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मणिपुर के कुकी-जो समूहों के साथ केंद्र सरकार का शांति समझौता

Lokesh Pal September 06, 2025 04:21 27 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्र और मणिपुर सरकार ने हिंसा के बाद 13 सितंबर, 2024 को भारतीय प्रधानमंत्री की पहली मणिपुर यात्रा से पहले कुकी-जो विद्रोही समूहों के साथ एक संशोधित सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (SoO) समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

संशोधित सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (SoO) समझौते के प्रमुख प्रावधान

  • कैडरों का सत्यापन: सुरक्षा बल, विद्रोही कैडरों का सत्यापन करेंगे और विदेशी नागरिकों को सूची से हटाएँगे। पहचाने गए विदेशी लोगों को निर्वासित किया जाएगा।
  • क्षेत्रीय अखंडता: यह समझौता मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को दोहराता है और क्षेत्रीय विभाजन की संभावना को खारिज करता है।
  • राजनीतिक समझौते का खंड: यह एक नया दृष्टिकोण ‘भारतीय संविधान के अंतर्गत वार्ता द्वारा राजनीतिक समझौता’ प्रस्तुत करता है, जो वर्ष 2008 के समझौते से एक अलग दृष्टिकोण है, जिसमें केवल क्षेत्रीय परिषदों की बात की गई थी।
  • शिविरों का स्थानांतरण: कुकी राष्ट्रीय संगठन (KNO) और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (UPF) ने 7 निर्दिष्ट शिविरों को स्थानांतरित करने, उन्हें संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों से दूर ले जाने पर सहमति व्यक्त की।
  • निगरानी तंत्र: एक संयुक्त निगरानी समूह अनुपालन को लागू करेगा, जिसमें उल्लंघनों पर कठोर कार्रवाई के प्रावधान होंगे, जिसमें सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (SoO) की समीक्षा भी शामिल है।
  • राजमार्ग खोलना: कुकी-जो परिषद (KZC) ने यात्रियों और आवश्यक वस्तुओं की मुक्त आवाजाही के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग-2 (इंफाल-दीमापुर), यह  मैतेई-बहुल घाटी की जीवनरेखा है, को खोलने पर सहमति व्यक्त की है।

समयरेखा: मणिपुर की शांति प्रक्रिया और SoO समझौता

  • 1990 का दशक: कुकी-नागा संघर्ष प्रारंभ हुआ, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए, कुकी विद्रोही समूहों ने अलग राज्य की माँग की।
  • वर्ष 2008: केंद्र, मणिपुर सरकार और KNO व UPF के अंतर्गत 25 कुकी विद्रोही समूहों के बीच त्रिपक्षीय समझौते के रूप में सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (SoO) समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
  • वर्ष 2008-2023: नियमों के उल्लंघन के समय-समय पर आरोपों के साथ समझौते का प्रत्येक वर्ष नवीनीकरण किया जाता था।
  • 3 मई, 2023: मैतेई और कुकी-जो समुदायों के मध्य नृजातीय हिंसा भड़क उठी, जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गए और हजारों लोग विस्थापित हुए।
  • 29 फरवरी, 2024: मणिपुर सरकार ने हिंसा में कुकी-जो समूह की संलिप्तता का हवाला देते हुए सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (SoO) समझौते को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया।
  • 3 सितंबर, 2025: पुनः बातचीत की शर्तों के साथ संशोधित सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (SoO) समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता, शिविर स्थानांतरण, कैडर सत्यापन और राष्ट्रीय राजमार्ग-2 को खोलने की पुष्टि की गई।

सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (SoO) समझौते की पृष्ठभूमि

  • पहली बार हस्ताक्षर: वर्ष 2008 में केंद्र, मणिपुर सरकार और 25 कुकी विद्रोही समूहों (KNO  और UPF के तहत) के मध्य एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ।
  • उत्पत्ति: 1990 के दशक के कुकी-नागा संघर्षों में निहित, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे। विद्रोही समूहों ने एक अलग कुकी राज्य की माँग की थी।
  • आवधिक नवीनीकरण: फरवरी 2024 तक प्रतिवर्ष बढ़ाया जाता रहा, जब मणिपुर सरकार ने नृजातीय हिंसा के दौरान उल्लंघन का हवाला देते हुए नवीनीकरण से इनकार कर दिया।
  • विवाद: पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने ‘सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन’ समूहों पर हिंसा भड़काने और आधारभूत नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया।

