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पटना उच्च न्यायालय ने बिहार में 65% आरक्षण को खारिज किया

Lokesh Pal June 24, 2024 03:24 132 0

संदर्भ

हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में पिछड़ा वर्ग (BC), अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC), अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण 50% से बढ़ाकर 65% करने के लिए बिहार विधानमंडल द्वारा वर्ष 2023 में पारित संशोधनों को खारिज कर दिया। 

पृष्ठभूमि

  • बिहार सरकार का निर्णय: जाति आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट के बाद, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC), अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण बढ़ाने का फैसला किया, क्योंकि इन वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
    • राज्य सरकार ने यह आरक्षण आनुपातिक आधार पर नहीं दिया था।
  • 75% तक आरक्षण: 10% आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) कोटा के साथ, इस विधेयक ने बिहार में आरक्षण को 75% तक बढ़ा दिया था, जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा से कहीं अधिक है।
  • जनहित याचिका दायर करना: पटना उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई, जिसमें बिहार सरकार द्वारा राज्य में आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 65% करने के निर्णय को चुनौती दी गई।

जाति आधारित जनगणना: हाल ही में, बिहार ने अपनी जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट 2022 जारी की, जिसमें राज्य में जातिगत जनसांख्यिकी पर डेटा उपलब्ध कराया गया।

  • परिचय: इस जनगणना में जाति के आधार पर भारत की जनसंख्या का सारणीयन किया जाता है, जो प्रत्येक दस वर्ष में आयोजित किया जाता है।
  • संदर्भ 
    • ऐतिहासिक संदर्भ: वर्ष 1951 से भारतीय जनगणना में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आँकड़े शामिल किए गए हैं।
    • ओबीसी डेटा बहिष्करण: अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के बारे में जानकारी, जो आबादी का लगभग 52% हिस्सा है, को शामिल नहीं किया गया है।
    • जाति जनगणना की माँग: ओबीसी आबादी पर विस्तृत डेटा एकत्र करने के लिए एक अलग जनगणना की माँग बढ़ रही है।
  • महत्त्व
    • डेटा संग्रह: प्रभावी नीति-निर्माण और इन समुदायों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए ओबीसी पर सटीक डेटा को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
    • जनसांख्यिकीय परिवर्तन: वर्ष 1931 में पिछली जाति जनगणना के बाद से भारत में महत्त्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बदलाव हुए हैं। एक नई जनगणना इन परिवर्तनों को सटीक रूप से दर्शाएगी।
    • सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रम: जाति समूहों की वैज्ञानिक गणना सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रमों को पुनर्गठित करने में सहायक है।
    • प्रभावी कल्याण वितरण: जाति जनगणना के आँकड़े शैक्षिक और आर्थिक स्थिति की जानकारी देते हैं तथा लक्षित कल्याण कार्यक्रमों में सहायता करते हैं।

पटना उच्च न्यायालय का मत

  • आरक्षण का उद्देश्य: आरक्षण प्रणाली कुछ समूहों के प्रभुत्व को समाप्त करने और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए बनाई गई थी।
  • योग्यता को संतुलित करना: सामाजिक असमानताओं को संबोधित करते समय, यह महत्त्वपूर्ण है कि योग्यता को पूरी तरह से नजरअंदाज न किया जाए।
  • किए गए संशोधन समानता का उल्लंघन करते हैं: न्यायालय ने कहा कि संशोधन, संविधान की शक्तियों से परे हैं और यह अनुच्छेद-14, 15 और 16 के तहत समानता खंड का उल्लंघन करता है।

