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पतंजलि विवाद एवं भ्रामक विज्ञापन

Lokesh Pal April 10, 2024 06:26 211 0

संदर्भ 

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को अपने उत्पादों की चिकित्सा प्रभावकारिता से संबंधित झूठे विज्ञापन जारी करने से रोक दिया एवं पूर्व में किए गए वादे को तोड़ने के लिए पतंजलि को अवमानना ​​​​नोटिस जारी किया।

पतंजलि के झूठे दावों से जुड़े मुद्दे

  • नैतिक मुद्दा: भ्रामक विज्ञापन उपभोक्ता के विश्वास एवं व्यवसाय की अखंडता को प्रभावित करता है। यह विवाद उपभोक्ता की संवेदनशीलता को दर्शाता है, क्योंकि उन्हें भरोसा है कि कुछ नियामक प्राधिकारी ने यह सुनिश्चित किया है कि कोई भी हानिकारक, खतरनाक या बेकार दवा के रूप में नहीं बेची जाती है।
  • कानूनों का उल्लंघन: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने तर्क दिया कि पतंजलि का ‘एलोपैथी द्वारा फैलाई गई गलत धारणाएँ’ शीर्षक वाला विज्ञापन दवा विनियमन को नियंत्रित करने वाले कानून का उल्लंघन है। यह ड्रग्स एंड अदर मैजिकल रेमेडीज एक्ट 1954  एवं कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 का सीधा उल्लंघन था।
  • स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव: असत्यापित उत्पाद उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकते हैं। ऐसी फार्मास्यूटिकल्स (जिनमें आयुर्वेद की हिस्सेदारी 75% से अधिक है) के साथ बड़ा जोखिम है, क्योंकि उपयोगकर्ता मानता है कि सभी वस्तुएँ प्राकृतिक हैं तथा इसलिए सुरक्षित हैं।
  • भ्रामक विज्ञापन: इन भ्रामक विज्ञापनों ने प्रभावी चिकित्सा एवं असाध्य स्थितियों के इलाज के अपने दावों के कारण स्व-उपचार की घटनाओं की संख्या में वृद्धि की है।
  • सरकार और नियामक निकायों की निष्क्रियता: भले ही उपचार से संबंधित दावे बड़ी बेबाकी के साथ किए जा रहे हैं, लेकिन उन राज्य सरकारों द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है, जिनके लिए आयुष मंत्रालय ने सैकड़ों शिकायतें दर्ज की हैं। भारतीय विज्ञापन मानक परिषद जो एक नियामक संस्था भी है, भी कोई कार्रवाई करने या मानदंड स्थापित करने में विफल रही है।
  • अपर्याप्त कानून: ऐसी दवाओं एवं विज्ञापन के विनियमन को नियंत्रित करने वाले पर्याप्त कानून का अभाव है।
    • उदाहरण के लिए, DMR अधिनियम के नियम अलग, सीमित एवं विशिष्ट हैं, क्योंकि उनका उद्देश्य चिकित्सा दवाओं तथा उत्पादों से जुड़े भ्रामक दावों एवं विज्ञापनों को विनियमित करना था।
    • क्या वस्तुओं को लाइसेंस दिया गया है या नहीं, क्या वे साक्ष्य-आधारित हैं या नहीं, एवं यदि अनुसंधान एवं विकास किया गया है तो यह DMR के दायरे से बाहर है।

भ्रामक विज्ञापन क्या है?

वर्ष 2019 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम किसी भी सामान या सेवा के लिए भ्रामक विज्ञापन को इस प्रकार परिभाषित करता है:

  • किसी उत्पाद या सेवा का गलत वर्णन करना।
  • झूठी गारंटी देना।
  • एक ऐसी कार्यप्रणाली अपनाना जो एक अनुचित व्यापार अभ्यास होगा।
  • महत्त्वपूर्ण जानकारी छुपाना उपभोक्ताओं को गुमराह करने के सभी उदाहरण हैं।

जादुई उपचार अधिनियम (Magic Remedies Act) में क्या शामिल है?

