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केरल के अलप्पुझा में पेरियार स्मारक

Lokesh Pal October 07, 2024 03:02 86 0

संदर्भ

तमिलनाडु सरकार केरल के अरूकुट्टी में समाज सुधारक पेरियार ई.वी. रामास्वामी के लिए एक स्मारक बनाने जा रही है, जहाँ उन्हें वायकोम सत्याग्रह के दौरान कैद किया गया था।

संबंधित तथ्य 

  • यह स्मारक सामाजिक सुधार आंदोलन में पेरियार के योगदान की स्मृति को चिन्हित करेगा, जिन्होंने कठोर जाति व्यवस्था के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी।

वायकोम सत्याग्रह के बारे में

  • वायकोम में अहिंसक विरोध: वायकोम, त्रावणकोर रियासत में स्थित एक मंदिर शहर है, जहाँ 30 मार्च, 1924 को अहिंसक विरोध की शुरुआत हुई थी।
    • यहीं से मंदिर प्रवेश आंदोलन की शुरुआत हुई, जो बाद में पूरे देश में फैल गया।
  • सामाजिक सुधारों पर जोर देना: सत्याग्रह ने उभरते राष्ट्रवादी आंदोलन के बीच सामाजिक सुधार पर जोर दिया तथा त्रावणकोर में गांधीवादी विरोध के तरीकों को प्रस्तुत किया।

वायकोम सत्याग्रह की विरासत 

  • प्रतिकूल परिस्थितियों में भी धैर्य: वायकोम सत्याग्रह एक उल्लेखनीय आंदोलन के रूप में संचालित किया गया था, जो शत्रुतापूर्ण सामाजिक दबावों, पुलिस हस्तक्षेपों और वर्ष 1924 की विनाशकारी बाढ़ के बावजूद 600 से अधिक दिनों तक चला।
  • जातिगत सीमाओं के पार एकता: इस आंदोलन में जातिगत सीमाओं के पार एक अभूतपूर्व एकता भी दिखाई दी, जो इसकी निरंतर एकजुटता में एक महत्त्वपूर्ण कारक था।
  • सत्याग्रह की सफलता का कारण: मंदिर प्रवेश की घोषणा के साथ-साथ विरोध के प्रभावी साधनों के रूप में सविनय अवज्ञा के गांधीवादी तरीकों का प्रदर्शन, वायकोम सत्याग्रह की महान सफलता थी।
    • इस प्रकार, अपनी कमियों के बावजूद, वायकोम सत्याग्रह ने भारत में अस्पृश्यता को राजनीतिक मुद्दों के अग्रभाग में ला दिया।

पेरियार ई.वी. रामास्वामी 

  • पेरियार ई.वी. रामास्वामी, एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता तथा राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने आत्म-सम्मान आंदोलन और द्रविड़ कड़गम (Dravidar Kazhagam) का प्रारंभ किया था।
    • ‘पेरियार’ शीर्षक का अर्थ है, ‘सम्मानित बुजुर्ग’ (Respected Elder)
    • वर्ष 2021 से, भारतीय राज्य तमिलनाडु ने उनकी जयंती को ‘सामाजिक न्याय दिवस’ के रूप में मनाना शुरू किया है।
  • राजनीतिक शुरुआत: पेरियार ने वर्ष 1919 में इरोड में एक कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया।
  • वायकोम सत्याग्रह (वर्ष 1924): उन्होंने अपनी पत्नी के साथ वायकोम सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया और दो बार गिरफ्तार हुए, जिससे उन्हें ‘वायकोम वीर’ (वायकोम का नायक) की उपाधि मिली।
  • कांग्रेस से इस्तीफा: उन्होंने वर्ष 1925 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया, जब उन्हें लगा कि पार्टी केवल ब्राह्मणों के हितों की सेवा कर रही है।
  • जस्टिस पार्टी से जुड़ाव: उन्होंने स्वयं को जस्टिस पार्टी तथा आत्मसम्मान आंदोलन से जोड़ा, जो सामाजिक जीवन, विशेषकर नौकरशाही में ब्राह्मणों के प्रभुत्व का विरोध करता था।

सामाजिक एवं राजनीतिक सुधार

  • तमिल पहचान को पुनर्परिभाषित किया: पेरियार ने तमिल पहचान को समतावादी तथा जाति व्यवस्था से अछूती बताते हुए इसकी तुलना कांग्रेस द्वारा प्रचारित भारतीय पहचान से की।
    • पेरियार ने तर्क दिया कि तमिल क्षेत्र में जाति व्यवस्था उत्तर भारत से आए आर्य ब्राह्मणों द्वारा लाई गई थी।
    • उन्हें ‘द्रविड़ आंदोलन के जनक’ के रूप में जाना जाता है।
  • आत्मसम्मान आंदोलन: आत्मसम्मान आंदोलन एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार आंदोलन था, जिसकी शुरुआत वर्ष 1925 में तमिलनाडु, दक्षिण भारत में हुई थी।
    • इस आंदोलन का उद्देश्य सामाजिक समानता को बढ़ावा देना तथा जाति व्यवस्था को समाप्त करना था, जो भारतीय समाज में गहराई से व्याप्त थी।
  • हिंदी को बढ़ावा दिए जाने का विरोध (1930 का दशक): पेरियार ने कांग्रेस मंत्रिमंडल द्वारा हिंदी को बढ़ावा दिए जाने का विरोध किया, इसे आर्यीकरण प्रक्रिया के समानांतर बताया तथा इसे तमिल पहचान और आत्मसम्मान पर हमला माना।
    • उनके नेतृत्व में द्रविड़ आंदोलन जाति के विरुद्ध संघर्ष और तमिल राष्ट्रीय पहचान की पुष्टि के रूप में विकसित हुआ।
  • द्रविड़ कड़गम: वर्ष 1939 में, रामास्वामी जस्टिस पार्टी के प्रमुख बने तथा वर्ष 1944 में, उन्होंने तमिल, मलयालम, तेलुगु और कन्नड़ भाषियों के लिए एक स्वतंत्र द्रविड़नाडु की वकालत करते हुए इसका नाम बदलकर द्रविड़ कड़गम कर दिया।
    • उन्होंने द्रविड़ राष्ट्रीय पहचान के अपने विचार को द्रविड़ भाषायी परिवार पर आधारित किया।
    • बाद में पार्टी विभाजित हो गई और CN अन्नादुरई के नेतृत्व वाले एक समूह ने वर्ष 1949 में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) का गठन किया।
  • तर्कवाद को बढ़ावा: पेरियार ने जीवन में तर्कसंगत निर्णय लेने की वकालत की। उन्होंने महिलाओं की स्वतंत्रता की सिफारिश की और तर्क दिया कि उन्हें बच्चे पैदा करने तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि उन्हें रोजगार के समान अवसर मिलने चाहिए।
  • जाति व्यवस्था को चुनौती: पेरियार ने लोगों से अपने नाम से जाति प्रत्यय हटाने और जाति का उल्लेख करने से बचने का आग्रह किया। उन्होंने 1930 के दशक में सार्वजनिक सम्मेलनों में दलितों द्वारा तैयार भोजन के साथ सह-भोज प्रथा की भी शुरुआत की।

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