हाल ही में चेन्नई में पेरियार ई.वी. रामासामी (Periyar E.V. Ramasamy) की 146वीं जयंती मनाई गई।
पेरियार ई.वी. रामासामी के बारे में
वह एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने आत्म-सम्मान आंदोलन और द्रविड़ कड़गम (Dravidar Kazhagam) शुरू किया था।
उन्हें ‘द्रविड़ आंदोलन के जनक’ के रूप में जाना जाता है।
वर्ष 2021 से, भारतीय राज्य तमिलनाडु उनकी जयंती को ‘सामाजिक न्याय दिवस’ के रूप में मनाता है।
राजनीतिक शुरुआत: पेरियार ने अपना राजनीतिक जीवन वर्ष 1919 में इरोड में एक कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में शुरू किया।
वायकोम सत्याग्रह, 1924
वायकोम सत्याग्रह एक जन आंदोलन था, जिसमें निम्न जाति के लोगों के लिए वायकोम मंदिर के सामने सार्वजनिक पथ के उपयोग के लिए उच्च जाति के लोगों के समान उपयोग करने की माँग की गई थी।
उन्होंने अपनी पत्नी के साथ आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और दो बार गिरफ्तार हुए, जिससे उन्हें ‘वायकोम वीर’ (वायकोम का नायक) की उपाधि मिली।
कांग्रेस से इस्तीफा: उन्होंने वर्ष 1925 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया, जब उन्हें लगा कि पार्टी केवल ब्राह्मणों के हितों की सेवा कर रही है।
जस्टिस पार्टी से जुड़ाव: उन्होंने स्वयं को जस्टिस पार्टी और आत्मसम्मान आंदोलन से जोड़ा, जो सामाजिक जीवन, विशेषकर नौकरशाही में ब्राह्मणों के प्रभुत्व का विरोध करता था।
सामाजिक और राजनीतिक सुधार (1920-1930)
तमिल पहचान को पुनर्परिभाषित किया: उन्होंने तमिल पहचान को समतावादी और जाति व्यवस्था से अछूते के रूप में पुनर्परिभाषित किया तथा इसकी तुलना कांग्रेस द्वारा प्रचारित भारतीय पहचान से की।
उन्होंने तर्क दिया कि तमिल क्षेत्र में जाति प्रथा उत्तरी भारत से आए आर्य ब्राह्मणों द्वारा लाई गई थी।
आत्मसम्मान आंदोलन: आत्मसम्मान आंदोलन एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार आंदोलन था, जिसकी शुरुआत वर्ष 1925 में तमिलनाडु, दक्षिण भारत में हुई थी।
इस आंदोलन का उद्देश्य सामाजिक समानता को बढ़ावा देना और जाति व्यवस्था को खत्म करना था, जो भारतीय समाज में गहराई से व्याप्त थी।
हिंदी भाषा के थोपे जाने का विरोध (1930 का दशक)
पेरियार ने कांग्रेस मंत्रिमंडल द्वारा हिंदी थोपे जाने का विरोध किया, इसे आर्यीकरण प्रक्रिया के समान बताया तथा इसे तमिल पहचान और आत्मसम्मान पर हमला बताया।
उनके नेतृत्व में द्रविड़ आंदोलन जाति के विरुद्ध संघर्ष और तमिल राष्ट्रीय पहचान की पुष्टि के रूप में विकसित हुआ।
द्रविड़ कझगम: वर्ष1939 में रामासामी जस्टिस पार्टी के प्रमुख बने और वर्ष 1944 में उन्होंने इसका नाम बदलकर द्रविड़ कझगम (Dravidar Kazhagam) कर दिया।
द्रविड़ कझगम का गठन (1940 का दशक)
1940 के दशक में पेरियार ने द्रविड़ कझगम की स्थापना की तथा तमिल, मलयालम, तेलुगु और कन्नड़ भाषियों के लिए एक स्वतंत्र द्रविड़नाडु की सिफारिश की।
उन्होंने द्रविड़ राष्ट्रीय पहचान का अपना विचार द्रविड़ भाषायी परिवार पर आधारित किया।
बाद में पार्टी विभाजित हो गई और सी. एन. अन्नादुरई के नेतृत्व में एक समूह ने वर्ष 1949 में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (Dravida Munnetra Kazhagam-DMK) का गठन किया।
पेरियार की विरासत
तमिलनाडु की राजनीतिक पहचान को प्रभावित किया: पेरियार के विचारों ने मद्रास प्रेसीडेंसी के भीतर तमिल भाषी क्षेत्रों की राजनीतिक पहचान और संस्कृति को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया।
भाषायी गौरव: कई तमिलों के लिए, पेरियार सामाजिक समानता, आत्म-सम्मान और तमिल भाषा पर गौरव पर केंद्रित विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
समाज सुधार पर ध्यान: एक समाज सुधारक के रूप में, पेरियार ने सामाजिक, सांस्कृतिक और लैंगिक असमानताओं को संबोधित किया। उनके सुधार एजेंडे के तहत आस्था, लैंगिक भूमिकाओं और परंपराओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन किया गया।
तर्कवाद को बढ़ावा: पेरियार ने जीवन में तर्कसंगत निर्णय लेने को बढ़ावा दिया। उन्होंने महिलाओं की स्वतंत्रता की सिफारिश की और तर्क दिया कि उन्हें बच्चे पैदा करने तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए बल्कि उन्हें रोजगार के समान अवसर मिलने चाहिए।
आत्म सम्मान आंदोलन (Self Respect Movement): उनके नेतृत्व में, आत्म सम्मान आंदोलन ने अनुष्ठान-मुक्त शादियों को बढ़ावा दिया और महिलाओं के संपत्ति और तलाक के अधिकारों का समर्थन किया।
जाति व्यवस्था को चुनौती: पेरियार ने लोगों से अपने नाम से जाति प्रत्यय हटाने और जाति का उल्लेख करने से बचने का आग्रह किया। उन्होंने 1930 के दशक में सार्वजनिक सम्मेलनों में दलितों द्वारा तैयार भोजन के साथ सह-भोज प्रथा की भी शुरुआत की।
वर्ष 1973 में 94 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
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