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ऑपरेशन सिंदूर और उसके विभिन्न आयाम

Lokesh Pal May 09, 2025 03:24 65 0

संदर्भ

22 अप्रैल को पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब में भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, जिसमें 25 भारतीय पर्यटक और एक नेपाली नागरिक मारे गए थे।

संबंधित तथ्य

  • भारतीय रक्षा मंत्री ने बताया कि पाकिस्तान और POK में 9 आतंकी ठिकानों पर सटीक हमलों में लगभग 100 आतंकवादी मारे गए।
  • भारत सरकार ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के एक दिन बाद भारतीय सशस्त्र बलों ने लाहौर में एक वायु रक्षा प्रणाली को निष्क्रिय कर दिया।

ऑपरेशन सिंदूर के बारे में

  • ऑपरेशन सिंदूर, भारत द्वारा 7 मई, 2025 को शुरू किया गया एक सैन्य अभियान है, जिसका लक्ष्य पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) में आतंकवादी ढाँचे को नष्ट करना है।
  • इसके तहत लक्ष्यों में बहावलपुर, मुरीदके (पाकिस्तान पंजाब), मुजफ्फराबाद और कोटली में प्रमुख आतंकवादी केंद्र शामिल थे, जो जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के ज्ञात ठिकाने हैं।
  • इस अभियान ने भारत के रणनीतिक संयम और सीमापार आतंकवाद के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित करने की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया।

प्रमुख वैश्विक शक्तियों की प्रतिक्रिया

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC): ऑपरेशन सिंदूर के तहत हमलों के बाद भारत की निंदा करने की पाकिस्तान की अपील को खारिज कर दिया।
    • निहितार्थ: संयुक्त राष्ट्र के अनुच्छेद-51 के तहत भारत के आत्मरक्षा के अधिकार को मौन स्वीकृति दी।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ सक्रिय रूप से संपर्क में है, लेकिन पूर्व की तरह मध्यस्थता में जल्दबाजी नहीं कर रहा है।
    • सामरिक परिदृश्य
      • विशेष रूप से परमाणु शक्ति होने के कारण संघर्ष रोकने का प्रयास करता है।
      • पाकिस्तानी सेना को एक उपयोगी आतंकवाद विरोधी सहयोगी मानता है, फिर भी उसने भारत के आतंकवाद विरोधी हमलों के लिए निहित समर्थन दिया है।
    • उदाहरण: आतंकवाद के खिलाफ सीमा पार जवाबी कार्रवाई के एक स्वीकृत रूप के रूप में पाकिस्तान के अंदर जनवरी 2024 में ईरान के हमलों का हवाला दिया।
  • यूरोप (यू.के. सहित): भारत की रक्षात्मक स्थिति के प्रति मौन लेकिन समर्थनपूर्ण स्वीकृति दी।
    • नीतिगत सीमाएँ
      • ऐतिहासिक रूप से सहायता और आतंकवाद विरोधी समन्वय के माध्यम से पाकिस्तान से जुड़ा हुआ है।
      • पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता में आतंकवाद विरोधी धाराएँ शामिल हैं, जिन्हें अक्सर माफ कर दिया जाता है या शिथिल रूप से लागू किया जाता है।
    • इसके बावजूद किसी भी प्रमुख यूरोपीय देश ने सार्वजनिक रूप से भारत की निंदा नहीं की है।
  • चीन: कूटनीतिक रूप से, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान का समर्थन जारी रखता है।
    • व्यवहार: अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के लिए ढाल के रूप में कार्य करता है।
    • अस्पष्टता: राजनीतिक रूप से पाकिस्तान का समर्थन करते हुए, इसके आतंकवादियों द्वारा उत्पन्न अस्थिरता से भी असहजता प्रकट करता है।

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया

  • पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद-51 का हवाला देते हुए दावा किया कि भारत की कार्रवाई ने अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन किया है, जबकि भारत ने आत्मरक्षा को उचित ठहराने के लिए उसी अनुच्छेद का हवाला दिया।

संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद-51 के बारे में

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद-51 ‘किसी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश के विरुद्ध सशस्त्र हमला होने पर व्यक्तिगत या सामूहिक आत्मरक्षा के अंतर्निहित अधिकार’ की पुष्टि करता है।
  • अनुच्छेद-51 के अंतर्गत उठाए गए किसी भी रक्षात्मक उपाय की सूचना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को दी जानी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय शांति बनाए रखने के लिए यह उसके अधिकार के अधीन है।
  • यह प्रावधान तब तक एकतरफा रक्षात्मक कार्रवाई की वैधता को मान्यता देता है, जब तक कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सामूहिक सुरक्षा उपाय नहीं करती।

ऑपरेशन सिंदूर: पाकिस्तान पर प्रभाव

  • सामरिक प्रतिरोध का पुनर्मूल्यांकन: पाकिस्तान की यह दीर्घकालिक मान्यता समाप्त हो गई है कि भारत सैन्य रूप से सीमा पार नहीं करता है।
    • यह वर्ष 1971 के बाद पाकिस्तान के सबसे अंदर (150 किमी. तक) हमला है, जो बालाकोट (वर्ष 2019) और वर्ष 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक से भी आगे है।
  • आतंकी ढाँचे को नष्ट किया गया: भारत ने उन महत्त्वपूर्ण आतंकवादी शिविरों को नष्ट कर दिया, जिनमें 26/11 मुंबई और पुलवामा सहित पिछले हमलों के लिए जिम्मेदार हमलावरों को प्रशिक्षित किया गया था।
    • हमले HUMINT और तकनीकी निगरानी सहित विस्तृत खुफिया सूचनाओं पर आधारित थे, इन हमलों के लिए सवाई नाला, मरकज तैयबा और सुभानअल्लाह मस्जिद में संचालित गतिविधि की पुष्टि की गई थी।
  • मनोवैज्ञानिक और सैन्य दबाव: इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान की सशस्त्र सेनाओं और जनता के विश्वास पर मनोवैज्ञानिक दबाव डाला।
  • कूटनीतिक अलगाव: पाकिस्तान हमलों के बाद महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने में विफल रहा है।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भारत की निंदा करने के पाकिस्तान के आह्वान को अस्वीकार कर दिया; अमेरिका सहित वैश्विक शक्तियों ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार को मौन स्वीकृति दी।
  • आंतरिक राजनीतिक और सामाजिक असंतोष: शासन में पाकिस्तानी सेना के प्रभुत्व के कारण जनता में असंतोष बढ़ रहा है।
    • इमरान खान के जेल में होने और लोकतंत्र के कमजोर होने के कारण, आर्थिक गिरावट और आंतरिक विद्रोहों के कुप्रबंधन के बीच सेना की भूमिका जाँच के दायरे में है।
  • नागरिक भेद्यता का खुलासा: नागरिकों की मृत्यु (जैसा कि पाकिस्तान ने दावा किया है) आंतरिक तैयारियों की कमी और आबादी वाले क्षेत्रों में आतंकी शिविरों की मेजबानी के जोखिमों को उजागर करती है।
    • भारत नागरिक/सैन्य लक्ष्यों से बचने के अपने दावे पर कायम रहा, लेकिन पाकिस्तान का अपना कथन दोहरे उपयोग वाली सुविधाओं के उसके प्रयोग की पुष्टि करता है।
  • आर्थिक और अवसंरचनात्मक तनाव: सिंधु जल संधि के निलंबन के कारण पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ गया है।
    • पाकिस्तान में जल एक गहन भावनात्मक और रणनीतिक मुद्दा है; इससे पहले भी ‘जल युद्ध’ (Water War) के आरोप पुनः उभरे थे।

