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महासागरीय अम्लीकरण: कारण, प्रभाव और उपाय (Ocean Acidification: Causes, Effects and Remedies)

Samsul Ansari January 20, 2024 06:18 411 0

संदर्भ

जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक नए अध्ययन ‘अंटार्कटिक समुद्री संरक्षित क्षेत्रों में 21वीं सदी का गंभीर महासागरीय अम्लीकरण’ में अंटार्कटिक समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (Marine Protected Areas- MPA) में महाद्वीपीय शेल्फ (Continental Shelves) में बढ़ते अम्लता स्तर के बारे में चिंता जताई गई है।

संबंधित तथ्य 

  • महाद्वीपीय शेल्फ अधिक संवेदनशील: इस अध्ययन के अनुसार, महाद्वीपीय शेल्फ (महाद्वीपों के किनारे से फैले उथले, जल के नीचे के क्षेत्र) में खुले महासागर की तुलना में अधिक गंभीर अम्लीकरण की संभावना है।

अंटार्कटिक में समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA)

  • अंटार्कटिक वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिक के आसपास दक्षिणी महासागर (Southern Ocean) के तीन प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की है जिन्हें सुरक्षा की तत्काल आवश्यकता है।
    • दक्षिणी महासागर, जिसे अंटार्कटिक महासागर के रूप में भी जाना जाता है, आमतौर पर 60° दक्षिण अक्षांश के दक्षिण में और अंटार्कटिका को घेरे हुए माना जाता है।
  • वर्तमान में, दक्षिणी महासागर का मात्र 5% भाग संरक्षित किया गया है।
  • MPA की स्थापना वर्ष 2009 में दक्षिण ओर्कनेय द्वीपसमूह (South Orkney Islands) और वर्ष 2016 में रॉस सागर क्षेत्र (Ross Sea Region) में की गई थी।
  • पूर्वी अंटार्कटिका, वेडेल सागर और अंटार्कटिक प्रायद्वीप में तीन अतिरिक्त MPA स्थापित करने पर विचार-विमर्श चल रहा है।

  • CO2 उत्सर्जन का प्रभाव: उच्च और अधिक उत्सर्जन परिदृश्यों में, इस सदी के अंत तक प्रस्तावित और स्थापित MPA में अर्गोनाइट (एक प्रकार का कार्बोनेट खनिज) संतृप्ति की व्यापक कमी होगी।
    • इस अल्पसंतृप्ति का तात्पर्य यह है कि अर्गोनाइट बनाने वाले टेरोपोड्स जैसे जीव अपने खोल (कवच) के लिए स्थिर स्थान नहीं ढूँढ पाएँगे।
    • समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA): IUCN के अनुसार, यह अंतर्ज्वारीय या उप-ज्वारीय वाले भू-भाग का कोई भी क्षेत्र है, जिसमें इसके आस-पास के जल और संबंधित वनस्पति, जीव-जंतु, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विशेषताएँ शामिल हैं, जिसे कानून या अन्य प्रभावी साधनों द्वारा आंशिक या संपूर्ण संलग्न पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आरक्षित किया गया है।

pH स्केल

  • पैमाना: pH किसी विलयन की अम्लता या क्षारकता की एक माप है। इसे 0 से 14 के मध्य मापा जाता है।
  • वर्गीकरण: जब pH 7 से अधिक  होता है तो विलयन क्षारीय (या क्षार के गुणवाला) होता है और 7 से कम हो तो विलयन अम्लीय होता है।
  • हाइड्रोजन आयन सांद्रता: pH स्केल हाइड्रोजन आयन सांद्रता का व्युत्क्रम है, इसलिए अधिक हाइड्रोजन आयन उच्च अम्लता और कम pH में तब्दील हो जाते हैं।

  • अम्लीकरण का प्रक्षेपण: अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2100 तक समुद्र के शीर्ष से 200  मीटर की गहराई वाले जलक्षेत्र के लिए pH पैमाने में 0.36 तक की गिरावट आ सकती है।
    • 18वीं से 19वीं सदी की औद्योगिक क्रांति से पहले, महासागर का औसत pH लगभग 8.2 था। वर्तमान में महासागर का औसत pH 8.1 है। इसका मतलब यह है कि वर्तमान में महासागर पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में लगभग 30 प्रतिशत अधिक अम्लीय है।
    • इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की छठी आकलन रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2100 तक समुद्र का pH लगभग 7.8 तक कम हो सकता है, जिससे समुद्र 150 प्रतिशत अधिक अम्लीय हो जाएगा और जिससे समुद्री जीवन का आधा हिस्सा प्रभावित होगा।