इंद्रा साहनी निर्णय

  • लगभग 50% की सीमा: प्रशासन में ‘दक्षता’ सुनिश्चित करने के लिए 50% की सीमा को सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1992 में इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक निर्णय में प्रस्तुत किया था।
  • बहुमत का निर्णय (6-3): सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (Socially and Economically Backward Classes- SEBC) के लिए 27% आरक्षण बनाए रखा गया।
  • पहली मिसाल: यह स्थापित किया गया कि आरक्षण का मानदंड ‘सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन’ होना चाहिए।
  • दूसरी मिसाल: पहले के निर्णयों द्वारा निर्धारित ऊर्ध्वाधर कोटा पर 50% की सीमा की पुनः पुष्टि की गई।
  • संदर्भित प्रमुख निर्णय
    • एम. आर. बालाजी बनाम मैसूर राज्य (1963)
    • देवदासन बनाम भारत संघ (1964)
  • अपवाद खंड: 50% की सीमा को केवल ‘असाधारण परिस्थितियों’ में ही पार किया जा सकता है।
  • इंद्रा साहनी निर्णय: बाद के कई मामलों में इसकी पुष्टि की गई। हालाँकि,
    • राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के प्रयास: बिहार और अन्य राज्यों में 50% आरक्षण सीमा को पार करने के प्रयास जारी हैं।
      • 50% की सीमा का उल्लंघन एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है।
    • बार-बार मुकदमेबाजी: 50% की सीमा को अक्सर न्यायालयों में चुनौती दी जाती है क्योंकि राज्य एवं समूह विशिष्ट सामाजिक एवं राजनीतिक माँगों को संबोधित करने के लिए आरक्षण बढ़ाने के लिए दबाव डालते हैं, जिससे न्यायिक समीक्षा और व्याख्याएँ होती हैं।

अधिकतम सीमा को कानूनी चुनौती

  • सीमा को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई: 50% आरक्षण सीमा को वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा रही है।
  • न्यायालय की कार्रवाइयाँ: लंबित चुनौती के बावजूद, न्यायालयों ने ऐसे कानूनों को खारिज कर दिया है, जो 50% सीमा को पार करने का प्रयास करते हैं।
  • उल्लेखनीय अपवाद: वर्ष 2019 में शुरू किया गया आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% आरक्षण, इस नियम का अब तक का एकमात्र अपवाद है।
    • उच्चतम न्यायालय का फैसला (नवंबर 2022): पाँच जजों की बेंच ने 3-2 के निर्णय में EWS आरक्षण को बरकरार रखा।
    • निर्णय का विवरण: निर्णय में कहा गया कि 50% की सीमा केवल SC/ST और OBC आरक्षण पर लागू होती है।
    • EWS आरक्षण वर्गीकरण: EWS आरक्षण को ‘पिछड़ेपन’ के ढाँचे के बाहर एक अलग श्रेणी माना जाता है।
    • बहुमत की राय: अधिकतम सीमा को प्रत्येक समय के लिए लचीला या अपरिवर्तनीय नहीं माना जाता है। इस राय ने सवालों को जन्म दिया है:
      • उच्चतम न्यायालय का निर्णय (नवंबर 2022): पाँच जजों की बेंच ने 3-2 के निर्णय में EWS आरक्षण को बरकरार रखा।
      • निर्णय का विवरण: निर्णय में कहा गया कि 50% की सीमा केवल SC/ST और OBC आरक्षण पर लागू होती है।
      • EWS कोटा वर्गीकरण: EWS आरक्षण को ‘पिछड़ेपन’ ढाँचे के बाहर एक अलग श्रेणी माना जाता है।
      • बहुमत की राय: अधिकतम सीमा को प्रत्येक समय के लिए लचीला या अपरिवर्तनीय नहीं माना जाता है। इस राय ने निम्नलिखित प्रश्नों को जन्म दिया है:
        • इंद्रा साहनी मामले को पुनः खोलने की संभावना: सवाल उठता है कि क्या उच्चतम न्यायालय इंद्रा साहनी के निर्णय पर पुनर्विचार कर सकता है?
        • अल्पमत की राय: दो न्यायाधीशों ने 50% की सीमा का उल्लंघन करने पर चिंता व्यक्त की, क्योंकि यह मुद्दा न्यायालय के समक्ष लंबित है।
        • चेतावनी नोट: उन्होंने चेतावनी दी कि 50% नियम का उल्लंघन करने की अनुमति देने से आरक्षण का और अधिक उल्लंघन हो सकता है तथा विभाजन हो सकता है।

