वाले और अविकसित थे, छह में से एक अत्यधिक पतला (वेस्टेड) था।
    • NFHS-5 के आँकड़ों के अनुसार, जीरो फूड का प्रचलन 6-11 महीने के शिशुओं में 30%, 12-17 महीने के बच्चों में 13% और 18-23 महीने के बच्चों में 8% था।
  • वैश्विक कुपोषण रैंकिंग (Global Malnutrition Ranking): वैश्विक भूख सूचकांक (2022) में भारत 121 देशों में से 107वें स्थान पर है।
    • भारत में बच्चों की कमजोरी दर (लंबाई की तुलना में कम वजन) 3% है, जो वर्ष 2014 (15.1%) और यहाँ तक कि वर्ष 2000 (17.15%) में दर्ज स्तरों से भी अत्यंत खराब स्थिति में है। यह दुनिया के किसी भी देश के लिए सबसे अधिक है।
  • अविकसित बच्चे (Stunted Children): 22 राज्यों के NFHS (2019-2021) के पाँचवें दौर के आँकड़ों के अनुसार, केवल नौ में अविकसित बच्चों की संख्या में गिरावट देखी गई, 10 में अविकसित बच्चों में और छह में कम वजन वाले बच्चों में गिरावट देखी गई।
    • 35% बच्चे बौने (Stunted) हैं और 57% महिलाएँ और 25% पुरुष एनीमिया से पीड़ित हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार अनुशंसित कैलोरी सेवन

  • छह महीने की उम्र के बच्चों में, दैनिक कैलोरी का 33 प्रतिशत भोजन से मिलने की उम्मीद की जाती है।
  • 12 महीने की उम्र में, दैनिक कैलोरी का 61 प्रतिशत भोजन से से मिलने की उम्मीद की जाती है।

भारत में पोषण सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियाँ

  • फसल पैटर्न और कृषि पद्धतियाँ: उदाहरण के लिए, चावल और गेहूँ की कृषि को अक्सर बाजरा और दालों जैसी पोषक तत्त्वों से भरपूर फसलों से अधिक महत्त्व दिया जाता है, जिससे पोषण संबंधी असुरक्षा उत्पन्न होती है।
    • उदाहरण के लिए: वित्तीय वर्ष 2022 के अंत में, भारत में चावल की खेती के लिए 46 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भूमि थी, जबकि वर्ष 2021-22 में बाजरा की खेती का क्षेत्र 48 मिलियन हेक्टेयर है।
  • अपर्याप्त फंडिंग: कई पोषण कार्यक्रम बजट की कमी से ग्रस्त हैं। भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय अभी भी इसके सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3% है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में हरित क्रांति के दौरान विकसित बेहतर सुविधाओं के कारण पौष्टिक भोजन तक बेहतर पहुँच है, जबकि झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को सीमित संसाधनों के कारण कुपोषण की उच्च दर का सामना करना पड़ता है।
  • एनवायरनमेंटल एंटरोपैथी (Environmental Enteropathy): खराब स्वच्छता और साफ-सफाई के कारण बच्चों में‘एनवायरनमेंटल एंटरोपैथी’ नामक एक उप-नैदानिक ​​स्थिति पैदा होती है, जो पोषण संबंधी कुपोषण का कारण बनती है और दस्त, अल्प विकास तथा स्टंटिंग सहित कई प्रकार की समस्याओं का स्रोत है।
    • उदाहरण के लिए: उत्तर प्रदेश और बिहार सहित कई राज्यों में जलजनित बीमारियों और कुपोषण की व्यापकता देखी गई है।
  • सामाजिक कारक: भारतीय समाज में महिलाओं की निम्न स्थिति, बच्चों की देखभाल की खराब प्रथाएँ, जैसे जन्म के बाद तुरंत स्तनपान शुरू न करना और बाल विवाह।
    • प्रत्येक वर्ष, भारत में 18 वर्ष से कम उम्र की कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी हो जाती है। भारत में बाल वधुओं (18 वर्ष से पहले विवाह) से जन्मे शिशुओं में कुपोषण का खतरा अधिक होता है।
  • भोजन की बर्बादी: भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 67 मिलियन टन भोजन बर्बाद होता है, जिसकी कीमत लगभग 92,000 करोड़ रुपये आँकी गई है।
    • संदर्भ के लिए, यह राशि पूरे बिहार को एक वर्ष तक खिलाने के लिए पर्याप्त है। भारत में सालाना लगभग 21 मिलियन मीट्रिक टन गेहूँ सड़ जाता है। यह आँकड़ा ऑस्ट्रेलिया के कुल सालाना उत्पादन के बराबर है।
  • वितरण की राजनीति: अमर्त्य सेन के अनुसार, भूख आम तौर पर खाद्य वितरण समस्याओं या विकासशील देशों में सरकारी नीतियों से उत्पन्न होती है, न कि खाद्य उत्पादन की अपर्याप्तता से। भ्रष्टाचार, लीकेज, बहिष्करण-समावेशन त्रुटि आदि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को अक्षम बनाते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ:बार-बार सूखा, बाढ़ और अन्य जलवायु संबंधी घटनाओं के कारण भोजन की कमी हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों ने जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का अनुभव किया है, जिससे फसल की पैदावार प्रभावित हुई है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत विविधता का अभाव: PDS में मोटे अनाज, दालें आदि जैसे अधिक पौष्टिक खाद्य पदार्थों का अभाव है।
    • भारत में प्रोटीन की खपत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) द्वारा सुझाए गए प्रति दिन 48 ग्राम के अनुशंसित दैनिक सेवन से काफी कम है।
    • एक औसत भारतीय वयस्क के लिए प्रोटीन की अनुशंसित मात्रा 8 से 1 ग्राम प्रति किलोग्राम शरीर के वजन के अनुसार है।
  • सांस्कृतिक अभ्यास: उदाहरण के लिए, ग्रामीण राजस्थान में एक अध्ययन में पाया गया कि महिलाएँ सबसे अंत में भोजन करती हैं और परिवार के अन्य सदस्यों की तुलना में कम मात्रा में पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करती हैं।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • प्रत्यक्ष लक्षित हस्तक्षेप: सरकार प्रत्यक्ष लक्षित हस्तक्षेप के रूप में अंब्रेला इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज स्कीम (Integrated Child Development Services Scheme- ICDS) के तहत आंगनवाड़ी सेवाओं, किशोर लड़कियों के लिए योजना और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना जैसी कई योजनाओं तथा कार्यक्रमों को लागू करती है।
  • पोषण अभियान: इसका उद्देश्य पंचायती राज संस्थानों/ग्राम संगठनों को शामिल करके देश में बच्चों (0-6 वर्ष) के बीच बौनेपन, कम वजन और एनीमिया की व्यापकता को रोकना तथा जन्म के समय कम वजन की व्यापकता को कम करना है।
  • एनीमिया मुक्त भारत (Anaemia Mukt Bharat- AMB) अभियान: इसे वर्ष 2018 में प्रजनन आयु वर्ग के बच्चों, किशोरों और महिलाओं में एनीमिया के प्रसार को कम करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • पोषण वाटिका (Poshan Vatikas): पोषण प्रथाओं में पारंपरिक ज्ञान का लाभ उठाते हुए आहार विविधता अंतर को पूरा करने के लिए आंगनवाड़ी केंद्रों पर पोषण वाटिका के विकास का समर्थन करने के लिए एक कार्यक्रम भी शुरू किया गया है।
  • फूड फोर्टिफिकेशन: आवश्यक पोषक तत्त्वों के साथ मुख्य खाद्य पदार्थों के फोर्टिफिकेशन को प्रोत्साहित करना। उदाहरण के लिए, कर्नाटक सरकार ने राज्य की आबादी की पोषण स्थिति में सुधार के लिए खाद्य तेलों, गेहूँ के आटे और नमक की वितरण प्रणाली को मजबूत बनाने का आदेश दिया गया।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): उदाहरण के लिए, अक्षय पात्र फाउंडेशन भूख और कुपोषण दोनों को संबोधित करते हुए स्कूली बच्चों को पौष्टिक मध्याह्न भोजन प्रदान करने के लिए विभिन्न राज्यों में सरकार के साथ साझेदारी करती है।