  • इस अधिनियम के तहत, ‘दवा’ शब्द का तात्पर्य मानव या पशु उपयोग के लिए इच्छित दवाओं, रोगों के निदान या उपचार के लिए पदार्थों एवं शरीर के कार्यों को प्रभावित करने वाले लेखों से है।
  • जादुई उपचार की परिभाषा: उपभोग के लिए बनी वस्तुओं के अलावा, इस अधिनियम के तहत ‘जादुई उपचार’ की परिभाषा तावीजों, मंत्रों एवं चार्म तक भी फैली हुई है, जिनमें कथित तौर पर उपचार या शारीरिक कार्यों को प्रभावित करने के लिए चमत्कारी शक्तियाँ होती हैं।

भ्रामक विज्ञापनों से निपटने के लिए कानून

  • भारतीय मानक ब्यूरो (प्रमाणन) विनियम, 1988
  • वर्ष 2006 का खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम
  • औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1955 
  • वर्ष 1940 का औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 
  • सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का निषेध एवं व्यापार, वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति तथा वितरण का विनियमन) अधिनियम 2003 

भ्रामक विज्ञापनों से निपटने के लिए नियामक

  • भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (Advertising Standards Council of India): ASCI की स्थापना वर्ष 1985 में विज्ञापन एवं मीडिया उद्योगों के पेशेवरों द्वारा की गई थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत में विज्ञापन निष्पक्ष, ईमानदार हों तथा ASCI संहिता का अनुपालन करें।
  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA): उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार प्रथाओं एवं झूठे या भ्रामक विपणन से जुड़ी चिंताओं को विनियमित करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 द्वारा स्थापित किया गया है, जो आम जनता तथा उपभोक्ताओं के हितों के लिए हानिकारक हैं।
  • दिशा-निर्देश जारी करना: CCPA ने भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम एवं समर्थन के लिए दिशा-निर्देश, 2022 जारी किए हैं। जैसे- गैर-भ्रामक एवं वैध विज्ञापन।

पतंजलि के कार्यों के विरुद्ध कानूनी तर्क

  • औषधि एवं अन्य जादुई उपचार अधिनियम 1954: इस अधिनियम की धारा 4 झूठे दवा विज्ञापनों के प्रकाशन पर रोक लगाती है। इसके तहत भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने पर पहले अपराध के लिए छह महीने तक की जेल एवं /या जुर्माना हो सकता है। दूसरे अपराध के लिए सजा एक साल तक की जेल हो सकती है।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 2(28) भ्रामक विज्ञापन से संबंधित है।
    • इसकी धारा 89 झूठे या भ्रामक विज्ञापन के लिए अधिक गंभीर दंड लगाती है।
    • पहली बार अपराध करने पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना एवं दो वर्ष तक की कैद हो सकती है।
    • इसके बाद उल्लंघन करने पर 50 लाख रुपये तक का जुर्माना एवं अधिकतम पाँच वर्ष की कैद हो सकती है। CPA ‘भ्रामक विज्ञापन’ शब्द को भी परिभाषित करता है।
  • आयुष मंत्रालय एवं ASCI के बीच सहमति ज्ञापन का उल्लंघन: आयुष मंत्रालय एवं ASCI द्वारा हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन का उल्लंघन किया गया है।
  • औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1954: यह अधिनियम, जो चिकित्सा की सभी प्रणालियों पर लागू होता है, उन दवाओं के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाता है जो विशिष्ट बीमारियों के इलाज या इलाज का दावा करती हैं।
    • कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग एवं रक्तचाप सहित 54 विशेष चिकित्सा रोगों के उपचार तथा इलाज के लिए दवाओं का प्रचार करना स्पष्ट रूप से निषिद्ध है।
  • ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स (D&C) अधिनियम 1940: इस अधिनियम ने वर्ष 1964 में आयुर्वेद- सिद्ध-यूनानी (ASU) चिकित्सा के लिए एक नया अध्याय IV A स्थापित किया। शास्त्रीय चिकित्सा, पेटेंट एवं मालिकाना चिकित्सा के बीच अंतर को वहाँ समझाया गया है।

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