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संसदीय व्यवधान तथा उनके निहितार्थ

Lokesh Pal January 03, 2025 03:52 40 0

संदर्भ

विपक्ष तथा सत्ता पक्ष दोनों द्वारा संसद की कार्यवाही में प्रतिस्पर्द्धात्मक व्यवधान के कारण संसद का हाल ही में संपन्न शीतकालीन सत्र हास्यास्पद बन गया।

ट्रेजरी बेंच 

  • ट्रेजरी बेंच भारत या यू.के.. जैसी संसदीय प्रणालियों में अध्यक्ष के दाईं ओर की सीटों की पहली पंक्ति को संदर्भित करता है।
  • इस पर मंत्री और सत्तारूढ़ दल या गठबंधन के सदस्य बैठते हैं।
  • यह शब्द संसद में वित्तीय और विधायी मामलों के लिए सरकार के उत्तरदायित्व का प्रतीक है।

संसदीय व्यवधान

  • संसदीय व्यवधान से तात्पर्य उन कार्यों से है, जो विधायी कार्यवाही में बाधा डालते हैं, जैसे कि नारे लगाना, सदन के वेल में प्रवेश करना और तख्तियाँ दिखाना।
  • वाकआउट, जैसे वैध विरोध प्रदर्शन व्यवधान के अंतर्गत नहीं आते हैं।
  • ये भारतीय संसद में तेजी से सामान्य हो गए हैं, जिससे विधायी दक्षता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित होती है।

संसदीय व्यवधानों से संबंधित मुख्य आँकड़े

17वीं लोकसभा (वर्ष 2019- वर्ष 2024)

  • बैठकें और उत्पादकता: 17वीं लोकसभा में 274 बैठकें हुईं, जो प्रतिवर्ष औसतन 55 दिन (संसदीय इतिहास में सबसे कम) थीं।
    • इसने अपने निर्धारित समय का 88% कार्य किया, जबकि राज्यसभा ने 73% कार्य किया।
  • व्यवधान और निलंबन: गंभीर कदाचार के कारण दोनों सदनों में सांसदों के निलंबित होने के 206 मामले थे।
    • केवल वर्ष 2023 के शीतकालीन सत्र में 146 सांसदों को निलंबन का सामना करना पड़ा।
  • प्रश्नकाल: प्रश्नकाल के दौरान लोकसभा ने अपने निर्धारित समय का 60% तथा राज्यसभा ने 52% कार्य किया।
    • मौखिक प्रतिक्रियाओं के लिए सूचीबद्ध केवल 24% प्रश्नों का उत्तर लोकसभा में मंत्रियों द्वारा दिया गया तथा 31% का उत्तर राज्यसभा में दिया गया।
  • विधायी कार्य: लगभग 58% विधेयक पेश किए जाने के दो सप्ताह के भीतर पारित कर दिए गए, जबकि 35% विधेयकों पर लोकसभा में एक घंटे से भी कम समय तक चर्चा हुई।
    • गौरतलब है कि बजट का 80% हिस्सा बिना चर्चा के पारित कर दिया गया, जबकि वर्ष 2023 के लिए पूरा बजट बिना किसी बहस के ही स्वीकृत कर दिया गया।

18वीं लोकसभा (वर्ष 2024 से वर्तमान तक)

  • शीतकालीन सत्र 2024: लोकसभा अपने निर्धारित समय का केवल 52% ही काम कर पाई, जबकि राज्यसभा 39% समय तक ही काम कर पाई, दोनों ही सदनों में लगातार व्यवधान देखने को मिला।
    • राज्यसभा में 19 में से 15 दिन प्रश्नकाल नहीं चला तथा लोकसभा में 20 में से 12 दिन प्रश्नकाल 10 मिनट से अधिक नहीं चला, जिससे विधायी जाँच प्रभावित हुई।
  • विधायी कार्य: इस सत्र के दौरान संसद से केवल एक विधेयक, भारतीय वायुयान विधेयक, 2024 पारित किया गया, जो पिछले छह लोकसभा कार्यकालों में सबसे कम विधायी कार्य उत्पादकता को दर्शाता है।
    • इसके अतिरिक्त, व्यवधान के कारण लोकसभा में कोई भी गैर-सरकारी कार्य नहीं हो सका।
  • उपसभापति का पद रिक्त: 18वीं लोकसभा वर्ष 2019 से उपसभापति का चुनाव किए बिना ही चल रही है, जो समय पर नियुक्तियों के लिए संवैधानिक जनादेश का उल्लंघन है।

