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फाइटोप्लैंकटन (शैवाल) ब्लूम

Lokesh Pal November 26, 2024 03:30 4 0

संदर्भ

हाल ही में वैज्ञानिकों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि मरुस्थलीकरण के कारण, मेडागास्कर के दक्षिण-पूर्व में भारतीय महासागर में भारी मात्रा में पोषक तत्त्वों से भरपूर धूल जमा हो रही है, जिससे फाइटोप्लैंकटन (शैवाल) में वृद्धि हो रही है।

मरुस्थलीकरण

  • मरुस्थलीकरण से तात्पर्य विभिन्न मानवीय प्रभावों के परिणामस्वरूप शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क अर्द्ध-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि क्षरण से है। 
  • यह भूमि की जैविक उत्पादकता की क्षमता को कम करता है, और चरागाह एवं कृषि के लिए उपयोग की जाने वाली उत्पादक भूमि को रेगिस्तान जैसी स्थितियों में परिवर्तित करता है।

फाइटोप्लैंकटन (Phytoplanktons)

  • परिभाषा: फाइटोप्लैंकटन छोटे ‘माइक्रोस्कोपिक’ पौधे होते हैं, जो जल निकायों में तैरते हैं और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में प्राथमिक उत्पादक के रूप में कार्य करते हैं। 
  • पारिस्थितिकी तंत्र में भूमिका
    • ये प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन निष्कासित करते हैं। 
    • सूर्य के प्रकाश पर निर्भरता के कारण वे जल की सतह के पास पाए जाते हैं। 
    • इनमें डायटम, डाइनोफ्लैजलेट्स, हरित और नील-हरित शैवाल जैसे कई समुद्री स्वपोषी शामिल हैं।
  • क्लोरोफिल और प्रकाश संश्लेषण
    • फाइटोप्लैंकटन बायोमास का अध्ययन क्लोरोफिल a का विश्लेषण करके किया जाता है, जो प्रकाश संश्लेषण में उपयोग किया जाने वाला प्राथमिक वर्णक है।

    • प्रकाश संश्लेषण: वह प्रक्रिया जिसके द्वारा प्रकाश ऊर्जा को कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण के माध्यम से रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
    • क्लोरोफिल के प्रकार
      • क्लोरोफिल a: ऊँचे पौधों, शैवाल और साइनोबैक्टीरिया में पाया जाता है।
      • क्लोरोफिल b: हरित शैवाल और  ऊँचे पौधों में पाया जाता है।
      • क्लोरोफिल c: डायटम, डाइनोफ्लैजेलेट्स और भूरे शैवाल में पाया जाता है।
      • क्लोरोफिल d: केवल लाल शैवाल में पाया जाता है।

फाइटोप्लैंकटन ब्लूम (Phytoplankton Bloom)

  • परिभाषा: ‘फाइटोप्लैंकटन ब्लूम’,  फाइटोप्लैंकटन की घातीय वृद्धि को संदर्भित करता है, जो अपनी सघन उपस्थिति के कारण जल का रंग बदल सकता है। 
  • ‘ब्लूम’ के कारण
    • यूट्रोफिकेशन: नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे अतिरिक्त पोषक तत्त्व शैवाल की वृद्धि को बढ़ावा देते हैं।
    • तापमान: गर्म जल का तापमान, आमतौर पर गर्मियों या पतझड़ में, फूल खिलने को बढ़ावा देता है।
    • गंदगी: कम गंदगी से सूर्य का प्रकाश जल में गहराई तक पहुँचता है, जिससे वृद्धि बढ़ती है।
  • ‘ब्लूम’ का प्रभाव
    • सकारात्मक
      • ‘जूप्लैंकटन’ और मछलियों की आबादी बढ़ाकर समुद्री खाद्य शृंखला को बेहतर बनाना।
      • अस्थायी कार्बन सिंक के रूप में कार्य करना, प्रकाश संश्लेषण के दौरान वायुमंडलीय CO₂ को अवशोषित करना।
    • नकारात्मक
      • जैव विषाक्त पदार्थ उत्पन्न करते हैं, जो समुद्री खाद्य शृंखलाओं में जैव-संचयित हो सकते हैं।
      • जल में ऑक्सीजन के स्तर को कम करते हैं, जिससे हाइपॉक्सिक “मृत क्षेत्र” का निर्माण होता है।

