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भारत में दिव्यांग व्यक्ति (PwDs)

Lokesh Pal July 17, 2024 02:35 196 0

संदर्भ 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने विकलांग व्यक्तियों के अपमानजनक चित्रण के लिए फिल्म ‘आँख मिचौली’ (Aankh Micholi) पर प्रतिबंध लगाने की याचिका पर सुनवाई करते हुए फिल्मों एवं वृत्तचित्रों सहित दृश्य मीडिया में विकलांग व्यक्तियों (PwDs) के प्रति रूढ़िवादिता एवं भेदभाव को रोकने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश निर्धारित किए। 

  • यह रूपरेखा विकलांग व्यक्तियों की गरिमा एवं पहचान पर पड़ने वाले उनके गहरे प्रभाव को पहचानते हुए, कलंक एवं भेदभाव की रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करती है। 

रूपरेखा के बारे में 

पीठ ने फिल्म निर्माताओं से दृश्य मीडिया में विकलांग लोगों का प्रतिनिधित्व करते समय निम्नलिखित सात बिंदुओं का पालन करने की अपेक्षा की है:-

  • भेदभावपूर्ण शब्दों पर (On Discriminate Words): संस्थागत भेदभाव को बढ़ावा देने वाले शब्दों से बचने का आह्वान, जैसे अपंग शब्द आदि नकारात्मक आत्म छवि को जन्म देते हैं और भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं।
  • भाषा पर: ऐसी भाषा जो दिव्यांगता को व्यक्तिगत बनाती है और अक्षम करने वाली सामाजिक बाधाओं को नजरअंदाज करती है, उदाहरण के लिए, ‘सताया हुआ’, ‘पीड़ित’ और ‘शोषित’ जैसे शब्दों से बचना चाहिए। 
  • पर्याप्त जानकारी: रचनाकारों को रतौंधी जैसी दिव्यांगता के बारे में पर्याप्त चिकित्सा जानकारी की जाँच करनी चाहिए, जिससे भेदभाव बढ़ सकता है।
  • प्रभावी प्रतिनिधित्व: यह मिथकों पर आधारित नहीं होना चाहिए, रूढ़िवादिता से पता चलता है कि विकलांग व्यक्तियों में संवेदी शक्तियाँ अधिक होती हैं और यह सभी के लिए नहीं हो सकता है।
    • दृश्य मीडिया और फिल्मों में दिव्यांग व्यक्तियों के बारे में रूढ़िबद्ध चित्रण समाप्त होना चाहिए तथा रचनाकारों से कहा जाना चाहिए कि वे दिव्यांग व्यक्तियों का मजाक उड़ाने के बजाय उनका सटीक चित्रण करें।
  • भागीदारी: न्यायालय ने रचनाकारों से यह भी कहा कि वे ‘हमारे बारे में कुछ भी नहीं, हमारे बिना कुछ भी नहीं’ (Nothing about us, without us) के सिद्धांत का पालन करें तथा दृश्य मीडिया सामग्री के निर्माण और मूल्यांकन में विकलांग व्यक्तियों को शामिल करें।
    • रचनात्मक स्वतंत्रता (Creative Freedom): इसमें पहले से ही हाशिए पर पड़े लोगों का मजाक उड़ाने, स्टीरियोटाइप बनाने, गलत तरीके से प्रस्तुत करने या उनका अपमान करने की आजादी शामिल नहीं हो सकती। इन पहलुओं को निर्धारित करते समय, फिल्म के ‘उद्देश्य’ और ‘समग्र संदेश’ पर विचार किया जाना चाहिए।
  • अधिकारों का संरक्षण (Protection of Rights): दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए अधिकारों के सम्मेलन में उनके अधिकार वकालत समूहों के साथ परामर्श के बाद उन्हें चित्रित करने के उपाय शामिल हैं।
  • प्रशिक्षण एवं संवेदनशीलता कार्यक्रम (Training and Sensitisation Programs): इन्हें दृश्य मीडिया सामग्री बनाने में शामिल व्यक्तियों, जिनमें लेखक, निर्देशक, निर्माता और अभिनेता शामिल हैं, के लिए लागू किया जाना चाहिए।

विकलांग व्यक्तियों (PwDs) अर्थात् दिव्यांगजन (Divyangjan) के बारे में 

विकलांग व्यक्तियों में दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी विकार होते हैं, जो विभिन्न बाधाओं के साथ मिलकर समाज में दूसरों के साथ समान आधार पर उनकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।