व्यवधान के कारण

  • विवाद और सार्वजनिक महत्त्व के मामलों पर चर्चा: सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच तीव्र वैचारिक और राजनीतिक मतभेद प्रायः टकराव का कारण बनते हैं।
    • शीतकालीन सत्र 2024 में अडानी समूह के आरोपों पर व्यवधान
  • जल्दबाजी में कानून बनाना: 17वीं लोकसभा में पेश किए गए 35% से अधिक विधेयक एक घंटे से भी कम समय की बहस में पारित हो गए।
    • नवंबर 2021 में कृषि कानूनों को बिना किसी विस्तृत चर्चा के निरस्त कर दिया गया, जो जल्दबाजी में निर्णय लेने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
  • सत्ताधारी दल द्वारा जिम्मेदारी से बचना: विवादास्पद प्रश्नों या नीतिगत विफलताओं को संबोधित करने से बचने के लिए सत्ताधारी दल के लिए व्यवधान कभी-कभी सामरिक रूप से लाभदायक हो सकता है।
    • मानसून सत्र 2023 के दौरान प्रश्नकाल अक्सर बाधित रहा, जिससे सरकारी कार्यों की जाँच सीमित हो गई।
  • बैठकों की संख्या में कमी: 17वीं लोकसभा में संसद की औसत वार्षिक बैठक के दिन घटकर 55 रह गए, जबकि 1950 के दशक में यह अवधि 120-140 दिन थी।
    • मानसून तथा शीतकालीन सत्र की अवधि लगातार छोटी होती जा रही है, जिससे सार्थक बहस के लिए समय सीमित हो रहा है।
  • विपक्ष की सीमित भूमिका: शीतकालीन सत्र 2024 के दौरान विपक्षी सांसदों को सामूहिक रूप से निलंबित कर दिया गया, जिससे संसदीय कार्यवाही में और अधिक ध्रुवीकरण हुआ।
    • असहमति के लिए पर्याप्त समय या स्थान के बिना, बहस टकराव में बदल जाती है।
  • नियमों का कमजोर प्रवर्तन: लगातार व्यवधानों के बावजूद, नियमों का प्रवर्तन अपर्याप्त बना हुआ है।
    • उदाहरण के लिए, शीतकालीन सत्र 2024 में कई बार निलंबन के बावजूद व्यवधान निरंतर जारी रहा, जिससे संसदीय अनुशासन कमजोर हुआ।
  • विधायिका पर कार्यपालिका का प्रभुत्व: प्रधानमंत्री पहले की प्रथाओं के विपरीत शायद ही कभी संसदीय बहस में भाग लेते हैं, जो कि विचार-विमर्श पर कम होते जोर को दर्शाता है।
    • विधेयक प्रायः बिना गहन चर्चा के ही पारित कर दिए जाते हैं, जैसा कि महत्त्वपूर्ण संशोधनों को जल्दबाजी में मंजूरी देने से देखा जा सकता है।
  • पार्टी निष्ठा और व्हिप प्रणाली: सांसद पार्टी के निर्देश पर कार्यवाही में बाधा डालते हैं, जो सामूहिक राजनीतिक रणनीतियों को दर्शाता है।
    • GST मुद्दे पर विपक्षी सांसदों द्वारा समन्वित व्यवधान।
  • चुनावी प्रभाव: चुनावों के निकट आने पर सांसदों को जनता का ध्यान आकर्षित करने और मतदाताओं से जुड़ने की रणनीति के रूप में कार्यवाही को बाधित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
    • राजनेता चुनाव से पहले अपना रुख स्पष्ट करने के लिए राज्य-विशिष्ट मुद्दे उठाते हैं या सदन में विरोध प्रदर्शन करते हैं।

