शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से 20 दिसंबर, 2024 तक चलेगा, जो संसदीय कार्य पर निर्भर करेगा।
अपेक्षित मुद्दे तथा घटनाएँ
जम्मू-कश्मीर राज्य का दर्जा (J&K Statehood): नई विधानसभा के गठन के बाद जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिए जाने पर चर्चा और पिछले कार्यकाल से खाली पड़े लोकसभा में उपसभापति पद की माँग से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।
विदेश नीति संबंधी विषय: इजरायल-फिलिस्तीन और रूस-यूक्रेन संघर्षों के बारे में भारत के रुख पर संभावित बहस हो सकती है।
जनगणना और जाति जनगणना: आगामी जनगणना और जाति जनगणना के संभावित समावेश पर अपेक्षित प्रश्नों पर चर्चा हो सकती है।
एक राष्ट्र, एक चुनाव: हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत एक राष्ट्र- एक चुनाव के इस प्रस्ताव पर स्पष्टता की माँग कर सकता है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक: संयुक्त समिति द्वारा इस सत्र के दौरान अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने की उम्मीद है।
संविधान दिवस समारोह: संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगाँठ मनाने के लिए 26 नवंबर को संविधान सदन के सेंट्रल हॉल में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
संबंधित संवैधानिक अनुच्छेद
अनुच्छेद-79: राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा से मिलकर एक द्विसदनीय विधायिका की स्थापना करता है।
अनुच्छेद-85: संसद को आहूत करने, स्थगित करने और भंग करने का प्रावधान करता है।
अनुच्छेद-100: दोनों सदनों के लिए मतदान और कोरम की आवश्यकताओं को निर्दिष्ट करता है।
भारत में संसद के सत्र
भारत की संसद का कामकाज सत्रों की एक शृंखला द्वारा संचालित होता है, जिसमें संसद सदस्य (Members of Parliament) देश को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों पर चर्चा, बहस और कानून बनाने के लिए मिलते हैं।
इन सत्रों को निर्देशित करने वाले संवैधानिक प्रावधान मुख्य रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद-85 में उल्लिखित हैं।
संसद को समन करना
संविधान का अनुच्छेद-85 राष्ट्रपति को संसद के प्रत्येक सदन को आहूत करने का अधिकार देता है।
यह संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति की सिफारिश पर किया जाता है। मंजूरी मिलने के बाद, सांसदों को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति के नाम पर बुलाया जाता है।
आवृत्ति: संविधान में यह अनिवार्य किया गया है कि दो सत्रों के बीच छह महीने से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि संसद वर्ष में कम-से-कम दो बार बैठक करे।
परंपरा: यद्यपि संविधान में कोई निश्चित समय-सारिणी नहीं दी गई है, लेकिन स्थापित परंपराओं के अनुसार, संसद आम तौर पर प्रत्येक वर्ष तीन सत्रों के लिए बैठक करती है।
तीन संसदीय सत्र
बजट सत्र (जनवरी-अप्रैल/मई): पहला तथा सबसे लंबा सत्र, यह आमतौर पर जनवरी के अंतिम सप्ताह में शुरू होता है और अप्रैल या मई की शुरुआत तक समाप्त हो जाता है।
संसदीय समितियों को बजटीय प्रस्तावों की जाँच करने का अवसर देने के लिए बीच में अवकाश रखा जाता है।
मानसून सत्र (जुलाई-अगस्त): यह सत्र लगभग तीन सप्ताह तक चलता है और इसमें विभिन्न विधायी मामलों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
शीतकालीन सत्र (नवंबर-दिसंबर): यह सबसे छोटा सत्र है, जो आमतौर पर नवंबर से दिसंबर तक आयोजित होता है।
विशेष सत्र
विशेष सत्र एक अनिर्धारित सत्र होता है, जिसे तीन नियमित वार्षिक सत्रों (बजट, मानसून और शीतकालीन) के अलावा राष्ट्रीय महत्त्व के जरूरी मामलों या विशिष्ट मुद्दों पर विचार करने के लिए बुलाया जाता है।
इसे सरकार राष्ट्रपति की मंजूरी से बुलाती है और यह एक पूर्व-निर्धारित एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे केंद्रित बहस और त्वरित विधायी कार्रवाई की अनुमति मिलती है।
प्रमुख संसदीय शब्दावली
समन (Summoning): समन का तात्पर्य सभी सदस्यों को एक सत्र के लिए इकट्ठा होने के लिए बुलाने की आधिकारिक प्रक्रिया से है।
स्थगन (Adjournment): स्थगन अस्थायी रूप से सदन की बैठक को निलंबित कर देता है, अगली बैठक (घंटे, दिन या सप्ताह) के लिए समय निर्दिष्ट करता है।
यदि अगली बैठक के लिए कोई निर्दिष्ट तिथि नहीं है, तो इसे अनिश्चित काल के लिए स्थगन कहा जाता है।
सत्रावसान: सत्रावसान सत्र के आधिकारिक समापन को दर्शाता है। जबकि राज्यसभा (काउन्सिल ऑफ स्टेट) एक स्थायी निकाय है, और इसे भंग नहीं किया जा सकता है, सत्रावसान इसके वर्तमान सत्र को समाप्त कर देता है।
लोकसभा (लोगों का सदन) में सत्रावसान सत्र को समाप्त कर देता है, लेकिन सदन को भंग नहीं करता है।
कोरम: कोरम किसी भी सदन की बैठक आयोजित करने के लिए उपस्थित होने के लिए आवश्यक सांसदों की न्यूनतम संख्या है।
संवैधानिक आवश्यकता: कोरम के लिए कुल संख्या का दसवाँ हिस्सा आवश्यक है।
लोकसभा: न्यूनतम 55 सदस्य
राज्यसभा: न्यूनतम 25 सदस्य।
सत्र का महत्त्व
संसद के सत्र भारत की विधायी प्रक्रिया के नियमित कामकाज को सुनिश्चित करते हैं, जो राष्ट्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परंपराओं और संवैधानिक प्रावधानों द्वारा निर्देशित होते हैं।
संरचित बैठकों के माध्यम से, संसद बजटीय आवंटन की जाँच करती है, महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर कानून बनाती है और कार्यपालिका पर नियंत्रण और संतुलन बनाए रखती है, जिससे भारत में सर्वोच्च विधायी निकाय के रूप में उसका संवैधानिक जनादेश पूरा होता है।
संसद की कम उत्पादकता के कारण
विपक्षी दलों द्वारा बार-बार व्यवधान और विरोध प्रदर्शन।
सत्तारूढ़ दल के बहुमत के बावजूद प्रमुख मुद्दों पर आम सहमति का अभाव।
छोटे सत्र बहस और चर्चा के लिए समय सीमित करते हैं।
कम उत्पादकता के निहितार्थ
कराधान, बुनियादी ढाँचे और सामाजिक कल्याण पर महत्त्वपूर्ण कानून बनाने में देरी।
सरकार की जवाबदेही और निगरानी में बाधा।
लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता का भरोसा कम होता है।
संसाधनों की बर्बादी और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव।
आगे की राह
सांसदों के बीच सम्मान और व्यावसायिकता की संस्कृति को बढ़ावा देना।
नीतिगत मामलों पर रचनात्मक संवाद और बहस को बढ़ावा देना।
कड़ी पूछताछ और जाँच के माध्यम से निगरानी को मजबूत करना।
सांसदों के लिए समय पर और पारदर्शी सूचना तक पहुँच सुनिश्चित करना।
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