50% सीमा के पक्ष में तर्क

  • समानता के सिद्धांत का खंडन: आलोचकों का तर्क है कि 50% आरक्षण सीमा से अधिक होना समानता के सिद्धांत का खंडन होगा।
    • आरक्षण के माध्यम से सकारात्मक कार्रवाई और कानून के तहत समानता के व्यापक सिद्धांत के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।
  • आरक्षण अपवाद के रूप में: आरक्षण को आदर्श बनने के बजाय समानता सुनिश्चित करने के लिए अपवाद के रूप में देखा जाता है।
    • संविधान सभा में डॉ. बी. आर. अंबेडकर के भाषण का बार-बार हवाला दिया जाता है, जिसमें उन्होंने चेतावनी दी थी कि बिना शर्त आरक्षण समानता के सिद्धांत को कमजोर कर सकता है।

  • औपचारिक समानता (Formal Equality) का तात्पर्य कानून के तहत सभी लोगों के साथ समान व्यवहार करना है, चाहे उनकी व्यक्तिगत परिस्थितियाँ कुछ भी हों।
    • इसमें समान व्यवहार और गैर-भेदभाव पर जोर दिया गया है।
    • उदाहरण: ऐसी नीति जो सभी छात्रों के लिए, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, एक समान परीक्षा को अनिवार्य बनाती है, औपचारिक समानता का प्रतीक है।
  • मौलिक समानता (Substantive Equality) केवल समान व्यवहार से आगे बढ़कर व्यक्तियों और समूहों की वास्तविक स्थितियों और अवसरों पर ध्यान केंद्रित करती है।
    • इसका उद्देश्य विभिन्न समूहों की अलग-अलग आवश्यकताओं, असुविधाओं और संदर्भों पर विचार करके समान परिणाम प्राप्त करना है।
    • उदाहरण: कार्यस्थल पर LGBT समुदाय के सदस्यों को नियुक्त करना।

50% सीलिंग की आलोचना और आरक्षण के पक्ष में

  • मनमानी सीलिंग: आलोचकों का तर्क है कि 50% आरक्षण की सीमा मनमानी है और न्यायालय द्वारा लगाई गई है। विधायिका द्वारा इस सीमा को पार करने के प्रयासों के बावजूद, न्यायालयों ने लगातार 50% की सीमा को बनाए रखा है।
  • वैधता पर बहस: न्यायिक व्याख्या द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण सीमा की वैधता और लचीलेपन के बारे में बहस जारी है।
  • मौलिक अधिकार के रूप में आरक्षण: कुछ लोग तर्क देते हैं कि आरक्षण समानता के मौलिक अधिकार का अभिन्न अंग है और संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।
  • न्यायिक दृष्टिकोण: उच्चतम न्यायालय के वर्ष 2022 के निर्णय ने NEET में OBC आरक्षण को बरकरार रखा, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि आरक्षण योग्यता को कम नहीं करता है, बल्कि इसके वितरण में योगदान देता है।

अन्य राज्यों में आरक्षण

  • तमिलनाडु: तमिलनाडु आरक्षण कानून, जो 50% की सीमा से अधिक था, को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया गया।
    • नौवीं अनुसूची संविधान के अनुच्छेद-31A के तहत न्यायिक समीक्षा से कानून को ‘सेफ हार्बर’ (Safe Harbour) प्रदान करती है।
    • नौवीं अनुसूची में रखे गए कानूनों को संविधान के तहत संरक्षित किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने के कारण चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • महाराष्ट्र: मई 2021 में, पाँच न्यायाधीशों वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ ने सर्वसम्मति से मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान करने वाले महाराष्ट्र के कानून को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि आरक्षण सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती।
    • मराठा आरक्षण लागू होने से राज्य में आरक्षण 68% तक बढ़ सकता था।

निष्कर्ष:

सर्वोच्च न्यायालय शीघ्र ही इंद्रा साहनी मामले पर पुनर्विचार करेगा तथा औपचारिक समानता के स्थान पर वास्तविक समानता पर ध्यान केंद्रित करेगा।

  • इस समीक्षा में मंडल आयोग की रिपोर्ट के बाद से आरक्षण पर तीन दशकों से अधिक समय के कानूनी निर्णयों से प्राप्त अंतर्दृष्टि को शामिल किया जाएगा।
  • न्यायालय के पुनर्मूल्यांकन से आरक्षण नीतियों को समझने और लागू करने के तरीके में महत्त्वपूर्ण बदलाव आ सकता है।

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