व्यवधान की स्थिति में पीठासीन अधिकारी की भूमिका

  • व्यवस्था बनाए रखना: पीठासीन अधिकारी (लोकसभा में अध्यक्ष, राज्यसभा में सभापति) कार्यवाही के दौरान व्यवस्थित आचरण सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं।
    • सदन में शिष्टाचार बहाल करने के लिए अध्यक्ष उपद्रवी सांसदों को बाहर जाने का आदेश दे सकते हैं।
  • सदस्यों को निलंबित करने का अधिकार: पीठासीन अधिकारी सदन के नियमों के तहत लगातार व्यवधान उत्पन्न करने वाले सांसदों को निलंबित कर सकते हैं।
    • लोकसभा का नियम 374A, अध्यक्ष को यह अधिकार देता है कि यदि कोई सदस्य सदन में आसन के समीप आकर या नारे लगाकर गंभीर अव्यवस्था उत्पन्न करता है तो वह उसे लगातार पाँच बैठकों या शेष सत्र के लिए निलंबित कर सकता है।
  • सदन को स्थगित करने की शक्ति: जब व्यवधान अनियंत्रित हो जाए, तो पीठासीन अधिकारी कार्यवाही को अस्थायी रूप से या पूरे दिन के लिए स्थगित कर सकता है।
    • शीतकालीन सत्र 2024 के दौरान, अडानी समूह के आरोपों पर विरोध के कारण अध्यक्ष द्वारा कई बार कार्यवाही स्थगित की गई।
  • विवादों में मध्यस्थता में भूमिका: पीठासीन अधिकारी विवादों को सुलझाने और कार्यवाही को पुनः प्रारंभ करने के लिए विरोधी पक्षों के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है।
    • अध्यक्ष प्रायः विवादास्पद मुद्दों पर आम सहमति बनाने के लिए पार्टी नेताओं के साथ विचार-विमर्श करते हैं।
  • आचार संहिता का क्रियान्वयन: पीठासीन अधिकारी संसदीय आचार संहिता और शिष्टाचार का पालन सुनिश्चित करता है।
    • सांसदों को निर्देश दिया गया है कि वे कार्यवाही में बाधा न डालें, नारे न लगाएँ अथवा सदन के वेल में न जाएँ।
  • प्रक्रिया के नियमों को लागू करना: पीठासीन अधिकारी व्यवधानों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए नियमों की व्याख्या और प्रवर्तन करता है।
    • व्यवधान के दौरान सांसदों द्वारा उठाए गए मुद्दों का समाधान स्थापित संसदीय प्रक्रियाओं के आधार पर किया जाता है।
  • द्विदलीयता को बढ़ावा देना: पीठासीन अधिकारी सार्थक बहस और चर्चा को सुविधाजनक बनाने के लिए द्विदलीय संवाद को प्रोत्साहित करता है।
    • गतिरोधों को हल करने और सदन के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए सर्वदलीय बैठकें बुलाना।

