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भारत में मोटापे की महामारी

Lokesh Pal March 05, 2025 03:20 54 0

संदर्भ 

लैंसेट अध्ययन में भविष्यवाणी की गई है कि वर्ष 2050 तक भारत की लगभग एक-तिहाई आबादी अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त होगी।

बॉडी मास इंडेक्स (Body Mass Index- BMI)

  • बॉडी मास इंडेक्स (BMI), जिसे पहले क्वेटलेट इंडेक्स (Quetelet Index) के नाम से जाना जाता था, यह जाँचने का एक तरीका है कि किसी वयस्क का वजन स्वस्थ है या नहीं।
    • इसकी गणना इस प्रकार की जाती है: वजन (किलोग्राम) / ऊँचाई² (मी.²)।
  • BMI ज्ञात करने के लिए, किसी व्यक्ति के वजन (किलोग्राम) को उसकी ऊँचाई (मी.) के वर्ग से विभाजित किया जाता है।
  • स्वस्थ BMI रेंज: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशा-निर्देशों के आधार पर एक सामान्य BMI 18.5 और 24.9 के बीच होता है।

मोटापे के बारे में

  • परिभाषा: ओबेसिटी मेडिसिन एसोसिएशन (Obesity Medicine Association- OMA) मोटापे को एक पुरानी, ​​​​पुनरावर्ती, बहुक्रियात्मक न्यूरोबिहेवियरल बीमारी के रूप में परिभाषित करता है, जो शरीर में अत्यधिक वसा संबंधी विशेषता है, जिससे वसीय ऊतक की शिथिलता और नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव उत्पन्न होता है।
    • इसे आधिकारिक तौर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा एक बीमारी के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • अधिक वजन और मोटापे का निदान: BMI मोटापे के संकेतक के रूप में कार्य करता है, कमर की परिधि जैसे अतिरिक्त उपाय मोटापे के अधिक सटीक आकलन में सहायता करते हैं।
    • वयस्क: अधिक वजन को 25 या उससे अधिक BMI के रूप में परिभाषित किया जाता है, जबकि मोटापा 30 या उससे अधिक BMI को कहा जाता है।
    • रुग्ण मोटापा (Morbid obesity) तब होता है, जब BMI 35 से अधिक या उसके बराबर होता है।
  • BMI की सीमाएँ: BMI वसा तथा मांसपेशियों के बीच अंतर नहीं स्पष्ट करता है, जिससे यह मोटापे का अपूर्ण संकेतक बन जाता है।
    • यह वसा वितरण को प्रकट करने में विफल रहता है, जो स्वास्थ्य जोखिमों का आकलन करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

भारतीयों के लिए मोटापे से संबंधित नए दिशा-निर्देशों के कारण

भारतीय डॉक्टरों और शोधकर्ताओं ने कई प्रमुख कारकों के कारण मोटापे से संबंधित अद्यतन दिशा-निर्देशों की आवश्यकता पर बल दिया:

  • आनुवंशिक प्रवृत्ति: भारतीय आनुवंशिक रूप से पेट की चर्बी के संचय के लिए अधिक प्रवण हैं, जो चयापचय सिंड्रोम, टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग के जोखिम को काफी हद तक बढ़ाता है।
  • BMI की सीमाएँ: वर्ष 2009 के दिशा-निर्देश केवल BMI पर निर्भर थे, लेकिन शोध से पता चलता है कि यह अपर्याप्त है, विशेषतः भारतीयों के लिए।
    • पेट का मोटापा: अध्ययनों से पता चला है कि भारतीय आबादी में पेट की अतिरिक्त चर्बी, सूजन और प्रारंभिक स्वास्थ्य जोखिमों के मध्य एक मजबूत संबंध है।
  • बेहतर जोखिम आकलन: नए दिशा-निर्देश स्वास्थ्य पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले मोटापे और न्यूनतम जोखिम वाले मामलों के बीच अंतर करते हैं।

भारत में मोटापे के संबंध में अद्यतन दिशा-निर्देश (वर्ष 2025)

  • मोटापे का दो-चरणीय वर्गीकरण प्रस्तुत किया गया
    • चरण 1: अंग के कार्य पर ध्यान देने योग्य प्रभाव के बिना वसा संचय में वृद्धि।
    • चरण 2: वसा संचय अंग के कार्य और दैनिक गतिविधियों को प्रभावित करता है।
  • निदान के लिए एक अधिक व्यापक दृष्टिकोण की सिफारिश की गई, जिसमें शामिल हैं:
    • कमर की परिधि: केंद्रीय मोटापे को मापता है।
    • कमर से ऊँचाई का अनुपात: हृदय और चयापचय जोखिमों का बेहतर पूर्वानुमान।
    • शरीर में वसा का प्रतिशत: समग्र वसा के स्तर का स्पष्ट आकलन प्रदान करता है।