महासागरीय अम्लीकरण के बारे में

  • महासागर अम्लीकरण: यह लंबे समय तक समुद्र के pH  में कमी को संदर्भित करता है, जो मुख्य रूप से वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के अवशोषण के कारण होता है।
  • CO2 अवशोषण: महासागर वायुमंडल में छोड़े गए CO2 का लगभग 30 प्रतिशत अवशोषित कर लेता है जिससे महासागरीय CO2 का स्तर और अम्लीकरण बढ़ जाता है।
    • महासागर, वायुमंडल में छोड़ी गई कुछ कार्बन डाइऑक्साइड गैस (CO2) को अवशोषित करके ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने में मदद करता है।

    • गौरतलब है कि मानवजनित CO2 के अवशोषण से अम्लीकरण होता है, जो महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • महासागरीय अम्लीकरण प्रक्रिया: जब CO2 को समुद्री जल द्वारा अवशोषित किया जाता है, तो रासायनिक अभिक्रियाओं की एक शृंखला शुरू होती है जिसके परिणामस्वरूप हाइड्रोजन आयनों की सांद्रता बढ़ जाती है।
    • कार्बन डाइऑक्साइड समुद्री जल में घुल जाता है और कार्बोनिक एसिड (H2CO3) का निर्माण करता है। कार्बोनिक एसिड (H2CO3), एक कमजोर एसिड है, जो हाइड्रोजन आयनों (H+) और बाइकार्बोनेट आयनों (HCO3) में टूट जाता है।
    • H+ में इस वृद्धि के कारण समुद्री जल अधिक अम्लीय हो जाता है और कार्बोनेट आयन अपेक्षाकृत कम मात्रा में हो जाते हैं।

महासागरीय अम्लीकरण के कारण क्या हैं?

  • महासागर में बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता: जब समुद्री जीव समुद्र तल पर मर जाते हैं, तो उनके अवशेष इकठ्ठा हो जाते हैं और कार्बन से मिलकर प्रवाल का निर्माण करते हैं।
  • वायुमंडल में बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता: मानवीय गतिविधियाँ जैसे तेल, कोयला और गैस जलाना, साथ ही वनों की कटाई, कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता में वृद्धि का प्राथमिक कारण हैं। CO2 जल के pH को कम करके और अम्लीकरण में योगदान देकर जल को प्रदूषित करती है।

    • वैश्विक कार्बन बजट 2022 के अनुसार, 20वीं सदी के मध्य के बाद से, जीवाश्म ईंधन जलाने से होने वाला वार्षिक उत्सर्जन हर दशक में बढ़ा है, जो 1960 के दशक में प्रति वर्ष लगभग 11 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड से बढ़कर वर्ष 2022 में अनुमानित 36.6 बिलियन टन हो गया है।
  • जल में हाइड्रोजन आयनों की उच्च सांद्रता: समुद्र तल पर, कुछ रासायनिक अभिक्रियाएँ हो सकती हैं, जो अन्य गैसों जैसे नाइट्रोजन और जल जैसे अन्य यौगिकों के साथ मिलकर हाइड्रोजन आयनों को बढ़ा सकती हैं।
  • जीवाश्म ईंधन जलाने के दौरान होने वाला उत्सर्जन: पेट्रोलियम, डीजल और कोयला जलाए जाने पर बहुत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न करते हैं, जो अम्लीय वर्षा के माध्यम से या सीधे जल में घुलकर जल में मिल जाता है।
  • अन्य कारण
  • उचित अपशिष्ट निपटान का अभाव: घरेलू और औद्योगिक कचरे के लिए संभावित डंपिंग ग्राउंड के रूप में महासागरों का उपयोग करना। यह कचरा बहुत खतरनाक है क्योंकि यह समुद्र के जल का pH कम कर देता है।
  • तेजी से औद्योगीकरण: बढ़ते औद्योगीकरण से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता बढ़ जाती है, जो जल में अवशोषित होने पर अम्लता बढ़ा देती है।