लोकतंत्र पर प्रभाव

  • जनता के विश्वास में कमी: संसदीय कार्यवाही में बार-बार व्यवधान और अक्षमता के कारण संस्था में जनता का विश्वास कम हुआ है। 
    • सोशल मीडिया प्रायः संसद की आलोचना करता है कि वह सार्थक बहसों की बजाय पक्षपातपूर्ण कार्यों को प्राथमिकता देती है, जिससे नागरिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से दूर हो जाते हैं।
  • विधायी गुणवत्ता में गिरावट: बिना गहन चर्चा के जल्दबाजी में कानून बनाने से कानूनों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
    • 17वीं लोकसभा में 35% से अधिक विधेयक एक घंटे से भी कम समय में पारित कर दिए गए, जिससे प्रभावी शासन के लिए आवश्यक जाँच-पड़ताल की प्रक्रिया कमजोर हो गई।
  • विधानमंडलों की घटती उत्पादकता: बजट सत्र 2024 में लोकसभा में केवल 45% और राज्यसभा में 31% उत्पादकता दर्ज की गई।
    • राष्ट्रीय मुद्दों पर महत्त्वपूर्ण विधेयक और चर्चाएँ स्थगित कर दी गईं या पर्याप्त बहस के बिना ही पारित कर दी गईं।
  • जवाबदेही का कमजोर होना: प्रश्नकाल के दौरान व्यवधान से सांसदों के लिए सरकार को जवाबदेह ठहराने का अवसर सीमित हो जाता है।
    • मानसून सत्र 2023 में कई दिनों तक प्रश्नकाल 15 मिनट से भी कम समय तक चला, जिससे महत्त्वपूर्ण शासन संबंधी मुद्दे अनसुलझे रह गए।
  • खर्च: संसदीय कार्यवाही के प्रत्येक मिनट पर लगभग ₹2.5 लाख खर्च होते हैं।
    • शीतकालीन सत्र 2024 में व्यवधान के कारण अनुत्पादक घंटों के कारण 90 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ।
  • राजनीति का ध्रुवीकरण: विपक्ष की सीमित भूमिका और संसद में लगातार टकराव से राजनीतिक विभाजन गहराता है।
    • शीतकालीन सत्र 2024 में विपक्षी सांसदों के सामूहिक निलंबन से शत्रुतापूर्ण माहौल उत्पन्न हो गया है, जिससे सहयोगात्मक नीति निर्माण की संभावना कम हो गई है।
  • कार्यपालिका का प्रभुत्व: संसदीय बहसों को दरकिनार करने की बढ़ती प्रवृत्ति कार्यकारी शक्ति पर नियंत्रण के रूप में विधायिका की भूमिका को कमजोर करती है।
    • नवंबर 2021 में कृषि कानूनों को जल्दबाजी में निरस्त करने से विधायी विचार-विमर्श पर कार्यपालिका का प्रभुत्व उजागर हुआ।
  • नागरिकों का अलगाव: संसद में अकुशलता तथा नाटकीयता की धारणा लोकतांत्रिक संस्थाओं के साथ जनता की भागीदारी को हतोत्साहित करती है।
    • मतदाताओं का कम होता उत्साह तथा निर्वाचित प्रतिनिधियों में घटता विश्वास दीर्घावधि में लोकतांत्रिक ताने-बाने को कमजोर कर सकता है।

विश्व की अन्य संसदों से तुलना

  • बैठक के दिनों की संख्या
    • यूनाइटेड किंगडम: UK की संसद प्रति वर्ष 170 से अधिक दिनों तक बैठती है, जिसमें विपक्ष और सरकारी कामकाज पर संरचित बहस होती है।
    • कनाडा: कनाडा की संसद प्रति वर्ष लगभग 127 दिनों तक बैठती है, जिसमें विपक्ष के नेतृत्व वाली चर्चाओं के लिए विशिष्ट दिन भी शामिल हैं।
  • विपक्ष की भूमिका
    • यूनाइटेड किंगडम: मुख्य विपक्षी दल को संसदीय एजेंडा तय करने के लिए प्रतिवर्ष 20 दिन मिलते हैं, जिससे अधिक रचनात्मक भागीदारी को बढ़ावा मिलता है।
    • कनाडा: विपक्षी दलों को एजेंडा तय करने और प्रमुख मुद्दों पर बहस करने के लिए ‘विपक्षी दिवस’ ​​आवंटित किए जाते हैं।
  • वाद-विवाद तथा विचार-विमर्श
    • जर्मनी: बुंडेसटाग (संसद) विस्तृत तथा पारदर्शी बहस पर जोर देती है, जिसका प्रायः नागरिकों को शामिल करने के लिए सीधा प्रसारण किया जाता है।
  • विधायी उत्पादकता
    • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिकी कांग्रेस, विधेयकों को सदन में प्रस्तुत करने से पहले उन पर विचार-विमर्श करने के लिए समितियों का व्यापक रूप से उपयोग करती है, जिससे मजबूत जाँच सुनिश्चित होती है।
  • प्रश्नकाल
    • ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलियाई संसद ‘प्रश्न समय’ समर्पित करती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि मंत्री सीधे सांसदों के प्रश्नों का उत्तर दें, जिससे पारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है।
  • अनुशासन का प्रवर्तन
    • यूनाइटेड किंगडम: अनुचित आचरण करने वाले सांसदों को अध्यक्ष द्वारा तुरंत निलंबित कर दिया जाता है या फटकार लगाई जाती है।
  • नागरिक सहभागिता
    • दक्षिण अफ्रीका: राष्ट्रीय असेंबली नागरिकों को सीधे तौर पर शामिल करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करती है और विधायी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को बढ़ावा देती है।