हाल के लैंसेट अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • वैश्विक रुझान: वैश्विक अनुमानों से संकेत मिलता है कि आधे से अधिक वयस्क और एक-तिहाई बच्चे और किशोर अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त होंगे।
  • भारत (वर्ष 2021): वर्ष 2021 में अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त युवाओं की कुल संख्या के मामले में भारत सबसे आगे रहा, जिसने चीन और अमेरिका को पीछे छोड़ दिया।
  • किशोरों में बढ़ता मोटापा (15-24 वर्ष)
    • युवा पुरुष: वर्ष 1990 – 0.4 करोड़ → वर्ष 2021 – 1.68 करोड़ → वर्ष 2050 – 2.27 करोड़।
    • युवा महिलाएँ: वर्ष 1990 – 0.33 करोड़ → वर्ष 2021 – 1.3 करोड़ → वर्ष 2050 – 1.69 करोड़।
  • बचपन में बढ़ता मोटापा
    • लड़के: वर्ष 1990 – 0.46 करोड़ → वर्ष 2021 – 1.3 करोड़ → 2050 – 1.6 करोड़।
    • लड़कियाँ: वर्ष 1990 – 0.45 करोड़ → वर्ष 2021 – 1.24 करोड़ → वर्ष 2050 – 1.44 करोड़।

दुबलापन तथा कम वजन

  • दुबलापन (BMI <17.0): ऐसी स्थिति जिसमें शरीर का वजन काफी कम होता है, जो प्रायः बीमारी, शारीरिक क्षमता में कमी, थकान और मृत्यु दर के उच्च जोखिम से जुड़ा होता है।
    • गंभीर दुबलापन (BMI <16.0) अत्यधिक स्वास्थ्य जोखिम को उत्पन्न करता है।
  • कम वजन (BMI <18.5): औसत से कम शारीरिक वजन को इंगित करने वाली एक व्यापक श्रेणी, जो पोषण संबंधी स्थिति, संसाधन उपलब्धता और पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होती है।
    • हालाँकि यह हमेशा खराब स्वास्थ्य से संबंधित नहीं होता है, लेकिन यह कुछ आबादी में सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है।

मोटापे की महामारी के कारण

  • आहार में बदलाव: अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड (UPF) की उपलब्धता और खपत में वृद्धि तथा शारीरिक गतिविधियों में (WHO: 50% भारतीय अनुशंसित स्तरों को पूर्ण नहीं करते हैं) कमी।
  • पर्यावरण और शहरी कारक
    • हरे-भरे स्थान (पार्कों) का क्षरण और सुरक्षित पैदल यात्री तथा साइकिल चलाने के लिए पथ जैसी बुनियादी ढांँचे की कमी।
    • अनियंत्रित यातायात तथा सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बाहर जाकर व्यायाम करने की अवरुद्ध करती हैं।
    • वायु प्रदूषण सूजन का कारण होता है, जिससे मोटापे का जोखिम बढ़ता है।
  • जीवनशैली में बदलाव: शहरीकरण और तकनीकी प्रगति के कारण शारीरिक गतिविधियाँ कम हो गई हैं और जीवनशैली गतिहीन हो गई है।
    • डेस्क जॉब, पैदल चलने की आदत में कमी और स्क्रीन टाइम का बढ़ना ऊर्जा के ह्रास को कम करता है।
    • बाहर खाने का चलन बढ़ रहा है, जहाँ इस्तेमाल किए जाने वाले तेल परिष्कृत और अस्वास्थ्यकर होते हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक कारक: जबकि मोटापे को अक्सर संपन्नता से जोड़ा जाता है, भारत में कुपोषण और मोटापा एक साथ मौजूद हैं।
    • निम्न आय वर्ग के लोग अस्वास्थ्यकर भोजन विकल्पों की सामर्थ्य और सुलभता के कारण मोटापे के प्रति संवेदनशील हैं।
    • 55% भारतीय स्वस्थ आहार का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं और 40% के पास पर्याप्त पोषक आहार नहीं [विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (State of Food Security and Nutrition in the World- SOFI) 2024 रिपोर्ट] है।
  • मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक कारक: तनाव, अवसाद और भावनात्मक भोजन के कारण अक्सर अत्यधिक कैलोरी का सेवन और वजन बढ़ जाता है।
  • अंतःस्रावी और चयापचय कारक: हाइपोथायरायडिज्म और पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (Polycystic Ovary Syndrome- PCOS) जैसी स्थितियांँ विशेषकर महिलाओं में मोटापे का कारण होती हैं।

मोटापे की महामारी चिंता का विषय क्यों है?