महासागरीय जैव विविधता पर महासागरीय अम्लीकरण का प्रभाव

  • शेल बिल्डर्स पर प्रभाव: कार्बोनेट आयन, समुद्री सीपियों और प्रवाल संरचनाओं का एक महत्त्वपूर्ण भाग हैं।
    • कार्बोनेट आयनों में कमी से सीप, क्लैम, समुद्री अर्चिन, उथले जल के प्रवाल, गहरे समुद्र के प्रवाल और कैलकेरियस प्लवक (Calcareous Plankton) जैसे कैल्सीफाइंग जीवों के लिए शेल एवं अन्य कैल्शियम कार्बोनेट संरचनाओं का निर्माण और रखरखाव मुश्किल हो सकता है।
  • मछली और समुद्री शैवाल पर प्रभाव: अधिक अम्लीय जल में क्लाउनफिश जैसी कुछ मछलियों की अपने शिकार का पता लगाने की क्षमता कम हो जाती है। अध्ययनों से पता चला है कि pH स्तर में कमी से लार्वा क्लाउनफिश को अपने आवास का पता लगाने की क्षमता पर भी असर पड़ता है।
    • हालाँकि कुछ प्रजातियों को समुद्र के अम्लीकरण से नुकसान होगा। शैवाल और समुद्री घास को समुद्र में उच्च CO2 स्थितियों से लाभ हो सकता है, क्योंकि उन्हें भूमि पर पौधों की तरह ही प्रकाश संश्लेषण के लिए CO2 की आवश्यकता होती है।
  • प्लवक के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: फाइटोप्लैंकटन समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सहायक है क्योंकि यह प्रकाश संश्लेषण में सहायक होता है और इस प्रकार समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की शृंखला शुरू होती है। इसलिए, यदि उनके प्रकाश संश्लेषण में कोई समस्या आती है, तो संपूर्ण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।
  • जलीय जीवन का नुकसान: बढ़ती अम्लता के कारण जलीय पारिस्थितिक वातावरण में कुछ जीव लुप्त हो जाते हैं या मर जाते हैं।

महासागरीय अम्लीकरण के अन्य परिणाम

  • महासागर में कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता में वृद्धि: महासागर के अम्लीकरण से समुद्र में गैसीय सांद्रता, विशेषकर कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता बदल जाती है। कार्बन गैस फिर जल के अणुओं के साथ प्रतिक्रिया करती है, जिससे कार्बोनिक एसिड बनता है।
    • वर्षा से कार्बन की सांद्रता बढ़ जाती है, जिससे संभावित रूप से समुद्री जीवों का नुकसान हो सकता है और उनकी मृत्यु हो सकती है।
  • भोजन की कमी: जब मछलियाँ मर जाती हैं तो मनुष्य जो खाद्य और आजीविका के लिए उन पर निर्भर होते हैं, सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिए, कोस्टएडाप्ट (CoastAdapt) के अनुसार, वर्ष 2100 तक महासागर के अम्लीकरण से मॉलस्क के नुकसान की वैश्विक वार्षिक लागत 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो सकती है।
  • खाद्य शृंखला में व्यवधान: महासागर के अम्लीकरण के कारण कुछ वनस्पतियों और जीवों का ह्रास होता हैं। जिससे इन जीवों एवं वनस्पतियों पर आश्रितों के समक्ष भी खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  • पर्यटन में गिरावट: समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर समुद्र के अम्लीकरण के प्रभाव से यह उद्योग गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है। उदाहरण के लिए, बढ़ते अम्लीकरण से प्रवाल भित्तियाँ नष्ट हो सकती हैं। ऑस्ट्रेलिया में, ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क सालाना लगभग 1.9 मिलियन पर्यटकों को आकर्षित करता है, जिससे ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था को 5.4 बिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर से अधिक की आय होती है।