ऑपरेशन सिंदूर: भारत पर प्रभाव

  • परंपरागत प्रतिरोध को मजबूत करना: भारत ने गहरी, सटीक हमले करने की इच्छा और क्षमता का प्रदर्शन करके अपनी विश्वसनीयता को पुनः स्थापित किया।
    • यह हमला बालाकोट, 2019 और उरी, 2016 की तुलना में अधिक व्यापक था, जो भारत के सैन्य सिद्धांत में विकास को दर्शाता है।
  • राजनीतिक और राष्ट्रीय एकता: इस ऑपरेशन ने द्विदलीय राजनीतिक समर्थन और मजबूत सार्वजनिक समर्थन प्राप्त किया।
    • ऑपरेशन सिंदूर को ‘नपा-तुला, गैर-उग्र और जिम्मेदार’ के रूप में वर्णित किया गया था, जिसने संपूर्ण देश को एकजुट करने में मदद की।
  • राजनयिक विश्वसनीयता एवं अंतरराष्ट्रीय वैधता: भारत की संयमित लेकिन दृढ़ कार्रवाई ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौन स्वीकृति प्राप्त की।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भारत को रोकने के पाकिस्तान के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया; अधिकांश वैश्विक शक्तियों ने संयुक्त राष्ट्र के अनुच्छेद-51 के तहत भारत के आत्मरक्षा के अधिकार को स्वीकार कर लिया।
  • संचालन एवं खुफिया सत्यापन: भारत ने बढ़ी हुई सैन्य क्षमता, खुफिया एकीकरण और सटीक लक्ष्यीकरण का प्रदर्शन किया।
    • ब्रह्मोस, SCALP, ड्रोन और गतिशील हथियारों का उपयोग; तकनीकी और मानवीय खुफिया (HUMINT) सेवा द्वारा पुष्टि किए गए लक्ष्यों का चयन।
  • रक्षा तैयारियों पर दबाव में वृद्धि: अधिक तीव्र, निर्णायक जवाबी कार्रवाई के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसके लिए निरंतर तत्परता और आधुनिकीकरण की आवश्यकता है।
    • भारत का उद्देश्य उत्तरी सीमा को सुरक्षित रखते हुए पाकिस्तान पर भारी प्रभुत्व स्थापित करना है।
  • सामाजिक स्थिति और आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ: हमले के बाद सांप्रदायिक तनाव और अविश्वास के जोखिम को ध्रुवीकरण से बचने के लिए सावधानी से सँभालने की आवश्यकता थी।
    • पहलगाम हमले का उद्देश्य कश्मीर में सामान्य स्थिति को बिगाड़ना और सांप्रदायिक दरार उत्पन्न करना था।

ताशकंद समझौते के बारे में

  • 10 जनवरी, 1966 को उज्बेकिस्तान के ताशकंद में हस्ताक्षरित ताशकंद समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच एक शांति संधि थी, जिसका उद्देश्य वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को समाप्त करना था।
  • इस पर भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।
  • इस समझौते में 5 अगस्त, 1965 से पहले की स्थिति में सेना की वापसी, युद्ध विराम रेखा का पालन और अच्छे पड़ोसी संबंध बनाने के प्रयास जैसे प्रावधान शामिल थे।

