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‘ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’

Lokesh Pal May 17, 2025 03:40 13 0

संदर्भ 

हाल ही में सुरक्षा बलों ने वर्ष 2026 तक नक्सल मुक्त भारत के लक्ष्य को पूरा करने के लिए ‘ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ का संचालन किया।

ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के बारे में

  • ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट CRPF और राज्य पुलिस के बीच एक संयुक्त अभियान था, जो 21 दिनों तक चला, जिससे यह निरंतर सर्वाधिक समय तक संचालित होने वाला  नक्सल विरोधी अभियान बन गया।
  • अवस्थिति: इसे छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर नक्सलियों के गढ़ कर्रेगुट्टालु हिल (KGH) के पास लॉन्च किया गया था।
    • वर्ष 2022 में स्थापित घाल्गाम फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस को ऑपरेशन के लिए रणनीतिक कमांड सेंटर के रूप में उपयोग किया गया।

  • सामुदायिक एकीकरण: सुरक्षा बल स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर कार्य करते हैं, कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित करते हैं तथा लोगों के मध्य विश्वास स्थापित करके और संपर्क प्रयासों के माध्यम से नक्सली समर्थित नेटवर्क को तोड़ने का कार्य करते हैं।

नक्सलवाद के बारे में

  • वामपंथी उग्रवाद (Left Wing Extremism- LWE), या नक्सलवाद, माओवादी विचारधारा से प्रेरित एक सशस्त्र आंदोलन है, जो हिंसक क्रांति के माध्यम से लोकतांत्रिक राज्य को समाप्त करने का प्रयास करता है।

वर्ष 2025 तक नक्सलवाद उन्मूलन में सफलता

  • क्षेत्रीय कमी: वर्ष 2014 में 18,000 वर्ग किलोमीटर से वर्ष 2025 में 4,200 वर्ग किलोमीटर तक।
  • हिंसा में कमी: वार्षिक घटनाएँ वर्ष 2010 में 1,936 से घटकर 2024 में 374 हो गईं (81% कमी)।
  • हताहतों की संख्या में कमी: वर्ष 2010 में होने वाली मौतों की संख्या 1,005 थी, जो वर्ष 2024 में 150 हो गई (85% की गिरावट)।
  • आत्मसमर्पण और पुनर्वास: 10 वर्षों में 8,000 से अधिक नक्सलियों ने हिंसा का परित्याग किया गया 13,000 से अधिक लोग संघर्ष क्षेत्रों से पुनः एकीकृत हुए।
  • सबसे अधिक प्रभावित जिलों की संख्या अब 6 रह गई हैं- बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर, सुकमा (छत्तीसगढ़), पश्चिमी सिंहभूम (झारखंड), गढ़चिरौली (महाराष्ट्र)।

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: इसकी शुरुआत वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल में नक्सलबाड़ी विद्रोह से हुई और यह “रेड कॉरिडोर” में फैल गया, जो कि मध्य और पूर्वी भारत के अधिकांश आदिवासी और वन क्षेत्रों में है।
  • वर्तमान उद्देश्य: आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने के अपने दावों के बावजूद, नक्सलियों ने जबरन वसूली, बच्चों की भर्ती और हिंसा का प्रयोग किया है। सरकार द्वारा 31 मार्च, 2026 तक नक्सलवाद के पूर्ण उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

नक्सलवाद पर अंकुश लगाने के लिए अभियान

 उदार दृष्टिकोण: विकास और सशक्तीकरण

  • गृह मंत्री ने वर्ष 2017 में वामपंथी उग्रवाद से लड़ने के लिए एक परिचालन रणनीति ‘समाधान’ की घोषणा की।
  • विशेष केंद्रीय सहायता (SCA): सबसे अधिक प्रभावित जिलों में बुनियादी ढाँचे की कमी को पूरा करने के लिए वर्ष 2017 से अब तक 3,563 करोड़ रुपये दिए गए हैं।
  • सिविक एक्शन प्रोग्राम (CAP): तैनात की गई CAPFs द्वारा स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया जाता है, आवश्यक वस्तुएँ वितरित की जाती हैं और स्थानीय लोगों के मध्य विश्वास स्थापित किया जाता हैं (196.23 करोड़ रुपये खर्च किए गए)।
  • दूरसंचार संपर्क: 10,505 टॉवर स्वीकृत किए गए; 7,768 से अधिक पहले से ही चालू हैं।
  • वित्तीय समावेशन: 1,007 बैंक शाखाएँ, 937 ATM, 5,731 डाकघर और 37,850 बैंकिंग संवाददाता स्थापित किए गए।
  • कौशल और शिक्षा: प्रभावित क्षेत्रों में 48 ITI, 61 SDC और 178 ‘एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय’ शुरू किए गए।
  • धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (वर्ष 2024): इस अभियान के अंतर्गत 15,000 आदिवासी गाँवों में बुनियादी सेवाओं की पूर्ति का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिससे 1.5 करोड़ नागरिकों को लाभ होगा।

