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भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में ‘आउट ऑफ पॉकेट’ व्यय

Lokesh Pal September 19, 2025 02:42 32 0

संदर्भ

आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE) लंबे समय से भारतीय परिवारों पर बोझ डालता रहा है, जिसके कारण अनेक लोग गरीबी के कुचक्र में फँस गए हैं।

आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (Out-of-Pocket Expenditure-OOPE) के बारे मे

  • परिभाषा: इसका तात्पर्य परिवारों द्वारा डॉक्टर से परामर्श, दवाइयाँ, निदान और अस्पताल में रहने जैसी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बिना किसी प्रतिपूर्ति के प्रत्यक्ष भुगतान से है।
  • व्यय की प्रकृति: इसमें प्रायः सब्सिडी रहित दवाइयाँ, नैदानिक ​​परीक्षण और अस्पताल में भर्ती होने का व्यय शामिल होता है, जिससे यह एक भारी वित्तीय बोझ बन जाता है।
  • नीतिगत प्रासंगिकता: उच्च OOPE को कमजोर सार्वजनिक स्वास्थ्य वित्तपोषण और कम बीमा पहुँच का सूचक माना जाता है।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2021- 2022 के लिए जारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमानों के प्रमुख निष्कर्ष

  • OOPE में गिरावट: OOPE वर्ष 2017- 2018 में 48.8% से घटकर वर्ष 2021- वर्ष 2022 में कुल स्वास्थ्य व्यय (Total Health Expenditure- THE) का 39.4% रह गया।
  • सरकार की हिस्सेदारी में वृद्धि: THE में सरकार की हिस्सेदारी 40.8% से बढ़कर 48% हो गई।
  • लक्ष्य: वर्ष 2025-26 तक OOPE को THE के 35% तक कम करना।

कुल स्वास्थ्य व्यय (Total Health Expenditure -THE)

  • कुल स्वास्थ्य व्यय (Total Health Expenditure -THE) किसी देश में एक निश्चित अवधि में स्वास्थ्य सेवाओं पर किए गए सभी सार्वजनिक और निजी व्यय का योग है। इसमें सरकारी व्यय, बीमा भुगतान और परिवारों द्वारा अपनी जेब से किया गया व्यय शामिल होता है।

भारत में OOPE की स्थिति

  • आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, भारत का OOPE 39.4% है, जिससे स्वास्थ्य सेवा कई लोगों के लिए वहनीय नहीं रह गई है।
  • यू.के. और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में OOPE लगभग 13% है, क्योंकि वे सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर निर्भर हैं।

OOPE में गिरावट के प्रमुख कारण

  • सरकारी स्वास्थ्य व्यय (Government Health Expenditure- GHE) में वृद्धि: GHE का हिस्सा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 1.13% (वर्ष 2014-15) से बढ़कर 1.84% (वर्ष 2021-22) हो गया, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा अधिक किफायती हो गई।
  • सामाजिक सुरक्षा व्यय (Social Security Expenditure- SSE) का विस्तार: कुल स्वास्थ्य व्यय (Total Health Expenditure- THE) में इसका हिस्सा 5.7% से बढ़कर 8.7% हो गया, जिससे अत्यधिक व्यय से सुरक्षा मिली।
  • गैर-संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases- NCD) के लिए लक्षित कार्यक्रम: मधुमेह, उच्च रक्तचाप और कैंसर के उपचार के लिए सब्सिडी युक्त पहलों ने दीर्घकालिक घरेलू स्वास्थ्य लागत को कम किया।
  • कोविड-19 प्रतिक्रिया: परीक्षण, ऑक्सीजन संयंत्रों, ICU बिस्तरों और टीकों में निवेश ने स्थायी बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से OOPE में कमी आई।

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना एवं कार्यबल: आयुष्मान आरोग्य मंदिरों की स्थापना, बेहतर सुविधाओं से युक्त जिला अस्पताल और प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मचारियों ने किफायती पहुँच का विस्तार किया।
    • आयुष्मान आरोग्य मंदिर (Ayushman Arogya Mandirs- AAMs): 1.76 लाख केंद्र निवारक, प्रोत्साहक, उपचारात्मक, उपशामक और पुनर्वास सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं, जिससे देखभाल सार्वभौमिक और समुदायों के करीब निःशुल्क हो रही है।

  • नीतिगत हस्तक्षेप
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NHM): राज्य स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे, मानव संसाधन और वंचित समूहों के लिए सेवाओं को मजबूत करना।