पाकिस्तान के विरुद्ध भारत द्वारा किए गए पिछले सैन्य अभियान

  • ऑपरेशन रिडल (1965): वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान ऑपरेशन जिब्राल्टर के तहत जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तान की घुसपैठ के जवाब में शुरू किया गया।
    • भारतीय सेना ने लाहौर और कसूर को निशाना बनाया, जिसके कारण पूर्ण पैमाने पर युद्ध हुआ और अंततः ताशकंद समझौता हुआ।
  • ऑपरेशन एब्लेज (1965): कच्छ के रण में सीमा पर झड़पों के बाद संघर्ष की तैयारी के लिए भारत द्वारा एक पूर्व-प्रतिरोधी सैन्य लामबंदी की गई थी।
    • इसने प्रभावी रूप से पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर किया और सोवियत संघ की मध्यस्थता से ताशकंद समझौता हुआ।
  • ऑपरेशन कैक्टस लिली (1971): इसे मेघना हेली ब्रिज या मेघना क्रॉसिंग के नाम से भी जाना जाता है, यह दिसंबर 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान किया गया एक हवाई हमला अभियान था।
    • इसने पाकिस्तान के आत्मसमर्पण और बांग्लादेश के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • ऑपरेशन ट्राइडेंट (1971): 4 दिसंबर को मिसाइल बोट का उपयोग करके कराची बंदरगाह पर नौसेना द्वारा किया गया हमला, जिसमें पाकिस्तानी नौसेना की संपत्तियों को भारी नुकसान पहुँचा। 
    • यह युद्ध में भारत द्वारा एंटी-शिप मिसाइलों का पहला उपयोग था। 
  • ऑपरेशन पायथन (1971): कराची पर तेल डिपो और जहाजों को निशाना बनाकर किया गया अनुवर्ती नौसैनिक हमला। 
    • इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान की समुद्री ईंधन आपूर्ति को कमजोर बना दिया और समुद्र में भारत के प्रभुत्व को मजबूत किया। 
  • ऑपरेशन मेघदूत (1984): भारत ने क्षेत्रीय दावों के पाकिस्तानी प्रयासों का मुकाबला करने के लिए सियाचिन ग्लेशियर में रणनीतिक ऊँचाइयों पर पहले से ही अधिकार कर लिया। 
    • इसने भारत को प्रमुख दर्रों पर नियंत्रण प्रदान किया और सियाचिन संघर्ष की शुरुआत की। 
  • ऑपरेशन विजय (1999): भारत ने वर्ष 1999 के संघर्ष के दौरान कारगिल से पाकिस्तानी घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए एक विशाल सैन्य अभियान शुरू किया। 
    • इसके परिणामस्वरूप भारत ने सभी चौकियों पर पुनः अधिकार कर लिया और अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल किया। 
  • ऑपरेशन सफेद सागर (1999): कारगिल युद्ध में भारतीय वायु सेना का योगदान, जिसमें दुश्मन के ठिकानों पर सटीक हवाई हमले शामिल थे।
    • यह वर्ष 1971 के बाद से कश्मीर में वायु शक्ति का पहला बड़े पैमाने पर उपयोग था।
  • सर्जिकल स्ट्राइक (2016): उरी हमले के बाद विशेष बलों ने LoC पार करके आतंकी लॉन्च पैड को नष्ट किया।
    • इसने रणनीतिक संयम से सक्रिय सीमा पार जवाबी कार्रवाई की ओर बदलाव को चिह्नित किया।
  • ऑपरेशन बंदर (2019): पुलवामा आत्मघाती बम विस्फोट के जवाब में जैश-ए-मोहम्मद के बालाकोट प्रशिक्षण शिविर पर हवाई हमले किए गए।
    • यह वर्ष 1971 के बाद से पाकिस्तान के अंदर पहला हवाई हमला था।

भारत का युद्ध संबंधी शस्त्रागार

  • स्कैल्प (SCALP) क्रूज मिसाइल (स्टॉर्म शैडो)
    • यूरोपीय फर्म MBDA द्वारा विकसित एक लंबी दूरी (550 किमी.) की, हवा से प्रक्षेपित क्रूज मिसाइल, जिसका उपयोग उच्च-मूल्य, किलेबंद लक्ष्यों पर तीव्र हमलों के लिए किया जाता है।
    • राफेल जेट से लॉन्च, इसमें स्टेल्थ, GPS/INS गाइडेंस की सुविधा है, और यह इराक, लीबिया, सीरिया और यूक्रेन में युद्ध-सिद्ध है।
  • HAMMER प्रिसिजन-गाइडेड बम (HAMMER Precision-Guided Bomb)
    • फ्राँस के सफ्रान (Safran) द्वारा निर्मित मध्यम दूरी (70 किमी.) का मॉड्यूलर बम, गतिशील लक्ष्यों के लिए GPS, इन्फ्रारेड और लेजर मार्गदर्शन के साथ।
    • राफेल की मारक क्षमता को बढ़ाता है, जिससे सीमा पार किए बिना आतंकी शिविरों पर सटीक हमला किया जा सकता है।
  • लॉयटरिंग म्यूनिशन (कामिकेज ड्रोन) [Loitering Munitions (Kamikaze Drones)]
    • निगरानी + स्ट्राइक ड्रोन, जो स्वायत्त सटीक हमलों को अंजाम देने से पहले लक्ष्यों पर मँडराते हैं।
    • वास्तविक समय की खुफिया जानकारी प्रदान करने और पायलट जोखिम को कम करने तथा शत्रुतापूर्ण इलाके में आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए महत्त्वपूर्ण है।

पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क और राज्य प्रायोजन

पाकिस्तान के आतंकी पारिस्थितिकी तंत्र की ऐतिहासिक जड़ें

  • सोवियत-अफगान युद्ध (1979): अमेरिकी फंडिंग से समर्थित ISI ने जिहादी समूहों को बढ़ावा दिया, जो बाद में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे भारत विरोधी आतंकवादी संगठनों में बदल गए।
  • 9/11 के बाद की दोहरी नीति: पाकिस्तान ने ‘अच्छे आतंकवादियों’ (पाकिस्तान समर्थक) और ‘बुरे आतंकवादियों’ (पाकिस्तान विरोधी) के बीच भेद किया और छद्म युद्ध को जारी रखा।

प्रमुख आतंकवादी संगठन और उनकी गतिविधियाँ

  • लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba- LeT)
    • नेतृत्व: हाफिज सईद (विश्व स्तर पर प्रतिबंधित), जकीउर रहमान लखवी (वर्ष 2008 मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड)।
    • उल्लेखनीय हमले: वर्ष 2008 मुंबई हमले (166 मारे गए), वर्ष 2006 मुंबई ट्रेन विस्फोट, पुणे की जर्मन बेकरी बम विस्फोट (वर्ष 2010)।
  • जैश-ए-मोहम्मद (Jaish-e-Mohammed-JeM)
    • नेतृत्व: मसूद अजहर (IC-814 अपहरण में रिहा), अब्दुल रऊफ असगर (ऑपरेशन हेड)।
    • बुनियादी ढाँचा: बहावलपुर मुख्यालय, बालाकोट कैंप (2019 के हमले के बाद पुनः बनाया गया), केपीके/अफगानिस्तान में आत्मघाती प्रशिक्षण सुविधाएँ।
    • उल्लेखनीय हमले: वर्ष 2001 संसद पर हमला, वर्ष 2019 पुलवामा बम विस्फोट (40 CRPF जवान मारे गए)।

आतंकवादी नेटवर्कों का समर्थन

  • हक्कानी नेटवर्क: अफगानिस्तान में ISI का प्रतिनिधि; सिराजुद्दीन हक्कानी (अफगान गृह मंत्री, 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर का इनाम) के नेतृत्व में।
  • ISIS-K: अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा क्षेत्रों में सक्रिय; भारत विरोधी अभियानों के लिए ISI द्वारा समर्थन दिया जाता है।
  • हरकत उल-मुजाहिदीन (Harakat ul-Mujahidin- HUM): मदरसों से भर्ती करता है, लश्कर/जम्मू-ए-मोहम्मद के लिए लड़ाकों को भेजता है।

राज्य प्रायोजन और आईएसआई की भूमिका

  • त्रि-स्तरीय प्रणाली
    • रणनीतिक दिशा: ISI का ‘एस-विंग’ वित्तपोषण और योजना प्रदान करता है।
    • संचालन सहायता: सेवानिवृत सैन्यकर्मी आतंकवादियों को प्रशिक्षित करते हैं।
    • सामग्री सहायता: हथियार, सुरक्षित ठिकाने और खुफिया जानकारी साझा करना।
  • FATF ग्रे लिस्ट: आतंकवाद के वित्तपोषण पर अंकुश लगाने में विफल रहने के कारण पाकिस्तान को बार-बार सूचीबद्ध किया गया (2008-2022)।