  • सामाजिक धारणा: भारत में सामाजिक दृष्टिकोण के चलते अत्यधिक वजन और मोटापे को सामान्य मानते हैं तथा उन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के बजाय व्यक्तिगत मुद्दे के रूप में देखते हैं।
  • आर्थिक प्रभाव
    • वर्ष 2019 में मोटापे की वजह से भारत को 28.95 बिलियन डॉलर (प्रति व्यक्ति 1,800 रुपये, जीडीपी का 1.02%) का नुकसान हुआ। 
    • वर्ष 2030 तक इसके बढ़कर 4,700 रुपये प्रति व्यक्ति (जीडीपी का 1.57%) हो जाने का अनुमान है।
  • वैश्विक और राष्ट्रीय बोझ: वर्ष 2021 में, दुनिया के आधे मोटे लोग एवं अत्यधिक वजन वाले वयस्क भारत सहित सिर्फ आठ देशों में रहते थे, जो इसके व्यापक प्रभाव को दर्शाता है।
  • रोगों का दोहरा बोझ: निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, मोटापा बचपन में कुपोषण और संक्रामक रोगों के साथ-साथ होता है, जिससे स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
  • गंभीर स्वास्थ्य जोखिम: मोटापा गैर-संचारी रोगों के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक है।
    • इससे टाइप 2 मधुमेह, हृदय संबंधी रोग (हृदय रोग, स्ट्रोक) और कुछ कैंसर (जैसे, स्तन, बृहदान्त्र, यकृत) का खतरा काफी बढ़ जाता है।
    • प्रत्येक वर्ष विश्व में 3.4 मिलियन मौतें होती हैं।

भारत में मोटापे के आँकड़े

  • व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (CNNS) के अनुसार, जो वर्ष 2016-2018 से भारत के 30 राज्यों में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 1,12,316 प्रीस्कूल, स्कूली बच्चों और किशोरों को कवर करने वाला एक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण है, 1.3% बच्चे (5-9 वर्ष) और 1.1% किशोर (10-19 वर्ष) मोटापे से ग्रस्त हैं।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल 2020 के अनुसार, वयस्क महिलाओं (18+ वर्ष की आयु) में मोटापे का प्रचलन वर्ष 2000 में 2.3% से बढ़कर वर्ष 2015 में 5.1% हो गया है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 (वर्ष 2019- 2021) के अनुसार,
    • कुल मोटापा: भारत में 24% महिलाएँ और 23% पुरुष अधिक वजन वाले या मोटे (NFHS-5, वर्ष 2019- वर्ष 2021)  हैं।
    • आयु 15-49 मोटापा: इस आयु वर्ग में 6.4% महिलाएँ और 4.0% मोटे पुरुष शामिल हैं।
    • बचपन का मोटापा: पाँच वर्ष से कम आयु के अधिक वजन वाले बच्चों की संख्या 2.1% (NFHS-4) से बढ़कर 3.4% (NFHS-5) हो गई।