महासागरीय अम्लीकरण पर अंकुश लगाने की पहल

  • रियो+20 शिखर सम्मेलन: वर्ष 2012 में ‘सतत् विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’ ने समुद्री पर्यावरण के लिए खतरे के रूप में समुद्र के अम्लीकरण पर जोर दिया।
    • इस सम्मेलन में सतत् विकास के सभी तीन स्तंभों में महासागरों की महत्त्वपूर्ण भूमिका और महासागरों एवं समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों के स्वास्थ्य, उत्पादकता और लचीलेपन की रक्षा और पुनर्स्थापन करने की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला गया।
  • यूनेस्को IOC: यूनेस्को का अंतर-सरकारी समुद्र विज्ञान आयोग (IOC), SDG 14 लक्ष्य 3 के लिए संरक्षक एजेंसी है, जिसका उद्देश्य समुद्र के अम्लीकरण के प्रभावों को कम करना और संबोधित करना है।   
    • IOC, ग्लोबल ओशन एसिडिफिकेशन ऑब्जर्विंग नेटवर्क (GOA-ON) का समर्थन करता है। IOC सदस्य देशों को समुद्र के अम्लीकरण की समस्या को समझने और उससे निपटने के लिए आवश्यक विभिन्न देशों तथा संगठनों से संसाधनों का समन्वय करने में मदद करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय महासागर कार्बन समन्वय परियोजना (IOCCP): IOCCP पारिस्थितिकी तंत्र प्रक्रियाओं, जैव-भू-रसायन और जलवायु परिवर्तन फीडबैक की वर्तमान और भविष्य की प्रतिक्रियाओं का निरीक्षण और भविष्यवाणी करने की क्षमता बढ़ाने के लिए GOA-ON और अन्य संस्थानों के साथ सहयोग करता है।
  • IAEA OC-ICC: अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने विज्ञान आधारित निर्णय लेने को बढ़ावा देने, समुद्र के अम्लीकरण की स्थिति और प्रवृत्तियों के बारे में विज्ञान, क्षमता निर्माण, आउटरीच और संचार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए वर्ष 2012 में महासागर अम्लीकरण अंतरराष्ट्रीय समन्वय केंद्र (OA-ICC) की स्थापना की।

आगे की राह

  • समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPAs) को बढ़ाना: MPA दक्षिण ऑर्कनी द्वीप के दक्षिणी शेल्फ और रॉस सागर क्षेत्र में स्थापित किए गए हैं। वेडेल सागर, पूर्वी अंटार्कटिका और पश्चिमी अंटार्कटिका प्रायद्वीप में तीन अतिरिक्त MPA प्रस्तावित हैं।
    • यदि यह प्रस्ताव फाइनल होता है तो MPA का यह नेटवर्क लगभग 60 प्रतिशत अंटार्कटिक शेल्फ जल की रक्षा करेगा। 
    • भारत समुद्री जीवन और इसकी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की रक्षा के लिए अंटार्कटिका में दो MPA स्थापित करने का समर्थन करता है।
  • निरंतर वैज्ञानिक सहयोग: वैश्विक स्तर पर समुद्र के अम्लीकरण को समझने और उससे निपटने के प्रयासों में समन्वय के लिए GOA-ON जैसी अंतरराष्ट्रीय पहलों का समर्थन और उनमें भाग लेना।
    • ज्ञान और संसाधनों को साझा करने के लिए यूनेस्को के आईओसी और आईएईए जैसे संगठनों के साथ सहयोग को और बढ़ाना।
  • सतत मछली पकड़ने की प्रथाएँ: संतुलित समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए टिकाऊ मछली पकड़ने की प्रथाओं को प्रोत्साहित और लागू करना।
    • जलकृषि प्रथाओं के विकास और कार्यान्वयन का समर्थन करना, जो समुद्र की बदलती परिस्थितियों के प्रति लचीली हों, क्योंकि बढ़ी हुई अम्लता मछली की खपत को जोखिम पूर्ण बना देगी।
  • कार्बन-उन्मुख ऊर्जा स्रोतों की खपत को कम करना: जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जित कार्बन को ऐसे ईंधन के उपयोग को कम करके कम किया जा सकता है। इस प्रकार वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के रूप में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ाने, सौर और पवन जैसे ऊर्जा स्रोतों के विविधीकरण की आवश्यकता है।
  • जागरूकता बढ़ाएँ: समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर समुद्र के अम्लीकरण के प्रभावों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाएँ, टिकाऊ प्रथाओं के महत्त्व पर जोर देना और कार्बन फुटप्रिंट को कम करना।

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