    • राष्ट्रीय निःशुल्क दवाएँ और निःशुल्क निदान सेवाएँ: आवश्यक दवाओं और परीक्षणों की उपलब्धता सुनिश्चित करना, सार्वजनिक सुविधाओं पर रोगियों के लिए OOPE को कम करना।
    • प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (Pradhan Mantri Ayushman Bharat Health Infrastructure Mission- PM-ABHIM): प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवा में क्षमता निर्माण के लिए ₹64,180 करोड़ का परिव्यय।
    • सरकार द्वारा वित्तपोषित बीमा योजनाएं: आयुष्मान भारत-PMJAY और राज्य स्वास्थ्य योजनाएँ जैसी पहल कमजोर समूहों के लिए अस्पताल में भर्ती होने की लागत को कवर करती हैं।
      • आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY): भारत की आबादी के निचले 40% हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले 55 करोड़ लाभार्थियों (12.37 करोड़ परिवार) को द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवा के लिए प्रति परिवार प्रतिवर्ष ₹5 लाख का कवर प्रदान करती है।
      • हाल ही में इसका विस्तार सामाजिक-आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना 6 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों (70+ वर्ष) को कवर करने के लिए किया गया है।
      • प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (PMBJP) और किफायती दवाएँ और उपचार के लिए विश्वसनीय प्रत्यारोपण (AMRIT) फार्मेसी: किफायती कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना।

कम OOPE के निहितार्थ

  • बेहतर स्वास्थ्य सेवा पहुँच: परिवार, विशेष रूप से ग्रामीण और निम्न-आय वाले क्षेत्रों में, अब बिना किसी बड़ी वित्तीय बाधा के उपचार प्राप्त कर सकते हैं।
  • सुदृढ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली: अधिक धनराशि ने सरकारी सुविधाओं में संसाधन वितरण और सेवा विश्वसनीयता में सुधार किया है।
  • बेहतर स्वास्थ्य परिणाम: निवारक देखभाल और शीघ्र निदान से रुग्णता और मृत्यु दर कम होती है, जिससे प्रणाली-व्यापी बोझ कम होता है।
  • परिवारों के लिए वित्तीय स्थिरता: स्वास्थ्य पर कम खर्च पोषण, शिक्षा और घरेलू लचीलेपन के लिए संसाधन उपलब्ध कराता है।
  • स्वास्थ्य कार्यबल को बढ़ावा: अधिक सरकारी व्यय डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स की भर्ती और प्रशिक्षण को संभव बनाता है, जिससे सेवा वितरण में सुधार होता है।
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage- UHC) का मार्ग: OOPE में गिरावट SDG 3 (उत्कृष्ट स्वास्थ्य और कल्याण) और स्वास्थ्य सेवा को एक अधिकार के रूप में देखने की दिशा में भारत की प्रगति को मजबूत करती है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य खातों (National Health Accounts- NHA) के बारे में

  • NHA किसी देश में स्वास्थ्य संसाधनों के प्रवाह की निगरानी करता है। व्यय, वित्त पोषण स्रोतों और विभिन्न क्षेत्रों में संसाधन वितरण का विश्लेषण करता है।
  • NHA के प्रमुख तत्त्व
    • स्वास्थ्य व्यय संबंधी निगरानी: सरकारी, निजी बीमा, OOPE और विदेशी सहायता से होने वाले व्यय का विश्लेषण करता है।
    • वित्तपोषण के स्रोत: सरकारी, सामाजिक स्वास्थ्य बीमा, निजी क्षेत्र और घरेलू व्यय से होने वाले व्यय का विश्लेषण करता है।
    • सेवा क्षेत्र: अस्पताल देखभाल, बाह्य रोगी सेवाओं, दवाइयों आदि पर होने वाले व्यय को वर्गीकृत करता है।
    • प्रणाली अंतर्दृष्टि: स्वास्थ्य सेवा वित्तपोषण में दक्षता और समता का आकलन करने में मदद करता है।
    • प्रदर्शन निगरानी: वित्तीय स्थिरता पर नजर रखता है और स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने के लिए निर्णय लेने में मदद करता है।
  • NHA फ्रेमवर्क और मानक
    • आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा स्वास्थ्य लेखा प्रणाली (SHA) NHA के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक है, जिसे स्वास्थ्य वित्तपोषण में नए रुझानों को प्रतिबिंबित करने के लिए नियमित रूप से अद्यतन किया जाता है।

भारत में NHA

  • भारत का NHA सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सेवा व्यय की निगरानी करता है और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage -UHC) की दिशा में देश की प्रगति की जानकारी देता है।
  • प्रवृत्ति: NHA में OOPE में गिरावट आई है, लेकिन CPHS में, विशेष रूप से कोविड के बाद, कमी धीमी रही है।
  • महत्त्व: स्वास्थ्य वित्तपोषण लक्ष्यों की जानकारी देता है, जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 2.5% तक बढ़ाना।

आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (Out-of-Pocket Expenditure- OOPE) की चुनौतियाँ

  • परिवारों पर वित्तीय बोझ: उच्च OOPE परिवारों को बचत खर्च करने, ऋण लेने या संपत्ति बेचने के लिए विवश करता है, जिसके परिणामस्वरूप भोजन, शिक्षा और आजीविका से संसाधन हटकर प्रायः स्वास्थ्य पर अत्यधिक व्यय हो जाता है।
    • उदाहरण: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, परिवार अपनी आय का 10-25% स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करते हैं, जिससे कई लोग गरीबी के जाल में फँस जाते हैं।
  • पहुँच में समानता: AB-PMJAY जैसी योजनाएँ मुख्य रूप से अस्पताल में भर्ती होने को कवर करती हैं, जबकि बाह्य रोगी देखभाल और दवाइयाँ OOPE का अधिकांश हिस्सा हैं जो इसमें शामिल नहीं होतीं।
    • उदाहरण: लैंसेट रिपोर्ट, 2023 में पाया गया कि अकेले दवाइयाँ OOPE का 60% से अधिक हिस्सा हैं, जिससे ग्रामीण गरीबों पर असमान रूप से बोझ पड़ता है।
  • स्वास्थ्य सेवा की बढ़ती लागत: सरकारी पहलों के बावजूद, निदान, दवाओं और उपचारों की कीमतों में वृद्धि जारी है।
    • उदाहरण: NPPA वर्ष 2024 ने आवश्यक दवाओं की कीमतों में 12% की वृद्धि दर्ज की, जिससे घरेलू वित्तीय तनाव बढ़ गया।
  • आँकड़ों की विश्वसनीयता: NSS (वर्ष 2017-18) और NHA के अनुमानित आँकड़ों पर अत्यधिक निर्भरता आंकड़ों की सटीकता को कमजोर करती है।
    • उदाहरण: नीति आयोग, 2021 ने घरेलू स्वास्थ्य व्यय के NHA और राष्ट्रीय आय लेखा अनुमानों के बीच विसंगतियों को प्रदर्शित किया।
  • कोविड-19 व्यय: महामारी से संबंधित ऑक्सीजन, अस्पताल के बिस्तरों और दवाओं का खर्च मुख्यतः जेब से वहन किया गया और NHA में दर्ज नहीं किया गया।
    • उदाहरण: अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय वर्ष 2022 ने अनुमान लगाया है कि स्वास्थ्य सेवा व्यय के कारण 20 करोड़ भारतीय गरीबी में चले जाएँगे।
  • कम सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय: सकल घरेलू उत्पाद के 1.84% पर, भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय, विश्व स्वास्थ्य संगठन के 5% के मानक से नीचे बना हुआ है, जिससे OOPE से सुरक्षा सीमित हो जाती है।
    • उदाहरण: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के अनुरूप, वर्ष 2025 तक स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 2.5% तक बढ़ाने पर बल दिया है।

आगे की राह

  • स्वास्थ्य डेटा प्रणालियों को मजबूत बनाना: एक समग्र, वास्तविक समय NHA बनाने के लिए कई सर्वेक्षणों (NSS, NFHS, CES, LASI, CPHS) को एकीकृत करना।
  • अस्पताल में भर्ती होने से परे कवरेज का विस्तार करना: AB-PMJAY और राज्य योजनाओं का विस्तार करके बाह्य रोगी देखभाल, निदान और दवाओं को शामिल करना, जो OOPE के मुख्य कारक हैं।
  • दवाओं की कीमतों को विनियमित और कम करना: प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना का विस्तार करना और राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण के माध्यम से दवा मूल्य विनियमन को मजबूत करना।
  • महामारी-प्रतिक्रियात्मक वित्तपोषण: आपातकालीन स्वास्थ्य वित्तपोषण तंत्र विकसित करना और महामारियों के लिए बीमा कवरेज का विस्तार करना।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय बढ़ाएँ: राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के अनुसार, वर्ष 2025 तक सरकारी स्वास्थ्य व्यय (Government Health Expenditure- GHE) को सकल घरेलू उत्पाद के कम-से-कम 2.5% तक बढ़ाना और WHO द्वारा अनुशंसित 5% के करीब पहुँचना।

निष्कर्ष

आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (Out-of-Pocket Expenditure -OOPE) में कमी, सतत् विकास लक्ष्य 3 (उत्कृष्ट स्वास्थ्य और कल्याण) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है, जो सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक समान पहुँच सुनिश्चित करता है। दीर्घकालिक स्वास्थ्य सेवा स्थिरता प्राप्त करने के लिए निरंतर सरकारी निवेश, समावेशी बीमा योजनाएँ और स्वास्थ्य समानता पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।

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