29 वर्षों के अंतराल के बाद कर्नाटक के मैंगलोर डिवीजन में ओलिव रिडले कछुओं के 12 ‘नेस्टिंग’स्थलों की पहचान की गई है।
संबंधित तथ्य
कर्नाटक को भारत के पश्चिमी तट पर ओलिव रिडले के ‘नेस्टिंग’ स्थल वाला एकमात्र राज्य होने का गौरव प्राप्त है।
कुंदापुर एवं बिंदूर समुद्र तटों पर प्रति वर्ष लगभग 200 ‘नेस्टिंग’ स्थलों की पहचान की जाती है।
कछुओं ने 29 वर्षों के अंतराल (1985 से) के बाद कर्नाटक के मैंगलोर डिवीजन में ससिहिथलू और तन्नेरबावी के समुद्र तटों पर ‘नेस्टिंग’ स्थल का निर्माण किया।
ओलिव रिडले कछुआ:
वैज्ञानिक नाम: लेपिडोचिल्स ओलिवेसिया
विस्तार: ये प्रशांत, अटलांटिक एवं भारतीय महासागरों के गर्म उष्णकटिबंधीय जल में पाए जाते हैं।
संरक्षण’ स्थिति:
आईयूसीएन: सुभेद्य ( Vulnerable)
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972: अनुसूची 1
उद्धरण: परिशिष्ट I
अरिबाडा
यह एक अनोखा सामूहिक नेस्टिंग’ स्थलों के निर्माण से संबंधित व्यवहार है, जहाँ हजारों मादाएं ‘नेस्टिंग’ करने के लिए एक ही समुद्र तट पर एक साथ आती हैं।
यह केवल लेपिडोचेलीज प्रजाति में पाया जाता है जिसमें केम्प्स रिडले और ऑलिव रिडले समुद्री कछुए शामिल हैं।
अरिबाडा के आवश्यक तत्व: अपतटीय हवाएं, चंद्र चक्र, मादाओं द्वारा फेरोमोन की रिहाई एवं समुद्री जल का तापमान।
भारतीय तट पर घोंसला बनाने के स्थान:अरिबाडा समुद्रतट
प्रतिवर्ष अनुमानित 100,000 से अधिक‘नेस्टिंग’ स्थलों के साथ ओडिशा (गहिरमाथा, देवी नदी का मुहाना और रुशिकुल्या)।
अंडमान द्वीप समूह, भारत, 5,000 से अधिक घोंसलों के साथ।
शिकार का आधार: ये सर्वाहारी होते हैं एवं उनके शिकार में शैवाल, झींगा मछली, केकड़े, ट्यूनिकेट्स, जेलीफिश एवं मोल्सका शामिल हैं।
खतरा:
मछली पकड़ने वाले ‘गियर’ में बायकैच, जलवायु परिवर्तन, कछुओं एवं अंडों को हानि’, घोंसले एवं चारागाह के आवास की हानि एवं गिरावट, महासागर प्रदूषण एवं समुद्री अपशिष्ट, दिन के समय आवारा कुत्तों एवं रात के समय लोमड़ियों द्वारा अंडे एवं बच्चों का शिकार।
विशेषताएँ:
ये पृथ्वी पर सबसे छोटे समुद्री कछुए हैं, लेकिन जनसंख्या में सबसे प्रचुर हैं।
ये आमतौर पर रात में आते हैं और अंडे देने के बाद दिन निकलने तक चले जाते हैं। अंडे कम-से-कम 10-12 दिनों के बाद फूटते हैं।
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