आगे की राह 

  • कृषि उत्पादकता में सुधार: ड्रिप सिंचाई और सटीक खेती के माध्यम से पानी का वैज्ञानिक उपयोग सुनिश्चित करके, मिश्रित फसलों, फसल चक्र और जैव उर्वरकों के साथ एक स्वस्थ वातावरण तैयार करें तथा पॉली हाउस, ग्रीन हाउस, शेड हाउस एवं अन्य जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना।
  • सार्वजनिक प्रणालियों को मजबूत करना: सार्वजनिक वितरण प्रणाली, आईसीडीएस और स्वास्थ्य सेवाओं की दक्षता बढ़ाना सर्वोपरि है।
    • उदाहरण के लिए: छत्तीसगढ़ में पीडीएस का कंप्यूटरीकरण इस बात का उदाहरण है कि कैसे प्रौद्योगिकी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा सकती है और सेवा वितरण में सुधार कर सकती है।
  • बजटीय आवंटन में वृद्धि: पर्याप्त बजटीय आवंटन पोषण सुरक्षा के मुद्दे से निपटने में मदद कर सकता है। शोध से पता चलता है कि भारत में पोषण पर खर्च किया गया प्रत्येक $1 के बदले सार्वजनिक आर्थिक रिटर्न के रूप में $34.1 से $38.6 प्राप्त हो सकता है, जो वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक है।
  • पोषण शिक्षा और जागरूकता: जन जागरूकता अभियान लोगों को संतुलित आहार, स्वच्छता प्रथाओं और स्तनपान आदि के महत्त्व के बारे में शिक्षित कर सकते हैं।
    • उदाहरण: छिपी हुई भूख को रोकने के लिए दिन की मेरी थाली राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद द्वारा जारी एक पोषण जागरूकता पोस्टर है।
    • अन्य जागरूकता अभियानों मेंईट राइट अभियान, भोजन का अधिकार आदि शामिल हैं।
  • अंतर-विभागीय अभिसरण को मजबूत करना:इस संबंध में, बांग्लादेश द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण को भारत में दोहराया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए: बांग्लादेश की राष्ट्रीय पोषण कार्य योजना बाल कुपोषण से निपटने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, मत्स्यपालन और पशुधन, पर्यावरण, सामाजिक सुरक्षा, आपदा प्रबंधन आदि को शामिल करते हुए एक बहु-क्षेत्रीय अभिसरण रणनीति पर आधारित है।
  • अंतरराष्ट्रीय अनुभव से सीखाना: थाईलैंड 1980-1988 की अवधि में बाल कुपोषण को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसके दौरान बाल कुपोषण (कम वजन) की दर प्रभावी ढंग से 50 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक कम हो गई थी।
    • इसे गहन विकास निगरानी और पोषण शिक्षा, मजबूत पूरक आहार प्रावधान, कवरेज की उच्च दर सुनिश्चित करना, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ आयरन और विटामिन अनुपूरण आदि हस्तक्षेपों के मिश्रण के माध्यम से हासिल किया गया था।

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