  • संक्षेप में: दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) में ‘बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्ति’ को ‘एक ऐसा व्यक्ति जिसमें निर्दिष्ट दिव्यांगता का 40% से कम हिस्सा न हो’ के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • आँकड़े: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में विकलांग लोगों की संख्या लगभग 2.68 करोड़ (या कुल जनसंख्या का 2.2%) है, जो कि ऑस्ट्रेलिया की संपूर्ण जनसंख्या से भी अधिक है।
    • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistics Office) की वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की लगभग 2.2% आबादी किसी-न-किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक दिव्यांगता के साथ रहती है। 
      • भारत में ग्रामीण पुरुषों में दिव्यांगता का प्रचलन सबसे अधिक है।
      • भारत सरकार के अनुसार, दिव्यांगजनों पर आँकड़े मुख्यतः दशकीय जनगणनाओं और दिव्यांगता पर नमूना सर्वेक्षणों से लिए जाते हैं।

दिव्यांगता अधिकारों के मॉडल

मोटे तौर पर दो मॉडल हैं, जिनके अंतर्गत दिव्यांगता अधिकारों को देखा जाता है, जिन्हें चिकित्सा एवं सामाजिक मॉडल कहा जाता है।

  • चिकित्सा मॉडल (Medical Model): यह व्यक्ति में दिव्यांगता का पता लगाता है। इस मॉडल के अनुसार, दिव्यांगता एक कथित सामान्य से एक चिकित्सा कमी है।
    • इसका लक्ष्य व्यक्ति की दिव्यांगता को दूर करना है।
  • सामाजिक मॉडल (Social Model): यह दिव्यांगता को सामाजिक स्थानों और प्रणालियों के भीतर रखता है। विभिन्न क्षमताओं वाले लोगों को समर्थन देने में समाज की विफलता लोगों के लिए बाधाएँ उत्पन्न करती है या उन्हें अक्षम बनाती है।
    • समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है कि वह ऐसे वातावरण और सामाजिक स्थान का निर्माण करे, जो पूर्ण भागीदारी को समर्थन प्रदान करें।
  • मानवाधिकार मॉडल (Human Rights Model): यह एक हालिया सामाजिक मॉडल है, जो कहता है कि विकलांग लोग समाज का हिस्सा हैं और उन्हें भी बाकी लोगों के समान ही अधिकार प्राप्त हैं।
    • मानवाधिकार मॉडल पर सर्वोच्च न्यायालय का अधिक फोकस करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह सरकार एवं निजी पक्षों को समाज में विकलांग व्यक्तियों की पूर्ण एवं प्रभावी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए बाध्य करता है।
    • लाभ: यह व्यक्तियों को ऐसे क्षेत्र में रखता है, जहाँ सभी मानव अधिकार सिद्धांत, जो किसी पर भी लागू होते हैं, का दावा विकलांग जनता द्वारा किया जा सकता है। 
    • हानि: यह एक अमूर्त विचार है और इसे क्रियान्वित करना कठिन है। 

दिव्यांगजनों की सहायता के लिए वैश्विक कार्यवाहियाँ

दिव्यांगजनों की सहायता के लिए वैश्विक स्तर पर निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:

  • इंचियोन रणनीति (Incheon Strategy): एशिया और प्रशांत क्षेत्र में विकलांग व्यक्तियों के लिए ‘अधिकार को वास्तविक बनाना’ (Make the Right Real)।
  • विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Convention on Rights of Persons with Disability): सभी विकलांग व्यक्तियों द्वारा सभी मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं के पूर्ण और समान खुशहाली को बढ़ावा देना, संरक्षित करना और सुनिश्चित करना तथा उनकी अंतर्निहित गरिमा के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना।
  • अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस (International Day of Persons with Disabilities): समाज और विकास के प्रत्येक स्तर पर विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों एवं कल्याण को बढ़ावा देना तथा राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के सभी पहलुओं में विकलांग व्यक्तियों की स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
    • अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस (International Day of Persons with Disabilities- IDPD) एक संयुक्त राष्ट्र दिवस है, जो प्रत्येक वर्ष 3 दिसंबर को मनाया जाता है। 

भारत में दिव्यांगजनों की सहायता के लिए संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions to Support PwDs in India)

भारतीय संविधान के तहत भारत सरकार दिव्यांगों को बेहतर जीवन स्तर प्रदान करने के लिए बाध्य है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।