सख्त  दृष्टिकोण: आक्रामक सुरक्षा अभियान

  • किलेबंद पुलिस स्टेशन: इनकी संख्या वर्ष 2014 में 66 से बढ़कर वर्ष 2024 तक 612 हो गई है।
  • समर्पित बल: 6 नई CRPF बटालियन, 15 संयुक्त कार्य बल और 280 नए सुरक्षा शिविर तैनात किए गए।
  • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी और ED की कार्रवाई: मनी लॉण्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग मामलों में ₹1,000 करोड़ से अधिक की धनराशि जब्त की गई है।
  • सुरक्षा-संबंधी व्यय (SRE): वर्ष 2014 से प्रशिक्षण, रसद और अनुग्रह भुगतान पर ₹3,260 करोड़ खर्च किए गए।
  • बड़े स्तर पर निष्प्रभावीकरण: अकेले वर्ष 2024 में 290 नक्सलियों को निष्प्रभावित किया गया, 1,090 को गिरफ्तार किया गया और 881 ने आत्मसमर्पण किया।

वामपंथी उग्रवाद के पूर्ण उन्मूलन में चुनौतियाँ

  • भौगोलिक भू-भाग: घने जंगल, पहाड़ी क्षेत्र (जैसे, दंडकारण्य, बस्तर) विद्रोहियों के लिए प्राकृतिक आश्रय प्रदान करते हैं।
  • अवशिष्ट गढ़: सुकमा, बीजापुर और पश्चिमी सिंहभूम जैसे जिलों में अभी भी सक्रिय माओवादी उपस्थिति की सूचना है।
  • वैचारिक अपील: माओवादी, प्रचार आदिवासी अलगाव, गरीबी और भूमि अधिकारों के मुद्दों का निरंतर लाभ उठा रहे हैं।
  • सुरक्षा के लिए खतरा: ‘इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस’ सुरक्षा बलों और ग्रामीण संपर्क के लिए सबसे बड़ा खतरा बने हुए हैं।
  • अंतर-राज्यीय सीमा प्रबंधन: छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र के बीच छिद्रपूर्ण वन सीमाएँ सीमा पार आवागमन के प्रति सुभेद्य  हैं।
  • स्थानीय विश्वास का आभाव: कुछ क्षेत्रों में प्रतिशोध या पूर्व में हुए मानवाधिकार उल्लंघनों का डर सामुदायिक सहयोग में बाधा उत्पन्न करता है।
  • वित्तपोषण और नगरीय सहयोग: नक्सलियों को शहरी समर्थकों से रसद सहायता, धन और वैचारिक सहयोग प्राप्त होता है।

आगे की राह

  • कल्याणकारी शासन: सभी प्रभावित गाँवों में स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, राशन, आवास, सड़क और इंटरनेट के लिए कल्याणकारी योजनाओं का 100% कवरेज सुनिश्चित करना।
  • लक्षित डी-रेडिकलाइजेशन: आत्मसमर्पण करने वाले कैडरों के लिए परामर्श, रोजगार और नागरिक पुनः एकीकरण का उपयोग करना।
  • सतत् सुरक्षा संचालन: निर्बाध खुफिया-साझाकरण, संयुक्त कार्य बल, रात्रि लैंडिंग हेलीपैड और वन क्षेत्रों की निगरानी के लिए ड्रोन।
  • वित्तीय व्यवधान: PMLA और आतंकी-वित्तपोषण कानूनों के माध्यम से माओवादी वित्त को बाधित करने के लिए ED/NIA कार्रवाई को मजबूत करना।
  • न्यायिक सुधार: फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करना, कानूनी सहायता बढ़ाएँ और आत्मसमर्पण और पुनर्वास प्रक्रियाओं को सरल बनाना।
  • नागरिक विश्वास निर्माण: नागरिक कार्रवाई कार्यक्रमों, CAPF आउटरीच और खेल तथा शिक्षा के माध्यम से युवाओं की भागीदारी का विस्तार करना।

निष्कर्ष

भारत के समन्वित सैन्य और विकासात्मक दृष्टिकोण ने नक्सलवाद के विरुद्ध लड़ाई को निर्णायक रूप से परिवर्तित कर दिया है। निरंतर सतर्कता, सामुदायिक सहभागिता और राजनीतिक संकल्प के साथ, 31 मार्च, 2026 तक नक्सलवाद मुक्त भारत का लक्ष्य न केवल संभव है, बल्कि सरकार की पहुँच में भी है।

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