भारत के लिए चुनौतियाँ 

  • पाकिस्तान की ओर से कार्रवाई और जवाबी कार्रवाई की संभावना: भारत के जिम्मेदारीपूर्ण हमले के बावजूद, भविष्य में अन्य कार्रवाई (सैन्य या आतंकवाद-आधारित) का जोखिम बना हुआ है।
  • पारंपरिक प्रतिरोध को बनाए रखना: पिछले हमले (वर्ष 2016 उरी, वर्ष 2019 बालाकोट) पाकिस्तान के आतंकवाद के समर्थन को रोकने में विफल रहे।
    • एक बार के हमले पर्याप्त नहीं हो सकते हैं। भारत को निरंतर पारंपरिक श्रेष्ठता, निरंतर सैन्य तत्परता और संभावित नुकसान के लिए सार्वजनिक तैयारी की आवश्यकता है।
  • राजनयिक संतुलन अधिनियम का प्रबंधन: हालाँकि वैश्विक शक्तियों ने मौन रूप से भारत का समर्थन किया, UNSC ने कोई प्रस्ताव जारी नहीं किया और चीन एवं तुर्की ने भारत का समर्थन नहीं किया है।
    • स्थायी अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करना, विशेष रूप से उन मंचों पर जहाँ पाकिस्तान को कुछ लाभ प्राप्त है (जैसे- OIC, UNSC चीन के माध्यम से), कूटनीतिक कौशल की आवश्यकता होगी।
  • आंतरिक सांप्रदायिक सद्भाव: पहलगाम हमले में जानबूझकर हिंदुओं को निशाना बनाया गया ताकि सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया जा सके।
    • सामाजिक सामंजस्य बनाए रखना और सांप्रदायिक प्रतिक्रिया को रोकना महत्त्वपूर्ण है, खासकर जम्मू और कश्मीर के संवेदनशील क्षेत्र में।
  • सिंधु जल संधि के निलंबन का आर्थिक और सामरिक जोखिम: भारत ने पहलगाम हमले के बाद सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया, जो वर्ष 1965 और वर्ष 1971 के युद्धों में प्रभावित नहीं हुई।
    • हालाँकि कानूनी और तकनीकी रूप से न्यायोचित है, लेकिन इससे अंतरराष्ट्रीय निंदा का जोखिम है और पाकिस्तान को एक नारा (जैसे-‘जल युद्ध’ नैरेटिव) मिल जाता है, जैसा कि वर्ष 2009 और वर्ष 2019 में देखा गया।
  • भविष्य के हमलों को रोकना: खुफिया और आतंकवाद-रोधी क्षमता।
    • आतंकवाद-रोधी के लिए पाँच ‘P’ की आवश्यकता होती है – पूर्वानुमान, रोकथाम, पूर्व-प्रतिक्रिया, सुरक्षा, दंड (Predict, Prevent, Pre-empt, Protect, Punish)।  भारत को पूर्वानुमान क्षमता और HUMINT एकीकरण को बढ़ाना चाहिए।
    • भारत को सफल होने के लिए तकनीकी उन्नयन, वास्तविक समय की खुफिया जानकारी, त्वरित प्रतिक्रिया इकाइयों और सामाजिक स्तर पर सतर्कता की आवश्यकता है।
  • कश्मीरियों का विश्वास और एकीकरण जीतना: असली जीत कश्मीर में विश्वास निर्माण में निहित है, विकास, उचित प्रक्रिया और भावनात्मक एकीकरण अलगाववादी और चरमपंथी आख्यानों को कम करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • हमलों के बाद राज्य की अत्यधिक कार्रवाई (जैसे- सामूहिक गिरफ्तारियाँ, घरों को ध्वस्त करना) से स्थानीय लोगों के अलग-थलग पड़ने का खतरा होता है।