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मणिपुर में जनजातियाँ

  • मणिपुर पूर्वोत्तर भारत का एक बहु-जनजातियाँ राज्य है, जिसमें 33 मान्यता प्राप्त जनजातियाँ हैं।
  • यह मुख्य रूप से नागा और कुकी-जो जनजातियों में विभाजित है, जो मुख्यतः पहाड़ी जिलों में निवास करती हैं, जबकि मैतेई समुदाय (गैर-आदिवासी) इंफाल घाटी में प्रमुखता से निवास करता है।
  • अनुसूचित जनजातियाँ मणिपुर की कुल जनसंख्या का लगभग 41% हैं (जनगणना 2011)।

प्रमुख जनजातीय समूह

  • नागा जनजातियाँ (मुख्यतः उत्तरी और पूर्वी पहाड़ियों में)
    • तांगखुल, माओ, मारम, पौमाई, रोंगमेई, जेमे, लियांगमाई, अनल, मोनसांग, मारिंग, लामकांग, चोथे एवं थंगल शामिल हैं।
    • नागा समुदाय मुख्य रूप से ईसाई धर्म का पालन करता है, इनके रीति-रिवाज विशिष्ट कबीलाई प्रणाली से संबंधित हैं एवं लुइरा (तांगखुल बीज बोने का त्योहार) जैसे त्योहार मनाते है।
    • नागा जनजातियाँ मुख्य रूप से उखरूल, सेनापति, तामेंगलोंग और चंदेल जिलों में केंद्रित है।
  • कुकी-जो जनजातियाँ (दक्षिणी और पश्चिमी पहाड़ियों में प्रमुख)
    • इसमें थाडौ, पाइते, हमार, सिम्टे, गैंग्टे, जू, वैफेई, राल्टे और अन्य शामिल हैं।
    • मिजोरम, म्याँमार और चटगाँव पहाड़ी इलाकों की जनजातियों से निकटता से संबंधित है।
    • ईसाई-बहुसंख्यक; चवांग कुट (फसल उत्सव) जैसे त्योहारों के लिए प्रसिद्ध है।
    • चुराचाँदपुर, कांगपोकपी और चंदेल जिलों में केंद्रित है।
  • अन्य छोटे जनजातीय समूह
    • ऐमोल, कोम, पुरुम, खारम, कोइरेंग और इनपुई, जो मध्य पर्वत शृंखलाओं में विस्तृत हैं।
    • ये संख्या में छोटे लेकिन सांस्कृतिक रूप से समृद्ध समूह हैं, जो पारंपरिक नृत्य, संगीत और मौखिक इतिहास को संजोए हुए हैं।

सांस्कृतिक और सामाजिक विशेषताएँ

  • गोत्र-आधारित संगठन, जिसमें ग्राम परिषदें निर्णय लेने वाली संस्थाएँ हैं।
  • मुख्यतः कृषि प्रधान, झूम कृषि और सीढ़ीनुमा कृषि की जाती है।
  • पारंपरिक शिल्प: बुनाई, बाँस और बेंत के उत्पाद।
  • अधिकांश जनजातियों में मौखिक साहित्य, लोक नृत्य और जीववादी परंपराएँ हैं, हालाँकि अब अधिकांश ईसाई धर्म से संबंधित हैं।

राजनीतिक और समकालीन प्रासंगिकता

  • अनुसूचित जनजाति का दर्जा शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण का लाभ सुनिश्चित करता है।
  • पहाड़ी-घाटी आधारित विभाजन: जनजातियाँ पहाड़ी क्षेत्रों (मणिपुर के भौगोलिक क्षेत्र का 90%) पर विस्तृत हैं, जबकि मैतेई उपजाऊ घाटी (10% क्षेत्र, 60% जनसंख्या) पर विस्तृत हैं।
  • नृजातीय तनाव: वर्तमान में जारी कुकी-जो बनाम मैतेई संघर्ष (वर्ष 2023-25) और 1990 के दशक के ऐतिहासिक नागा-कुकी संघर्ष स्वायत्तता, भूमि अधिकारों और पहचान से जुड़े अनसुलझे मुद्दों को दर्शाते हैं।
  • जनजातीय समूहों ने स्वायत्त क्षेत्रीय परिषदों या अलग प्रशासन की माँग की है, जिससे उग्रवाद आंदोलनों को बढ़ावा मिला है।

