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तेल क्षेत्र संशोधन विधेयक, 2024

Lokesh Pal December 10, 2024 02:02 60 0

संदर्भ

राज्यसभा ने हाल ही में तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) संशोधन विधेयक, 2024 पारित किया, जिसका उद्देश्य घरेलू पेट्रोलियम उत्पादन को प्रोत्साहित करना और भारत की आयात निर्भरता को कम करने के लिए निजी निवेश को आकर्षित करना है।

  • यह विधेयक वर्ष 1948 के तेल क्षेत्र अधिनियम में संशोधन करता है, ताकि खनन एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 से इसकी सारगर्भिता को अलग किया जा सके, तथा विशेष रूप से पेट्रोलियम और खनिज तेलों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।

तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) संशोधन विधेयक, 2024

  • खनिज तेल की परिभाषा: खनिज तेल को ‘किसी भी प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हाइड्रोकार्बन’ के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें विभिन्न रूपों में कच्चा तेल, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस शामिल हैं।
    • इसमें पेट्रोलियम या कोयले से जुड़े पदार्थ लिग्नाइट और हीलियम शामिल नहीं हैं, जो खनन और खनिज अधिनियम, 1957 द्वारा शासित हैं।
  • ‘पेट्रोलियम लीज’ की शुरुआत: ‘खनन लीज’ को ‘पेट्रोलियम लीज’ से परिवर्तित कर दिया गया है, जो खनिज तेलों की खोज, उत्पादन और परिवहन जैसी गतिविधियों को कवर करते हैं।
    • पेट्रोलियम लीज को विनियमित करने और उन्हें प्रदान करने के लिए केंद्र को अधिकार देता है।
  • निजी निवेश प्रोत्साहन: पेट्रोलियम के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि पट्टेदार के नुकसान के लिए मौजूदा ‘लीज’ में कोई परिवर्तन न किया जाए।
  • दंडों का अधिनिर्णय: केंद्र सरकार दंडों के अधिनिर्णय के लिए संयुक्त सचिव या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी को नियुक्त करेगी।

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड 

  • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड की स्थापना पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस विनियामक बोर्ड अधिनियम, 2006 के अंतर्गत की गई थी।
  • नोडल मंत्रालय: यह पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधीन कार्य करता है, जो इसके संचालन और नीति संरेखण की देखरेख करता है।
  • इसका एक प्राथमिक कार्य प्राकृतिक गैस के लिए प्रतिस्पर्द्धी बाजारों को बढ़ावा देना, पारदर्शिता और निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को सुनिश्चित करना है।
  • PNGRB के प्रमुख कार्य

PNGRB पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करता है, जिनमें शामिल हैं:

    • पेट्रोलियम उत्पादों का शोधन।
    • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस का परिवहन।
    • इन संसाधनों का वितरण और भंडारण।
    • पेट्रोलियम उत्पादों और प्राकृतिक गैस का विपणन, आपूर्ति तथा बिक्री।
    • प्रतिस्पर्द्धी बाजार सुनिश्चित करना।
  • निर्णयों के विरुद्ध अपील: पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड द्वारा लिए गए निर्णयों को विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।
  • यह शिकायतों और विवादों को संबोधित करने के लिए एक विधिक मार्ग प्रदान करता है।

  • दंड का निर्णय: न्यायाधिकरण के निर्णयों के विरुद्ध अपील पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस बोर्ड विनियामक बोर्ड अधिनियम, 2006 में निर्दिष्ट अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष की जाएगी।
  • आपराधिक दंड के स्थान पर मौद्रिक दंड: कारावास के दंड के स्थान पर मौद्रिक जुर्माना लगाया गया है।
    • उल्लंघनकर्ताओं को ₹25 लाख तक का जुर्माना तथा लगातार उल्लंघन करने पर प्रतिदिन ₹10 लाख का अतिरिक्त जुर्माना आरोपित किया जा सकता है।
  • पर्यावरण संबंधी विचार: केंद्र को कार्बन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने तथा तेल क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए नियम स्थापित करने का अधिकार दिया गया है।