सार्वजनिक स्वास्थ्य और मोटापा प्रबंधन के लिए सरकारी पहल

  • भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) का ईट राइट इंडिया मूवमेंट: स्वच्छता प्रमाणन, प्रशिक्षण और खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से सुरक्षित, स्वस्थ और संधारणीय भोजन को बढ़ावा देता है।
    • यह ईट राइट कैंपस और ईट राइट स्कूल कार्यक्रमों के माध्यम से उपभोक्ता जागरूकता भी बढ़ाता है, जो सचेत खाने की आदतों का समर्थन करता है।
  • फिट इंडिया मूवमेंट: वर्ष 2019 में शुरू किया गया यह मूवमेंट स्कूल प्रमाणन कार्यक्रमों, समुदाय संचालित गतिविधियों और सामूहिक फिटनेस पहलों के माध्यम से नागरिकों को अपनी दैनिक दिनचर्या में फिटनेस को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • पोषण अभियान: इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी-संचालित निगरानी, ​​बहु-क्षेत्रीय सहयोग और जागरूकता अभियानों को एकीकृत करके बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पोषण में सुधार करना है।
  • ‘आज से थोड़ा कम’ जागरूकता अभियान: FSSAI ने दैनिक आहार में वसा, चीनी और नमक को धीरे-धीरे कम करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु ‘आज से थोड़ा कम’ अभियान शुरू किया।
    • इस पहल में विविध दर्शकों तक पहुँचने के लिए वीडियो, बैनर और डिजिटल प्लेटफॉर्म सहित मल्टीमीडिया टूल का उपयोग किया जाता है।
  • गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Prevention and Control of Non-Communicable Diseases- NP-NCD): इस योजना का उद्देश्य समुदायों, नागरिक समाज, मीडिया और विकास भागीदारों को शामिल करके व्यवहार परिवर्तन के माध्यम से स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है।
  • पुनर्प्रयोजन प्रयुक्त खाना पकाने के तेल (Repurpose Used Cooking Oil- RUCO) पहल: RUCO पहल प्रयुक्त खाना पकाने के तेल के सुरक्षित निपटान को सुनिश्चित करती है, खाद्य व्यवसायों में इसके पुन: उपयोग को रोकती है और इसे बायोडीजल उत्पादन के लिए पुन: उपयोग करती है।

विश्व में सफल मोटापा निवारण कार्यक्रम

  • जापान का स्मार्ट लाइफ प्रोजेक्ट: अनिवार्य कमर की जाँच, कार्यस्थल पर स्वास्थ्य कार्यक्रम और राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियानों ने मोटापे की दर को वैश्विक स्तर पर सबसे कम रखा।
  • मैक्सिको का सोडा टैक्स: चीनी पेय पदार्थों पर 10% कर ने खपत को कम किया, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों को वित्तपोषण मिला।
  • ईपोड- साथ मिलकर बचपन में मोटापे को रोकें (फ्राँस): स्कूलों, स्थानीय अधिकारियों और व्यवसायों को शामिल करते हुए एक समुदाय-आधारित कार्यक्रम, जो स्वस्थ भोजन और शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देता है, जिससे बचपन में मोटापा कम होता है।

आगे की राह 

  • NCD के रूप में मान्यता: मोटापे को आधिकारिक तौर पर एक प्रमुख गैर-संचारी रोग (NCD) के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए और इसकी रोकथाम तथा प्रबंधन को भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों में एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा: एक व्यापक राष्ट्रीय मोटापा कार्यक्रम में जागरूकता अभियान, स्कूल-आधारित हस्तक्षेप, कार्यस्थल कल्याण कार्यक्रम, उपचार तक पहुँच, अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों पर कराधान आदि शामिल होने चाहिए।
  • शारीरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करना: शहरी नियोजन में साइकिल लेन, पार्क और सार्वजनिक जिम को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जबकि कार्यस्थलों पर फिटनेस पहल और शरीर संरचना विश्लेषण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों को विनियमित करना: उच्च वसा वाले चीनी नमक (HFSS) और अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर उच्च कर लगाएँ, नैतिक खाद्य विपणन लागू करें और स्वस्थ स्कूल कैंटीन को प्रोत्साहित करें।
    • भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में मोटापे पर अंकुश लगाने के लिए UPF पर अधिक कर लगाने का सुझाव दिया गया है।
  • नियमित स्वास्थ्य जाँच और चिकित्सा हस्तक्षेप: BMI, कमर की परिधि और बुनियादी स्वास्थ्य साक्षरता को नियमित जाँच में शामिल करना।
    • मोटापे के रुझान, परिणामों और हस्तक्षेपों को ट्रैक करने के लिए एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है।
  • स्वस्थ भोजन को किफायती तथा सुलभ बनाना: सब्सिडी, ऑनलाइन खाद्य वितरण प्लेटफॉर्म और खाद्य उद्योग से कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (CSR) फंडिंग के माध्यम से किफायती पौष्टिक भोजन को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

निरंतर प्रतिबद्धता, अंतर-क्षेत्रीय सहयोग, सक्रिय नागरिक भागीदारी और जीवनशैली में बदलाव के साथ, भारत मोटापे से निपटने तथा भावी पीढ़ियों की सुरक्षा के मामले में वैश्विक उदाहरण स्थापित कर सकता है।

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