  • मौलिक अधिकार (Fundamental Rights): व्यक्ति की गरिमा संविधान के तहत प्रदत्त सभी मौलिक अधिकारों के पीछे की मूल धारणा है।
  • राज्य के नीति निदेशक तत्त्व (Directive Principles of State Policy): भारतीय संविधान के अनुच्छेद-41 में कहा गया है कि राज्य को कार्य, शिक्षा और बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी तथा दिव्यांगता की स्थिति में सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए प्रभावी प्रावधान करना चाहिए।
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-46 के अनुसार, राज्य लोगों के कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देगा तथा उन्हें सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से बचाएगा।
  • सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule): इसके तहत, विकलांगों की सहायता राज्य का विषय है। (सूची II में प्रविष्टि 9)
  • 11वीं और 12वीं अनुसूची: विकलांगों एवं मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों का कल्याण 11वीं अनुसूची में मद 26 तथा 12वीं अनुसूची में मद 09 के रूप में सूचीबद्ध है।

दिव्यांगजनों की सहायता के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम

भारत सरकार द्वारा उन्हें समर्थन, उत्थान और सशक्त बनाने के लिए निम्नलिखित कार्य किए गए हैं:

  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (2017): मानसिक बीमारी से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल एवं सेवाएँ प्रदान करना तथा मानसिक स्वास्थ्य देखभाल एवं सेवाएँ प्रदान करने के दौरान ऐसे व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना, उन्हें बढ़ावा देना और पूरा करना तथा उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबंध करना।
  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016: यह भारतीय संसद द्वारा विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के प्रति अपने दायित्व को पूरा करने के लिए पारित दिव्यांगता कानून है, जिसका भारत ने वर्ष 2007 में अनुसमर्थन किया था।
  • राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम (National Trust Act), 1999: इसमें ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहुदिव्यांगता से ग्रस्त व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक निकाय के गठन और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक मामलों का प्रावधान किया गया है।
    • राष्ट्रीय न्यास भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है।
  • भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम (1992): यह दिव्यांगता पुनर्वास के क्षेत्र में कार्यरत पेशेवरों के प्रशिक्षण एवं पंजीकरण को नियंत्रित करता है।
  • दिव्यांग व्यक्तियों को सहायक उपकरण खरीदने/लगाने के लिए सहायता (ADIP) योजना: जरूरतमंद विकलांग व्यक्तियों को टिकाऊ, परिष्कृत और वैज्ञानिक रूप से निर्मित, आधुनिक, मानक सहायता उपकरण तथा उपकरण प्राप्त करने में सहायता करना, जो दिव्यांगता के प्रभाव को कम करके उनके शारीरिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक पुनर्वास को बढ़ावा दे सकें व उनकी आर्थिक क्षमता को बढ़ा सकें।
  • विशिष्ट दिव्यांगता आईडी (Unique Disability ID- UDID): विकलांग व्यक्तियों के लिए एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करना, ‘सरकारी लाभ प्रदान करने में पारदर्शिता, दक्षता और आसानी को प्रोत्साहित करना’ तथा सभी स्तरों पर लाभार्थियों की ‘भौतिक एवं वित्तीय प्रगति की ट्रैकिंग को सुव्यवस्थित करना’।
  • सुगम्य भारत अभियान (Sugamya Bharat Abhiyan): सार्वजनिक स्थानों, परिवहन, तथा सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों (ICT) को दिव्यांगजनों के लिए सुलभ बनाना।
  • आगामी जनगणना में दिव्यांगता को दिव्यांगजन अधिकार (या RPwD) अधिनियम, 2016 के अनुसार परिभाषित किया जाएगा।
    • दिव्यांगता मामलों का विभाग भी दिव्यांगजनों का एक राष्ट्रीय डाटाबेस बनाने की प्रक्रिया में है, जिसमें सक्षम चिकित्सा प्राधिकारियों द्वारा जारी प्रमाण-पत्र वाले व्यक्तियों के बारे में जानकारी होगी।
  • अन्य: PM-DAKSH (दिव्यांग कौशल विकास एवं पुनर्वास योजना), दीनदयाल विकलांग पुनर्वास योजना, विकलांग छात्रों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप, भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र आदि। 

भारत में दिव्यांगजनों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

विभिन्न अधिकारों और कानूनों के बावजूद, उन्हें विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनका उल्लेख नीचे किया गया है:

  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: भारत में कई सार्वजनिक इमारतें, स्थान और परिवहन प्रणालियाँ सुलभ होने के लिए डिजाइन नहीं की गई हैं। इसमें रैंप, लिफ्ट और सुलभ शौचालयों की कमी शामिल है।
    • दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 3% इमारतें ही पूरी तरह से सुलभ पाई गईं।