केंद्र सरकार की नियम बनाने की शक्तियाँ

अधिनियम केंद्र सरकार को निम्नलिखित पर नियम बनाने का अधिकार देता है:

  • लीज का अनुदान: प्रक्रिया को विनियमित करना।
  • लीज की शर्तें: न्यूनतम/अधिकतम क्षेत्र, अवधि और शर्तें।
  • खनिज तेल विकास: संरक्षण और विकास विधियाँ।
  • तेल उत्पादन: उत्पादन विधियों को परिभाषित करना।
  • राजस्व संग्रह: रॉयल्टी, शुल्क और कर एकत्र करने का तरीका।

विधेयक में निम्नलिखित नियमों से संबंधित प्रावधान जोड़े गए हैं:

  • ‘पेट्रोलियम लीज’ संबंधी विलय: विलय और संयोजन का प्रबंधन।
  • साझा सुविधाएँ: उत्पादन और प्रसंस्करण अवसंरचना को साझा करना।
  • पर्यावरणीय दायित्व: पर्यावरण की रक्षा करना और उत्सर्जन को कम करना।
  • विवाद समाधान: लीज-संबंधी विवादों के लिए वैकल्पिक तंत्र।

विधेयक के विरुद्ध चिंताएँ व्यक्त की गईं

  • राज्य के अधिकार: विपक्षी सदस्यों का तर्क है, कि यह विधेयक राज्य सूची (अनुसूची 7) की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत खनन गतिविधियों पर कर लगाने के राज्यों के अधिकार को कमजोर करता है।
    • आलोचकों का सुझाव है कि ‘खनन लीज’ से ‘पेट्रोलियम लीज’ में परिवर्तन से संघ सूची की प्रविष्टि 53 के तहत विनियमन आ सकता है, जिससे केंद्र सरकार का नियंत्रण केंद्रीकृत हो जाएगा।
    • पर्यावरणीय निहितार्थ: निजी निवेशकों को अधिक परिचालन विवेकाधिकार देने से संबंधित चिंता, जिससे पर्यावरण क्षरण की समस्या हो सकती है।
    • पर्यावरण के प्रति उत्तरदायी अन्वेषण सुनिश्चित करने के लिए ONGC जैसी सार्वजनिक कंपनियों पर जोर देने की सिफारिश की गई।
  • जवाबदेही और निगरानी: आपराधिक दंड के स्थान पर जुर्माना लगाने से प्रवर्तन और जवाबदेही कम हो सकती है।
  • समीक्षा की आवश्यकता: अस्पष्टताओं को दूर करने और राज्य के हितों की रक्षा के लिए विधेयक को एक चयन समिति को भेजने की माँग की गई है।

आगे की राह

  • राज्य और संघ की भूमिकाओं में संतुलन: राज्यों के वित्तीय अधिकारों को बनाए रखने के लिए राज्यों और संघ के बीच अधिकार क्षेत्र में स्पष्टता सुनिश्चित करना और कुशल शासन को सक्षम बनाना।
  • पर्यावरण सुरक्षा: कठोर पर्यावरणीय विनियमन को अनिवार्य बनाना और निजी एवं सार्वजनिक दोनों समूहों द्वारा अनुपालन सुनिश्चित करना।
  • पारदर्शी निजी भागीदारी: निजी कंपनियों के लिए जवाबदेही बनाए रखने और संसाधनों के दुरुपयोग को रोकने हेतु स्पष्ट परिचालन संबंधी दिशा-निर्देश तैयार करना।
  • हितधारक जुड़ाव: संसाधन प्रबंधन के लिए एक संतुलित ढाँचा बनाने के लिए राज्यों, पर्यावरण विशेषज्ञों और उद्योग समूह सहित हितधारकों को शामिल करना।
  • समीक्षा तंत्र: उभरती चिंताओं को दूर करने और प्रभावी विनियमन सुनिश्चित करने के लिए नीति के कार्यान्वयन की आवधिक समीक्षा शुरू करना।

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