भारत के लिए रणनीतियाँ और आगे की राह

  • एक सतत् आतंकवाद विरोधी सिद्धांत को संस्थागत बनाना: तीव्र प्रतिशोध से सैन्य, कूटनीतिक और गुप्त साधनों को मिलाकर एक सतत्, सिद्धांत-संचालित दृष्टिकोण की ओर बढ़ना।
    • जैसा कि वर्ष 2016 और वर्ष 2019 के हमलों के बाद देखा गया, निवारण सिद्धांत निष्क्रिय हो गया। दबाव बनाए रखने के लिए तीव्र प्रतिशोध तंत्र के साथ एक स्थायी ढाँचे की आवश्यकता है।
  • खुफिया एकीकरण (HUMINT + TECHINT) को बढ़ाना: वास्तविक समय की निगरानी, ​​पूर्वानुमानित खुफिया जानकारी और जमीनी स्तर की मानवीय खुफिया जानकारी को गहरा करना, विशेषकर कश्मीर और सीमावर्ती क्षेत्रों में।
    • ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का श्रेय पूर्व निगरानी और HUMINT को जाता है; हमलों को रोकने के लिए इसे मानक बनना चाहिए।
  • अत्यधिक पारंपरिक श्रेष्ठता का निर्माण करना: सैन्य आधुनिकीकरण में तेजी लाना, लंबी दूरी के सटीक हथियार (SCALP, ब्रह्मोस), लॉयटरिंग ड्रोन, साइबर युद्ध की तैयारी।
    • अंदर किए गए हमलों (150 किमी.) ने भारत की क्षमता को सिद्ध कर दिया है, लेकिन भविष्य में दुस्साहस को रोकने के लिए, प्रभुत्व स्पष्ट और विश्वसनीय होना चाहिए।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक दबाव बनाए रखना: पाकिस्तान के राज्य प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध निरंतर कूटनीतिक आम सहमति बनाने के लिए भारत की वैश्विक स्थिति का उपयोग करना।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भारत की निंदा करने से इनकार करते हुए मौन समर्थन दिया है। इसे पाकिस्तान पर ठोस अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई करने में परिवर्तित किया जाना चाहिए।
  • सांप्रदायिक सद्भाव की रक्षा करना और आंतरिक सामंजस्य को मजबूत करना: धार्मिक ध्रुवीकरण उत्पन्न करने के प्रयासों का मुकाबला करना; समुदाय के विश्वास-निर्माण में निवेश करना, विशेषकर जम्मू-कश्मीर में।
    • पहलगाम-शैली के हमलों का उद्देश्य आंतरिक संघर्षों को भड़काना है।
    • भारत की एकता (राजनीतिक और सामाजिक) आतंकवादियों को उनके उद्देश्य से वंचित करने की कुंजी है।
  • कश्मीर नीति में सुधार: कानून का शासन, उचित प्रक्रिया और विकास सुनिश्चित करना; मनमाने ढंग से तोड़फोड़ या सामूहिक हिरासत जैसी ज्यादतियों से बचना।
    • अनुच्छेद-370 को हटाना प्रतीकात्मक था, वास्तविक एकीकरण के लिए कश्मीरियों के साथ विश्वास-निर्माण की आवश्यकता है। 
  • सिंधु जल कूटनीति सहित क्षेत्रीय रणनीति को नया स्वरूप देना: सिंधु जल संधि के निलंबन जैसे साधनों का प्रयोग अकेले खतरे के तौर पर न करना, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वैधता के साथ दबावपूर्ण कूटनीति के हिस्से के तौर पर करना। 
    • पाकिस्तान में जल एक रणनीतिक और भावनात्मक साधन है; इसका विवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग करके वैश्विक समुदाय को अलग-थलग किए बिना ‘डीप स्टेट’ पर दबाव बनाया जा सकता है।

निष्कर्ष 

ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति को नए सिरे से परिभाषित किया है, जिसने निर्णायक सैन्य सटीकता और कूटनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया गया है, हालाँकि पाकिस्तान की कमजोरियों को प्रदर्शित किया है। इसको बनाए रखने के लिए एक मजबूत, सिद्धांत-संचालित दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें दीर्घकालिक निरोध और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सैन्य प्रभुत्व, खुफिया जानकारी और सुसंगत आंतरिक नीतियों को एकीकृत किया गया हो।

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