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पर्माफ्रॉस्ट अनुसंधान

Lokesh Pal October 01, 2024 04:02 176 0

संदर्भ

ग्लेशियोलॉजिस्ट एस. एन रेम्या नॉर्वे में हिमाद्री अनुसंधान केंद्र (Himadri Research Station) में भविष्य में संभावित जलवायु परिवर्तन आपदाओं का आकलन करने के लिए पर्माफ्रॉस्ट परतों के अनुसंधान में शामिल हैं।

हिमाद्री अनुसंधान केंद्र (Himadri Research Station)

  • महासागर के स्वालबार्ड द्वीपसमूह के नॉर्वेजियन शहर नई-एलेसेंड (Ny-Alesund) में कई देशों  के अंतरराष्ट्रीय समन्वय अनुसंधान केंद्र हैंI 
  • भारत का आर्कटिक अनुसंधान केंद्र ‘हिमाद्री’ यहीं स्थित है।
  • ‘हिमाद्री’ की स्थापना वर्ष 2008 में हुई थी।
  • भारत के आर्कटिक कार्यक्रम का उद्देश्य नॉर्वेजियन आर्कटिक, स्वालबार्ड में जलवायु परिवर्तन, इसके प्रभावों और अनुकूलन की वर्तमान समझ के विकास, समेकन तथा प्रसार में योगदान करना है।
  • भारत के आर्कटिक अनुसंधान में वायुमंडलीय, जैविक, समुद्री तथा पृथ्वी विज्ञान तथा हिमनद संबंधी अध्ययन शामिल हैं।
  • आर्कटिक क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान वर्ष 1920 की स्वालबार्ड संधि (यह स्वालबार्ड के आर्कटिक द्वीपसमूह पर नॉर्वे की संप्रभुता को मान्यता देता है) जैसे अंतरराष्ट्रीय कानूनी साधनों द्वारा शासित है, हस्ताक्षरकर्ताओं को द्वीपों पर वाणिज्यिक गतिविधियों (मुख्य रूप से कोयला खनन) में संलग्न होने के समान अधिकार दिए गए थे।
  • भारत इस संधि पर हस्ताक्षरकर्ता देश  है।

संबंधित तथ्य 

  • पर्माफ्रॉस्ट की उपस्थिति: हिमालय जैसे ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पर्माफ्रॉस्ट मौजूद है।
  • आँकड़ों का अभाव: हिमालयी पर्माफ्रॉस्ट के बारे में सीमित जानकारी, सटीक प्रभाव पूर्वानुमान में बाधा डालती है।
  • शोध प्रयास: रेम्या जैसे शोधकर्ता हिमालय में पर्माफ्रॉस्ट स्थितियों का अध्ययन कर रहे हैं।
    • रॉक ग्लेशियरों और पिघलते पर्माफ्रॉस्ट के प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

  • फोकस क्षेत्र: पर्माफ्रॉस्ट पतन के कारण होने वाली आपदाओं की संभावना की पहचान करना तथा स्थानीय समुदायों को पूर्व चेतावनी प्रदान करने में सहायता करना।

पर्माफ्रॉस्ट क्या है?

  • पर्माफ्रॉस्ट से तात्पर्य ऐसी मृदा या चट्टान से है, जो कम-से-कम दो वर्षों तक लगातार जमी रहती है।
  •  यह मुख्य रूप से ध्रुवीय क्षेत्रों और ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है, जहाँ सतह का तापमान 0°C से नीचे रहता है, जिससे मृदा के भीतर बर्फ जम जाती है।
  • यद्यपि पर्माफ्रॉस्ट में बर्फ होना आवश्यक नहीं है, लेकिन अक्सर ऐसा होता है, और यह बर्फ सतह की स्थिरता बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • वैश्विक वितरण: यद्यपि पर्माफ्रॉस्ट आमतौर पर आर्कटिक से जुड़ा हुआ है, यह हिमालय जैसे ऊँचाई वाले क्षेत्रों में भी मौजूद है।

पर्माफ्रॉस्ट पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • जलवायु परिवर्तन के खतरनाक परिणामों में से एक है, पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना।
  • वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण पर्माफ्रॉस्ट के भीतर की बर्फ पिघल रही है, जिससे सतह की संरचना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो रहे हैं।

पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने के प्रभाव

  • भू-अस्थिरता और बुनियादी ढाँचे को नुकसान: जैसे-जैसे पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, मृदा विखंडित होने लगती  है, जिससे भू-अस्थिरता, भूस्खलन और बुनियादी ढाँचे की विफलता देखने मिलती है।
    • कनाडा तथा अलास्का जैसे क्षेत्रों में पहले से ही सड़कों, इमारतों और पाइपलाइनों को नुकसान पहुँचा है।
    • इन क्षेत्रों में समुदायों में अधिक हिमस्खलन (बर्फ पिघलने के कारण जमीन का धंसना) देखा जा रहा है।
  • पर्वतीय क्षेत्रों के लिए खतरा: पर्वतीय क्षेत्रों में, पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से भूस्खलन या हिमनद झीलों का विस्फोट हो सकता है, जिससे स्थानीय आबादी के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
    • इसका एक उदाहरण हाल ही में सिक्किम में दक्षिण ल्होनक हिमनद झील में आई बाढ़ है, जिसे पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से जोड़ा जा सकता है।
  • ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन: आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट में अनुमानतः 1,700 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन (मेथेन और CO₂) मौजूद है।
    • यह वर्ष 2019 में जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन से वैश्विक स्तर पर उत्सर्जित कार्बन की मात्रा का 51 गुना है।
  • निष्क्रिय वायरस से स्वास्थ्य जोखिम: पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से हजारों निष्क्रिय वायरस और बैक्टीरिया उत्पन्न हो सकते हैं।
    • इनमें से कुछ प्राचीन या पहले से उन्मूलन की जा चुकी बीमारियाँ हो सकती हैं, जैसे चेचक या ब्यूबोनिक प्लेग, जिनके प्रति मनुष्यों में प्रतिरक्षा या उपचार का अभाव हो सकता है।

पर्माफ्रॉस्ट के अध्ययन का महत्त्व 

  • जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करना: पर्माफ्रॉस्ट पतन के लिए अतिसंवेदनशील क्षेत्रों को चिह्नित करना।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करना: संभावित खतरों के बारे में समुदायों को सचेत करने के लिए प्रणालियों को लागू करना।
  • आपदा तैयारियों में सुधार करना: पर्माफ्रॉस्ट से संबंधित आपदाओं के प्रबंधन के लिए स्थानीय समुदायों की क्षमता को बढ़ाना।
  • बुनियादी ढाँचे की योजना बनाने के बारे में जानकारी देना: क्षेत्र में दीर्घकालिक विकास निर्णयों का मार्गदर्शन करना।

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