आगे की राह

  • संरचनात्मक सुधार: बहस और चर्चा के लिए पर्याप्त समय सुनिश्चित करने के लिए संसदीय कार्य दिवसों की संख्या बढ़ाना आवश्यक है।
    • तदर्थ कटौती को रोकने के लिए सत्रों के लिए एक निश्चित वार्षिक कैलेंडर की घोषणा की जानी चाहिए।
  • विधायी सुधार: अनियंत्रित व्यवहार और व्यवधान के लिए सांसदों को निलंबित करने सहित संसदीय नियमों को कठोरता से लागू करना।
    • नियमों में सांसदों के एक निश्चित प्रतिशत द्वारा समर्थित प्रस्तावों पर चर्चा की गारंटी होनी चाहिए।
    • अपर्याप्त प्रवर्तन से बार-बार व्यवधान उत्पन्न होते हैं; यू.के. तथा ऑस्ट्रेलिया से प्रथाओं को अपनाने से अनुशासन में वृद्धि हो सकती है।
  • जवाबदेही के उपाय: व्यवधानों पर नजर रखने तथा निगरानी करने के लिए संसदीय व्यवधान सूचकांक शुरू करने से जवाबदेही बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
    • इसके अतिरिक्त, बार-बार व्यवधान उत्पन्न करने वाले सांसदों के वेतन में कटौती करना एक निवारक के रूप में कार्य कर सकता है।
    • एक ‘उत्पादकता मीटर’ व्यवधानों और स्थगन के कारण खोए गए घंटों की संख्या को ट्रैक कर सकता है, संसद के दोनों सदनों की दैनिक उत्पादकता की निगरानी कर सकता है।
  • विपक्ष को सशक्त बनाना: विपक्ष के नेतृत्व वाली बहसों के लिए विशिष्ट दिन आवंटित  (प्रतिवर्ष 20 विपक्षी दिवस) करना, जैसा कि यू.के. में होता है।
    • विरोध के लिए संरचित अवसर, व्यवधानों को कम कर सकते हैं तथा अधिक रचनात्मक चर्चा को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • विधायी जाँच में सुधार: संसद में प्रस्तुत किए जाने से पहले विधेयकों की जाँच करने में संसदीय समितियों की भूमिका को बढ़ाना।
    • अमेरिकी कांग्रेस समितियों का प्रभावी ढंग से उपयोग करती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि विधेयक अच्छी तरह से तैयार हों तथा जल्दबाजी में कानून बनाने की प्रक्रिया में कमी आए
  • जनता का विश्वास पुनः प्राप्त करना: पक्षपातपूर्ण नाटकीयता के बजाय जनहित के मुद्दों को प्राथमिकता देकर सार्थक बहस तथा पारदर्शिता पर ध्यान केंद्रित करना।
    • पारदर्शी बहस तथा बेहतर मीडिया चित्रण के माध्यम से नागरिकों को शामिल करने से संसदीय संस्थाओं में विश्वास का पुनर्निर्माण हो सकता है।
  • प्रश्नकाल का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करना: प्रश्नकाल को व्यवधानों से बचाना तथा सुनिश्चित करना कि मंत्री विस्तृत उत्तर देना।
    • प्रश्नकाल एक महत्त्वपूर्ण जवाबदेही तंत्र है; इसके बार-बार बाधित होने से संसद का निरीक्षण कार्य कमजोर हो जाता है।
  • तकनीकी हस्तक्षेप: व्यवधानों के रुझानों का विश्लेषण करने तथा जवाबदेही में सुधार करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का लाभ उठाने से संसदीय कार्यवाही की दक्षता में वृद्धि हो सकती है।
    • AI उपकरणों का उपयोग सांसदों के व्यवहार पर नजर रखने तथा उत्पादकता का आकलन करने के लिए किया जा सकता है, जिससे सुधारों के लिए डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि मिल सकती है।

निष्कर्ष

लोकतंत्र की आधारशिला के रूप में अपनी भूमिका को बहाल करने के लिए संसदीय गरिमा तथा विचार-विमर्श प्रथाओं का पुनरुद्धार आवश्यक है। आपसी विश्वास, नियमों का प्रवर्तन और सार्वजनिक जवाबदेही संसदीय उत्कृष्टता के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

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