  • सूचना और संचार तक सीमित पहुँच: दृष्टि और श्रवण बाधित व्यक्तियों को अक्सर ब्रेल साइनेज, सांकेतिक भाषा व्याख्या तथा ऑडियो विवरण की कमी के कारण सूचना और संचार तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • मनोवृत्ति संबंधी बाधाएँ: समाज द्वारा अपनाए गए नकारात्मक दृष्टिकोण और रूढ़िवादिता के कारण उन्हें अक्सर भेदभाव और कलंक का सामना करना पड़ता है। दिव्यांगता के बारे में पूर्वाग्रह और गलत धारणाएँ विकलांग लोगों के सामाजिक हाशिए पर जाने में योगदान करती हैं।
    • रूढ़िवादिता उनकी शिक्षा, रोजगार और सामाजिक एकीकरण के अवसरों में बाधा उत्पन्न कर सकती है तथा बहिष्कार और अलगाव के चक्र को बनाए रख सकती है।
  • शैक्षिक बाधाएँ: समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विधायी प्रयासों के बावजूद, शैक्षिक संस्थानों में बाधाएँ बनी हुई हैं।
    • दुर्गम सुविधाएँ, उपयुक्त आवास की कमी तथा प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी विकलांग छात्रों के सामने आने वाली शैक्षणिक चुनौतियों में योगदान करती है।
    • लगभग 45% विकलांग लोग निरक्षर हैं, और 3 से 35 वर्ष की आयु के केवल 62.9% विकलांग लोग कभी नियमित स्कूलों में गए हैं।
  • रोजगार असमानताएँ: विकलांग व्यक्तियों के लिए नौकरी का बाजार विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। भेदभाव, दुर्गम कार्यस्थल और सुविधाओं की कमी अक्सर उनके रोजगार के अवसरों को सीमित कर देती है।
    • भारत में लगभग 3 करोड़ दिव्यांगजन हैं, जिनमें से लगभग 1.3 करोड़ रोजगार योग्य हैं, लेकिन उनमें से केवल 34 लाख को ही रोजगार मिला है।
  • स्वास्थ्य देखभाल असमानताएँ: विकलांग लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच से समझौता किया जा सकता है। बाधाओं में स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की भौतिक दुर्गमता, सुलभ जानकारी की कमी और विशिष्ट स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं की उपेक्षा शामिल हो सकती है। 
  • वित्तीय तनाव: दिव्यांगता के साथ रहने पर चिकित्सा व्यय, सहायक उपकरण और विशेष देखभाल जैसी अतिरिक्त लागतें लग सकती हैं।
  • तकनीकी अंतराल: हालाँकि प्रौद्योगिकी में विकलांग व्यक्तियों को सशक्त बनाने की क्षमता है, लेकिन पहुँच में एक महत्त्वपूर्ण अंतर है।
    • सभी सहायक प्रौद्योगिकियाँ सस्ती या आसानी से उपलब्ध नहीं हैं, जिससे विकलांग लोगों की तकनीकी प्रगति का पूरा लाभ उठाने की क्षमता सीमित हो जाती है।
    • भारत में श्रवण यंत्र तथा गतिशीलता यंत्र जैसी सहायक प्रौद्योगिकी तक पहुँच सीमित है, जिससे दिव्यांगजनों के लिए दैनिक कार्य करना कठिन हो जाता है।
    • भारत में, एक अध्ययन में पाया गया कि केवल 29% विकलांग लोगों के पास सहायक उपकरण हैं, जबकि 71% की आवश्यकताएँ पूरी नहीं हुई हैं (कार्की एट अल, 2021)
  • अन्य: सार्वजनिक परिवहन प्रणालियाँ अक्सर विकलांग व्यक्तियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर नहीं बनाई जाती हैं।
    • दिव्यांगता के साथ जीने के भावनात्मक बोझ को कम करके नहीं आँका जाना चाहिए। व्यक्तियों को अवसाद, चिंता और सामाजिक अलगाव की उच्च दर का सामना करना पड़ सकता है।
    • डिजिटल डिवाइड: डिजिटलीकरण में तीव्र वृद्धि के साथ, कई दिव्यांगजन दुर्गम डिजिटल प्लेटफॉर्म और तकनीकों के कारण पीछे छूट रहे हैं। यह डिजिटल डिवाइड शिक्षा, रोजगार और सामाजिक भागीदारी में मौजूदा असमानताओं को बढ़ाता है।
      • वर्ष 2020 वेब एक्सेसिबिलिटी एनुअल रिपोर्ट की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, 98% वेबसाइटें दिव्यांगजनों के लिए एक्सेसिबिलिटी आवश्यकताओं का पालन करने में विफल रहती हैं।
    • कानूनी और नीति कार्यान्वयन में कमी: जबकि भारत में विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 जैसे प्रगतिशील कानून हैं, लेकिन इनका कार्यान्वयन एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। कई प्रावधान कागजों पर ही रह गए हैं, जिससे ‘कागजी शेर (paper tiger)’ सिंड्रोम पैदा हो रहा है।

