हाल ही में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के मेंढा गाँव को ग्रामदान अधिनियम के तहत स्वतंत्र ग्राम पंचायत का दर्जा प्राप्त हुआ है।
संबंधित तथ्य
मेंढा गाँव का स्व-शासन के लिए संघर्ष: मेंढा में ग्रामदान कार्यान्वयन संबंधी संघर्ष एक दशक पहले वर्ष 2013 में शुरू हुआ था।
विधिक मान्यता: अक्टूबर 2023 में, बॉम्बे उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद मेंढा को ग्रामदान का दर्जा प्राप्त हुआ।
ग्राम पंचायत अधिसूचना: 21 फरवरी, 2024 को महाराष्ट्र सरकार ने अंततः एक अधिसूचना जारी की, जिसमें महाराष्ट्र ग्रामदान अधिनियम, 1964 के तहत मेंढा को एक स्वतंत्र ग्राम पंचायत घोषित किया गया।
यह अपने जंगलों और भूमि पर संप्रभुता के लिए निवासियों के संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है।
यह गाँव के प्रशासन, विकास और कल्याण के लिए ग्राम सभा को व्यापक शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ प्रदान करता है।
मेंढा गाँव
लगभग 500 गोंड आदिवासियों का घर मेंढा गाँव, भू-स्वामित्व और वन संरक्षण के प्रति अपने सामूहिक दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है।
अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी अधिनियम, 2006 के तहत सामुदायिक वन अधिकार (CFR) सुरक्षित करने वाला भारत का पहला गाँव।
भूदान-ग्रामदान आंदोलन
1950 के दशक में विनोबा भावे द्वारा शुरू किया गया भूदान आंदोलन, स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण भारत में भूमि पुनर्वितरण जैसे संस्थागत परिवर्तन लाने के लिए भूमि सुधार का एक प्रयास था।
उद्देश्य-
संतुलित आर्थिक वितरण सुनिश्चित करके अवसरों की समानता पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना।
‘आर्थिक जोत’ (Economic Holdings) और शक्तियों का विकेंद्रीकरण।
ग्रामदान: वर्ष 1955 के अंत में भारत में आंदोलनों ने एक नया रूप ले लिया, वह था ग्रामदान या ‘गाँव का दान’।
ग्रामदान आंदोलनों का उद्देश्य: प्रत्येक गाँव में भू-स्वामियों और पट्टाधारकों को अपने भूमि अधिकारों को त्यागने के लिए तैयार करना और सभी भूमियाँ समतावादी पुनर्वितरण और संयुक्त खेती के लिए एक ग्राम संघ की संपत्ति बनाना।
मानदंड: किसी गाँव को ग्रामदान तब घोषित किया जाता है, जब-
कम-से-कम 75 निवासियों के पास 51% भूमि हो और वे ग्रामदान के लिए लिखित रूप से अपनी स्वीकृति दर्शाते हैं।
ग्राम सभा में निहित भूमि का 5% भूमिहीनों को दिया जाएगा।
ग्रामीण अपनी कमाई या उपज का 2.5% ग्राम सभा को देंगे, जिससे ‘ग्राम-कोष’ बनेगा।
राजनीतिक समर्थन: भारत में आंदोलनों को व्यापक राजनीतिक संरक्षण प्राप्त हुआ। कई राज्य सरकारों ने ग्रामदान और भूदान के उद्देश्य से कानून पारित किए।
ग्रामदान का महत्त्व
यह आंदोलन न केवल भूमि के समान वितरण की सुविधा प्रदान करता है बल्कि समुदायों को स्व-शासन और सतत् संसाधन प्रबंधन के लिए सशक्त भी बनाता है।
भविष्य की संभावनाएँ: यह स्वायत्तता पर जोर देगा और स्व-शासन एवं सतत् विकास के अपने दृष्टिकोण को साकार करेगा।
संपूर्ण भारत में ग्रामदान
ग्रामदान के अंतर्गत आने वाला पहला गाँव मैग्रोथ, हरिपुर, उत्तर प्रदेश था। दूसरा और तीसरा वर्ष 1955 मेंओडिशा में हुआ।
वर्तमान में, भारत में सात राज्यों में फैले 3,660 ग्रामदान गाँव हैं, जिसमें 1,309 गाँवों के साथ ओडिशा अग्रणी है।
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