भारतीय महासागर में ‘ फाइटोप्लैंकटन ब्लूम’ संबंधी घटना (2019-2020)

  • नवंबर 2019-जनवरी 2020 के दौरान मेडागास्कर के दक्षिण-पूर्व में एक दुर्लभ और अभूतपूर्व फाइटोप्लैंकटन ब्लूम हुआ।
    • यह ब्लूम लगभग 2,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत था और इसका पता उपग्रह प्रौद्योगिकी के माध्यम से लगाया गया, जिससे क्लोरोफिल की उपस्थिति का पता चला।
  • कारण
    • यह ‘ब्लूम’ दक्षिणी अफ्रीका के सूखाग्रस्त क्षेत्रों जैसे कि इटोशा साल्ट पैन, नामीब रेगिस्तान और ‘कालाहारी पैन बेल्ट’ से प्राप्त पोषक तत्त्वों से भरपूर धूल के कारण हुआ था। 
    • यहाँ से धूल को वायु द्वारा ले जाया गया और भारी वर्षा की घटनाओं से पोषक तत्त्वों की कमी वाले जल में जमा हो गई।
  • प्रभाव
    • प्रचुर मात्रा में खाद्य आपूर्ति के कारण जूप्लैंकटन और मछली की आबादी में संभावित वृद्धि।
    • ब्लूम के दौरान उच्च प्रकाश संश्लेषण दरों ने इस क्षेत्र को एक महत्त्वपूर्ण कार्बन सिंक में बदल दिया, जिसने बड़ी मात्रा में CO₂ को अवशोषित किया।

प्लैंकटन: वर्गीकरण और महत्त्व

  • परिभाषा: ‘प्लैंकटन’ छोटे जीव होते हैं, जो समुद्री धाराओं के साथ बहते हैं तथा उनके विपरीत तैर नहीं सकते।
    • शब्द “प्लैंकटन” ग्रीक शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है “भटकने वाला”।
  • ‘प्लैंकटन’ के प्रकार:
    • जो प्रकाश संश्लेषण करते हैं। 
    • जूप्लैंकटन: जानवर के समान जीव जो फाइटोप्लैंकटन और छोटी समुद्री प्रजातियों को खाद्य रूप में ग्रहण करते हैं।
  • ‘प्लैंकटन’ का महत्त्व
    • फाइटोप्लैंकटन पृथ्वी पर उपस्थित आधी से अधिक ऑक्सीजन का योगदान करते हैं। 
    • वे जैव संकेतक के रूप में काम करते हैं, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को दर्शाते हैं। 
    • वे समुद्री खाद्य शृंखला का आधार बनाते हैं, जो जूप्लैंकटन, मछली और बड़ी समुद्री प्रजातियों का समर्थन करते हैं।
    •  वे मानव-प्रेरित कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में मदद करते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग से संबंध

  • प्रवृत्ति
    • दक्षिणी अफ्रीका में वायु का तापमान बढ़ना, शुष्कता बढ़ना और धूल का उत्सर्जन अधिक होने से बार-बार ‘ब्लूम’ की संभावना बढ़ सकती है।
    • सूखा और मेगाफायर (जैसे, ऑस्ट्रेलिया में) जैसी घटनाएँ महासागरों में एरोसोल और पोषक तत्त्वों का योगदान करती हैं, जिससे ‘ब्लूम’ की संभावना बढ़ जाती है।
  • संभावित लाभ: महासागरों में धूल से कार्बन अवशोषण में अस्थायी रूप से वृद्धि करके ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • चिंताएँ: दीर्घकालिक पारिस्थितिकीय और जलवायु प्रभावों को समझने के लिए आगे अनुसंधान की आवश्यकता है।

जलवायु विनियमन के लिए महत्त्व

  • फाइटोप्लैंकटन ब्लूम, ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में स्थलीय और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों के परस्पर संबंध को उजागर करते हैं।
  • जबकि ब्लूम प्राकृतिक कार्बन सिंक के रूप में कार्य कर सकते हैं, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों पर उनके नकारात्मक प्रभावों के लिए सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता होती है।

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