आगे की राह

भारत को दिव्यांगजनों को सशक्त बनाने तथा  भारत की वृद्धि और विकास के लिए उनके कौशल का उपयोग करने के लिए उनके सामने आने वाली विभिन्न उपरोक्त चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।

  • मौजूदा कानूनों एवं नीतियों को लागू करना: यह विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और हितों की रक्षा करता है, जैसे कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 और विकलांग व्यक्तियों के लिए मसौदा राष्ट्रीय नीति, 2022।
  • दिव्यांगों के बारे में धारणाएँ बदलें: ‘विकलांग’ (विकलांग) के बजाय ‘दिव्यांग’ जैसे सशक्तीकरण शब्दों के उपयोग को बढ़ावा देकर सामाजिक दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है।
    • अधिक समावेशी और सम्मानजनक समाज को बढ़ावा देने के लिए मीडिया, कला और सार्वजनिक मंचों के माध्यम से दिव्यांगजनों की क्षमताओं तथा उपलब्धियों को उजागर करें।
    • विजुअल मीडिया के लिए हालिया रूपरेखा, उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी विभागों को संवेदनशीलता के लिए भेजी जा सकती है।
  • समावेशी डिजिटल गवर्नेंस प्लेटफॉर्म: सार्वभौमिक पहुँच पर ध्यान केंद्रित करते हुए ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म को फिर से डिजाइन करने की आवश्यकता है। इसमें सभी सरकारी सेवाओं के लिए मल्टीमॉडल इंटरफेस (वॉयस, टेक्स्ट, वीडियो) बनाना, विभिन्न सहायक तकनीकों के साथ संगतता सुनिश्चित करना और वीडियो आधारित सेवाओं के लिए वास्तविक समय की सांकेतिक भाषा व्याख्या प्रदान करना शामिल होगा।
  • समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देना: नियमित स्कूलों में विकलांग बच्चों के लिए तथा उन्हें पर्याप्त सहायता, संसाधन और प्रशिक्षण प्रदान करना। इससे उन्हें अपनी क्षमता और कौशल विकसित करने तथा समाज में एकीकृत होने में मदद मिल सकती है।
  • पहुँच में वृद्धि: विकलांग व्यक्तियों के लिए भौतिक वातावरण, परिवहन, सूचना और संचार, प्रौद्योगिकी तथा सेवाओं के लिए एवं उनकी भागीदारी व समावेशन में बाधा डालने वाली किसी भी बाधा या रुकावट को दूर करना।
  • अवसरों और प्रोत्साहनों में वृद्धि: विकलांग व्यक्तियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण, कौशल विकास, स्वरोजगार और औपचारिक रोजगार के लिए, तथा श्रम बाजार में गैर-भेदभाव और समान वेतन सुनिश्चित करना।
  • सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना: जैसे कि स्वास्थ्य सेवाएँ, बीमा योजनाएँ, पुनर्वास कार्यक्रम और विकलांग व्यक्तियों के लिए अन्य कल्याणकारी उपाय तथा उनकी सामर्थ्य एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करना।
  • जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ाना: विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों, आवश्यकताओं, क्षमताओं और योगदानों के बारे में जनता, मीडिया, सरकार, नागरिक समाज तथा निजी क्षेत्र के बीच जागरूकता फैलाना एवं दिव्यांगता से जुड़ी नकारात्मक रूढ़ियों व कलंक को चुनौती देना।
  • अन्य
    • भागीदारी और प्रतिनिधित्व को प्रोत्साहित करना: सभी स्तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में तथा उन्हें प्रभावित करने वाले मामलों में उनकी आवाज एवं विकल्प सुनिश्चित करना।
    • अनुसंधान और नवाचार का समर्थन करना: दिव्यांगता के क्षेत्र में तथा दिव्यांगता समावेशन पर सर्वोत्तम प्रथाओं और ज्ञान के प्रसार एवं आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
    • राज्य सरकारों के साथ सहयोग करना: उनके द्वारा किए जा रहे सर्वेक्षणों के डेटा का उपयोग करना, विशेषज्ञों से परामर्श करना तथा सांख्यिकी मंत्रालय के सर्वेक्षणकर्ताओं को संवेदनशील बनाना।

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