वर्ष 2025 समझौते का महत्त्व

  • शांति प्रक्रिया का पुनरुद्धार: एक वर्ष के गतिरोध के बाद वार्ता के ढाँचे को पुनर्जीवित करता है, जिससे दोनों पक्षों के मध्य सशस्त्र शत्रुता में संभावित रूप से कमी आएगी।
  • राजमार्ग का पुनः खुलना: राष्ट्रीय राजमार्ग-2 के पुनः खुलने से इंफाल घाटी में वस्तुओं का निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित होता है, जिससे वस्तुओं की कमी और मुद्रास्फीति का दबाव कम होता है।
  • राजनीतिक निहितार्थ: संवैधानिक समाधान के द्वार खुले रखते हुए क्षेत्रीय अखंडता की पुष्टि करके, यह मैतेई चिंताओं और कुकी-जो आकांक्षाओं के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है।
  • सुरक्षा स्थिरता: विद्रोही शिविरों का स्थानांतरण और कड़ी निगरानी का उद्देश्य नृजातीय संघर्षों के दौरान शिविरों के दुरुपयोग को रोकना है।
  • विश्वास-निर्माण: भारत के संवैधानिक ढाँचे के भीतर शांति की दिशा में कार्य करने के लिए सरकार और कुकी समूहों दोनों की इच्छा का संकेत देता है।

आगे की चुनौतियाँ

  • विश्वास की कमी: मैतेई और कुकी-जो समुदायों के मध्य गहरा अविश्वास अभी भी कायम है।
  • कार्यान्वयन: सफलता, शिविरों और कार्यकर्ताओं की गतिविधियों की कड़ी निगरानी पर निर्भर करती है।
  • राजनीतिक आकांक्षाएँ: कुकी-जो समूह स्वायत्तता या पृथक प्रशासन के लिए दबाव बनाना जारी रख सकते हैं, जिससे तनाव फिर से प्रारंभ हो सकता है।
  • जातीय तनाव: नृजातीय आधार पर हिंसा और ध्रुवीकरण शांति प्रक्रिया को बाधित कर सकता है।
  • राज्य क्षमता: दो वर्षों के संघर्ष के बाद मणिपुर की प्रशासनिक मशीनरी और सुरक्षा बल तनावग्रस्त बने हुए हैं।

आगे की राह 

  • समावेशी संवाद: शांति वार्ता में मैतेई, कुकी-जो और नागा समुदायों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
  • विश्वास-निर्माण के उपाय: विस्थापित व्यक्तियों की शिकायतों का समाधान करना, पुनर्वास और पुनर्स्थापन सुनिश्चित करना।
  • निगरानी को मजबूत करना: SoO के अनुपालन पर निगरानी के लिए संयुक्त निगरानी समूह को स्वतंत्र और पारदर्शी बनाना।
  • विकासात्मक दृष्टिकोण: विद्रोही समूहों में भर्ती को कम करने के लिए संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे, नौकरियों और शिक्षा में सुधार करना।
  • संवैधानिक राह: छठी अनुसूची परिषदों, अनुच्छेद-371C के तहत विशेष प्रावधानों या मणिपुर के भीतर प्रशासनिक हस्तांतरण जैसे मॉडलों का अन्वेषण करना।

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अनुच्छेद-371C – मणिपुर के लिए विशेष प्रावधान

  • 27वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 द्वारा सम्मिलित।
  • मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति की विशेष शक्ति का प्रावधान करता है।
  • राष्ट्रपति, राज्यपाल को इन क्षेत्रों का उचित प्रशासन सुनिश्चित करने का निर्देश दे सकते हैं।
  • पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित विधायकों की एक समिति मणिपुर विधानसभा में गठित की जानी चाहिए ताकि उनके हितों की रक्षा की जा सके।
  • राज्यपाल को पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है।

निष्कर्ष

वर्ष 2025 का SoO समझौता मणिपुर में शांति की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसकी सफलता विश्वास निर्माण, समावेशी संवाद, सख्त प्रवर्तन और ऐसे समाधानों पर निर्भर करती है, जो सभी समुदायों की आकांक्षाओं को पूरा करते हुए संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखें।

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