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पिपरहवा अवशेष

Lokesh Pal May 09, 2025 03:30 21 0

संदर्भ

हाल ही में भारत ने सोथबी और पेप्पे परिवार को कानूनी नोटिस भेजा है, जिसमें सांस्कृतिक और कानूनी उल्लंघनों का हवाला देते हुए नीलामी को रोकने तथा पिपरहवा अवशेषों को वापस भेजने की माँग की गई है।

संबंधित तथ्य

  • सांस्कृतिक संपत्ति का संरक्षण: भारत की आपत्ति को सांस्कृतिक संपत्ति के अवैध आयात, निर्यात और स्वामित्व के हस्तांतरण को रोकने के साधनों पर यूनेस्को, 1970 कन्वेंशन के तहत वैश्विक मानदंडों द्वारा समर्थित किया गया है।
  • नैतिक विरासत सिद्धांतों का उल्लंघन: नीलामी संभावित रूप से पवित्र और ऐतिहासिक वस्तुओं, विशेष रूप से मूल समुदायों और राष्ट्रों के लिए धार्मिक महत्त्व की वस्तुओं के संचालन पर अंतरराष्ट्रीय नैतिक मानकों का उल्लंघन करती है।

पिपरहवा अवशेषों के बारे में

  • पिपरहवा अवशेष बुद्ध से जुड़ी प्राचीन कलाकृतियाँ हैं, जिन्हें 125 वर्ष से भी पूर्व भारत-नेपाल सीमा के पास एक पुरातात्त्विक स्थल पर खोजा गया था।
  • खोज: वर्ष 1898 में, ब्रिटिश औपनिवेशिक जमींदार और इंजीनियर विलियम क्लैक्सटन पेप्पे ने वर्तमान उत्तर प्रदेश के पिपरहवा में एक स्तूप का उत्खनन किया, जिसे प्राचीन कपिलवस्तु माना जाता है, जो शाक्य गणराज्य की राजधानी थी।
  • अवशेष संग्रह: अवशेषों में हड्डियों के टुकड़े, सोपस्टोन और क्रिस्टल के ताबूत, एक बड़ा बलुआ पत्थर का संदूक तथा सोने के आभूषण, लगभग 1,800 मोती, माणिक, पुखराज और नीलम जैसे कई प्रकार के चढ़ावे शामिल हैं।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: माना जाता है कि ये अवशेष मूल आठ स्तूपों का हिस्सा हैं, जिनमें बुद्ध के अंतिम संस्कार के अवशेष रखे गए थे।
    • पिपरहवा स्तूप का निर्माण संभवतः बुद्ध के शाक्य वंश द्वारा उनके सम्मान में करवाया गया था।
    • पिपरहवा रत्न मौर्य साम्राज्य के समय के हैं, जो लगभग 240 से 200 ई.पू. के हैं।

भारत की प्रत्यावर्तन की माँग

  • भारत की आपत्ति के आधार: भारत का तर्क है कि ये अवशेष उसकी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग हैं और इनकी बिक्री भारतीय कानूनों तथा अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन का उल्लंघन है।
    • ये अवशेष प्राचीन वस्तुएँ और कला भंडार अधिनियम, 1972 तथा प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 एवं भारतीय भंडार अधिनियम, 1878 के तहत संरक्षित हैं।
  • बौद्ध समुदाय की चिंता: बौद्ध विद्वानों और भिक्षुओं ने नीलामी की निंदा करते हुए कहा है कि ये अवशेष बुद्ध के अनुयायियों द्वारा पूजा के लिए थे।
    • ब्रिटिश महाबोधि सोसायटी ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे अवशेषों को बेचना बौद्ध शिक्षाओं और मूल संरक्षकों की इच्छाओं के विपरीत है।

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